Mamta Ki Chhanv - Part 5 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की छाँव - भाग 5

हिमांशु के घर पहुँचते ही सौरभ ने कार रोकी और अंशिता उतरकर उस ओर जाने लगी जहाँ से कई लोगों की सिसकियों की आवाज़ें आ रही थीं। सौरभ और अंजलि भी वहाँ आ गए। वहीं दूर लोगों से घिरा हुआ हिमांशु उसे दिखाई दे गया। हिमांशु की आँखें लाल और काफ़ी सूजी हुई दिखाई दे रही थीं। अंशिता को देखते ही उसकी आँखें फिर से बरसने लगीं। 

अंशिता आँखों में आँसू लिए उसके पास जाकर खड़ी हो गई लेकिन उससे क्या कहे। इस समय उसके पास हिमांशु को सांत्वना देने के लिए कोई शब्द ही नहीं थे।

हिमांशु ने रोते हुए कहा, “अंशिता मेरी सपना मुझे छोड़ कर चली गई,” कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगा।

अंशिता ने हिमांशु की आँखों के आँसुओं को अपने हाथ से पोंछते हुए बड़ी ही हिम्मत इकट्ठी करके कहा, “हिमांशु तुम्हें धीरज रखना होगा। तुम यदि कमज़ोर हो जाओगे तो अंकल और उन बच्चियों को कौन देखेगा। हिमांशु दोनों बच्ची कैसी हैं?” 

“वह दोनों बिल्कुल स्वस्थ हैं।”

तब तक अंदर से उसे बच्चियों के रोने की आवाज़ आने लगीं। उस आवाज़ को सुनते ही अपने आप ही अंशिता के क़दम उस आवाज़ की ओर मुड़ गए। अंदर जाकर उसने देखा दो नन्हीं गुड़िया झूले में पड़ी रो रही थीं और हिमांशु के पिताजी किसी तरह से उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहे थे।

तभी सपना की मम्मी बोतल में दूध लाती हुई उसे दिखाई दीं। तब उनके हाथों से बोतल लेते हुए अंशिता ने कहा, “आंटी मुझे दो, मैं पिलाती हूँ।”

अंशिता को बोतल देते हुए सपना की मम्मी ने कहा, “अब इन बच्चियों का क्या होगा बेटा? काश हम अपनी उम्र बाँट सकते तो मैं अपनी उम्र सपना को दे देती। उसे इस तरह जाने नहीं देती।”

अंशिता उनकी इन बातों का कोई जवाब ना दे पाई। उनके हाथ से बोतल लेकर वह रोती हुई बच्ची को अपने गोद में लेकर दूध पिलाने लगी।

अंशिता शाम तक वहीं रुकी फिर अपने घर चली गई। दूसरे दिन उसे देखने के लिए लड़के वाले आने वाले थे। उसने घर पहुँच कर अपने पापा से कहा, “पापा आप कल के लिए लड़के वालों को मना कर दो।”

सौरभ समझदार थे वह जानते थे कि इस समय हिमांशु के कारण अंशिता दुःखी है और इसीलिए मना कर रही है। उन्होंने तुरंत ही कहा, “ठीक है बेटा।”   

अंशिता की आवाज़ सुनते ही अंजलि उसके पास आ गई। उन्हें देखते ही अंशिता ने कहा, “मम्मा उन दोनों बच्चियों की तरफ देख कर कितना दुःख हो रहा था ना।”

“हाँ बेटा भगवान ने उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय कर दिया। बेटा अचानक क्या हो गया था सपना को? हम तो किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाए । तुम्हें किसी ने बताया क्या?”

“मम्मा वहाँ इतने आँसू थे, इतनी सिसकियाँ थीं, बच्चियों के रोने की आवाज़ें थीं कि यह पूछना संभव ही नहीं था। सब कुछ तो ठीक था अचानक क्या हो गया मालूम नहीं। मम्मा मैं किससे पूछती, हिमांशु तो कुछ भी बताने की हालत में नहीं था।”

अंशिता की आँखों में बार-बार वही दोनों बच्ची दिखाई दे रही थीं। वह रात को भी उनके लिए बहुत चिंतित थी। सारी रात वह सो भी नहीं पाई। दूसरे दिन सुबह भी उसका मन नहीं माना और वह फिर से हिमांशु के घर उन बच्चियों के लिए पहुँच गई। वहां जाकर उसने देखा बच्चियाँ बार-बार रोने लगतीं तो हिमांशु के पिता जी आकर उन्हें झूला देने लगते। कोई मेहमान कभी गोद में उठा लेता, कोई दूध पिला देता लेकिन माँ की तरह भला कौन देखता है। कौन इतना ख़्याल रखता है जितना माँ रखती है। 

धीरे-धीरे तेरह दिन बीत गए, सपना की माँ के सिवाय अब सभी मेहमान जा चुके थे। अंशिता बच्चियों को खिलाने रोज़ आने लगी। उन्हें देखकर बार-बार उसके मन से आवाज़ आती, दे-दे इन्हें माँ का प्यार। तू भी तो ऐसे ही बिना माँ की बच्ची थी। यदि मम्मा तुझे नहीं अपनाती तो क्या होता तेरा? इस तरह के ख़्यालों ने अंशिता के दिन और रात की नींदें उड़ा दीं। उसे उन बच्चियों में अपना बचपन दिखाई देने लगा। यदि माँ का आँचल ना मिलता तो कितना वीरान होता उसका बचपन।

देखते-देखते तीन माह गुजर गए। अब तक बच्चियों को जिनका नाम हिमांशु के पिता ने राधा और मीरा रखा था, मानो उन्हें अंशिता की आदत सी हो गई थी। अंशिता को भी उनके बिना चैन कहां मिलता था। बार-बार उसके मन में यही विचार आता कि राधा और मीरा को अपना ले और उसने मन ही मन निर्णय ले लिया कि इन बच्चियों को वह माँ का प्यार ज़रूर देगी, उन्हें अपने आँचल में समेट लेगी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः