Kaidi - 1 in Hindi Anything by Singh Pams books and stories PDF | कैदी - 1

Featured Books
Categories
Share

कैदी - 1

जेल के रोशनदान से आती सुबह की पहली किरण की छुयन मूक हो जाया करती थी वो अपनी जिन यादों को दवा कर रखा था वे यादे इस समय जिवंत हो जाया करती थी |

पहली बार जब सानवी ने सुना कि उसे जेल हो गयी है तो जेल में कदम रखते ही उसका मन हो रहा था कि अपने गले में फांसी का फंदा डाल कर लटक जाये |

क्योंकि उसे कहां मालूम था कि सरकारी जेल में महिला कैदी की कमी नहीं है और कोर्ट मेंअपनी सुनवाईमे इतन बूढी हो गई है स्त्रीयों के बाड़ में आते ही आश्चर्य चकित हो गयी थी अनगिनत महिलाएं बूढी से लेकर बच्चिय तक देख सुन कर सानव नेने फांसी लगान का फैसला तत्याग दिया और बडी़ आदालत से निकलते निकलते कितने साल पार हो जायेगे और हुआ भी वही और देखते देखते चार साल और बीत गये बीच में एक दो जमानत के लिए कोशिश की गई परंतु विफल रहा एन जी ओ की दीदी मधू ने अभी भी कोशिश जारी रखी हुई है परंतु रिहाई की आशा धुमिल हो गयी थी |

सानवी रोज. सुबह इस रौशनदान मैं क्या दिख जाता है सीमा के इस प्रश्न से सानव थोडी असहज हो गयी पिछले दो सालों से सीमा उसके साथ जेल में बंद थी सीमा ने अपने नशेड़ी पति से तंग आ कर उसकी हत्या कर दी थी और सीमा ने अपना अपराध खुद न्याधीश के सामने कबूल किया था लेकिन किसी ने सीमा के छुडाने का प्रयास नही किया था और उसे उम्र कैद हुई थी और तभी से वो चिड़चिड़ी सी हो गयी थी और वो सानव केके नित्यकर्म के अवगत थी और इस क्रिया का प्रभाव भी देख चुकी थी और आज खुद को रोक ना पाई तो सानवी से पूछ लिया तो सानव ने मुस्कराते हुए कहा हर रोज एक नयी सुबह और सीमा ने एक ठंडी आह भर कर कहा लेकिन हमरे लिए तो हर रोज वही एक समान वाली सुबह होगी |

नही सानव ने कहा ययहां तुम गलत हो स्वतंत्र मनुष्य रोज एक नयी सृजन के बारे में सोच सकता है सानवी के चेहरे पर हल्की सी लुनाई छा गयी |

सीमा का चेहरा और आंखे सख्त हो गयी और बोली तुम एक कैदी हो क्या ये भूल गयी तुम तब भी तुम अपने आप को स्वतंत्र कहती हो और सानवी सीमा के साबल का जबाव तो ना दे सकी लेकिन अभी तक सानवी ने उम्मीद नही छोड़ी थी एक उम्मीद की किरण अभी भी बाकी थी सानव के मन में ये हतयारिनों का बार्ड हैं यहां बस स्वतंत्र तो बस मृत्य दिदिला सकती है चिरबंदिनियां यहां निवास करती है सानवी की बात बीच में काटते हुए सीमा चिल्ल हुए बोली तो सानवते बोली स्वतंत्र प्रतित होता है मनुष्य भी बंदी हो सकता है उसे यत्रंण कीकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती |

और अभी दोनों की बाते चल रही थी कि तेज घंटी की आवाज सुनाई दी ये आबाज इन सभी कैदी महिलाओं के काम के समय के लिए थी और सभी कैदी काम के लिए निकलने लगी थी

 

क्रमशः