Kya Tumne - Part -13 books and stories free download online pdf in Hindi

क्या तुमने - भाग १३ (अंतिम भाग)

अपनी बेचैनी को मिटाने का माया ने पक्का मन बना ही लिया। एक रात जब वह दोनों अपने कमरे में थे, तब माया ने सखाराम से पूछा, “सखा एक प्रश्न मेरे मन को बेचैन कर रहा है?”

“जानता हूँ माया तुम्हारा प्रश्न क्या है? तुम जानना चाहती हो ना कि मुझे कैसे मालूम कि तुमने …”

“हाँ सखा मैं जानना चाहती हूँ?”

तब सखाराम ने कहा, “उस दिन रात को लगभग दो बजे जब मेरी नींद खुली मैंने देखा तुम बिस्तर पर नहीं थीं। मैंने सोचा बाथरूम गई होगी पर तुम काफ़ी देर तक वापस नहीं आई तो मैं डर गया कि कहीं तुम बाथरूम में गिर तो नहीं गईं। मैंने उठकर देखा तो तुम बाथरूम में नहीं थीं। चुपके से दबे पांव तुम्हें घर में भी ढूँढ लिया पर तुम कहीं नहीं मिलीं। तब मैं बाजू वाले कमरे में तुम्हें देखने के लिए आ रहा था कि कहीं तुम वहाँ मोहन के पास तो नहीं हो। मैं जैसे ही वहाँ पहुँचा, अँधेरा था और शराब की बदबू बहुत ज़्यादा आ रही थी। मैंने बिना आवाज़ किए अंदर झांका तो क्या देखता हूँ तुम शराब की बोतल से उसके बिस्तर पर शराब डाल रही थीं। फिर तुमने मोहन के शरीर पर भी शराब डाली। मैं समझ गया था कि तुमने क्या कर डाला है। मैं तुम्हें फिर रोक कर भी क्या करता। मैं इसीलिए चुपचाप वापस आकर सो गया ताकि तुम यह न जान सको कि मैंने तुम्हें देख लिया है। तुम आईं तब भी मैं जाग ही रहा था पर कुछ भी पूछ ना सका। अब तुम बताओ तुमने अचानक यह फैसला …?”

“सखा मैं दुखी थी, मोहन से मुझे नफरत-सी होने लगी थी फिर भी उसे मार डालूं ऐसा मैंने नहीं सोचा था। पर उस रात को लगभग एक बजे वह हाथ में बड़ा-सा चाकू लेकर हमारे घर आया। शायद चाबी उसने पहले ही लेकर रख ली थी। मैं जाग रही थी हल्की-सी आहट सुनकर मैं उठी और दरवाजे तक पहुँची तो क्या देखती हूँ शराब के नशे में धुत मोहन चाकू लेकर अंदर घुस रहा था। मैं डर गई मैंने उसे बाहर की ओर खींच लिया। वह नशे में था, कुछ समझता उससे पहले ही मैंने उसके हाथ से चाकू लेते हुए धीरे से पूछा मोहन ये क्या कर रहा है तू? उसने कहा, अम्मा आज मैं उन दोनों को मारने आया हूँ। मुझे मत रोकना। मैंने उससे कहा हाँ-हाँ अपन दोनों मिलकर यह काम करेंगे, सोच समझकर। अभी तू चल अपन सोचते हैं कि क्या करना है? कैसे करना है? ताकि पुलिस तुझे पकड़ कर जेल में ना डाल दे। वह मेरी बातों में आ गया लेकिन पूरे समय यही कहता रहा, अम्मा जब तक मैं उन दोनों को नहीं मार डालता, मुझे चैन नहीं आएगा। मैं डर गई थी सखा, उसका इरादा पक्का था। वह सच में गोविंद और बसंती को मार डालता। मैंने उसके कमरे में टेबल पर 5-6 शराब की बोतलें देखीं और उससे कहा पहले तू यह बोतल पूरी पी ले फिर अपन जाएंगे। ऐसा कह कर मैंने उसे दो बोतल पिला दी, जबकि वह पहले से ही पूरी तरह नशे में था। फिर वह बिस्तर से उठ ही नहीं पा रहा था। तब मैंने उसका मुँह खोल कर नाक दबाकर और शराब उसके पेट में उंडेल दी। कुछ शराब नीचे गिर गई और कुछ बोतल में रह गई। मैंने उसे इतनी शराब पिला दी कि उसके लिए वह ज़हर जैसी हो गई। उसे मेरे सामने ही उबके आने लगे। तब मैंने उसका मुँह और नाक दोनों बंद कर दिए ताकि वह उल्टी ना कर सके। वह थोड़ा तड़पा और उसके बाद …,” इतना कहते हुए वह रो पड़ी।

रोते-रोते वह फिर कहने लगी, “सखा वह मेरा बेटा था। मैं उसे बहुत प्यार करती थी लेकिन वह शैतान बन गया था। उसके शैतानी रूप से मुझे इतनी नफ़रत हो गई कि मेरे हाथों उसकी मौत हो गई। सखा उसको मार कर भी मुझे ज़्यादा दुख नहीं हुआ क्योंकि मैंने दो लोगों की नहीं तीन की जान बचाई है। उसने तो हमारी बसंती को मारते पीटते भी फिर से गर्भवती कर दिया है।”

दंग होते हुए सखाराम ने कहा, “यह क्या कह रही हो तुम बसंती ?”

“हाँ सखा बसंती गर्भ से है, हो सकता है एक अच्छे रूप में अच्छे संस्कारों के साथ हमारा मोहन ही वापस आ जाए।”

सखाराम ने माया को अपने सीने से लगा लिया और उसके बाद उस बात की चर्चा जीवन में कभी ना करने की उन दोनों ने क़सम खा ली लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि इस राज़ को जानने वाला उनके अलावा भी कोई एक और है। वह यह भी नहीं जानते थे कि उसने भी इस राज़ को हमेशा-हमेशा के लिए अपने सीने में दफ़न कर लिया है।

मोहन तो चला गया दूसरी दुनिया में और उसकी घृणा से भरी वह कहानी भी उसी के साथ ख़त्म हो गई। अब उनके घर में नई ख़ुशियों ने जन्म ले लिया। बसंती को गोविंद ने फिर से पढ़ाना शुरू कर दिया। घर में बसंती और जयंती की हँसी की आवाज़ें गूंजने लगीं। सखाराम और माया अपने परिवार को देख-देख कर ख़ुश होते। इसी ख़ुशी में शामिल होने के लिए बसंती के माता-पिता भी अक्सर आ जाया करते थे। बसंती को फिर से उतना ही ख़ुश देखकर उनके मन को असीम शांति मिल रही थी।

घर की इन ख़ुशियों को देखकर बसंती के बाबूजी ने कहा, “बसंती की अम्मा देख रही हो कितना अच्छा परिवार है लेकिन कुछ महिलाओं की अनर्गल बातों ने इस परिवार में आग लगा दी। यदि वह शक के बीज मोहन के मन में पैदा ही नहीं करतीं तो आज मोहन भी यहीं हमारे सामने होता। ख़ैर भाग्य के आगे किसकी चली है।”

“हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो।”

कुछ ही महीनों बाद बसंती ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम बसंती ने मोहन ही रखा क्योंकि वह तो सच्चे मन से उसे प्यार करती थी। मोहन के मरने के बाद भी बसंती को उसी घर में देखकर कानाफूसी करने वाली उन महिलाओं के मुँह पर यह बसंती द्वारा लगाया हुआ एक करारा तमाचा था।


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त