O Bedardya - 11 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | ओ..बेदर्दया--भाग(११)

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ओ..बेदर्दया--भाग(११)

भोर हुई तो शास्त्री जी अभ्युदय के कमरें में पहुँचे,उन्होंने कमरें की लाइट जलाई और देखा कि अभ्युदय अभी भी सो रहा था,वें धीरे से उसके सिराहने बैठ गए,पहले तो उन्होंने उसके माथे को चूमा फिर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलें....
"मुझे माँफ कर दे मेरे बच्चे,मुझे कल ऐसा नहीं बोलना चाहिए था"
तभी शैलजा भी अभ्युदय के कमरे में आई और शास्त्री जी से बोली...
"आपकी दी हुई परवरिश कभी गलत नहीं हो सकती,जो उसने किया था वही ठीक था"
"तुम शायद सही कह रही हो",शास्त्री जी बोले...
दोनों की आवाज़ सुनकर शक्ति जाग उठा और बोला...
"आप दोनों सुबह होते ही यहाँ हाजिर हो गए,रात को मारे चिन्ता के सोए भी या नहीं"
"ऐसी कोई बात नहीं है बेटा शक्ति!हम दोनों को वैसे भी भोर में उठने की आदत है,जाग गए थे तो सोचा अभ्युदय को देख आएं",शैलजा बोली...
"तब ठीक है,वैसे भइया अभी ठींक हैं,दवा खाने के बाद उन्हें गहरी नींद आ गई थी,बीच में शायद एक बार उठे थे,तो फिर मैनें उनका सिर दबाया और वें फिर से सो गए थे",शक्ति बोला...
"बहुत अच्छा बेटा!,इसी तरह अपने बड़े भाई का साथ कभी मत छोड़ना,हमेशा उसका ख्याल रखना", शैलजा बोली....
"डाक्टर ने क्या कहा कल?ज्यादा चोट तो नहीं आई",शास्त्री जी ने शक्ति से पूछा....
"ना ताऊ जी !ऐसी कोई घबराने वाली बात नहीं है,माथे का जख्म ज्यादा गहरा नहीं है और हाथ में भी उतनी चोट नहीं आई थी,वो डाक्टर ने हाथ में प्लास्टर इसलिए बाँध दिया कि हाथ में थोड़ा सपोर्ट बना रहें, शायद हाथ की माँसपेशियाँ थोड़ी डेमेज हो गई थीं",शक्ति बोला...
"तब ठीक है,मैं तो यूँ ही बेफूजूल परेशान होए जा रहा था"शास्त्री जी बोले...
"ताऊ जी!अब आपको दिक्कत ना हो रही हो तो मैं थोड़ी देर और सो लूँ"शक्ति ने दीवार घड़ी की ओर देखते हुए कहा...
"हाँ...हाँ...सो जाओ बेटा!अभी तो केवल साढ़े चार ही बजे हैं,हम दोनों यहाँ से जा रहे हैं,अभ्युदय को भी तो अभी आराम की सख्त जरूरत है"शास्त्री जी बोले..
और फिर इतना कहकर शास्त्री जी शैलजा के साथ अभ्युदय के कमरें से चले आए....
एक दो घंटे बाद जब दोनों भाई सोकर उठे तो शैलजा दोनों से बोली...
"चलो दोनों मुँह हाथ धोकर नाश्ता करने आ जाओ,फिर अभ्युदय को दवाई भी तो खानी है"
"हाँ!ताई जी!मुझे किसी काम से बाहर भी जाना है,इसलिए नाश्ता करके मैं निकल जाऊँगा",शक्ति बोला...
"तुझे ऐसा भी क्या जरूरी काम आन पड़ा ,जो तू ऐसी हालत में अपने भाई को छोड़कर बाहर जाना चाहता है",शैलजा बोली...
"कोई जरूरी काम है,बस आपसे बाहर जाने की इजाजत चाहता हूँ",शक्ति बोला...
"जरूरी काम है तो चला जा,लेकिन जल्दी लौट अइओ,यहाँ अभ्युदय को तेरी जरूरत है"शैलजा बोली..
"हाँ!बस !दोपहर तक लौट आऊँगा",शक्ति बोला...
और फिर क्या था शक्ति नाश्ता करके बाहर निकल गया और शहर से दूर एक दारू के ठेके पर जा पहुँचा, वहाँ दो-तीन लड़के शक्ति का बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे,जैसे ही शक्ति वहाँ पहुँचा तो उन लड़को में से एक बोला....
"यार!बड़ी देर कर दी,हम सब कब से तेरा इन्तजार कर रहे हैं"?
"हाँ!वो बुढ़िया छोड़ ही नहीं रही थी,कह रही थी मेरे बेटे का यहाँ ख्याल रखने वाला कोई नहीं है,जैसे मैं उसके बाप का नौकर हूँ"शक्ति बोला...
"तू उनका नौकर ही तो है,उनके दिए हुए टुकड़ो पर ही तो पल रहा है",उन में से एक बोला...
"ये सब मेरी माँ का किया-कराया है,अपना तो मरके चली गई और ये सब झमेले मेरे लिए छोड़ गई",शक्ति बोला...
"यार!अपनी माँ के लिए तो ऐसा मत बोल"उनमे से एक बोला...
"वो माँ नहीं दुश्मन थी मेरी,जिसने बुढ़ापे में उस लल्लन से शादी करके मेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी और मुझे उस घर का गुलाम बना दिया",शक्ति बोला...
"अच्छा!ये सब छोड़ पहले ये बता वो कैसा है?जिसकी हम सबने कल रात ठुकाई की थी",एक ने पूछा..
तब शक्ति बोला...
"यार!शिवराज!ऐसे मारा जाता है क्या किसी को?"
"क्यों ?ज्यादा चोट लग गई क्या?",शिवराज ने पूछा...
तब शक्ति बोला...
"वही तो कि बस मामूली सी चोटे ही आई हैं उसे,ऐसा मारना था ना कि महीनों के लिए बिस्तर पकड़ लेता, फिर कुछ महीनों के लिए ही सही मुझे उससे मुक्ति तो मिल जाती,तुम लोगों ने ऐसा मारा कि उसे तो अस्पताल में भरती भी नहीं होना पड़ा और कुछ ही देर के बाद वो घर भी आ गया"
"ओह...तो तुझे बड़ा अफसोस है कि उसे कम चोट आई",शिवराज बोला..
"और क्या?मेरी बला से मर जाता तो,तो ही ठीक रहता"शक्ति बोला...
"एक बात तो है ,तू है बड़ा नमकहराम,जिस थाली में खाता है उसी छेद करता है",शिवराज बोला...
"अब क्या करूँ?मेरा वश चले तो मैं उस घर से अलग हो जाऊँ लेकिन फिर उस घर के अलावा मेरे लिए और कहीं ठिकाना भी तो नहीं है"शक्ति बोला...
"ये भी ठीक है कहा तूने",शिवराज बोला...
"लेकिन यार!मैनें जब तुझे बता दिया था कि अभ्युदय वहाँ पर अभी अकेला है तो तुमलोगों ने उसकी ठुकाई करने में इतना संकोच क्यों किया?अच्छे से मारना चाहिए था ना!",शक्तिमोहन बोला....
"इतना काफी था यार!हमें भी तो पुलिस का डर है, फिर कभी हिसाब चुकता कर लेगें",शिवराज बोला...
"तो चल फिर इसी बात पर दारू पिला"शक्ति बोला...
और फिर शक्ति शिवराज की टोली के संग सिगरेट और दारू पीने बैठ गया....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....