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लंच टाईम

निरंजन चौधरी 50 के लपेटे मे आये हुये इन्सान थे,और कोई 22 बरस हो गये थे उन्हें अपनी स्टील की फैक्टरी मे नौकरी करते हुये।जीवन एकरसता सा चला जा रहा था,वही आना,जाना,सुबह शाम की फिक्स बस,वही लंच टाईम,कोई परिवर्तन नहीं।
उन्होने सर उठा कर घडी की ओर देेेखा,साढेे बारह बज चुुुके थे,लंचटाईम मे आधा घन्टा और बचा था,वो अपना डेस्क सहेजने लगे।एक नियम सा बन चुका था,सारे स्टाफों का लंच आवर मे अपने अपने टिफिनों के साथ कैन्टीन या फिर पिछवाड़े के लान मे इकठ्ठा होकर खाने का,जहाँ वो सब अपना खाना भी आपस मे शेयर करते,और गप्पें लडाते।किसी के टिफिन से आलूपरांठे निकलते,तो किसी के टिफिन से फ्राइड राईस,और किसी के डब्बे से सादी रोटियाँ, सब्जी और अचार भी,पर सब मिला जुला कर प्यार से खाते।कभी किसी के डब्बे से कोई खास खुशबु आ जाती,तो सब उसके पीछे पड जाते,"क्या है,क्या है",फिर वो भाई अपना खाना तो क्या खा पाता,सभी उसका भोजन चट कर जाते,वो कुछ और खाता।पर ये ज़रुर था कि जब कभी किसी के घर मे कोई खास आईटम बनता,तो वो भरपूर मात्रा मे आता ताकि सब खा सके,इस तरह उनमे प्रेम का भी बंटवारा हो जाता।
एक दुखद घटना ये हुई थी कि निरंजन चौधरी की पत्नी आज से आठ महीने पहले चल बसी थी,टायफाईड की वजह से,पर जाने से पहले वो अपना एक अरमान पूरा कर गयी थी,कि कोई दो महीने पहले ही उसने अपने बडे बेटे अजय का ब्याह एक सुंदर लडकी आशा से कर दिया था,घर मे बहु आ गयी थी,इस कारण जल्द ही निरंजन के मन का घाव भर गया था,वो शीघ्र ही पत्नी दमयन्ती के चले जाने का घाव भूलने लगे।जीवन की गाडी फिर से खिंचने लगी थी,पर अब झटके लगने शुरु हो गये थे।
निरंजन बाबू के अपने ड्यूटी पर निकलने का समय साढे आठ बजे था,उनकी बस 8.45 पर आ जाती थी,निकलने से पहले ही,उन्हे अपना टिफिन बाक्स टेबल पर रखा मिलता था,जो दमयन्ती तैयार रखती थी,वो झटके से डब्बा उठाते,और निकल पडते,उन्हे ये भी भरोसा था कि उसमे उनके पसन्द का खाना भरा होगा,और ज्यादा ही होगा,दमयन्ती जानती थी कि और कोई नहीं तो सुरेश और नलिन खाने मे ज़रुर ही हिस्सा बंटायेंगे।वे बडे नज़दीकी मित्र थे,और दमयन्ती के हाथों का बना खाना सबको ही पसन्द था,खास कर भिंडी और करेले की भरवीं सब्जी।उस दिन भले ही निरंजन के हिस्से मे कुछ ना आये,पर वो खुशी से दोस्तो को खाते देख झूम उठता।
आज भी निरंजन ने बेमन से अपना टिफिन उठाया,और पिछवाड़े मे आ गया,जहाँ सब पहुंच रहे थे,वो सबसे थोडी दूर जा के बैठ गया।किसी ने उससे कुछ नहीं कहा,सब खाने लगे,सुरेश उसके पास आ कर बैठ गया,और अपने टिफिन से कुछ निकाल कर उसकी प्लेट मे रख दिया,निरंजन ने कुछ नहीं कहा,चुपचाप खाता रहा।
अब कोई मित्र उनसे कुछ इसरार नहीं करता था क्योंकि अब उनकी टिफिन से कभी कोई सुगंधित खुशबू नहीं उठा करती थी,सब जानते थे कि उनके पास सिर्फ सूखी रोटियां और पतली सब्जी हुआ करती थी,पर इस बात को लेकर कभी किसी ने उन पर तंज नहीं कसा,फब्ती नहीं कसी,दोस्ती निभाते रहे।सबको ये दुख था कि अब दमयन्ती भाभी नहीं रही,और आज कल की बहुये?,सब समझते थे।निरंजन ने भी सबको ये स्पष्ट कर दिया था कि बहु आशा देर से सोती थी,तो देर से उठती थी,तो ज़्यादा कुछ नही कर पाती थी,और वो उनका वैवाहिक जीवन बोझिल नही करना चाहते थे,इस तर्क को सबने ही दिल से मान लिया था।
जब ज्यादा समय साथ साथ काम करते हो जाता है,तो सभी एक दूसरे के जन्मदिन, शादी की सालगिरह, या बच्चे की वर्षगांठ, सब कुछ जानने लगते है,किसी का किसी से कुछ नहीं छुपता,और फिर ये नहीं हो सकता कि ऐसे वक्त कोई किसी को पार्टी ना दे,साथ खुशियां ना मनाये।कोई तो पहले ही अपना खास दिन घोषित कर देता और दोस्तो की फरमाईश पूछ लेता।अभी हाल मे ही नलिन ने अपने शादी की वर्षगांठ धूमधाम से मनायी थी,सारे दोस्तो को बीयर की भी पार्टी दी थी,खूब खिलाया पिलाया था।
आने वाली 3 मार्च को निरंजन चौधरी का जन्मदिन था,और ये बात सबको पता थी,सब निरंजन को खुश देखना चाहते थे,इसलिये पहले ही उन्होंने उनसे जोरदार फरमाईश कर डाली थी,कि कोई बहाना नहीं चलेगा,बहु से पहले ही बता दो कि,हमे बढिया पार्टी चाहिये, जिसमे आलू परांठे,रायता और गुलाब जामुन भी होना चाहिए,खास उसके हाथों का बना।निरंजन इन्कार कैसे कर सकता था,हमेशा हर किसी की पार्टी मे वो भी तो शरीक हुआ करता था,उसने खुशी से पार्टी की बात कबूल कर ली,अभी 3 दिन बाकी थे,वो कुछ ना कुछ कर लेगा,ऐसा उसने सोच लिया।
जब जिस दिन किसी की पार्टी होती थी,तो उसे खास तौर पर आफिस लेट आने की छूट होती थी,ताकि वो सारा सामान लेकर लंच आवर तक भी आ जाये,मैनेज़र साहेब भी कुछ नहीं कहते।
3 तारीख की सुबह भी निरंजन बाबू रोज़ाना की तरह साढे आठ बजे ही घर से निकले,पर आज उन्होंने अपनी डेली वाली बस नही पकडी,एक दूसरी राह ली।अभी भी उनका बेटा अजय और बहु आशा सोये पडे थे,कल रात ही उन्होंने ढूंढ ढांढ के अपने दोनो बडे टिफिन बाक्स तैयार कर लिये थे,और अपने पलंग के नीचे डाल लिया था।काफी पहले वो उसी मे दमयन्ती के बनाये पकवान आफिस ले जाया करते थे,ये काफी बडे थे,और ढेरो सामान उसमे आ जाया करता था।
आज उनके कदम सीधे कल्लु हलवाई की दुकान की तरफ मुड गये,जहाँ कल आफिस से लौटते समय ही उन्होंने सब तय कर लिया था,आर्डर भी दे दिया था,और पेमेन्ट भी।उन्होंने वहाँ से 40 आलूपरांठे, बूंदी का रायता,और 100 गुलाब जामुन लेकर टिफिन बाक्सों मे डलवा लिये,साथ मे पेपर प्लेटें भी,और प्रसन्नतापूर्वक टैक्सी पकड कर आफिस पहुंच गये,जहाँ सबने उनका स्वागत किया।
सबने उन्हे जन्मदिन की मुबारकबाद दी,और फिर लंच टाईम मे सब इकठ्ठा हुये,जिसमे आफिस के मैनेजर साहेब भी थे,और निरंजन बाबू काफी सम्मानित और इमानदार शख्स के रुप मे मशहूर थे।सब जी खोल कर खाने की प्रशंसा करने लगे,और निरंजन को बधाइयां देते रहे कि कुछ भी कहो,उन्होंने बहु बडी ही सुघड पायी थी,जो इतना लजीज़ खाना बना सकती थी।अब ये निरंजन का दिल ही जानता था कि बेटे बहु सोये पडे थे,जब वो घर से निकला था। उनको तो ये तक नहीं पता था कि आज उसका जन्मदिन है,खाना क्या बनाते?असल मे तो वो पिछले आठ महीनों से फुटपाथ की बनी सूखी रोटियां और पतली सब्जी टिफिन मे भर के आफिस लाता था ताकि सबके सामने खा सके,और बहु का नाम लेता था,कि उसने बनाया,हकीकत ये थी कि दमयन्ती की मौत के एक दो हफ्ते बाद ही आशा ने कह दिया था कि सुबह सुबह उससे खाना नही बनाया जा सकता,वे अपने खाने का इन्तजाम कैन्टीन से कर ले,पर लाज के मारे निरंजन ने ऐसा नहीं किया था,वो कैसे बताता कि बेटे अजय ने भी बीवी का ही साथ दिया था,सो वो फुटपाथ से अपना खाना लाया करता था।वो बैठा बैठा अपनी बहु की प्रशंसायें सुनता रहा,और मन ही मन कुढता रहा,पर मन मार के उनकी "हां मे हां" मिलाता रहा,उपर से उसे ये भी बोलना पडा कि "हां बेचारी ने रात से ही सारी मेहनत शुरु कर दी थी,तब जा के कहीं इतने स्वदिष्ट गुलाबजामुन तैयार हो सके"और वो क्या करता,सबने उसके बहु को दुआयें दी।
शाम हुई,फिर सब अपने अपने घर जाने को तैयारियां करने लगे,निरंजन बाबू ने भी अपने टिफिनबाक्सों को समेटा,साथ मे वो गिफ्ट भी जो उन्हें आफिस वालों से उपहार मे मिले थे,और बाहर निकलने लगे।सामने एक ओर सुरेश,उनका दोस्त खडा था,वो उनके पास आया, उसकी आंखे भरी थी,और दो बूंद आंसू गालो पर बह रहे थे,निरंजन ने उसे अकचका कर देखा।सुरेश ने कहा,
निरंजन,"ये रसीद तुम्हारे टिफिन की थैली मे पडी थी,जो सामान निकालते समय बाहर गिर पडी थी,मैने इसे चुपके से उठा कर जेब मे रख लिया था,इसे किसी ने नहीं देखा"।निरंजन ने उस रसीद को पढा,
40 आलूपरांठे,100 गुलाबजामुन,2 किलो बूंदी रायता,कुल टोटल 1200 रुपये,रसीद कल्लु हलवाई के दुकान की थी।बेध्यानी मे या खुशी के आलम मे निरंजन चौधरी उसे भूल ही गये थे,उनकी आंखे झुक गयी,और उनके भी आंखो से आंसू ढलक कर गालों पे बह आये,जिसे आगे बढ कर सुरेश ने अपने रुमाल से पोंछ दिया।
बहरहाल लंच टाईम की प्रक्रिया आगे भी जारी रही,पर निरंजन चौधरी को हमेशा इस बात का मलाल रहा कि,उनका झूठ कहीं ना कहीं पकडा गया,गुलाबजामुन की मिठास फीकी रह गयी।