Mamta Ki Chhanv - Part 2 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की छाँव - भाग 2

सौरभ की तरफ़ से जब अंजलि के लिए शादी का रिश्ता गया तब अंजलि के माता-पिता की ख़ुशी का ठिकाना ही ना था। इतना अच्छा लड़का और संपन्न घर; अंजलि के लिए कहाँ कभी उन्होंने ऐसी कल्पना की थी। उन्होंने रिश्ते के लिए हाँ कह दिया किंतु अंजलि के मन में एक चुभन थी और वह चुभन थी अंशिता। परंतु विवाह और पति की चाह में व्याकुल अंजलि इस रिश्ते के लिए इंकार ना कर पाई।

अंजलि की उदासी देखकर उसके माता-पिता ने उसे बहुत समझाया। उसकी माँ ने कहा, “अंजलि बेटा तुम्हारे भाग्य में यही है। मैं समझ सकती हूँ सौरभ के साथ उस घर में उसकी छोटी-सी बेटी भी है। तुम्हें उसे पालना होगा, उसकी देखरेख करनी होगी। हो सकता है तुम्हारी उदासी का कारण वही हो लेकिन अंजलि यह बात हमेशा याद रखना कि तुम्हें एक संपन्न परिवार और इतना अच्छा पति सिर्फ़ और सिर्फ़ उस बच्ची के कारण ही मिल रहा है वरना आजकल दहेज के बिना रिश्ते होते ही कहाँ हैं। हम लोग तो कोशिश करके थक ही गए थे। ऐसा लगता था मानो तुम्हारे जीवन में सुहागन होना लिखा ही नहीं है।”

अंजलि के पापा ने कहा, “अंजलि बेटा उस बच्ची को कभी दुःखी मत करना, हो सके तो उसे सगी माँ का प्यार देना।” 

अंजलि ने अपने माता-पिता की बातों को दिल के एक कोने में रख लिया और फिर वह ख़ुशी-ख़ुशी ब्याह कर सौरभ के साथ उसके घर आ गई। सौरभ ने कोर्ट मैरिज की थी। अभी आराधना को जाने को ज़्यादा समय भी कहाँ हुआ था। यह एकदम साधारण विवाह था।

जब अंजलि घर आई तब उसके गले में फूलों का एक हार था। उसे देखकर अंशिता को लगा भगवान ने उसकी माँ को वापस भेज दिया है। वह जब गई थी तब सो कर गई थी और अब ठीक होकर चल कर वापस आई है। जब गई थी तब भी माला पहनी थी और अब भी माला पहन कर ही वापस आई है।

इस तरह अंजलि अब अंशिता की माँ बन गई । तीन महीनों से अपनी माँ की कमी महसूस करने वाली अंशिता बहुत ख़ुश थी कि भगवान ने उसकी मम्मा को नया रंग रूप देकर फिर से वापस भेज दिया है।

अंशिता ने अपने पापा से पूछा, “पापा भगवान जी ने मेरी मम्मा को वापस भेज दिया है ना?”

सौरभ आश्चर्यचकित होकर अंशिता की तरफ़ देखने लगे। वह सोच रहे थे कि बच्चे कितने भोले होते हैं।

तभी अंशिता ने फिर प्रश्न किया, “लेकिन पापा, मम्मा का चेहरा क्यों बदल गया है? जब वह गई थीं तब अलग थीं और अब अलग दिखने लगी हैं।”

सौरभ ने कहा, “बेटा उनकी तबीयत बहुत खराब थी ना इसीलिए।”

“हाँ पापा भगवान जी ने उन्हें ठीक कर दिया। जब वह गई थीं तब सो कर गई थीं और जब वापस आई हैं तो चल कर आई हैं, है ना पापा? थैंक यू भगवान!”

उसकी बात सुनकर सौरभ की आँखें आँसुओं से डबडबा गईं। उन्होंने अंशिता को गोद में उठा लिया और कहा, “हाँ बेटा भगवान ने तुम्हारी मम्मा को वापस भेज दिया है तुम्हारे लिए। तुम बहुत याद करती थीं ना मम्मा की?”

“हाँ पापा”

सौरभ सोच रहा था कि काश अंजलि उसे आराधना जितना ही प्यार करे ताकि उसकी बेटी का यह सोचना सच हो जाए। 

अंजलि की पहली रात को अंशिता उन दोनों के बीच सो रही थी। अंजलि ने अपने माता-पिता की समझाई हुई बातों को याद करके अपने मन को बड़ा करने की बहुत कोशिश की किंतु जितना चाहिए था उतना वह ना कर पाई। वह चाह कर भी अंशिता को उतना प्यार नहीं दे पा रही थी जितने की वह सच में हकदार थी।

अंजलि ने कभी अंशिता के ऊपर कोई अत्याचार नहीं किया, कभी हाथ नहीं उठाया। उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी किंतु वह अपनी संतान की तरह प्यार भी नहीं दे पा रही थी।

हर चीज अपने हाथ में पाने वाली अंशिता, जब अंजलि से कहती, “मम्मा मुझे पानी दो?”

तब अंजलि का जवाब होता, “जाओ ले लो, बड़ी हो रही हो।”

अंशिता ख़ुशी-ख़ुशी ख़ुद पानी लेकर पी लेती। जब वह कहती, “मम्मा मुझे सेब खाना है, जामफल खाना है, काट कर दो ना?”

तब भी अंजलि कहती, “अंशिता ख़ुद के हाथ से काम करना सीखो। मैं जब तुम्हारे जितनी थी तब से यह सब काम ख़ुद से ही करती थी। मम्मा को तो कितना काम होता है ना।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः