Saat fere Hum tere - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

सात फेरे हम तेरे - भाग 3

निलेश की आंखें नम थी उसे नींद भी नहीं आ रही थी।करवट बदल कर वो रात बिताने लगा था कि उसे अचानक ख्याल आया कि गिटार बजाने का मन सा हो गया। और फिर उठ कर नाईट बल्ब के सहारे वो गिटार पर वो धुन‌ बजाने लगा नीले नीले अम्बर पर चांद जब आएं प्यार बरसाएं हमको तरसाए।।। फिर देखते देखते सुबह होने लगी और निलेश की आंखें लाल हो गई थी और फिर जाकर सो गया।

दूसरे दिन सुबह माया उठ कर तैयार हो गई उसके बाद देखा तो निलेश उठा था। माया ने कहा क्या बात है भाई रात भर जाग रहा था गिटार की आवाज सुनाई दी थी मुझे। क्या है हां ऐसे तो तबियत खराब कर लेगा तू।तेरे सिवा मेरा कौन है बोल। निलेश एक दम खामोश रहा। माया ने कहा तेरी खामोशी भी समझ सकती हुं मैं।माया ने कहा मैं समझ गई हु। एक काम कर तू सीधे उसके घर जाकर बोल दे।

निलेश ने कहा थैंक्स दी , आप कितना समझती हो। निलेश बहुत खुश हो गया। माया ने कहा हां पर आज नहीं हां शनिवार को ये सब नहीं करना चाहिए।हम दोनों रविवार को चलेंगे ठीक है अब मैं जा रही हुं तू चाय नाश्ता सब कर लेना मेरे भाई।। निलेश ने कहा हां दीदी तुम चिंता मत करो मैं खा लुंगा। फिर माया स्कूल चली गई।
निलेश को एक दिन भी भारी सा लग रहा था। किसी तरह एक दिन बीत गया।
शनिवार को वो सुबह हनुमान जी के मंदिर पहुंच गया और पुजा करने के बाद प्रसाद खा कर घर की तरफ आने लगा तो दूर से आते हुए नैना को देखा और फिर बोला हनुमानजी ने बड़ी जल्दी सुन लिया। क्या करूं रास्ते में बात करूं क्या?
नैना के साथ एक लड़की भी थी वो दोनो एक दुकान पर जाकर सामान लेने लगें। निलेश ने सोचा नहीं, नहीं दीदी ने मना किया था मैं नहीं जाऊंगा मुझे घर जाना चाहिए। ये सोच कर निलेश सीधे अपने घर पर आ गया। फिर नाश्ता करने लगा। वैसे तो कभी मंदिर नहीं जाता पर आज शायद किसी की चाहत ने मजबूर किया होगा। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो निलेश ने दरवाजा खोला तो माया आ गई थी। माया ने कहा अरे भाई तू मंदिर गया था क्या? निलेश मुस्कुरा कर अन्दर चला गया। फिर दोनों बैठ कर खाना खाने लगे।
माया ने कहा भाई मेरा आज तक कभी कुछ भी मांगा नहीं पर आज एक मांग की है उसे अगर मैं पुरा नही कर पाऊं तो कभी खुद को माफ नहीं कर पाऊंगी। निलेश ने कहा क्या दीदी आप भी ना। पनीर कोफ्ते बहुत ही लाजवाब बना है।
रात भर जाग कर काटनी पड़ी बिचारा निलेश।। सुबह जल्दी चाय पी कर दोनों भाई बहन तैयार हो गए। निलेश ने कहा दीदी क्या पहनु? माया ने हंस कर कहा अरे बाबा शादी नहीं करने जा रहा है कुछ भी पहन लो। निलेश ने कहा दी कुछ भी बोलती हो? चलो अब चलते हैं।
फिर दोनों भाई बहन मिलकर नैना के घर पहुंच गए। निलेश ने दरवाजे पर डोर बेल बजा।

एक लड़की ने दरवाजा खोला । रेखा कौन है बोलती हुई एक महिला बाहर आई जिनका नाम कोकिला। रेखा बोली - मैडम ये तो पड़ोस में रहते हैं। जिनके घर मिठाई लेकर देने गई थी।


कोकिला ने कहा- आओ अन्दर। निलेश और माया अंदर प्रवेश करते है और हाथ जोड़कर अभिवादन करते है।

निलेश बोला - मैं निलेश हुं और ये मेरी माया दी है। आप के सामने वाले मकान में रहते हैं।

कोकिला बोली बैठो बेटा।कहो कैसे आना हुआ।
निलेश ने कहा क्या एक गिलास पानी मिलेगा? कोकिला ने कहा हां, हां क्यों नहीं, अरे रेखा जरा पानी लेकर आ तो।
निलेश ने कहा आंटी मैं एक आर्टिस्ट हु। और अपने छोटे से घर में दी के साथ रहता हूं। आप लोग कहां से हो?

