Saat fere Hum tere - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

सात फेरे हम तेरे - भाग 14

इसी तरह एक साल बीत गए।

नैना पुरी इमानदारी से माया दी के साथ रह कर उसका साथ दे रही है।


आज निलेश को गुजरे एक साल बीत गए।

नैना हर रोज माया दी के साथ चाय पीने बालकनी में आकर बैठ जाती है।

बिमल और अतुल अब नैना के बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं।


नैना ने एक स्कूल भी जोय्न किया खुद को सम्हाल लिया था पर एक कहीं ना कहीं खाली पन सा था बहुत बड़ी कमी थी।

नैना हमेशा अपने लैपटॉप पर कुछ ना कुछ अलग लिखा करतीं थीं कभी आर्टिकल तो कभी
कुछ। उसने एक बार निलेश की पेंटिंग के लिए लिखा था।
फिर अचानक से अमेरिका में एक बहुत बड़े आटिस् का मेल आया और तुरंत नैना ने निलेश की सारी पेंटिंग मेल कर दिया।

फिर कुछ दिनों के बाद निलेश की सारी पेंटिंग एक आर्ट ऑफ लिविंग के नाम से प्रदर्शन किया गया था और उसकी सारी पेंटिंग खरीद लिया गया।

माया को जब पता चला तो उसने कहा कि निलेश का एक सपना था कि अमेरिका में भारतीय सभ्यता पर उसके द्वारा बनाई गई पेंटिंग को लेकर जायेगा। और फिर माया बोली कि नैना तूने कर दिखाया जो निलेश ने सोचा था।

क्या तुमको कभी निलेश ने बताया था?
नैना ने कहा नहीं दी, निलेश कभी बताया नहीं पर शायद उसकी आंखों ने बता दिया।

आज बहुत खुशी का दिन है दी।।

अतूल और बिमल भी आ गए और खुशी जाहिर किया।

नैना ने कहा कि निलेश इतना बड़ा कलाकार था वो चाहता तो विदेश में अपना जगह आसानी से बना सकता था।

नैना ने बताया कि दी निलेश को बहुत बड़ा अवार्ड मिलेगा और साथ में जाने कितने डालर।

माया ने कहा हां पर क्या फायदा इनका।
नैना ने कहा दीदी वो अवार्ड आपको दिया जाएगा।
अगले महीने ही हमें जाना होगा अमेरिका।।
माया ने कहा क्या बोल रही है तू।।।
नैना ने कहा हां दीदी ठीक बोल रही हूं।


माया और नैना जाने की तैयारी करने लगे।
सबसे पहले हमें स्कूल में एप्लिकेशन डालना होगा। माया ने कहा हां ठीक है।पर हम जाएंगे कैसे कितना खर्च होगा।
नैना ने कहा नहीं मेरी प्यारी दी सब वो‌लोग ही देंगे।अमेरिकी आर्ट गैलरी से ही एयर टिकट और वहां रहने और खाने पीने का खर्चा सब कुछ दिया जाएगा।नैना ने हंस कर कहा।दी आप कितनी लकी हो जो आपको निलेश का अवार्ड मिलेगा

फिर दोनों खाना खा कर सो गए।

शाम होते ही नैना बालकनी में आकर सीधे चांद सितारे के बीच अपने प्यार को देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

कोकिला ने कहा ऐसा प्यार ऐसा समर्पण हमे कभी देखने को मिला नही इनका जन्मों का साथ है।।
कोकिला ने मन में सोचा कि कि ये कैसा प्यार है अब तो नैना को आगे बढ़ाना चाहिए उसे एक हमसफ़र चाहिए।
पर मुझे पता है नैना कभी नहीं मानेगी।

दूसरे दिन सुबह कोकिला माया के घर पहुंच गई और फिर बोली कि उसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। माया ने कहा हां बोलिए। नैना ने कहा बुई क्या बात है। कोकिला ने कहा देखो नैना निलेश को गए एक साल बीत गए और फिर युही जिंदगी नहीं बिता सकती हो। बिना किसी के। तुम को अपने बारे में सोचना चाहिए। नैना ने कहा अरे मैं बिल्कुल ठीक हुं और खुश भी हुं अगले महीने हम अमेरिका जा रहें हैं। निलेश को पुरस्कार मिलेगा। और ना जाने कितने पैसे। कोकिला ने कहा पर इन सब से जिंदगी नहीं चलती है। तुम अब अपने बारे में सोच। नैना ने कहा आप मेरी चिंता मत करिए।अब मैं खुद के लिए नहीं जीना चाहती हुं। दूसरों के लिए जीना है मुझे।बस अब और नहीं।
कोकिला ने कहा जैसी तुम्हारी मर्जी।मैं चलती हूं। कोकिला के जाने के बाद माया ने कहा हां नैना कोकिला जी ठीक कह रही है। नैना ने कहा प्लीज़ दी अब आप भी मत शुरू हो जाना।

मुझे इस बात का कोई ग़म नहीं है जो मै किसी की मोहताज में रहुं। मुझे सिर्फ बस निलेश के लिए सब कुछ करना है वो जहां कहीं भी है मुझे सिर्फ उसके लिए ही जीना है उसके लिए ही मरना है। मुझे पता है कि निलेश मुझे खुश देखना चाहता है तो मेरी खुशी माया दी के साथ ही है।
माया ने कहा तुम बिल्कुल निलेश की तरह हो। नैना ने कहा हां दीदी ये निलेश की आंखें ही तो है मैं जो कुछ सोचती हूं वो तो निलेश की सोच है। माया ने कहा हां ठीक है चलो अब खाना खाने चलें। फिर दोनों खाना खाने लगे और टीवी देखने लगे।
फिर रात को सोते समय नैना ने कहा दीदी कल शापिंग मॉल में चले। माया ने कहा हां ठीक है कल चलते हैं। फिर दोनों सो गए।पर नैना को अब आदत सी हो गई थी निलेश के पेंटिंग को जब तक ना देख ले नींद ही नहीं आएगी। फिर निलेश को याद करते हुए सो गई।
फिर सुबह जल्दी उठकर दोनों बालकनी में चाय की चुस्कियों के साथ अपने दिन का शुरूआत करते थे।
फिर दोनों नाश्ता करने के बाद निकल गए शापिंग मॉल में। वहां पर कुछ जरूरी सामान खरीदने के बाद हर साल की तरह इस साल भी कुछ चादरें, कुछ कम्बल, खरीद कर गरीबों को दान किया निलेश के नाम पर। उसके बाद घर लौट कर दोनों ने खाना खाया और फिर सो गई। शाम होते ही नैना निलेश के यादों को समेटे हुए उन करोड़ों टिमटिमाते हुए तारों के बीच निलेश को खोजने की कोशिश करने लगी।

माया ने आवाज लगाई तो नैना अन्दर आ गई और फिर माया ने नैना की आंखों में आसूं देखा तो वो बोली नैना निलेश को बहुत तकलीफ़ हो रही होगी तुम ऐसे रो रही हो। नैना ने कहा हां दीदी क्या करूं कभी कभी लगता है कि मैं भी निलेश का पास जा सकती तो कितना अच्छा होता। माया ने कहा ऐसा मत बोलो नैना।। देखो निलेश का प्यार सच्चा था तभी वो जाते जाते अपनी आंखें तुमको देकर गया। नैना ने कहा हां दीदी पर मुझे दुख तो इस बात का है कि आंखें तो है पर मेरा निलेश कहीं भी नहीं है।मैं किसका इंतज़ार करूं।किस के लिए जियू। माया ने कहा अब तो खुद के लिए ही जीना है तुमको। कुछ करना है। निलेश जहां कहीं भी है ये सब देख रहा है।
अच्छा चलो चाय पी लो। फिर दोनों मिलकर चाय पीने लगे।पर नैना के आंखों में आसूं लगातार बह रहे थे।
फिर चाय पीने के बाद माया ने नैना के बालों में तेल मालिश करने लगी। नैना ने कहा वाह क्या तेल मालिश करती है आप। माया ने कहा पता है ये निलेश भी कहा करता था। नैना ने कहा हां दीदी निलेश हमेशा आपकी चिंता किया करता था कि दीदी शादी नहीं कर रही है।तो मैंने पूछा कि कोई बात है तो उसने कमल जी के बारे में सब कुछ बताया था मुझे। माया ने कहा हां निलेश ने तुम्हें कमल के बारे में सब बताया। नैना ने कहा हां दीदी पर एक बात नहीं समझ आया कि आपने कमल जी को ढूंढने की कोशिश क्यों नहीं कि? माया ने कहा हां निलेश भी कहा करता था पर मुझे हमेशा लगता है कि उसने मुझे धोखा दिया। नैना ने कहा हो सकता है कि कोई मजबूरी रही होगी।
कमश: