O Bedardya - 10 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | ओ..बेदर्दया--भाग(१०)

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ओ..बेदर्दया--भाग(१०)

शक्तिमोहन की बात सुनकर शास्त्री जी बोलें....
"इसीलिए....बस इसीलिए मैं नहीं चाहता था कि ये राजनीति में जाए,राजनीति ऐसी चींज है जहाँ बैठे बिठाए दुश्मन बन जाते हैं,अब देखो इसकी क्या हालत कर दी है उस लड़के ने,ये तो उस लड़के से उलझकर,हाथ-पाँव तुड़वाकर घर आ गया और अब हमें बूढ़े माँ बाप को भुगतना पड़ेगा"
" आप जरा शान्त हो जाइए ना!उसकी हालत पर कुछ तो तरस खाइए",शैलजा बोली...
"इसकी इस हालत का ये खुद ही जिम्मेदार है,हजार बार समझाया कि किसी के फटे में टाँग मत अड़ाया करो ,लेकिन ये हम लोगों की सुनता कहाँ है",शास्त्री जी गुस्से से बोले...
शास्त्री जी की बात पर शैलजा बोली....
"आप ही जरा सोचिए कि उसने गलत क्या किया?अगर शिवराज उस लड़की को परेशान कर रहा था तो क्या ये चुप करके बैठ जाता,किसी लड़की की इज्ज़त का कोई मोल नहीं है,अगर मैं भी इसकी जगह होती तो यही करती,अब आँखों देखी मक्खी तो नहीं निगली जा सकती ना!,ये हम दोनों के दिए हुए संस्कार हैं जो हमारा बेटा छिछोरा और लफंगा नहीं है,कैसा भी हो मेरा बेटा लेकिन लड़कियों की इज्ज़त तो करता है,आपने भी तो हमेशा उसे यही सीख दी है कि बेटा लड़कियों और महिलाओं की इज्ज़त करो,यदि कोई उनके साथ बुरा सुलूक करता है तो चुप मत रहो,आपके बताए हुए रास्ते पर तो चल रहा है तब भी आप इसे ही दोषी ठहरा रहें हैं",
"मेरा वो मतलब नहीं था शास्त्रिन!,उसे ऐसी हालत में देखकर क्या मुझे दुख नहीं होता,बाप हूँ इसलिए तुम्हारी तरह अपना दुख प्रकट नहीं कर सकता,लेकिन पीड़ा मुझे भी होती है,आज के बाद मैं इसे किसी बात के लिए नहीं टोकूँगा,"
और इतना कहकर शास्त्री जी अभ्युदय के कमरे से चले आएं और इधर शैलजा उन्हें जाते हुए देखती रही, फिर शैलजा ने अभ्युदय और शक्तिमोहन को खाना खिलाया,अभ्युदय से तो ना खाया गया लेकिन शक्ति ने ठीक से खाया,इसके बाद अभ्युदय को उसकी दवा खिलाकर वो अपने कमरें में जाते वक्त शक्ति से बोली...
"बेटा शक्ति!तू आज यही अपने भइया के पास सो जा,इसे कुछ जरूरत पड़ी तो इसकी मदद कर देना"
"जी!ताई जी!आप भइया की बिल्कुल फिक्र ना करें,मैं इनका ख्याल रख लूँगा",शक्ति बोला....
और फिर शैलजा रसोईघर में आई और शास्त्री जी के लिए थाली परोसकर उनके कमरें में ले गई फिर उनसे बोली...
"लीजिए!खाना खा लीजिए"
"मुझे भूख नहीं"शास्त्री जी बोले...
"खाने पर गुस्सा क्यों उतार रहे हैं?",शैलजा बोली...
"मैं किसी से कोई गुस्सा नहीं हूँ,बस खाने के लिए मेरा मन नहीं कर रहा है",शास्त्री जी बोले...
