Saat fere Hum tere - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

सात फेरे हम तेरे - भाग 18

फिर फाईलन राउंड में दस प्रश्न पूछें जाएंगे। ज़बाब जल्दी देना है। नैना को प्रश्न पूछें गए और उसने सारे ज़बाब एक दम सही और जल्दी ही दे दिया।
प्रतियोगिता समाप्त हो गई और फिर अब परिणाम घोषित करना होगा। कुछ देर बाद ही हमारे जज आएंगे। कुछ देर बाद ही तालियों की गूंज उठने लगी। जनरल वीके सिंह के पुत्र आर्मी चीफ के कमांडर विक्रम सिंह शेखावत हमारे बीच आए हुए हैं। सबसे पहले मैं विक्रम सिंह शेखावत को स्टेज पर बुलाना चाहुंगा। कुछ देर बाद ही एक आर्मी चीफ बिक्रम सिंह शेखावत स्टेज पर पहुंच गया।सारे लोग उनका स्वागत तालियों से किया। नैना और माया जैसे ही विक्रम सिंह शेखावत को देखें तो देखते रह गए।ये कैसा कशमकश है यह अनोखा आकर्षक क्यों। माया ने कहा निलेश तू आ गया।ये बोलते हुए माया बेहोश हो गई। नैना ने अपने बैग से पानी का बोतल से छिड़काव किया तो माया उठ गई। नैना ने कहा दीदी भगवान ने बहुत बड़ा खेल खेला है ये हु-ब-हु निलेश की छवि है पर निलेश नहीं उसके हमशक्ल है। माया रोने लगी। फिर नैना को ही प्रथम पुरस्कार मिलने वाला था वो भी विक्रम के हाथों से। नैना अपने आप को सम्हाल कर स्टेज पर पहुंच गई।
विक्रम मुस्कुराते हुए बोला मुबारक हो ये आपके लिए। एक घड़ी और पचास हजार रुपए का चेक नैना को दिया गया। और फोटो भी खिंचवाई गई। मिडिया वाले भी वहां पहले से थे।

कुछ देर बाद नैना नीचे आकर माया के पास किसी तरह से पहुंच गई और फिर वो थर-थर कांपने लगी थी। नैना ने कहा दीदी अब यहां से हमें जाना चाहिए। माया ने कहा सही कहा तूने। भगवान भी कितनी परिक्षा लेते हैं। हमारे निलेश को ले लिया अब उसके हमशक्ल भेज दिया। और वो भी यही पर। माया ने कहा मैं तो एक बार के लिए समझ गई कि ये ही निलेश है और यादाश्त खो दिया है।
फिर कुछ देर बाद एक आदमी नैना के पास आकर एक कार्ड देते हुए कहता है ये सर ने दिया है। नैना ने कहा अच्छा ठीक है लिजिए। नैना उस कार्ड को देखती है उस में आर्मी चीफ बिक्रम सिंह शेखावत लिखा रहता है फोन नं और पता भी। नैना देख कर बैग में रख लेती है।


फिर वहां से वापस होटल में पहुंच जाते हैं। और दोनों के मन में सिर्फ उसका चेहरा ही आता है। कौन है ये आज अचानक आ गया विक्रम सिंह शेखावत।।

फिर किसी तरह कुछ खाना खाने के बाद सो गए।


आधी रात को अचानक नैना की आंखें खुल जाती है और फिर मन में सोचा कि ये कैसे हो सकता है हम सुनते थे कि हमशक्ल होता है और आज सच में देखा। ओह माई गॉड।
फिर दूसरे दिन सुबह माया और नैना तैयार हो कर नीचे पहुंच गए और चाय नाश्ता करने लगे। माया ने कहा कल रात को मैं सो नहीं पाई। भगवान ने ऐसे कैसे किया। निलेश को ले लिया और उसका हमशक्ल कहा से आ गए। नैना ने कहा इस बात का ही रोना है काश ये निलेश होता। फिर कुछ देर बाद ही कहा गया कि आज सबको एक मिटिग में जाना होगा।
सभी वहां से मिटिग के लिए निकल गए।

