Mamta Ki Chhanv - Part 7 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की छाँव - भाग 7

अंशिता पहले की तरह रोज़ ही हिमांशु के घर जाती रही। उन दोनों बच्चियों को गोद में उठाती उन्हें प्यार करती। धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया, ये तीन माह तीन वर्ष की तरह बीते थे। अब तक सपना की माँ बच्चियों को संभाल लेती थीं लेकिन उन्हें भी अपने घर वापस लौटना पड़ा और आज घर सूना था। घर पर हिमांशु और उसके पिता के अलावा केवल काम वाली बाई विमला ही थी। हिमांशु और उसके पिता चिंतित थे कि अब क्या करें? कैसे करें?

शाम का समय था तभी अंशिता उनके घर आई। हिमांशु अपने दुःखों के साथ अकेला ड्राइंग रूम में बैठा सामने दीवार पर लगी मुस्कुराती हुई अपनी सपना की तस्वीर को एकटक निहार रहा था। दरवाज़ा खुला था अंशिता कब उसके पास तक आ गई उसे पता ही नहीं चला।

अंशिता ने हिमांशु के कंधे पर हाथ रखते हुए उसे पुकारा, “हिमांशु …!”

हिमांशु चौंक गया और अपनी आँखों के अश्कों को पोंछते हुए कहा, “अरे अंशिता तुम? तुम कब आईं?”

“बस अभी आई हूँ।”

“आओ बैठो।”

“हिमांशु अब तो सपना आंटी भी चली गईं, अब कैसे …?” 

“पता नहीं अंशिता कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। भगवान ने मेरे भाग्य में ऐसा संघर्ष लिख दिया है। क्या करूं, कैसे करूं?” 

“हिमांशु मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ।”

“हाँ कहो ना, क्या बात है?”

“हिमांशु मैं राधा और मीरा दोनों को माँ का प्यार देना चाहती हूँ।”

अपने स्थान से खड़ा होते हुए विस्मय भरी नज़रों से अंशिता की ओर देखते हुए हिमांशु ने कहा, “यह क्या कह रही हो अंशिता? तुम होश में तो हो?”

“हिमांशु मैं बिल्कुल होश में हूँ। मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूँ।”

“अंशिता तुम्हारे लिए एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे हैं, मैं जानता हूँ। तुम इतनी खूबसूरत हो, पढ़ी लिखी हो …”

अंशिता ने हिमांशु की बात काटते हुए कहा, “रिश्ते आ रहे हैं हिमांशु लेकिन मैं इन बच्चियों की माँ बनना चाहती हूँ। मेरे लिए नहीं, तुम्हारे लिए भी नहीं, केवल इन फूल-सी नन्हीं जान के लिए।”

हिमांशु गहरी सोच में चला गया। कुछ सोचते हुए उसने कहा, “अंशिता तुम अभी भावनाओं में बह रही हो। ऐसे निर्णय जल्दबाजी में नहीं, बहुत सोच समझ कर लिए जाते हैं।”

“हिमांशु मेरा यह फ़ैसला बहुत सोच समझ कर ही लिया गया है। ना इसमें कोई जल्दबाजी है और ना ही कुछ और…! हिमांशु शायद तुम नहीं जानते, मैंने कभी तुम्हें बताया ही नहीं क्योंकि मुझे कभी यह बताने की ज़रूरत ही नहीं हुई …”

“क्या कहना चाह रही हो अंशिता?”

“हिमांशु मैं केवल 4 साल की थी तब मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था।”

हिमांशु चौंक कर बोला, “यह क्या कह रही हो?”

“हाँ हिमांशु उस समय यदि मम्मा ने मुझे ना अपनाया होता तब मुझे कौन संभालता? कौन माँ का प्यार देता और तब मेरा जीवन कैसा होता? तुम समझ सकते हो। हिमांशु मैंने तो यह फ़ैसला कुछ दिन पहले ही कर लिया था कि मैं इन दोनों बच्चियों की माँ बनूँगी; जिनके सर से माँ का आँचल भगवान ने छीन लिया है।” 

“लेकिन अंशिता मैं तुम्हारे साथ न्याय नहीं कर पाऊँगा। मैं सपना को कभी नहीं भूल पाऊँगा।” 

“तुमसे कह भी कौन रहा है, उसे भूलने के लिए। मैंने कहाँ तुमसे कुछ भी मांगा है। मैं समझ सकती हूँ हिमांशु यह सब बहुत जल्दी है। मैंने मेरे मन की बात कहने में समय का इंतज़ार इसलिए नहीं किया कि इसी समय तो इन बच्चियों को माँ के आँचल की ज़रूरत है। यदि यह निर्णय लेना ही है तो फिर देरी क्यों।”

“लेकिन अंशिता अंकल आंटी …”

“उनकी चिंता मत करो हिमांशु, मेरा यह निर्णय आज का लिया हुआ नहीं है। इतने रिश्तों को मना करने के कारण पापा और मम्मा मेरे इस फ़ैसले के बारे में जानते हैं।”

  

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः