O Bedardya - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

ओ...बेदर्दया--भाग(३)

शैलजा का अन्तर्मन तड़प रहा था कि उसने इतनी बड़ी बात अपने पति से छुपाई,उसका वश चलता वो अभी उन्हें सबकुछ बता देती,लेकिन बच्चे के भविष्य का सवाल था,ऐसा ना हो कि उन्हें सब पता चल जाएं और उनका मन बच्चे से कट जाए,वो बाप-बेटे के बीच अलगाव का कारण नहीं बनना चाहती थी,इसलिए वो भावनाओं में ना बही और उसने उस वक्त चुप रहना ही बेहतर समझा....
दिन गुजरने लगें और अब अभ्युदय छः महीने का हो चला था,छः महीने का होने पर उसका अन्नप्राशन हुआ,शास्त्री जी ने सुनार से कहकर खासतौर पर अभ्युदय के लिए चाँदी के बरतन बनवाएं और अन्नप्राशन के दिन अभ्युदय को उसमें खाना खिलाया गया,पास पड़ोस के लोंग भी इकट्ठा हुए,उनके लिए भी भोजन का इन्तजाम किया,अब अभ्युदय धीरे धीरे और बड़ा हो रहा था,देखते ही देखते अब वो दो साल का होने को आया,लेकिन ये समय भी पंख लगाकर उड़ गया और अब अभ्युदय को स्कूल में दाखिला दिलवाने का समय आ पहुँचा,अब शास्त्री जी ने सोचा कि वें अभ्युदय को गाँव में तो नहीं पढ़वायेगें,उन्होंने उसे शहर के स्कूल में दाखिला दिलवाने का सोचा,लेकिन इतना छोटा बच्चा शहर में अकेले कैसे रहेगा,इसलिए शास्त्री जी ने अपनी खानदानी जमीन का एक टुकड़ा बेचकर शहर में छोटा सा मकान खरीद लिया और गाँव के खेतों की देखभाल किसी और के हाथों में सौंप दी फिर वें गाँव के स्कूल की नौकरी छोड़कर शहर के उसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगे ,जहाँ उन्होंने अभ्युदय को दाखिला दिलवाया था,गाँव के बुजुर्गों ने मना भी किया कि शास्त्री जी अपना पुश्तैनी घर छोड़कर शहर मत जाइएं लेकिन शास्त्री जी को अपने घर से ज्यादा अपने बेटे अभ्युदय शास्त्री के भविष्य की चिन्ता थी,कहते हैं ना जो चींज इन्सान को बड़ी मुश्किलों से मिलती है तो फिर उसकी नजरों में उस चींज की कदर बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, यही शास्त्री जी के साथ हो रहा था....
अब अभ्युदय स्कूल जाने लगा था,साल बीतते गए और उसने चौथी पास कर ली,कानवेंट स्कूल में पढ़ने के कारण उसकी अंग्रेजी भाषा बहुत अच्छी होती जा रही थी,वो शैलजा से अंग्रेजी में बात करता तो शैलजा कहती....
"बबुआ!ई तुम हमसे मरी अंग्रेजी में गिटपिट-गिटपिट ना किया करो,हमारे पल्ले कुछ नहीं पड़ता...
शैलजा की बात सुनकर दोनों बाप बेटे हँस पड़ते और शैलजा खिसिया जाती..."
शैलजा के खिसियाने पर बाप बेटे फिर से ठहाका मारकर हँस पड़ते,अब अभ्युदय पाँचवीं पास कर चुका था और बहुत अच्छे अंक लेकर पास हुआ था, माता-पिता दोनों की खुशी का कोई ठिकाना ना था,इसी तरह इतवार का दिन था,सब घर पर रहकर छुट्टी का आनन्द उठा रहे थे,दोपहर का समय था शैलजा रसोईघर में लगी हुई सबकी पसंद की चींजें बना रही थी,तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो शैलजा ने शास्त्री जी से कहा...
"देखिए ना!दरवाजे पर कौन है?"
हाँ!अभी देखता हूँ और ऐसा कहकर शास्त्री जी ने दरवाजा खोला और उन्होंने जैसे ही दरवाजा खोला तो सन्न रह गए,उनके सामने उनका चचेरा भाई लल्लन खड़ा था,जिसके बेतरतीब उलझे हुए बाल,शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए,जहाँ से उसका बालों भरा सीना झाँक रहा था ,दाँत गुटके से रंगे हुए,गले में गमछा और कमर में कट्टा दबाए हुए उनके सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था,फिर लल्लन ने झुककर शास्त्री जी के चरण स्पर्श किए और बोला....
"रति भइया! आप अपने छोटे भाई को भूल गए का?"
