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अपना आकाश - 32 - बचा कर रखता हूँ दिव्यास्त्र


अनुच्छेद- 32
बचा कर रखता हूँ दिव्यास्त्र

कोतवाल वंशीधर ने नागेश लाल के पैसे से बनारस में सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराया। पंडितों को दिलखोल कर दान दिया। पंडित चिन्ताहरण भी प्रसन्न हुए।
वंशीधर आज कोतवाली के अपने आवास में बैठे चाय पी रहे हैं। सुबह नौ बजे का समय ।
मानवाधिकार आयोग हर कीमत पर मंगल की मौत के रहस्य से पर्दा हटाना चाहता है। हर सप्ताह कोई न कोई चिट्टी आ ही जाती।
'क्या मैं भी अपना अस्त्र उठाऊँ?" वे बुदबुदाए। 'नहीं, नहीं, ऐसा न करना। उनके मन ने ही संकेत किया। सच और झूठ का भी कोई अर्थ है।'
‌ वंशीधर एक बार चौंके। कौन उनके अन्दर बैठकर संकेत कर रहा है? मनुष्य का अन्तर्मन एक बार गलत काम करने से रोकता ही है। जब आदमी की प्रवृत्ति गलत कामों की हो जाती हैं तब भी चेतावनी तो अन्दर से मिलती है । आप उसे कान न करें यह हो सकता है। वे सोचते रहे।
'नहीं, नहीं। कोई दवा करनी होगी।' उनके मन में एक बार फिर उभरा।
'पर दवा कैसी? मनुष्य हो तुम। मानवता को कलंकित न करो ?"
'मनुष्य हूँ मैं। पर मुझे हारना पसन्द नहीं है। मानवाधिकार आयोग मुझे अपराधी सिद्ध कर दे, यह अवसर ही मैं क्यों दूँ?"
‘नन्दू और भँवरी ने कौन सा अपराध किया है? यही बता दो। नन्दू और भँवरी....हूँ.....', एक क्षण वे सोचने लगे। 'पर..... पर अपने को बचाने के लिए जो कुछ किया जाता है वही मैंने किया। क्या मैं स्वीकार कर लेता कि मंगल की मौत थाने के अन्दर हुई और वह भी एक नायब दरोगा का झापड़ खाने के बाद.....।'
'बचाव तक तो आपकी बात समझ में आती है पर निरपराधों पर आक्रमण ?" 'आक्रमण ही बचाव दिखाई पड़े तो.....।' युद्ध को कलाबाजी मानने वालों का क्या हाल हुआ? इतिहास के पन्ने रंगे हैं इससे।' 'मैं जीतना चाहता हूँ......कलाबाजी दिखाना नहीं।' 'हूँ' कहते हुए वंशीधर उठ पड़े।’
'अब तक कभी हारा नहीं हूँ। इस मानवाधिकार आयोग से भी नहीं हारना है....... ठीक है अभी टाल देता हूँ। वैसे बच्चू की दवा हर दम मेरे जेहन में रहती है।..... बचाकर रखता हूँ सभी अपने दिव्यास्त्र......।' अपने रोल को घुमाते हुए कोतवाल वंशीधर टहलने लगे। सभी सिपाही, थानेदार जानते हैं कि साहब सोचते हुए कोई योजना बना रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसी को सामने पेश नहीं करना है । जैसे ही सोच-विचार खत्म होगा, कोतवाल साहब एक गिलास पानी पिएँगे, दीवानजी को बुलाकर रवानगी कराएँगे और जीप पर बैठते ही जीप भर्र.....भर्र की आवाज करती हुई चल पड़ेगी।
हुआ यही । पलहा का चौकीदार पानी लाया। कोतवाल साहब ने पानी पिया। दीवान जी को पुकारा वे आ गए।
'रवानगी......।' कहते हुए जीप पर बैठ गए। जीप चल पड़ी। कुछ देर बाद जीप जंगली-झाड़ियों के बीच से निकल रही है पर कोतवाल साहब का दिमाग अभी नन्दू, भँवरी में ही उलझा है ।
'साहब, बागी क्षेत्र है यह।' चालक ने साहब को सचेत किया। वे सँभल गए। मुख से निकला, 'हूँ' ।
एक गाँव के पड़ोस में गाड़ी रुकी। एक आदमी जो खेत में काम कर रहा था, ने आकर सलाम किया। कोतवाल साहब जीप से उतरे। सिपाही भी उतर कर खड़े हो गए। कोतवाल साहब ने फुसफुसाते हुए बातें की। नक्सवादी समूहों के बारे में जानकारी चाहते थे पर उनके अड्डों के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिल सकी। कोतवाल साहब के हाथ में रोल निरन्तर घूमता रहा।
बात कर कोतवाल साहब पुनः जीप पर आ बैठे। सिपाही भी पीछे बैठ गए। गाड़ी बढ़ चली।
चन्दौली (उत्तर प्रदेश) का नौगढ़ क्षेत्र नक्सली नेताओं का शरण स्थल है। नदी के पार ही बिहार का क्षेत्र नक्सली कभी इधर कभी उधर । निम्न वर्ग के परिवारों, बिन्द और दलितों में भिने हुए। गाँवों के विवाह - गौना सभी में उनकी भागीदारी। ज़मीनवालों की खड़ी फसल को काटकर ढो ले जाने का अभियान। चार दिन पहले ही सौ बीघे की पकी धान की फसल चार घण्टे में काटकर चलते बने थे लोग।
कोतवाल बंशीधर को पता चला कि कुछ बड़े नक्सली नेता एक पुरवे में रात को आएँगे। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं। यदि वे किसी को पकड़ पाते तो प्रोन्नति का द्वार खुल जाता। फिर मानवाधिकार आयोग......? नक्सली नेताओं को गाँव के प्रधान की लड़की के गौने में शरीक होना है। इसी बहाने गाँववालों का प्रशिक्षण वे केवल पाँच होंगे, ऐसी पक्की सूचना अपने पास बारह सिपाही तीन दरोगा क्या काफी नहीं? इतना बल? चकित कर देना चाहता हूँ सभी बड़े अधिकारियों को मैं वंशीधर हूँ बिल्कुल अभविष्यवाची......। मजा तो तभी है जब किसी को पता न हो और चिड़िया जाल के अन्दर । सभी बड़े अधिकारियों को बताकर अभियान पर जाना....... हर क्षण नज़र में रहना......चिड़िया न फँसी फजीहत अलग से.....।
वंशीधर जो ठान लेता है, कर ही लेता है।
नौगढ़ उसे इसीलिए भेजा गया है।
नक्सली नेता ग्रामवासियों के साथ हर काम में जुड़े रहते। गाँव के संगी-साथी जो खाते वहीं भोजन, वही जलपान गाँव में जो उपलब्ध होता उसी से काम चलता। न दिखावा, न छद्म नेता कार्यकर्त्ता, सामान्य जन के रहन-सहन में कोई अंतर नहीं। यह बात सामान्य जन को प्रभावित करती। लोग नक्सली कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। नेतागण मौका निकालकर वैचारिक प्रशिक्षण देते हैं।
हर कार्यकर्त्ता आधारित संगठन निरन्तर प्रशिक्षण चलाते हैं। बिना स्पष्ट वैचारिक दृष्टि के कार्यक्रम कहाँ सफल होता है?
रात दो बजे का समय । प्रधान के यहाँ भोजनकर सभी एक छतनार बरगद के नीचे पुआल पर बैठे। लगभग पैंतालीस लोग जिसमें नौ महिलाएँ। दो बन्दूकधारी सुरक्षा की दृष्टि से आस-पास टहलते रहे‌ एक प्रशिक्षक ने अमीर-गरीब की बढ़ती खाई का चित्रण किया। दूसरे ने समाज बदलने की बात की। बदलाव के लिए संघर्ष का आह्वान किया। बोलते समय नेताओं का तेवर उग्र हो जाता। चेहरा एक दम लाल तुम्हें कुछ खोना नहीं है। तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नही । संघर्ष में हम जीतेंगे। तुम्हें पाना ही है। सर्वहारा की जीत से ही समाज बदलेगा। इसके लिए हमें गोलबंद होना होगा। प्रतिक्रिया जानने के लिए प्रशिक्षक क्षण भर रुका।
'ठीक कहते हो भाई । बिना लड़ाई के कहीं कुछ मिलता है?"
एक अधेड़ ग्रामवासी ने जैसे ही कहा सुरक्षा के लिए टहलता कार्यकर्त्ता दौड़ता हुआ आया। नेता के कान में कुछ कहा। कनफुसकी में ही सब तक बात पहुँच गई कि गाँव को पुलिस ने घेर लिया है। सभी अपने घरों की ओर बढ़ गए। गाँव में कुल इकतालिस घर थे ।
नक्सली नेता एक मकान की छत पर अपनी बन्दूक के साथ इकट्ठे हो गए। कुछ देर सन्नाटा रहा।
पुलिस अपनी रणनीति के अनुरूप सुबह होने का इंतजार करते हुए। नक्सली उजाला होने से पहले ही निकलना चाहते हैं। पुलिस के आक्रमण का जवाब देने के लिए पूरी तरह सन्नद्ध । पुसिल दल का नेतृत्व कोतवाल वंशीधर कर रहे हैं साथ में दो दरोगा, आठ सिपाही । गाँव के अन्दर आने-जाने के तीन रास्ते हैं, पुलिस ने तीनों को घेर लिया। पुलिस आश्वस्त एक सिपाही ने तम्बाकू ठोंककर वंशीधर को दिया। समय खिसकता रहा।
नक्सली नेता बेचैन हुए । उन्होंने एक फायर करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वंशीधर के निर्देश पर एक सिपाही ने भी फायर किया। गाँव के लोग घरों में दुबक गए। नक्सली नेताओं ने आपस में विचार किया। एक रास्ते से निकलना है। पांचो लोग अपनी भरी बन्दूक हाथ में लेकर छत से उतरे । एक झंखाड़युक्त रास्ते पर बचते हुए निकले। दरोगा ने आहट ली, ललकारा। नक्सली नेता ने कहा, 'अपनी जान बचाओ। तुम्हारे बाल बच्चे हैं। हम तो जान पर खेलते ही हैं।'
सिपाही कुछ पीछे हट गए। दरोगा ने बढ़कर फायर कर दिया। नक्सली बच गए। एक कड़ौरे की ओट लेकर उन्होंने भी गोली चला दी। दरोगा के पैरों में लगी। वे लड़खड़ा कर गिर पड़े। सिपाही उन्हें सँभालने में लग गए। तब तक नक्सली गाँव के बाहर हो गए। वंशीधर का पूरा दल दरोगा को बचाने के उपाय में लग गया। जीप में उन्हें लादकर शहर लाया गया। अस्पताल के डाक्टर ने गोली निकालकर मरहमपट्टी की। घाव गहरा था। दरोगा जी को भर्ती कर लिया गया। सी.ओ. और कप्तान साहब सूचना पाकर अस्पताल पहुँचे। ढाढस बँधाया ।
भविष्य में ऐसा साहस दिखाया जाए या नहीं। वंशीधर अपने कमरे में चाय पीते सोच रहे हैं। चन्दौली आकर उन्होंने नक्सली मुठभेड़ों की अनेक दन्त कथाएँ सुनीं थीं। आज उनका थोड़ा प्रत्यक्ष अनुभव हुआ। पाँच नक्सली पुलिस बल के ग्यारह के दल को अँगूठा दिखाकर चलते बने। यह पहला अवसर था जब वंशीधर को मुँहकी खानी पड़ी है।