नैना ने कहा काफी दूर है ये कमुनिटी हाल । फिर सब वहां पहुंच गए। बहुत ही अच्छी जगह थी।पुरे खुलें हुए जगह पर कुर्सी लगी हुई थी। सभी जाकर बैठ गए।। कुछ देर बाद सभी आ कर बैठ गए उसमें विक्रम सिंह शेखावत भी बैठे थे। और वो बार बार शायद मुझे देख रहें थे। एक बार के लिए लगा कि शायद निलेश ही है।युही कैसे देख रहे हैं।या फिर मुझे कोई गलतफहमी हो गई हो। माया ने कहा नैना देख कैसे देख रहा है। नैना ने कहा हां दीदी। फिर बातचीत शुरू हो गई। उसमें बहुत कुछ बातें बताई गई कि एक, एक महीने में कला प्रदर्शनी लगाई जाएंगी और साथ ही पुरस्कार भी दिया जाएगा। कोई भी प्रश्न पूछें आप सभी।। कुछ लोग पुछने लगें। फिर नैना ने भी अपनी बात रखी कि क्या निलेश की एक स्केच बना कर लगाई जा सकती है क्योंकि जो अब इस दुनिया में नहीं है सभी लोगो को उसके बारे में पता होना चाहिए।सर ने कहा हां नैना जो जरूर हम ऐसा ही करेंगे उसके लिए हमें एक फोटो चाहिए।
नैना ने कहा हां ज़रूर सर मैं आज ही एक फोटो दे देती हुं। विक्रम सिंह शेखावत बहुत ध्यान से सारी बात सुन रहे थे।
फिर मिटिग के बाद सबको चाय नाश्ता कराया गया।
फिर सभी जाने लगें तो एक कर्मचारी ने आकर एक नोट नैना को दिया और कहा कि ये विक्रम सर ने दिया है। नैना ने नोट खोल कर देखा तो लिखा था कि मैं आपके साथ मिलना चाहता हूं। नैना बहुत गुस्से में आकर उसके नीचे ही पेज में लिख दिया कि मैं किसी अनजान से नहीं मिलनी हुं।वो नोट उस कर्मचारी को देकर जाने लगीं।


माया ने कहा क्या हुआ नैना इतना गुस्सा आया


क्यों? नैना ने कहा हां होटल चल कर बताती हूं।

माया ने कहा अच्छा ठीक है। फिर सभी वापस होटल में आ गए। नैना और माया फे्श होकर बैठ गए और फिर नैना ने सारी बात बताई।उसकी इतनी हिम्मत। माया ने कहा पर नैना वो क्या बात करना चाहता था एक बार तो बात करना था। नैना ने कहा मुझे उसकी नीयत ठीक नहीं लगी।परदेश में हम अकेले हैं और वो निलेश का हमशक्ल है तो मैं ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहती थी।
माया ने कहा अच्छा ठीक है चल सो जाते हैं।
फिर शाम को दोनों घुमने निकल गए।वहीं पर एक बहुत ही खूबसूरत सा मार्केट था। नैना ने कहा चलो दी कुछ देखते हैं।
फिर दोनों मार्केट में जाकर वहां के छोटे छोटे दुकानों पर तरह तरह का सामान देखने लगें। थोड़ी बहुत शापिंग भी किया। नैना को एक
शालॅ बहुत पसंद आया पर काफी महंगा था इसलिए नैना ने नहीं लिया। नैना को पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि जैसे दूर से उसे कोई देख रहा है पर जैसे ही नैना पीछे घूम कर देखना चाहतीं हैं पर कोई उसे नहीं दिखता।
नैना ने कहा दीदी चलो अब चलते हैं। माया ने कहा अरे कुछ देर रुकते हैं ना। नैना ने कहा नहीं दीदी अब चलें।
फिर दोनों वापस होटल में आकर खाना खाने चले जाते हैं। माया ने पूछा नैना क्या बात है तुम कुछ उदास हो। नैना ने कहा नहीं दीदी कुछ नहीं बस। फिर दोनों खाना खा लेते हैं। और तभी नैना को अतुल का फोन आता है। नैना ने कहा हां अतुल तुम लोग कैसे हो? अतुल ने कहा हां ठीक है पर तुम लोग कैसे हो कुछ बताया नहीं। नैना ने कहा हां हम थोड़े व्यस्त हो गए थे।कल बात करते हैं।
फिर दोनों अपने रूम में आ जाते हैं। नैना ने कहा दीदी सब कहते हैं परदेश अच्छा है पर मैं कहती हूं कि अपना देश सबसे अच्छा है।
माया ने कहा हां ठीक कहा मुझे भी कुछ अलग लगता है यहां की वेशभूषा और कानून और व्यवस्था सब कुछ में मिलावट लगती है।पर हां हम यहां की वेशभूषा और कानून और व्यवस्था को लेकर हास परिहास नहीं करना चाहते हैं क्योंकि हमें किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है।
फिर दोनों सो जाते हैं पर नैना को मार्केट वाली बात याद आ जाती है। सोचती है कि कौन हो सकता है कहीं वो विक्रम सिंह शेखावत तो नहीं। नैना ने कहा अरे ये क्या सोच रही हूं मैं।
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो कर नीचे पहुंच गए। वहां चाय और नाश्ता के बाद बताया गया कि एक रिसॉर्ट में जाकर वहीं पर इन्जाय करेंगे। सभी खुश हो गए। नैना ने कहा दीदी जाएगी ना? माया ने कहा हां ठीक है। फिर सभी एक बस में बैठ गए। और फिर बस निकल गई। नैना खिड़की से झांक कर बाहर का नजारा देखने लगी और फिर बोली वाह क्या सुन्दर मौसम है।
माया ने कहा हां बहुत ही मजा आ रहा है ये सब कुछ निलेश की बदौलत हो रहा है। नैना ने कहा हां काश निलेश यहां पर होता।

फिर एक घंटे बाद उस रिसोर्ट पर पहुंच गए। नैना ने कहा क्या जिंदगी है यहां की। हमें तो यहां ज्यादा नहीं अच्छा लगेगा है ना। माया ने कहा हां चलो अब। फिर सभी रिसोर्ट के अन्दर पहुंच गए। वहां पर पुल था जगह जगह पर। बहुत ही खूबसूरत था वो जगह। फिर बहुत बड़ी जगह पर खाने पीने का सामान था सब लोग खा भी रहे थे।
कुछ देर बाद नैना और माया भी वहां पहुंच गए। कुछ थोड़ा बहुत फल जूस पीने के बाद वो लोग कसीनो देखने पहुंचे और वहां देखा कि विक्रम सिंह शेखावत कसीनो खेल रहे थे। और सभी तालियों की गूंज कर रहे थे। नैना ने कहा ओह तो ये भी यही है। माया ने कहा हां ठीक है ना आज बात करते हैं। नैना ने कहा नहीं दीदी कोई जरूरत तो नहीं है। माया ने कहा अरे नहीं रे। फिर काफी देर तक खेल चला। फिर वहां से नैना और माया बाहर घुमने लगें। फिर पीछे से एक आवाज आई नैना जी। नैना पीछे मुड़कर देखा तो विक्रम सिंह शेखावत थे। अरे रुकिए तो। माया ने कहा हां रुकते हैं ना। फिर दोनों रुक गए। विक्रम सिंह शेखावत ने कहा क्या बात है आप मुझसे भाग क्यों रहीं हैं। क्या मैं इतना बुरा हुं। नैना कुछ भी नहीं बोली। माया ने कहा अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है सर। विक्रम सिंह शेखावत ने कहा अरे आप मुझे सर मत बोलिए मैं तो आपसे छोटा हुं आप विक्रम बोल सकती है।उस दिन भी आप से मिलना चाहता था पर आप तो चली गई। क्या हम दो मिनट बैठ कर बातें करें। नैना एक दम खामोश रहीं। माया ने कहा हां, ठीक है। फिर तीनों एक जगह पर बैठ गए जहां कुर्सियां लगाई गई थी। विक्रम सिंह शेखावत ने कहा आप लोग भारत से आएं हैं ना। मुझे भारत के लोगों बहुत पसंद हैं। माया बहुत ध्यान से विक्रम की बात सुन रही थी और फिर माया रोने लगी। विक्रम सिंह शेखावत आप खुद को समझते क्या है दीं को रूला दिया ना ये बात नैना ने गुस्से में आकर कहा। माया ने कहा अरे नहीं नहीं ऐसा नहीं कहो।मैं ठीक हूं। विक्रम सिंह शेखावत ने कहा मुझे माफ कर दिजिए दी। मैं शायद कुछ ज्यादा बोल गया।पर एक बात समझ नहीं आया कि आप दोनों मेरे इस चहेरे को देखें जा रहे हो ऐसा क्यों? माया ने रोते हुए कहा नहीं कुछ भी नहीं। नैना ने कहा सुनिए मिस्टर हमें अब कोई बात नहीं करनी है हमें जाना होगा। ये कहते हुए दोनों उठ कर चली गई।

कमश: