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व्यापारी

रवि कुमार सरावगी ग़मगीन बैठा था,अपनी विशालकाय कुर्सी मे अपनी एक हथेली कुर्सी की पुश्त से टिका कर किसी गहरी सोच मे डूबा था,उसकी आंखो से आंसू टपक रहे थे,और चेहरा मायूसी भरा था।अभी उसकी उम्र महज 30 साल की थी,मगर आज की तारीख मे वो ज्वेलरी के धंधे मे अपने शहर का बेताज बादशाह था,उसके दुकान के नाम का सिक्का चला करता था,बडे बडे लोग उसके दुकान के ग्राहक थे,और ऊंची हस्तियां भी उसके ब्रांड का प्रचार किया करती थीं।
फिर ऐसा शानदार आदमी दुख मे डूबा क्यों बैठा था,दरअसल उसे अभी अभी समाचार मिला था कि कनाडा मे उसके पिता भानूमल सरावगी की 60 साल मे मृत्यु हो गयी थी,जहाँ वो अपनी बेटी शिल्पा के साथ ठहरे हुये थे,पिछली रात उन्हें दिल का भीषण दौरा पडा था,और आज वो नही रहे,ना सिर्फ उसका पिता गुज़र गया था,बल्कि उसने अपना सबसे बडा मार्गदर्शक भी खो दिया था।
15 वर्ष की उमर मे उसने अपने पिता की गद्दी संभाली थी,तब से उसके पिता ने उसे उंगली पकड पकड के चलना सिखाया था,तब उसका व्यापार इतना बडा नही हुआ करता था,जितना कि आज था।पिता ने ही उसे सोने चांदी की पहचान दी,उनका मुल्य निर्धारित करना सिखाया, उधार और नगद की कला बतायी,यहाँ तक कि सफेद कालर रखते हुये भी कैसे बेईमानी का धंधा किया जाता है,वो सब भी सिखाया।अपने पिता की सबसे अहं शिक्षा को वो कभी नही भूला,वो ये थी कि,
"व्यापार मे कभी अपनी दोस्ती या रिश्तेदारी को बीच मे मत लाना,चाहे वो कितने भी नज़दीक का क्यों ना हो,ये तुम्हारा हक है,उससे कमा के ही छोडो,चाहे ईमानदारी से हो या बेईमानी से," ये शिक्षा उसे इतनी बार घोंट के पिलायी गयी थी कि,महज चंद सालो मे ही उसने अपना बिज़नेस एम्पायर खडा कर दिया,उसके दुकान की कोई पांच छ: ब्रांचे खडी हो गयी,और वो आभूषणो का सबसे बडा व्यापारी बन बैठा।
आज से साल भर पहले उसके पिता ने ईच्छा व्यक्त की कि अब वो अपने व्यवसाय से रिटायर होना चाहते है,और कुछ समय अपनी बेटी शिल्पा के साथ गुज़ारना चाहते है,जो अपने धनाढ्य पति के साथ कनाडा मे रहती थी।ना चाहते हुये भी रवि ने पिता को कनाडा भेज दिया,ताकि उनकी ईच्छा पूरी हो जाये,मगर अपनी मां को अपने पास रखा, ताकि इसी बहाने वो जब चाहे,उन्हें वापस बुला सके,वो वाकई अपने पिता को प्यार करता था।
करीब महीने भर पहले उसे पता चला था कि उसके पिता भानूमल जी की तबियत कुछ ठीक नही चल रही, पर ईलाज चल रहा है,सुधार जारी है,उसने बहन को कहा कि जैसे ही वो यात्रा के काबिल हो जाये,उन्हें इंडिया भेज दे,मां उन्हें मिस कर रही है,और आज ये खबर मिली थी कि वो चल बसे,वो शाक्ड रह गया,और इसी दुख मे वो पिछले एक घन्टे से गमगीन बैठा था,पिता के बिना वो खुद को अधूरा महसूस कर रहा था।
फ्लाइट की टिकट बुक हो चुकी थी,तीन घन्टे बाद की उडान थी,वो शाम तक पहुंच जायेगा,कनाडा मे रात बहन के यहाँ बिताने के बाद दोपहर की वापसी फ्लाइट से पिता का शव लेकर वो वापस दिल्ली आ जायेगा,मां रो रो के हलकान हो रही थी,अब पति का मुंह देखना ही उसका आखिरी ईलाज था।भरे मन से वो उठा और घर की ओर चल दिया,अभी उसे सफर की तैयारी करनी बाकी थी।
कनाडा पहुंच कर वो बहन से गले मिल कर काफी देर तक रोता रहा,लाश अभी तक अस्पताल मे ही थी,जहाँ से उसे सीधे उसे काफिन बाक्स मे पैक करा के एयरपोर्ट ले जाना था।
रवि कुमार सरावगी की मशहूरियत कनाडा तक थी,उसके आने की खबर सुन कर वहाँ के मशहूर व्यापारी भी उससे मिलने आये,शोक प्रकट किया,देर रात तक भी ल़ोग उससे मिलने आते ही रहे,बडी मुश्किल से वो उनसे विदा लेकर सो पाया,सुबह सुबह ही उसे अस्पताल पहुंचना था।अपने पिता की लाश देखने का,फिर उसे अपनी देखरेख मे काफिन बाक्स मे पैक करवाना था,और एम्बेसी से सारे पेपर्स भी क्लियर करवाने थे,दिक्कत तो कुछ भी नही थी,वो पैसे वाला था,और पैसे फेंक कर उसे काम जल्द करवाने की सारी तकनीके आती थी।
आंसुओं का मौसम हालांकि थम चुका था,फिर भी पिता की लाश देख के वो फूट फूट के रोने लगा,,उसे पिता की सारी नसीहते याद आने लगी,उन्हीं के निर्देशन की वजह से वो आज दिल्ली का सबसे बडा व्यापारी था,वो बडबडाने लगा।
"पिता जी,मुझे आपकी सारी बाते याद है,मै उन्हें कभी नही भूलुंगा,एक दिन मै आपको हिन्दुस्तान का सबसे बडा व्यापारी बन कर दिखाऊंगा।"
मन थोडा शांत होने के बाद वो अस्पताल के कर्मचारियों संग लाश को काफिन बाक्स मे पैक कराने की व्यवस्था मे लग गया,ये भी महत्वपूर्ण कार्य था।
शवपेटी प्लेन मे चढायी जा चुकी थी,अपनी बहन और जीजा से विदा लेकर,वो प्लेन मे सवार हो गया,और अपनी सीट पर जा बैठा,अब से चार घंटे बाद वो फिर दिल्ली मे होगा,ये सोच कर उसने ठंडी सांस ली,और अपनी आंखे मूंद कर सर टिका लिया,फिर से उसे अपने पिता की नसीहतें याद आने लगी।
"व्यापार मे कभी इमोशनल मत होना,अपनी हर मेहनत की कीमत वसूल करना,सामने कोई दोस्त हो या रिश्तेदार, या फिर मै ही क्यों ना होऊं"।
मन ही मन उसने हिसाब जोडा,दिल्ली से कनाडा आने का,फिर वापस दिल्ली जाने का,पिता के शव की पैकिंग करवाने का,अब तक उसके पूरे तीन लाख खर्च हो चुके थे,पर चलो कोई बात नही,उसने सिर को झटका।
दिल्ली एयरपोर्ट पर सब आये हुये थे,उसकी मां, उसकी पत्नी,उसका छोटा बेटा,उसके आफिस के मुख्य कर्मचारी, और ढेर सारे रिश्तेदार भी,मां को बरदाश्त नही हो रहा था,वो शव से लिपट कर रोने को बेताब थी,वो बार बार सबसे पूछ रही थी,प्लेन कितनी देर मे आयेगा।सब्र नही हो रहा था,सो सास के इसरार पर बीवी माया ने आफिस के कर्मचारी को अंदर एयरपोर्ट मे जाने को कहा,कि पता कर के आये,क्यों देर हो रही है।कर्मचारी भीतर गया,थोडी देर बाद वो लौट कर आया,उसके चेहरे पर हवाईयां उड रही थी,उसने जो खबर ला के दी,वो कुछ यूं थी।
"रवि कुमार जी को स्मगलिंग के आरोप मे गिरफ्तार कर लिया गया है,वो अपने पिता की लाश के पेट मे करोडो का सोना छुपा कर ला रहे थे,अब शव को सीधे दिल्ली के सरकारी अस्पताल मे ले जाया जायेगा,वहाँ पहले शव का पोस्टमार्टम होगा,पहलै सोना सावधानी पूर्वक निकाला जायेगा,फिर कही शव के मिलने की उम्मीद है।"
ये सुनते ही,भानु मल जी की पत्नी लीला देवी पछाड खा के गिर पडी,और माया देवी के हाथो के तोते उड गये,ये कैसा व्यापार?,सारे लोग अचम्भित रह गये।
इसमे रवि कुमार की क्या गलती थी,उसने तो अपने पिता की हिदायतो पर पूरी तरह अमल किया था,
"कभी इमोशनल मत होना,अपनी मेहनत का पूरा मुआवजा वसूल करना,चाहे वो दोस्त हो,रिश्तेदार हो,या मै ही क्यो ना होऊं।"
रवि कुमार सरावगी को अपने पिता का शव लाने मे पूरे तीन लाख रुपये खर्च करने पडे थे,और वो अपने व्यापार के उसूलो का पक्का धनी था,या यूं कहे कि वो पक्का "व्यापारी" था।