O Bedardya - 7 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | ओ...बेदर्दया--भाग(७)

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ओ...बेदर्दया--भाग(७)

जब सुबह हुई तो अभ्युदय जागते ही आँगन में टहलने लगा क्योंकि उसके सिर में ज्यादा पी लेने से दर्द हो रहा था,तब शास्त्री जी भी आँगन में आए और उन्होंने अभ्युदय की क्लास लेनी शुरू कर दी,वें उससे बोले....
"बेटा!बहुत नाम रौशन कर रहे हो खानदान,क्या बात है?,हम बुड्ढे-बुढ़िया को समाज में रहने लायक छोड़ोगे या नहीं"
शास्त्री जी की बात पर अभ्युदय कुछ ना बोला,बस यूँ ही मौन खड़ा रहा तो शास्त्री जी और ज्यादा बिफर पड़े और फिर बोलें...
"कुछ बोलोगे भी साहबजादे!या मुँह में दही जमा रखा है"
"मुझसे गलती हो गई बाबूजी!आइन्दा से ऐसा नहीं होगा",अभ्युदय बोला...
"ये गलती नहीं है बेटा!ये तुम जानबूझकर करते हो,",शास्त्री जी बोले...
"बाबूजी!वो दोस्तों के कहने पर थोड़ी सी पी ली थी",अभ्युदय सिर झुकाते हुए बोला...
"थोड़ी सी....थोड़ी सी नहीं पी थी बेटा! इसे थोड़ी सी नहीं कहेगें,आपके पैर लड़खड़ा रहे थे और हालत अस्त व्यस्त थी,थोड़ी सी पीकर ऐसी दशा नहीं होती और कल को अगर दोस्त कुएँ में कूदने को कहेगें तो क्या तुम कुएँ में कूद जाओगें,जब तक स्वयं की मनसा ना हो ना तो कोई भी हमारे साथ जबर्दस्ती नहीं कर सकता",शास्त्री जी बोले...
"आइन्दा से ऐसी गलती अब ना होगी बाबूजी!,"अभ्युदय बोला...
"आज से तुम्हारा यार दोस्तों के साथ घूमना फिरना बंद और खासकर तुम्हारे पैर रात को तो घर से बाहर निकलने नहीं चाहिए,यहाँ जिन्दगी बिता दी अपनी आबरू बचाते बचाते और ये साहबजादे आबरू डुबोने में लगें हैं",शास्त्री जी बोलें...
"अब इतनी पाबन्दी भी ठीक नहीं है,जवान लड़का है दोस्तों के साथ तो घूमेगा ही"शैलजा बोला...
"शास्त्रिन!तुम ज्यादा तरफदारी ना करो अपने सुपुत्र की,ये सब किया कराया तो तुम्हारा ही है",शास्त्री जी गुस्से से बोले...
"अब आप मुझे दोष क्यों दे रहे हैं"शैलजा ने पूछा...
"तो फिर किसे दोष दूँ?तुम दिनभर घर में रहती हो तो ये भी नहीं देख सकती कि लड़का दिनभर क्या करता है,कहाँ जाता है?उसकी संगत किसके साथ है"?,शास्त्री जी बोले...
"अब आप तो मुझ पर भी गुस्सा करने लगे,मैं अकेली क्या क्या देखूँ?आपकी गृहस्थी सम्भालूँ या आपका लाल",शैलजा रोते हुए बोली...
"बस...बस..ज्यादा टेसूऐ बहाने की जरूरत नहीं है,इस पर भी थोड़ी नजर रख लिया करो,बड़े आए लाट साहब बने फिरते हैं, किसी काम के नहीं हैं और वैसी ही माँ भी है,जरा जरा सी बात पर तुनक जाती है," शास्त्री जी बोले...
"अब आप जहर उगलेगें तो रोऊँ ना तो क्या करूँ?",शैलजा बोली....
"हाँ...हाँ...अब रोना धोना बंद करो,जाओ अपने साहबजादे को जाकर नींबू पानी पिलाओ,अभी तक बेचारे का सिर भन्ना रहा होगा और मैनें जो बातें सुना दी हैं तो उससे तो और बेचारे का भेजा गरम हो गया होगा",शास्त्री जी बोलें....
"ये बात आप नर्मी से भी तो कह सकते हैं",शैलजा बोली...
"सुनो शास्त्रिन!मैं जैसा हूँ,वैसा ही रहूँगा,मैनें अपनी सारी जिन्दगी केवल सही तरीके से गुजारी है और यही आशा मैं अपनी सन्तान से भी रखता हूँ",शास्त्री जी बोले....
"ठीक है!मैं सब समझ गई",
और फिर इतना कहकर शैलजा भीतर चली गई और अभ्युदय को भी भीतर आने का इशारा किया,शैलजा ने फौरन ही अभ्युदय को नींबू पानी बनाकर दिया और उससे बोली....
"बेटा!तू वही काम क्यों करता है जिससे तेरे बाबूजी को चिढ़ है?"
"माँ!ये सब जानबूझकर नहीं करता और मैं ये भी नहीं चाहता कि मेरी हरकतों से बाबूजी को बुरा लगे,लेकिन पता नहीं क्यों मुझसे गलती हो ही जाती है",अभ्युदय बोला....
"अच्छा!ठीक है लेकिन आगें से याद रखना कि तुझसे कोई ऐसी हरकत ना हो जिससे तेरे बाबूजी को ठेस पहुँचे",शैलजा बोली...
"हाँ!माँ!आगें से याद रखूँगा"अभ्युदय बोला....
और माँ बेटे में यूँ ही वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी,सभी आश्चर्यचकित थे सुबह सुबह कौन आ धमका और फिर शैलजा ने किवाड़ खोलें तो उसने जो देखा वो देखकर वो भौचक्की सी रह गई,क्योंकि वहाँ लल्लन था और उसके साथ एक स्त्री थी जो घूँघट में छुपी थी,उस स्त्री से लल्लन ने कहा ....
"खड़ी क्यों हो ?भौजाई के चरण स्पर्श करो"।
लल्लन के कहने पर उस महिला ने फौरन ही शैलजा के चरण स्पर्श कर लिए तो शैलजा बोली...
"बस...बस खुश रहो"
तब लल्लन शैलजा से बोला...
"पहचाना कौन है?
तब शैलजा ने परेशान होकर ना के जवाब में सिर हिलाया और बोली कुछ नहीं,तब लल्लन बोला....
"देवरानी लाएं हैं तुम्हारे लाने"
"देवरानी.....! ये सब कब हुआ?",शैलजा ने पूछा....
"सबकछु बाहर ही पूछ लोगी,भीतर आने को ना कहोगी का",लल्लन बोला....
"अरे....! हाँ...हाँ...भीतर आओ"शैलजा बोली.....
फिर शैलजा ने नई बहुरिया के लिए एक साफ सुथरी दरी बिछा दी और उससे बोली...
"बैठ जाओ बहुरिया"!
तब तक शास्त्री जी भी वहाँ आ पहुँचे और वहाँ का नजारा देखकर लल्लन से बोलें...
"ये सब क्या है"?
तब लल्लन बोला...
"बस कल ही जल्दबाजी में मुझे सुकन्या से ब्याह करना पड़ा"
"ऐसी कौन सी जल्दबाजी थी जो इस बुढ़ापे में ऐसा कदम उठाना पड़ा",शास्त्री जी ने पूछा....
तब लल्लन बोला...
"बेचारी दुखियारी है,विधायक जी के यहाँ काम करती थी,महाराजिन थी खाना पकाती थी,कम उम्र में विधवा हो गई थी,सत्रह अठारह साल का बेटा भी है,एक साल से हम एक दूसरे को पसंद करते हैं,कल विधायक जी की पत्नी ने हम दोनों को एक दूसरे के साथ देख लिया तो बवाल मचा दिया,सुकन्या से बोली कि....
"ये नैन-मटक्का यहाँ नहीं चलेगा,ये शरीफों का घर है,कुछ ऊँच-नीच हो गई तो किसे किसे जवाब देते फिरेगें,अपना हिसाब कर और ये घर छोड़कर इसी वक्त चली जा"
ये सब सुनकर सुकन्या रोने लगी और विधायक जी की पत्नी का शोर सुनकर विधायक जी भी वहाँ आ गए और मुझसे पूछा कि क्या बात है तो विधायक जी की पत्नी बोलीं.....
"उससे क्या पूछते हो ?मुझसे पूछो,इन दोनों के बीच नैन-मटक्का चल रहा है और किसी को कुछ पता चल गया तो किस किसको जवाब देते फिरोगें"?
तब विधायक जी ने मुझसे पूछा और मैंने सबकुछ साफ साफ कह दिया,तब विधायक जी बोलें....
"अगर एकदूसरे को पसंद करते हो तो ब्याह कर लो,इस गरीब विधवा को सहारा मिल जाएगा और तुम्हें रोटी-पानी का आराम हो जाएगा"
फिर विधायक जी की बात मानकर कल रात ही हमने मंदिर में जाकर शादी कर ली,इसका बेटा अभी हमारे साथ नहीं आया ,वो घर पर है....
"ओह ...तो ये बात है",शास्त्री जी बोलें....
"हाँ!आपलोगों के सिवाय मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है,अगर आपलोगों का आशीर्वाद मिल जाएगा तो हम दोनों का जीवन सँवर जाएगा",लल्लन बोला....
"जब मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी?" तुम दोनों हमेशा यूँ ही खुश रहो,ये कहकर शास्त्री जी भीतर गए और बाहर आकर शैलजा के हाथ में पाँच हजार एक सौ रूपए देकर बोले....
"ये बहुरिया को मेरी ओर से दे दो और कुछ अच्छा सा खाना बनाकर बहु को खिलाओ,फिर बाजार चली जाना बहू के साथ और अच्छी सी दो तीन साड़ियाँ दिलवा लाना,बहू हमारे घर पहली बार आई है,उसे बुरा नहीं लगना चाहिए"और इतना कहकर शास्त्री जी अपने कमरें में चले गए.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....