तब शास्त्री जी थोड़ा संतुलित हुए और उससे बोले....
"लल्लन!तुम! जेल से कब छूटे ?"
तब लल्लन बोला....
"छूट गया..... ,ये कैसी बात कर रहे है भाईसाहब आप?भला जेल में कोई मेरे फूफा-मामा बैठें हैं जो मुझे छुड़ा लेगे,वो तो अपने विधायक जी की कृपा है, उन्होंने ही मुझे छुड़वा लिया जेल से,चुनाव नजदीक आ रहे हैं ना!तो चुनाव के प्रचार के लिए मुझ जैसे कट्टाधारी लोंगो की उनको जरूरत होती है, तो उनकी मेहरबानी से छोड़ गया मुझे और बताइए आप कैसें हैं?"
" मैं...मैं भी ठीक हूँ",शास्त्री जी बोले....
"और भौजाई कैसी है?,लल्लन ने पूछा...
"वो भी ठीक है",शास्त्री जी ने जवाब दिया...
"भीतर आने को ना कहोगे का,यहीं सारीं बातें कर लोगें" ,लल्लन बोला...
"आओ...आओ...भीतर आओ",शास्त्री जी ने गैर मन से कहा...
फिर क्या था लल्लन शास्त्री जी के घर के भीतर आ पहुँचा और वो जैसे ही वो भीतर पहुँचा तो अभ्युदय उसके सामने आ गया और शास्त्री से पूछा...
"बाबूजी!कौन हैं ये?"
अभ्युदय को देखकर लल्लन ने शास्त्री जी से कहा...
"भइया!ये चमत्कार कब हुआ?वैसे जेल में खबर मिली तो थी लेकिन कानों को यकीन ना हुआ था,लेकिन अब सामने देख लिया तो यकीन हो गया,"
"बाबूजी!कौन है ये बताइए ना!",अभ्युदय ने एक बार फिर से पूछा...
तब लल्लन बोला....
"बेटा!हम तुम्हारे चाचा हैं"
"ओह...आप मेरे चाचा हो,आप कहाँ से आए हो,गाँव से आए हो ना!" अभ्युदय बोला....
"ना!बेटा! हम जेल से आए हैं",लल्लन बोला....
"ये जेल कौन सी जगह होती है"? अभ्युदय ने पूछा...
तब शास्त्री जी ने लल्लन को टोकते हुए कहा....
"बच्चे के सामने ये कैसीं बातें कर रहे हो?
"गलती हो गई भाईसाहब!माँफी दइदो,ये तो शरीफों का बच्चा है ना,इ का जाने कि जेल का होती है"? लल्लन बोला...
तभी शैलजा भी रसोईघर से बाहर ये देखने के लिए निकली कि कौन आया है और एकाएक लल्लन को देखकर वो भी हैरत में पड़ गई और जैसे ही लल्लन ने शैलजा को देखा तो बोला....
"पाय लागू भौजी!कैसी हो? अब तो पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हो"
"देवर जी!आप!,शैलजा ने कहा....
"हाँ!छूट गए जेल से ,ऊपरवाले की कृपा है सब,अब आप लोगन की सेवा करेगें" लल्लन बोला....
"अच्छा हुआ छूट गए" ,शैलजा रूखाई से बोली...
"लगता है आप दोनों को हमारे जेल से छूटने की खुशी नहीं है"लल्लन ने पूछा....
"ऐसा नहीं",शैलजा बोली....
"तो फिर पेट पूजा कराओ,बड़ी भूख लगी है",लल्लन बोला...
"ठीक है तो आप वहाँ बाथरूम में जाकर हाथ मुँह धो लीजिए, मैं तब तक खाना परोसती हूँ" और फिर इतना कहकर शैलजा खाना परोसने में लग गई,अप्रैल का महीना था थोड़ी गर्मी थी,शैलजा रसोईघर में घुसे घुसे वैसे भी पसीने पसीने हो गई थी और लल्लन को अपने घर में देखकर उसका पारा और भी चढ़ गया था,उसे देखकर उसे अपना अतीत याद आ गया था,ये वही लल्लन था जब वो नई नई ब्याहकर ससुराल आई थी,तो घर में अकेला पाकर लल्लन ने शैलजा पर झपट्टा मारा था,लेकिन शैलजा ने लल्लन के हाथ में जोर का काटा और खुद को छुड़ाकर रसोईघर में भागी ,वहाँ उसने हँसिया उठाकर लल्लन को ललकार कहा था कि....
"हिम्मत है तो आगें बढ़,आज तो मैं तेरे टुकड़े टुकड़े कर दूँगीं"
फिर लल्लन शैलजा की ओर नहीं बढ़ा और उलटे पैर वापस लौट गया...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....