कोकिला बोली बेटा हम लोग लखनऊ से है।पर ये मकान मेरे भाई का है तो हम लोग यहां आ गये।
निलेश ने दूसरे पल में बोला आंटी नैना कहा है?
कोकिला चौक कर बोली अरे तुम नैना को कैसे जानते हो?
निलेश बोला क्या आंटी आप शर्मिन्दा कर रही हैं।हम तो रोज शाम को मिलते हैं। माया ने कहा हां हम नैना से मिलने आए हैं।
कोकिला ने कहा क्या ये कैसे हो सकता है ?वो चौंक गई थी।
निलेश आंटी मैं सच बोल रहा हुं।नैना हर शाम बालकनी में आती है और मुझे देखती है मुस्कुरा कर चली जाती हैं। मैं उसे देखता हूं। और फिर हम एक-दूसरे को समझने लगे हैं मैं आज नैना का हाथ मांगने आया हुं। मुझे पता है नैना भी चाहती है।
कोकिला ने कहा निलेश मैंने तुम्हारी आंखों में सच्चाई देखी है पर ऐसा नहीं हो सकता नैना भी तुमको चाहती है और वह रोज तुम्हें देख कर मुस्कुराती है। ये असम्भव है बेटा नैना एक दुर्घटना में अपने माता-पिता को और अपने दोनों आंखों को खो दिया है।
निलेश सुनकर उठ खड़ा हुआ और बोला ऐसा कैसे हो सकता है?
कोकिला ये कड़वा सच है।नैना तो इतनी हिम्मत वाली है कि सब कुछ भूलकर एक सादा जीवन बिता रही है।
निलेश ने कहा मैंने उसकी आंखों को महसूस किया है।

कोकिला ने कहा- अच्छा रूको मैं उसे बुलाती हु। रेखा जरा नैना को लेकर आ।
नैना मुस्कुराते हुए बोली क्या हुआ बुई?
कोकिला बोली नैना इससे मिलों ये निलेश है। हमारा पड़ोसी।
नैना ने कहा हैलो निलेश । हैलो माया दी।निलेश हैरान हो कर देख रहा था।
नैना ने तो निलेश को कभी देखी नहीं। माया उठकर नैना को अपने पास बैठा लिया और बोली तुम बहुत सुंदर हो। नैना हंसने लगी।
नैना ने पूछा निलेश क्या करते हो?
निलेश बोला मैं तो आटिटसट हूं।
नैना ने कहा ओह बहुत अच्छा क्या तुम मेरा स्केच तैयार कर दोगे?
निलेश बोला - हां ज़रूर।
नैना ने कहा बूई इनको नाश्ता चाय दिया? कोकिला ने कहा नहीं अभी नहीं दिया रेखा जल्दी से चाय नाश्ता लेकर आ।
निलेश ने कहा आंटी आप का शुभ नाम।
कोकिला ने कहा - मेरा नाम कोकिला शर्मा है।
निलेश ने कहा आंटी आप कभी आईये मेरे घर।
कोकिला ने कहा जानती हो नैना ये तो तुम्हें रोज देखता है और उसका कहना है कि तुम भी उसे देखती हो।
नैना हंस कर बोली क्या अच्छा मजाक है। कोकिला ने कहा अरे बाबा वो तेरा हाथ मांगने आया है। नैना ने कहा क्या।। अच्छा फिर बुई आपने उसे सब बता दिया अब भूत उतर गया। कि मैं एक अंधी , लाचार हुं।

निलेश ने कहा नैना मुझे पता है तुम सोच रही हो कि मेरा कोई मजाक है तो सुन लो मेरा प्यार सच्चा है इसमें को किसी बात का मोहताज तो नहीं है।ये पहला और आखिरी है तुम क्या सोचती हो ये बताओं। नैना ने कहा हां ये सब कहते हैं पर फिर सब छोड़ कर चले जाते हैं। निलेश ने कहा हां जाते होंगे पर जाने वालों में से तो नहीं पर हां कभी अगर जाऊं भी तो हमेशा के लिए शायद भगवान के पास ही जाऊंगा वैसे भी एक न एक दिन जाना तो होगा।

क्रमशः