"मन क्यों नहीं कर रहा खाने का? मैनें आपको ज्यादा कुछ सुना दिया इसलिए",शैलजा बोली..
"ऐसी बात नहीं है",शास्त्री जी बोले..
"तो फिर कैसी बात है?",शैलजा ने पूछा...
"कहा ना भूख नहीं है,अब भूख नहीं है तो क्या जबरदस्ती खाना ठूस लूँ"?,शास्त्री जी बोलें...
"आपकी पसंद की कटहल की तरकारी बनाई है आज,साथ में हरा हरा नींबू और प्याज का सलाद भी है", शैलजा बोली..
"तब भी खाने का मन नहीं है",शास्त्री जी बोले...
"ठीक है तो आप खाना मत खाइए,आप बस हरदम खाने की जगह गुस्सा खाते रहिए,ना जाने क्या आदत है,बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह रूठ जाते हैं,मैं कोई आपकी माँ नहीं हूँ जो हमेशा आपको मनाती रहूँ,रूठने की भी कोई वजह होती है लेकिन नहीं महाराज जी को तो बेवजह रुठने की आदत सी हो गई ना!गऊ जैसी पत्नी जो मिल गई है तो बस उतारते रहो अपना गुस्सा उसी पर",शैलजा बोली...
"अच्छा !तो तुम गऊ जैसी हो",शास्त्री जी बोले...
"और क्या"!,शैलजा बोली...
"तभी... तो तुम्हारे सींगो में खुजली होती रहती और मुझसे हरदम लड़ती रहती हो",शास्त्री जी बोलें...
"हाँ...हाँ...मैं गाय ही तो हूँ,इसलिए मेरे दो सींग हैं,चार पैर हैं और ये देखिए एक पूँछ भी तो हैं,जिसे मैं हरदम लहरा लहराकर चलती रहती हूँ,"शैलजा गुस्से से बोली...
अब शैलजा की इस बात पर शास्त्री जी अपनी हँसी रोक ना सके और खिलखिलाकर हँस पड़े,उनको हँसता देख शैलजा ने पूछा...
"अब हँस क्यों रहे हैं"?
"वो इसलिए कि मुझे आज पता चला कि इतने सालों से मैं किसी गाय के साथ रह रहा हूँ",शास्त्री जी बोले...
"ये भी खूब रही,अगर ये गाय पसंद नहीं है तो क्यों रहे हैं उसके साथ",शैलजा बोली...
"मैनें ये तो नहीं कहा कि ये गाय मुझे पसंद नहीं है"शास्त्री जी बोले...
"तो फिर आपका मतलब क्या था"?शैलजा ने पूछा...
"कुछ नहीं,मैं अभ्युदय की हालत देखकर कुछ परेशान सा हो गया था,इसलिए बहुत कुछ ऐसा बोल गया जो मुझे नहीं बोलना चाहिए था",शास्त्री जी बोले...
"मैनें भी तो आपको बहुत कुछ सुना दिया आज"शैलजा बोली...
"कोई बात नहीं",शास्त्री जी बोले...
"अब आपका गुस्सा उतर गया हो तो खाना खा लीजिए"शैलजा बोली...
"तुमने खाया",शास्त्री जी ने शैलजा से पूछा...
"आपसे पहले खाया है कभी,जो आज खा लूँगीं",शैलजा बोली...
"चलो फिर तुम भी खाना खा लो"शास्त्री जी बोले...
"ठीक है मैं भी अपनी थाली परोसकर लाती हूँ",
इतना कहकर शैलजा रसोई में जाने लगी तो शास्त्री जी उससे बोले...
"आज एक ही थाली में खा लेते हैं",
"आपकी थाली में मैं कैसें खा सकती हूँ?"शैलजा बोली...
"कोई बात नहीं आज साथ में खा लेते हैं"शास्त्री जी बोले...
और फिर दोनों पति पत्नी खाना खाने बैठ गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....