Saat fere Hum tere - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

सात फेरे हम तेरे - भाग 6

निलेश अपने दोस्तों को भी इस बारे में जानकारी दी और बोला अगर कुछ भी पता चले तो बताना।
माया बोली चलो अब खाना खाने चले। निलेश ने कहा हां दीदी वो सब ठीक है पर मैं कुछ सोच रहा हूं कि क्या नैना को आंख नहीं मिल सकता है।वो समझती है कि मैं उसे धोखा न दे दूं। माया ने कहा नहीं हमें यकीन दिलाना होगा कि तेरा प्यार सच्चा है और वह किसी का मोहताज तो नहीं है। निलेश ने कहा हां वो ही तो मैं समझा नहीं पा रहा। क्या हम मिल सकते हैं। माया ने कहा पता नहीं वो क्या चाहती है? दुनिया में सच्चा प्यार करने वाला बहुत ही कम मिलता है। निलेश ने कहा हां दीदी मैं एक बार और उसे मिलना चाहता है। माया ने कहा हां ठीक है फोन पर बात कर लें। फिर निलेश नैना को फोन करता है और नैना फोन उठाती हैं। और फिर पुछती है हैलो कौन।। निलेश ने कहा मैं निलेश क्या कर रही हो?कल मिल सकती हो क्या? नैना ने कहा हां ठीक है पर कहां? गार्डन में। निलेश ने कहा हां पता है तुमको पेड़ पौधे बहुत पसंद हैं। नैना ने कहा हां पर तुम्हें सब पता है मेरे बारे में।
निलेश ने कहा हां तो , चलो कल आता हूं मैं। फिर कल के इन्तजार में बेसुध निलेश किसी तरह रात को खाना खा कर सोने चले गए।
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो कर बालकनी में कुर्सी पर बैठ गए। माया भी चाय की प्याली लेकर आ गई। निलेश ने कहा देखो दीदी नैना ने कितने जतन से पौधों को सिचा है। माया ने कहा हां भाई जो पौधों को इतने जतन से सिचा है वो भला किसी इन्सान को प्यार करना भी जानती होगी। निलेश हंसने लगा और तभी नैना बालकनी में आकर पौधों को पानी देने लगी। माया ने देखते ही कहा गुड मॉर्निंग नैना। नैना ने सुन कर कहा ओह माया दी गुड मॉर्निंग और निलेश गुड मॉर्निंग।। निलेश ने कहा हां गुड मॉर्निंग। माया ने कहा नैना कितने जतन से पौधों को पानी देती हो। नैना ने कहा हां दीदी ये पौधे हमारे दोस्त हैं। ये बेजुबान है पर जान है हमारी।
निलेश इतने में ही अपने कैनवास पर एक सुंदर सा चित्र बनाने को तैयार हो गया। माया ने कहा वाह भाई कितना सुन्दर।काश नैना देख पाती। नैना ने कहा हां निलेश अपने हाथ को दो हाथ कर दो। अपने चित्र को देश में विदेश में फ़ैला दो। निलेश ने कहा हां पर मैंने कभी इतना सोचा ही नहीं है।पर जब तुम कह रही हो तो जरूर करूंगा। नैना मुस्कुराते हुए अन्दर चली गई।
फिर माया भी स्कूल के लिए निकल गई। और निलेश अपनी पेंटिंग पुरी करने लगा। जिसमें एक लड़की पौधों को पानी देती हुईं नजर आ रही है।
फिर शाम होते ही निलेश सीधे नैना के घर पर गया। और कहा आंटी आप कैसी हैं? कोकिला ने कहा हां ठीक हुं। फिर नैना तैयार हो कर आ गई। निलेश ने कहा चलें। नैना ने कहा हां ठीक है। फिर दोनों निकल गए। निलेश पैदल चलोगी। नैना ने कहा हां ठीक है। निलेश ने कहा गार्डन पास में ही है। निलेश ने नैना का हाथ पकड़ लिया। नैना ने कहा निलेश ये हाथ कभी छोड़ोगे तो नहीं? निलेश ने कहा मरते दम तक नहीं। नैना एक दम से रोने लगी और फिर बोली तुम भी ये सब बोल रहे हो। निलेश ने कहा हां देखो जब तक जिंदा हुं तब तक हाथ कभी नहीं छोड़ सकता हूं पर मरने के बाद तो पता नहीं। नैना आओ यहां बैठे आ गया गार्डन। नैना और निलेश एक कुर्सी पर बैठ गए। दोनों ही एक-दूसरे के करीब थे। नैना ने कहा तुम्हें कुछ पुछना है क्या। निलेश ने कहा हां बताओ ना सबकुछ अपने बारे में। फिर नैना ने धीरे धीरे सब बातें बताया।
काफी देर हो गया ऐसा निलेश ने कहा। नैना ने कहा हां तुम्हारे साथ होती हुं समय का पता नहीं चल पाया। निलेश ने कहा हां सब यही कहते हैं। चलो कुल्हड़ वाली चाय पीते है। नैना ने कहा हां मुझे बहुत पसंद हैं। निलेश ने कहा हां मुझे भी।
फिर दोनों ने चाय पी ली और फिर दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर घर की तरफ चल दिए। नैना को अन्दर तक छोड़ कर निलेश चला गया।
घर पहुंच कर ही निलेश को एक फोन आया और ये फोन किसी और का नहीं सिर्फ नैना के आंखों का डोनर । निलेश बहुत देर तक बात करने लगा।
फिर माया ने रात को डिनर करते समय पुछा कि नैना का डोनर मिला।।

