Mamta Ki Chhanv - Part 1 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की छाँव - भाग 1

नन्हीं अंशिता अभी केवल 4 वर्ष की ही थी कि समय के बेरहम हाथों उसकी माँ आराधना का लंबी बीमारी के चलते स्वर्गवास हो गया। एक वर्ष पहले आराधना को गले के कैंसर ने अपनी चपेट में ऐसे लिया कि फिर वह उसके चंगुल से बाहर निकल ही ना पाई।

अंतिम समय में आराधना ने अपने पति सौरभ से कहा, “सौरभ मैं तो बच नहीं पाऊंगी, अंशिता अभी बहुत छोटी है। तुम अकेले उसे संभाल नहीं पाओगे। तुम किसी गरीब घर की लड़की से दूसरा विवाह कर लेना ताकि वह यहाँ आकर ख़ुश रहे और हमारी बेटी का भी ख़्याल रखे।”

सौरभ ने आराधना के हाथ को अपने हाथों में लेकर कहा, “आराधना मैं तुम्हारा स्थान किसी और को नहीं दे पाऊंगा, इतना कहते हुए सौरभ की आँखों से आँसू टपक कर आराधना के हाथ पर गिरने लगे।”

किसी भी पत्नी के लिए अपने पति से यह कहना कि वह दूसरा विवाह कर ले, कितना दर्द भरा होता है। लेकिन हालातों से मजबूर होकर आराधना को यह कहना पड़ रहा था। उसका दिल रो रहा था, आँखें आँसुओं को छुपाने में नाकामयाब हो रही थीं। अपने पति और बेटी को इस तरह छोड़ कर जाने के दुःख में उसकी आँखों से आँसू टपक कर सौरभ के उन आँसुओं से जा मिले जो अभी-अभी उसी के हाथ पर सौरभ की आँखों से बह कर टपके थे। 

इतने में अंशिता भी वहाँ आ गई, “मम्मा उठो, उठो ना मम्मा, मुझे भूख लग रही है। अरे पापा तो रो रहे हैं, क्या हुआ पापा? मम्मा बीमार हैं ना, इसीलिए आप रो रहे हो ना? पर मेरी मम्मा हिम्मत वाली हैं, वह ज़रूर ठीक हो जाएंगी। जब मैं बीमार हुई थी, तब मम्मा मुझे भी यही कहती थी कि मेरी बेटी बहुत हिम्मत वाली है और फिर मैं भी ठीक हो गई थी, है ना मम्मा। मेरी मम्मा भी जल्दी से ठीक हो जाएंगी।”

अंशिता की बचपने से भरी, नादानी में कही यह बातें सुनकर आराधना रो पड़ी। उसने अंशिता को अपने सीने से लगा लिया और बस तभी उसने अंतिम साँस ली। यह आख़िरी संगम था साँसों के साँसों से मिलने का। इस तरह आराधना इस दुनिया को छोड़ गई।

अब सौरभ और अंशिता अकेले रह गए। अंशिता को तो यह समझने में भी वक़्त लग गया कि उसकी माँ अब इस दुनिया में नहीं है और कभी वापस भी नहीं आ पायेगी। वह अब कभी भी अपनी माँ की गोदी में बैठ नहीं पाएगी। कभी उसके आँचल में छुप नहीं पाएगी।

नन्हीं अंशिता हर रोज़ भगवान के मंदिर के पास जाकर कहती, “भगवान जी मेरी मम्मा को जल्दी से ठीक करके वापस भेज दो; वरना मैं आपसे कट्टी हो जाऊंगी।” 

उसकी ऐसी बातें सुनकर सौरभ का दिल ग़म के काले साये में घिर जाता। अब सौरभ पर पूरी जवाबदारी आ गई, नौकरी करे या बच्ची को संभाले। उसके माता-पिता दोनों ही अब तक यह दुनिया छोड़ कर जा चुके थे। उसे हमेशा आराधना के आखिरी शब्द याद आते रहते कि तुम अंशिता के लिए दूसरी शादी कर लेना। सौरभ वह शब्द याद आते ही डर जाता कि अगर नई माँ ने सौतेला पन दिखाया तो वह कहीं का नहीं रहेगा। उसकी फूलों जैसी नाज़ुक, प्यारी-सी बेटी को कोई सताये, यह बात वह हरगिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकेगा किंतु परिस्थिति की मांग तो यही थी कि उसे विवाह कर लेना चाहिए।

सौरभ ने किसी तरह दो माह निकाले परंतु यह दो माह उसके लिए कठिन चुनौती से भरे हुए थे। ना वह ढंग से नौकरी कर पा रहा था ना ही अंशिता को ही अच्छे से संभाल पा रहा था। आख़िरकार परेशान होकर उसने दूसरा विवाह करने का फ़ैसला ले लिया।

उधर गरीब माँ बाप की बेटी अंजलि, विवाह की उम्र पार कर चुकी थी। अत्यंत ही साधारण नैन नक्श, सांवला रंग और बिना दहेज के विवाह कर पाना आसान कहाँ होता है। लेकिन वह कहते हैं ना हर किसी के लिए कोई ना कोई होता ज़रूर है।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः