O Bedardya - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

ओ...बेदर्दया--भाग(५)

शैलजा भीतर से बहुत डरी हुई थी,क्योंकि वो लल्लन की हरकतों से पूरी तरह से वाकिफ थी,लल्लन का मेल जोल नेताओं और गुण्डों के साथ था,जबकि उसका पति तो एक सीधा सादा समाज के अनुरूप चलने वाला इन्सान था,उसके पति का फालतू लोगों और फालतू के व्यसनों से दूर दूर तक का नाता नहीं था,लल्लन और उसका पति एक ही परिवार से ताल्लुक रखते थे,लेकिन दोनों भाइयों के व्यवहार में जमीन और आसमान का अन्तर था,शैलजा यही सब सोच रही थी कि तब तक शास्त्री जी स्नानघर से हाथ मुँह धोकर निकल आए और शैलजा से बोलें....
"एक गिला ठण्डा पानी पिला दो"
शैलजा फौरन रसोईघर की ओर गई और मटके से एक गिलास पानी भरकर शास्त्री जी के हाथ में थमाते हुए बोली....
"मुझे ना जाने क्यों अजीब सा डर लग रहा है"
"पगली!इतना क्यों डर रही हो? वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा",शास्त्री जी बोलें....
"आप पुरूष है ना!,हम स्त्रियों से पूछिए कि जब कोई उनकी गृहस्थी में बेवजह दखलन्दाजी करता है तो उन के दिल पर क्या बीतती है?,शैलजा बोली....
"शास्त्रिन!तुम नाहक ही परेशान हो रही हो,वो घटिया इन्सान है और उसकी इस घर में कोई जरूरत नहीं और उसको फटकार लगानी भी बहुत जरूरी थी,अब कभी दोबारा इस घर में घुसने की हिम्मत नहीं होगी उसकी,मैनें जो किया सही किया और तुम्हें ना तो डरने की जरूरत है और ना ही कुछ सोचने की",शास्त्री जी बोले....
"ठीक है !अब ज्यादा ना सोचूँगी इस बारें में "शैलजा बोली....
"ठीक है तो अब मुस्कुरा दो और देखो सब्जी वाले झोल़े में नरम-नरम हरा-हरा कटहल रखा होगा,आज उसकी शानदार तरकारी बनाकर खिला दो,साथ में प्याज का सलाद और हरा नींबू काटकर रखना मत भूलना"शास्त्री जी बोलें...
फिर शास्त्री जी की बात पर शैलजा मुस्कुरा दी और रसोईघर की ओर चल पड़ी रात का खाना बनाने के लिए,कुछ ही देर में शैलजा ने रात की रसोई तैयार कर ली और बाप बेटे के लिए खाना भी परोस दिया,कटहल की तरकारी खाकर शास्त्री जी बोले...
" वाह...क्या उम्दा और शानदार तरकारी बनी है?तुम्हारे हाथों में तो जादू है....जादू"!
और फिर दोनों के खाना खाने के बाद शैलजा ने भी खाना खाया और रसोई साफ करके आँगन में बरतन धुले फिर आँगन में बिछी दोनों चारपाइयों में मच्छरदानी लगाकर अपनी चारपाई पर लेट गई,शास्त्री जी अभी भी जाग रहे थे और अपने बगल में लेटे अभ्युदय को रामायण की कहानी सुना रहे थे और कहानी सुनते-सुनते शायद अभ्युदय सो चुका था,जब कहानी सुनते सुनते अभ्युदय ने कोई जवाब ना दिया तो शास्त्री जी ने बीच में ही कहानी सुनाना बंद कर दिया,इधर अपनी चारपाई पर लेटी शैलजा तारें देख रही थी और गहरी चिन्ता में डूबी थी,तभी शास्त्री जी ने पुकारा....
"शास्त्रिन!सो गई का"
"ना !नींद नहीं आ रही",शैलजा ने जवाब दिया...
"तो तुम्हें भी कोई कहानी सुनाएं का,जिससे तुम्हें नींंद आ जाए",शास्त्री जी बोलें....
शास्त्री जी की इस बात पर शैलजा हँसी और बोली...
"मैं क्या कोई छोटी बच्ची हूँ जो कहानी सुनते सुनते सो जाऊँ"
"छोटी बच्ची से कम भी तो नहीं हो,तभी तो नाहक ही परेशान हो रही हो"शास्त्री जी बोले....
"तो क्या करूँ?नहीं भूल पा रही हूँ वो सब",शैलजा बोली...
"सबकुछ भूलकर सोने की कोशिश करो,जितना ज्यादा सोचोगी तो उतना ज्यादा ही अपनी परेशानियों को बढ़ाओगी",शास्त्री जी बोले...
"आप सो जाइए,मैं भी सोने की कोशिश करती हूँ" और इतना कहकर शैलजा करवट लेकर लेट गई और कुछ देर के बाद उसे नींद आ गई...
दिन यूँ ही गुजर रहे थे और अभ्युदय बड़ा हो रहा था और इस बीच लल्लन कभीकभार शास्त्री जी के घर भी आता रहा लेकिन अब वो वैसी कोई भी हरकत ना करता जो पहले किया करता था,बस शास्त्री जी से ये जरूर कहा करता कि घर का खाना खाने का मन करता है इसलिए चला जाता हूँ,हम जैसे आवारा लोगों को तो इतना ही काफी है कहने के लिए कि परिवार के नाम पर कोई अपना तो है,लल्लन की बातें सुनकर शास्त्री जी को लगा कि अब शायद लल्लन सुधर गया है इसलिए ऐसी बातें कर रहा है लेकिन शैलजा को लल्लन पर अब भी भरोसा नहीं था,लेकिन वो करती भी क्या ?क्योंकि वो जब शास्त्री जी ये कहती कि लल्लन पर आँख मूँदकर भरोसा ना करें तो शास्त्री जी उससे कहते कि....
"वक्त हर इन्सान को बदल देता है और अपना लल्लन भी अब बदल गया है"
ऐसे ही दिन गुजरते जा रहे थे और अब अभ्युदय जवानी की ओर कदम रख रहा था ,उसने दसवीं का इम्तिहान बहुत ही अच्छे अंकों से पास किया था,बेटे की तरक्की देखकर शास्त्री जी का सीना गर्व से फूल गया था,अब अभ्युदय ने ग्यारहवीं में दाखिला ले लिया था और शास्त्री जी अब उसकी पढ़ाई का खास ख्याल रख रहे थें,वें चाहते थे कि अभ्युदय आगें चलकर डाक्टर बने और अपना अस्पताल वो गाँव में जाकर खोले और वहाँ लोगों का मुफ्त इलाज करें,यही सपना लेकर शास्त्री जी ,जी रहे थे लेकिन एकाएक एक दिन उन्होंने अभ्युदय को एक पान की दुकान पर सिगरेट पीते देख लिया और वहीं पर जाकर अभ्युदय के गाल पर जोर का झापड़ रसीद दिया,एक थप्पड़ से ही अभ्युदय तिलमिला गया और यहीं से शुरू हो गई उसके मन में अपने पिता के प्रति नफरत,क्योंकि अभ्युदय को ये बात बरदाश्त नहीं हुई कि उसके पिता ने उसे बीच बाजार सरेआम सबके सामने थप्पड़ मारा? धीरे धीरे ये बात उसके मन में घर कर गई और इस बात ने उसकी जिन्दगी में ज़हर का काम किया,अभ्युदय सुधरने की वजाय और बिगड़ने लगा,जब ये बात लल्लन को बता चली तो उसने इस बात का फायदा उठाया और वो अकेले में अभ्युदय मिलता और उसके पिता के खिलाफ उसके कान भरता,अभ्युदय तो नादान था उससे जो भी लल्लन कहता वो उसे सच मान लेता.....
ज्यों ज्यों अभ्युदय बड़ा हो रहा था तो वो शास्त्री जी से बदजुबानी भी करने लगा था,शास्त्री जी उसकी बातों को ये कहकर टाल जाते कि अब लड़का जवान हो रहा है शायद इसलिए ऐसा होता जा रहा है,समझदारी आ जाने पर स्वयं ही सुधर जाएगा,लेकिन शैलजा को ये बात बहुत खटक रही थी और वो अभ्युदय को समझाने की कोशिश भी करती,लेकिन अभ्युदय शैलजा की बातों को ज्यादा अहमियत ना देता,इसी तरह दिन गुजरे और अभ्युदय ने बाहरवीं भी अच्छे अंकों से पास कर ली,अब बारी थी काँलेज में एडमिशन की,शास्त्री जी चाहते थे कि अभ्युदय मेडिकल की परीक्षा पास करके मेडिकल काँलेज में एडमिशन ले लेकिन अभ्युदय इस बात के लिए कतई राजी ना था....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...