Junoon Se Bhara Ishq - 30 books and stories free download online pdf in Hindi

Junoon Se Bhara Ishq - 30

Caring Abhay .

जब प्रिया ने सर उठा कर देखा तो रात के 11 बज रहे थे। मतलब की वो अभय की गोद मे फीछले 4 घंटे से बैठी थी। और उसने कुछ कहा भी नही।


क्या उसे ददॅ नही हुआ। उसका वजन कुछ कम भी नही था। फिर भी वो शांति से उसका बिजनेस का काम करता रहा। प्रिया को हर बार ये इंसान हैरान कर जाता था। कुछ ना कुछ करके इस वक्त भी वो हैरान थी।


क्या था ये इंसान। वो आहिस्ता से हिली, और अभय की तरफ देखा।

प्रिया :- मै रुम मे जाऊ। वही इंतजार कर लुंगी मै आपका।

अभय :- नही, ठीक है ! मुझे ज्यादा वक्त नही लगेगा। तुम यही रुको बस दो - ढाई घंटे और लगे गे।

दो - ढाई घंटे और उफ्फ प्रिया मन मे बोली।

पर वो उससे कुछ कह नही सकती थी। उसकी बात मानना उसकी मजबूरी थी। कुछ ही देर मे प्रिया की आंखे भारी होने लगी। और धीरे धीरे वो न चाहते हुए भी वो सो गई।

पर वो ये नही जानती थी की अभय उसे काफी देर से नोटिस कर रहा था। प्रिया सर धीरे धीरे टेबल की तरफ जाने लगा। उसका सर झटके से टेबल से टकराता उससे पहले ही अभय ने उसका चेहरा अपने हाथो से पकड लिया।

और उसे अपने सीने पर रख दिया। फिर उसे सीधा किया जिसे उसे सोने मे दिक्कत ना हो और वो अपना काम करने लगा। दो घंटे तक वो अपना काम करता रहा।

इन दो घंटो मे प्रिया कई बार हिली और उसका सर उसने सीने से नीचे खिसका पर हर बार अभय ने उसे संभाला और सीधा किया। वो उसका ध्यान किसी छोटे बच्चे की तरह रख रहा था।

ठीक दो घंटे बाद जब उसका सारा काम खतम हो गया। तब वोशुठा और प्रिया को अपनी बाहो मे उठा कर रुमषकी तरफ बढ गया।

वो चलते हुए उसके चेहरे को देखने लगा। उसका दिल कर रहा था की ऐसे ही हर वक्त अपनी बाहो मे रखे क्रोकी जो सूकून अभय को प्रिया के पास होता था वो सूकून दुनिया की कोई भी चीज नही दे पाती थी।

वो चाहता था की वो प्रिया को एक खिलौने की तरह अपने बैग मे रखे और जहा भी जाये उसे साथ ले जाये।

अगली सुबह जब प्रिया की आंखे खुली तो उसने देखा अभय जा चुका था। ये देख उसने चेन की सांस ली। कुछ दिनो मे प्रिया एक बात नोटिस कर रही थी। और ये की रात के वक्त मे अभय उसे कस कर पकड कर सोता था।



कई बार उसकी पकड इतनी तेज होती थी की उसका सांस लेना तक मुश्किल हो जाता था। और वो घबराकर उठ जाती थी। पर जैसे ही वो हिलती अभय तुरंत उठ जाता था। और उसे घूरत लगता था।





जब तक वो दोबारा सो न जाये। ये सोचते हुए वो उठी और बाथरूम मे चली गई पर कपडे निकालते वक्त जब उसने अपने कपडो को देखा वो चौंक गई।





क्योकी उसके कपडे चेन्ज थे। उसे अपने अंदर से रोज सोप की स्मैल भी आती थी। मतलब उस इंसान ने उसे अपने हाथो से नहालाया था। और कपडे भी चेन्ज किये।





उसने कपडो को उतारा तो देखा तो उसके शरीर पर कई जगह लाल निशान थे। ये देख उसका चेहरा गुस्से से तन गया। मतलब साफ था की उस इंसान ने उसके सोने का फायदा भी उठाया है।



हवसी कही का। कुछ देर बाद वो नही कर ब्रेकफास्ट करने चली गई। ब्रेकफास्ट करके वो उठी ही थी की उसने देखा की सामने से मिस्टर माथुर आ रहे है।



हर बार की तरह मुस्कुराहट के साथ। मिस्टर माथुर ने उसे गुड मोनिॅग विश किया। प्रिया समज गई की वो उस पर नजर रखने ही आया है। वरना उसका किसी और आदमी का आना अलाउड ही नही था।


प्रिया ने उनकी मॉनिॅग के जवाब मे हल्का सा सर हिलाया।

प्रिया :- गुड मॉनिॅग मिस्टर माथुर। शायद आप यहा मुझे देखने आये है।


मिस्टर माथुर ने उसे कुछ पल देखा फिर हल्के से मुस्कुरा दिया।


मिस्टर माथुर :- आपको ये बताने आया था की मिस्टर राठौर को अरेॅजेन्ट मिटिंग के लिए आउट ऑफ टाउन जाना पडा। उन्हे वापस आने मे कुछ वक्त लगेगा।



उनकी बात सुन प्रिया की हैरानी से आंखे फैल गई। उसके चेहरे पर हल्का सुकून आ गया। पर उसने तुरंत उन भावो को छुपा लिया। पर मिस्टर माथुर की नजरो से वो छूप नही पाया। पर उन्होने कुछ नही कहा।







मिस्टर माथुर :- पर फिर भी आपको कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से 6 बजे तक वापस आना है।

प्रिया :- जी, ठीक है !

अभय :- दूसरा आपको हर एक रुल फॉलो करना है जैसे आप करती आ रही है।

ठीक वैसे ही आपको मिस्टर राठौर का इंतजार करना होगा।

ये सुन प्रिया के कान गमॅ हो गये। उसे मिस्टर माथुर के सामने शमॅ आ रही थी। उस सनकी इंसान के एक एक शब्द मिस्टर माथुर की जुबान से सुन प्रिया को गुस्सा आ गया।



पर फिर भी उसने अपने गुस्से को कंट्रोल किया।

प्रिया :- ठीक है ! क्या अब मै जा सकती हू ?

मिस्टर माथुर :- बिल्कुल अगर कोई भी जरूरत होती आप मुझे इन्फोॅम कर दिजिएगा।

प्रिया :- जी।

प्रिया बंगलो से निकल गई। घर पहुंचने से पहले ही उसने ड्राइवर को गाडी रोकने लिए कहा। उसने बस दो दिन की ही छुट्टी ली थी। और अगले दो दिन नैशनल होली डे था।

इसलिए उसका चार दिन ऑफ हो गया। गाडी से उतर कर वो आहिस्ता आहिस्ता वो घर की तरफ बढने लगी। उसे आज बहुत नवॅस नेस हो रही थी।


आज से पहले वो जब भी घर आती थी। तो खुशी के साथ आती थी। पर आज वो खुशी गम मे बदल गई थी। ये वही फैमिली थी जिसने उसका सौदा किया था।


आज उसे यहा आने की बस एक ही वजह थी। और ये की वो अपने पेरेन्ट से डिस्कशन करना चाहती थी। जो भी हुआ उस बारे मे।

उसकी सेविंग इतनी नही थी की कोई कमरा वो रेन्ट पर लेकर रह सके। वो जानती थी की कभी उसके बारे मे किसी को भी पता चलेगा तो यही कहेगा ही उसे क्या जरूरत है घर की।


उसके पास तो सब कुछ है क्योकी वो अभय राठौर की वुमन जो है और ये सही भी था। पर उसकी जिंदगी मे हमेशा से सिक्योरिटी की कमी थी। इसलिए उसके पास ही अभय के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई ओप्शन नही था।





और वो ये भी जानती थी की अभय एक न एक दिन उसे अकेला और बेसहारा उसे छोड देगा। जब वो उसे उब जाएगा। इसलिए कम से कम उसके पास एक घर तो होना ही चाहिए। भले छोटा हो, कम फैसिलिटी वाला हो पर उसका खुद का घर तो होगा।



जहा वो जी भर कर रो सके और जी भर कर हस सके। और वो अपनी मर्जी चला सके जो उसने आज तक नही चलाई। जो वो जैसा चाहे वहा रह सके। उसका खुद का घर जैसे बाकी सबका होता है।





उसने सामने अपने पेरेन्ट के घर को देखा जहा कुछ दिन पहले वो इनसिडन्ट के बारे मे याद आ गया। और उसका दिल नफरत से भर गया। वो कड़वाहट से मुस्कुरा उठी आसमान मे काले बादल छाए गये थे। जो कभी भी बरस ने को तैयार थे।






उसने अपने सर को झुकाया और अपने घर मे चली गई। जैसे ही उसने घर मे कदम रखे। ललिता जी की गुस्से भरी आवाज आई।


ललिता :- तुम ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर मे कदम रखने की।

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