फिर निलेश किसी तरह से खाना खा कर उठ गए और फिर बोला कि दीदी आप कितना चिंता करते हो। माया बोली अरे भाई तू मेरा भाई है कैसे चिंता ना करूं ।
इस तरह से दिन निकलने लगें। निलेश पुरी शिद्दत से नैना के लिए डोनर खोजने में जुट गया।रोज अखबार को अच्छी तरह से पढ़ता था कि कहीं ना कहीं कोई तो होगा और फिर एक दिन शायद किस्मत ने डोनर खोजने में मदद मिला। अखबार में ही एक एड था जिससे लिखा था कि आई डोनर ,साथ में एक नम्बर भी था। निलेश देर न करते हुए तुरंत दिए गए नम्बर पर फोन किया। फोन की घंटी बज गई पर किसी ने फोन नहीं उठाया। निलेश सोचने लगा कि क्या करें। फिर कुछ देर बाद निलेश ने फोन किया तो तब जाकर फोन उठाया। उधर से आवाज आई तो निलेश बोला कि अखबार पर एड देखा तो उसी के बारे में पुछना है। उधर से आवाज आई जो भी बात है वो फोन पर नहीं हो सकता आपको आना पड़ेगा।
निलेश ने कहा हां ठीक है। फोन रखते ही लगा कि बात बन जाएंगी। फिर निलेश ने मन बना लिया कि उसे जाना होगा वहां जाकर ही कुछ हो सकता है। नैना को खुश देखना चाहता हूं और उसकी खुशी उसके आंखों में है।
उसी रात को निलेश ने माया से कहा कि दी मुझे डोनर मिल गया है पर मुझे बाहर जाना होगा। माया ने कहा अच्छा ये तो बहुत ही अच्छी बात है पर तुझे बाहर क्यों जाना होगा यहां से नहीं हो सकता है। निलेश ने कहा नहीं दीदी एक बार जाना पड़ेगा। इधर का सब काम निपटा कर रविवार को चला जाऊंगा।
कुछ देर बाद ही कोकिला का फोन आया। निलेश ने कहा नमस्कार आंटी। कोकिला ने कहा कल नैना का जन्मदिन है तो तुम लोग आमन्त्रित हो। निलेश ने कहा अच्छा कल है।हम जरूर आएंगे। फोन रखते हुए निलेश ने कहा दी कल नैना का जन्मदिन है हमें बुलाया है। माया ने कहा हां ठीक है चलेंगे।
फिर माया रोज की तरह स्कूल के लिए निकल पड़ीं। और निलेश पेंटिंग में लग गया।वो अब ज्यादा से ज्यादा पेंटिंग बनाने लगा नैना को याद करके। शाम को चाय पीने के बाद माया ने कहा चल कर नैना के जन्मदिन पर कुछ लेते हैं। निलेश ने कहा दी आपने तो मेरे मुंह की बात छिन लिया। चलो फिर, दोनों लोग मार्केट पहुंच गए। निलेश ने कहा दीदी उसे एक सलवार सूट देते है एक प्यारा सा रंग। माया हंसने लगी ओह मेरा भाई। फिर बहुत सारे कपड़े देखने के बाद निलेश को एक गुलाबी रंग वाली सूट पीस पसंद आ गया। फिर वो पैक करने को कहा गया। माया ने कहा चल अब एक हैंड बैग लेते हैं। निलेश ने कहा हां ठीक है। फिर वहां से दोनों एक बैग के दुकान पर जाकर बैग देखने लगें फिर एक बैग पसंद आया तो खरीद लिया।
फिर दोनों घर आ गए। निलेश बहुत ही खुश था क्योंकि अब सब कुछ ठीक हो रहा था।

क्रमशः