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शपथपत्र

शपथपत्र

सेवानिवृत्त होने से पहले क्या क्या रंगीन सपने थे सिन्हा साहेब की आँखों में. सोचते थे जीवन भर जिन जिन शौकों के लिए समय निकालने के लिए तरसते रह गये उन्हें पूरा करने का अवसर अंत में आ ही गया .अब वे किताबे जिनके जैकेट पढ़कर लोलुप होने के बाद भी जिनपर केवल सरसरी दृष्टि डालकर आलमारी में सहेजकर रख देने के सिवा कोई चारा न था ,प्यार से बाहर निकाली जायेंगी ,पढी जायेंगी. सर्दियों की गुनगुनी धूप को बालकनी में बैठकर चुमकारने ,गले से लगाने के अवसर जो कभी कभार रविवार या छुट्टी के दिन आते थे अब .नियमित रूप से हर दिन आयेंगे. अपने वातानुकूलित दफ्तर में बारहों महीने एक ही तापक्रम से ऊबे हुए अधेड़ शरीर को वे धीरे धीरे खुली हवा ,खिलती हुई धूप में मद्धिम आंच में पकते हुए वृद्धावस्था की तरफ सहज चाल से चलने देंगे .शास्त्रीय संगीत की जिन बैठकों में अपने बेहद पुराने शौक के चलते किसी तरह दौड़ते भागते तब पहुँच पाते थे जब मुख्य राग को समाप्त करके गायक भजन या ठुमरी से समाप्ति की गुहार लगा रहे होते थे ,अब उन्ही में समय से पहुंचकर मंथर गति से रसवर्षा करते हुए आलाप को कानों में घुलते हुए महसूस कर पाएंगे .

पर सिवानिवृत्त हुए सप्ताह भी नहीं बीता था कि रंगीन सपनों का रंग दिन ब दिन ज़िंदा रहने के उपक्रम की तेज़ बारिश में धुलकर बहने लगा .सिन्हा साहेब को सरकारी नौकरी के बड़े पद का चस्का तो नहीं लग सका था क्यूंकि वे एक प्राइवेट कंपनी में सेवा करते रहे थे पर कंपनी भी बड़ी थी और उनका पद भी .इसीलिये आर्थिक चिंताओं से मुक्त होकर शेष जीवन बिता पायें इसकी वे पूरी तय्यारी कर चुके थे .एक अच्छी सोसायटी में तीन बेडरूम का निजी फ़्लैट ,सावधानी से की हुई बचत जो शेष जीवन भर के लिए पर्याप्त थी और जैसा कि आम हो गया है अमेरिका में सेटल हुए एक बेटा और एक बेटी. इन सबके रहते हुए भी वे रोज़ किसी न किसी समस्या से जूझते हुए सारा का सारा दिन बिताएंगे इस दु:स्वप्न ने उनके रंगीन सपनों में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था .नौकरी के अंतिम आठ दस वर्षों में तो किसी भी सरकारी गैरसरकारी विभाग में अपना निजी काम भी कराने के लिए अपने निजी सहायक पर वे सारी ज़िम्मेदारी छोड़ देते थे और पूछना तक नहीं पड़ता था कि भागदौड़ कंपनी के किस कर्मचारी से करवाई गयी .अब गैस की बुकिंग से लेकर बिजली आपूर्ति की शिकायतें करते कराते ही दिन फुर्र हो जाया करेगा ये किसने सोचा था .इसीलिये रिटायर होकर निजी फ़्लैट में शिफ्ट करने के बाद जब ड्राइविंग लाइसेंस और कार के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट ( आर सी ) में अपने नए पते को दर्ज कराने की ज़रुरत आ पडी तो उनके अनुभवी दिमाग ने ये बात उनके मन को पहले ही समझा दी कि आज का दिन तो बर्बाद हुआ. सेवानिवृत्ति के मुंडन के बाद रोज़ की घरेलू दिक्कतों के ओले जब सर पर गिरना शुरू हो चुके हैं तो इतनी चोट सहने के लिए तो स्वयं को तैयार करना ही पड़ेगा सोचकर उन्होंने कमर कस ही ली .

आर टी ओ कार्यालय जाने की तय्यारी में उन्होंने अपनी कार की आर सी ,ड्राइविंग लाइसेंस और पते के पुष्टीकरण के लिए अपना पासपोर्ट, तीनों की मूलप्रतियां अपने कीमती ब्रीफकेस में संभालकर रखीं और उसे कार में आगे बाईं सीट पर अपनी बगल में रख दिया .पत्नी को बता दिया कि लंच के समय तक घर आ जायेंगे .फिर बालकनी में खडे होकर हाथ हिलाती पत्नी से कार से हाथ निकालकर मुस्कराकर विदा ली और कार को आर टी ओ ऑफिस जाने वाले रास्ते पर दौड़ा लिया .लगभग पंद्रह मिनट के बाद एक बहुत व्यस्त ट्रैफिक सिग्नल पर जहां १२० सेकण्ड का इंतज़ार था उन्होंने ईंधन बचाने के लिए इंजिन बंद किया और सामने के दोनों शीशे नीचे कर लिए. तभी बायीं खिड़की में झांककर एक भिखारीनुमा छोकरे ने कहा “साहेब ,आपका पिछ्ला चक्का तो घूमता है .” सिन्हा साहेब पीछे का टायर जांचने के लिए गाडी से नीचे उतरे.पर टायर को सही सलामत पाकर उस छोकरे की शैतानी पर उसे कोसते हुए जब वापस ड्राइवर सीट पर बैठे तो अचानक देखा कि साथ की सीट पर रखा हुआ ब्रीफकेस गायब था .इसके बाद उस छोकरे को मन ही मन गालियाँ देने के बाद अपनी असावधानी पर खुद को कोसते हुए जब वे आर टी ओ ऑफिस में पहुंचे तो चिंताओं से ग्रस्त थे.ब्रीफकेस में रखे उन तीनों महत्वपूर्ण दस्तावेजों के बिना वे काम कैसे होंगे जिनके लिए वे घर से चले थे. पासपोर्ट का खोना अपने आप में एक मुसीबत थी. अब तो आर टी ओ ओफिस में डुप्लीकेट आर सी और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना मुख्य काम हो गया था और इन दोनों में नया पता दर्ज कराना बाद की बात हो गयी थी .खैरियत थी कि डी एल और पासपोर्ट की फोटोप्रतियां ग्लव कम्पार्टमेंट में अलग रखी थीं .

कार से उतरते ही उन्हें दलालों ने घेर लिया .सिन्हा साहेब ने उनसे अपनी समस्या बतायी तो तीन फरक फरक व्यक्तियों में से एक ने ड्राइविंग लाइसेंस का डुप्लीकेट बनवाने में ,दूसरे ने कार की डुप्लीकेट आर सी बनवाने में और तीसरे ने इन दोनों कागजों पर नया पता दर्ज करवाने में अपनी महारत का बखान शुरू कर दिया .सिन्हा साहेब ने कहा ‘ भाई ,तीनो काम एक ही आदमी से क्यूँ न करवाऊं .आजकल तो ‘टर्न की कान्ट्रेक्ट’ का ज़माना है .जवाब में एक बोला “ साहेब ,आजकल स्पेशलिस्ट होने का ज़माना है .आपने कभी डेंटिस्ट से अपनी आँखें चेक कराई हैं क्या ?” दूसरे ने समझाया “ सर, हर काम के लिए अलग खिड़की है ,हर खिड़की पर अलग बाबू हैं ,हम सारे के सारे बाबुओं से कहाँ तक सेटिंग कर सकते हैं?” तीसरा, जो पता नहीं मजाकिया स्वभाव का था या बड़ा कलाकार , बोला “ और सर, ‘टर्न की कान्ट्रेक्ट’ शब्द यहाँ सोच समझ कर बोलिएगा .यहाँ इसका मतलब है कि नकली चाभी या ‘मास्टर- की’ के इस्तेमाल से चोरी की हुई कार के पेपर बनवाने हैं. वो काम भी हो जाएगा पर आपके हुलिए को देख कर इसका ठेका कोई आपसे नहीं लेगा, करवाना हो तो मुझी को याद करियेगा”

सिन्हा साहेब विशेष हंसी मज़ाक के मूड में नहीं थे; ब्रीफ केस की चोरी के बाद हो भी नहीं सकते थे . झल्लाते हुए बोले “ अच्छा ,चलो ,तीनों अलग अलग ही अपने अपने काम संभालो ,पर पैसे कितने लगेंगे ?” पूछने को तो वे पूछ बैठे पर उत्तर सुनकर घबरा गए .तीनो दलालों ने अपने अपने काम के हज़ार हज़ार रूपये बताये ,और कहा कि चार एफिडेविट्स (शपथपत्र) बनवाने के प्रति एफिडेविट चार चार सौ रुपये यानी सोलह सौ रुपये अलग होंगे.इसके अलावा सरकारी फीस, अर्थात वह धनराशि जिसकी रसीद मिलेगी उसे अलग से जमा करवाने की ज़िम्मेदारी भी उन्ही की होगी .सिन्हा साहेब को आशा थी कि मोलभाव करके वे कुछ रूपये कम करा लेंगे पर दलालों ने उन्हें घास नहीं डाली .बल्कि उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहने लगे “साहेब ऐसा है कि इनमे से कोई एक काम आप खुद कर के देख लो फिर समझ में आ जाएगा कि हम अपनी मेहनत के कितने कम पैसे मांग रहे हैं .बल्कि ये भी हो सकता है कि तब आप शर्मा कर हमें बाकी के दोनों काम के उतने ही पैसे दे दो जितने हम तीनो काम के मांग रहे हैं.” सिन्हा साहेब को उनकी बात कुछ तो समझ में आयी क्यूंकि चारों तरफ बावली सी भटकती भीड़ और हर खिड़की के आगे लगे जमघट ने ऐसा माहौल बना रखा था कि उन्हें परेशानी लग रही थी .अतः इन खुदाई खिदमतगारों की बात पर विश्वास करने का सहज में ही मन कर रहा था ,पर चार चार सौ रुपयों की चार एफीडेविट्स वाली बात गले से नीचे नहीं उतरी.पूछा “ये चार चार एफीडेविट्स की क्या ज़रुरत है? एक में ही क्यूँ ना लिखवा लूं कि मेरा ड्राइविंग लाइसेंस और आर सी गुम हो गए हैं जिनमे मेरा पता पुराना लिखा हुआ था. अब नया बना कर दे दिया जाए जिनमे मेरा नया पता ये होगा?” दलालों में से एक ने उन्हें नीचे से ऊपर तक देखा और बड़ी सहानुभूति से बोला “लो जी , समझ में आ गया कि आप किसी सरकारी दफ्तर में पहली बार आये हो !” दूसरे ने समझाते हुए कहा “सर जी ,डुप्लीकेट आर सी एक खिड़की पर बनेगी ,पता बदलने का काम दूसरी पर होगा .यही बात डी एल पर भी लागू होती है .अब आपकी एक एफिडेविट लेकर एक बाबू दूसरे बाबू के यहाँ उठ उठ कर भागेगा तो उसकी खिड़की पर काम कौन करेगा .पब्लिक खाली खिड़की देखकर हल्ला मचाएगी कि नहीं ?” तीसरा दलाल कुछ ज्यादा ही मुंहफट निकला .बोला “ सर जी , आपको ट्रिपुल सन्डे आइसक्रीम या तिरंगी बर्फी खाने का शौक होगा पर वो यहाँ न पूरा होगा.यहाँ हर खिड़की पर फरक मिठाई मिलती है .यहाँ काम कराना हो तो चुपचाप फ़ाइल में इतने पेपर डालो या फिर उसके ऊपर इतना वज़न डालो जितना बताया जाए .इतनी बातें पूछोगे तो आपके सवालों के जवाब यहाँ मिलने से रहे .”

ट्रिपुल सन्डे आइसक्रीम की तरह ही सिन्हा साहेब के ऊपर प्रतिक्रियाएं भी तीन तरह की हुईं .पहले तो इन बेचारों की नासमझी या अल्पबुद्धि पर तरस आया ,फिर इस ऑफिस की व्यवस्था पर गुस्सा आया ,और अंत में उनके व्यंग से आहत होकर अपमानित सा महसूस किया उन्होंने .पर कुल मिला कर उनकी बातें उन्हें एक तरह की चुनौती सी लगी जिसे उनका आत्मसम्मान चुपचाप झेल जाने के लिए तैयार नहीं था. सोचा ‘अब कौन सी अपने ओफिस पहुँचने की जल्दी है . पत्नी को फोन कर दूंगा कि लौटने में देर होगी और सारा काम निपटा कर ही वापस जाऊँगा’. बात सिर्फ रुपयों की नहीं थी , “कुछ कर के दिखाना है” वाली हो गयी थी .सिन्हा साहेब ने चुनौती स्वीकार करते हुए उन तीनों से कहा “ चलो ,आज यही सही!” और उस तरफ बढ़ चले जिधर एक बड़े से बोर्ड पर साफ़ साफ़ बड़े अक्षरों में बहुत सरल और सहज तरीके से विभिन्न दस्तावेजों के जारी कराने या उनकी डुप्लीकेट प्रति के पाने के लिए क्या करना होगा बताया गया था.विभिन्न आवेदनों के लिए जमा करने की फीस अलग से दी हुई थी.पढ़कर उन्हें लगा कि इन कामों के लिए चालीस ,पचास या साठ रुपये की फीस कोई अनुचित या अधिक रकम नहीं थी .फिर किस खिड़की पर कौन सा काम होगा और कौन से आवेदन का फार्म नंबर क्या था ये भी बहुत स्पष्ट लिखा हुआ था .इतनी सुव्यस्थित ढंग से सारी जानकारियाँ दी हुई थी कि उन्हें अपनी कमजोरी और मूर्खता पर शर्म आयी कि इतना पढ़े लिखे होने के बावजूद उन्होंने दलालों के चक्कर में पड़ने की सोची. उन्होंने मन ही मन कसम खाई कि आगे से एक ज़िम्मेदार नागरिक की तरह सब काम करेंगे. एक बोझ सर से हट गया हो ऐसा महसूस करते हुए, हलके मन से, वे फार्म बेचने वाली खिड़की के सामने वाले क्यू में जाकर लग गए .

पर अपना नंबर आने से पहले एक उलझन ने घेर लिया .उन्हें खोयी हुई आर सी के बदले में एक डुप्लीकेट आर सी लेनी थी फिर उसमे अपना नया पता दर्ज कराना था. यही कहानी ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी दुहरानी थी. पर डुप्लीकेट आर सी के लिए एक फार्म था ,आर सी में पता बदलने के लिए दूसरा फार्म था. इसी तरह डुप्लीकेट ड्राइविंग लाइसेंस के लिए एक फ़ार्म था और उसमे पता बदलने के लिए दूसरा फार्म था . इन चार टुकड़ों में बंटे हुए हर काम के लिए फरक फरक खिड़कियाँ थीं. उन्हें लगा कि अगर डुप्लीकेट आर सी के आवेदन में ही नया पता भी लिख कर दे दें तो दोनों काम एक साथ हो जायेंगे ,जियादा से जियादा यही तो होगा कि दोनों फार्म भर कर एक साथ नत्थी करने होंगे. यही तरीका ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी अपनाया जा सकता था .पर प्रश्न था कि फार्म जमा कहाँ करेंगे -डुप्लीकेट जारी करने वाली खिड़की पर या पता बदलने वाली खिड़की पर .अभी वे यह सोच ही रहे थे कि उन्होंने अपने आपको फार्म बेचने वाली महिला के सामने पाया. उनके प्रश्नों के उत्तर में उसने कहा कि उसका काम फ़ार्म बेचने का था और फ़ार्म तो उन्हें चारों भरने ही पड़ेंगे ,अब वे चार की जगह किन दो खिडकियों पर जाएँ उसे नहीं मालूम. इसके लिए वे पूछताछ वाली खिड़की पर जाएँ .

सिन्हा साहेब ने चारों फॉर्म लिए , उन्हें भरा और पूछताछ की खिड़की पर जाकर अपना सवाल दाग दिया .वहाँ बैठे बाबू को उनका सवाल बहुत बचकाना लगा .बोला “ जब डुप्लीकेट आर सी बन जायेगी तभी तो उसमे पता बदल कर लिखा जाएगा .”सिन्हा साहेब ने कहा “ पर नए पते के साथ ही डुप्लीकेट आर सी क्यूँ नहीं बन सकती ?”बाबू ने कहा “ फिर फार्म आप जमा कहाँ करायेंगे ?” वे बोले “डुप्लीकेट आर सी देने वाली खिड़की पर ,और कहाँ ?” बाबू ने प्रतिप्रश्न छोड़ा “ डुप्लीकेट देने वाला बाबू पता बदलने वाला आवेदन फार्म आपसे लेगा ही क्यूँ?” सिन्हा साहेब चिढ़कर बोले “ अरे यही तो मैं पूछ रहा हूँ ,क्यूँ नहीं लेगा?” बाबू और जोर से झल्लाकर बोला “जब उसका काम डुप्लीकेट आर सी बनाने का है तो वो पता बदलने का काम क्यूँ करेगा ?आप का बस चले तो आप एक एक आदमी पर दस दस आदमियों का बोझ लदवा दें .आप उस गरीब निःसंतान अंधे की कहानी सुनकर तो नहीं आ रहे हैं जिसने भगवान् से वर माँगा था कि अपनी गोद में अपने बेटे को बैठाकर सोने की कटोरी में खीर खाते हुए देख सके?” सिन्हा साहेब इस बेजा बात का कोई तगड़ा सा उत्तर अपने मन में टटोल ही रहे था कि लाइन में उनके पीछे खड़े लोग अधीर होकर हल्ला मचाने लगे कि उन्हें बहस करने का इतना शौक है तो पहले दूसरे लोगों को फॉर्म खरीद लेने दें फिर फुर्सत से बहस करें .लाइन लम्बी थी. एक बार चूके तो फिर बीस मिनट लग जायेंगे. अतः पीछे शोर मचाने वालों की अनदेखी करते हुए उन्होंने पूछ ही डाला - “अच्छा एक ही एफिडेविट में लिखवा दूं कि आर सी और डी एल दोनों खो गए हैं और दोनों मे दिया पता अब बदल कर ये हो गया है तो चलेगा ?”

बाबू अबतक जल्दी जल्दी उत्तर दे रहा था. अब उसने सामने रखा अखबार बंद किया , अन्दर अपने पीछे खड़े दो दलालों को पीछे हटने का संकेत दिया और बड़ी हिकारत से बोला “ आप .सिर्फ इस ऑफिस में काम करने वाले लोगों में से आधे की नौकरी ख़तम कराने आये हो या साथ में बिचारे वकीलों और नोटरी लोगों के भी पेट पर लात मारने का मन बनाकर आये हो ?” बात बिगड़ती देखकर और इस बातचीत को लम्बी बहस में बदलते देखकर लाइन में पीछे खड़े तीन चार लोग अब एकसाथ सिन्हा साहेब के ऊपर बरस पड़े .पीछे खड़े एक बुज़ुर्ग ने मुंह बनाकर कहा “साहेब आप हाईकोर्ट में जाकर वकालत करिए ,यहाँ क्यूँ सबको दिक् कर रहे हैं ?”सिन्हा साहेब ने चुपचाप चारों एफीडेविट बनवाने में ही खैरियत समझी और क्यू से बाहर आ गए .उनके जाते जाते भी अन्दर से बाबू ने आगे सलाह दी “और हाँ, एफीडेविट आप खत्री साहेब जो गेट के बाएं बैठते हैं उन्ही से बनवाना ,नहीं तो गलत सलत बन जायेगी”. .सिन्हा साहेब इतनी सी देर में इतने समझदार हो चुके थे कि बाबू का इशारा समझ जाएँ .खत्री साहेब पब्लिक नोटरी के पास जाने से पहले उन्होंने चारों फ़ार्म खरीदे और बुझे मन से गेट की तरफ चल दिए.

गेट से बाहर आकर बाएं मुड़े तो कई सारी गुमटीनुमा दूकानों में बहुत से वकीलों के बोर्ड लगे दिखे ,पब्लिक नोटरी भी कई थे पर आर एन खत्री ,पब्लिक नोटरी के बोर्ड वाली गुमटी के सामने ज़्यादा भीड़ थी .सिन्हा साहेब वहां पहुंचे तो सामने कम्प्युटर पर बैठे व्यक्ति ने पूछा “ हांजी सरजी ,बोलो क्या बनवाना है?” सिन्हा साहेब ने बताया कि उन्हें चार एफीडेविट्स बनवानी थीं ,दो कागज़ात खोने की और दो पुराना पता बदल कर नया पता बताने की, तो वह बोला “ देखो सरजी ,एस तरा है कि चार एफीडेविट्स के तो सोलह सौ रूपये लगेंगे .लेकिन अगर एक ही से काम चलाना हो तो सिर्फ हज़ार लगेंगे” सिन्हा साहेब एक मिनट तो अवाक रह गए फिर खांस कर गला साफ़ करके बोल पाए “भाई ,एक एफीडेविट तो चार सौ की बताई है न आपने फिर हज़ार किस बात के?” उसने उकता कर जवाब दिया “ साबजी ,आपको आम खाना है तो खाओ ,पेड़ क्यूं गिनते हो .अब पूछोगे एफीडेविट देने की क्या ज़रुरत है ,सादे कागज़ पर ही क्यूं ना लिख कर दे दूं कि मेरे कागज़ गुम गए हैं और मेरा पता बदल गया है.”

सिन्हा साहेब तय नहीं कर पा रहे थे कि अपने मन की बात मन में ही रहने दें या उसे बता डालें .फिर कहने भर का साहस जुटा ही लिया उन्होंने. बोले “सोच तो रहा था मैं भी यही , पर कह नहीं पा रहा था .अगर मेरी कोई बात लिख कर देने से भी विश्वास के योग्य नहीं है तो स्टैम्प पेपर पर लिख कर देने से कैसे उस पर विश्वास कर लिया जाएगा ? और अगर मैं कोई झूठा बयान सादे कागज़ पर लिख कर दे दूं तो क्या सरकार उसपर कोई कार्रवाई कर ही नहीं सकती है?” वह चकित था. बोला “केस त्रा करेगी जी? स्टाम्प पेपर नहीं होगा तो केस्त्रा कार्रवाई करेगी ?” सिन्हा साहेब बोले “ अच्छा अगर मैं सादे कागज़ पर आपको चिठ्ठी लिखूं कि मुझे शाम तक एक लाख रूपये दो नहीं तो तुम्हारा मर्डर कर दूंगा तो क्या स्टाम्प पेपर पर ना होने के कारण पुलिस उस पर कोइ कदम नहीं उठायेगी ?’’ वह सकपका गया .बोला “लोजी आप तो हमारी रोजी रोटी ही नहीं ,सरकार की रोटी भी छीनने पर लग गए हो .स्टैम्प पेपर नहीं बिकेंगे तो सरकार कैसे चलेगी ?” पर इसके पहले कि सिन्हा साहेब उसे समझाना शुरू करते कि सरकार बिना स्टैम्प पेपर पर एफीडेविट बनवाये कैसे चलाई जा सकती है उसने घुटने टेक दिए .बोला “सर जी आपके इतने सवालों का जवाब मैं क्या दूं. बस अपने काम की बात सुन लो .सिर्फ एक एफीडेविट से काम चलाना है तो चार सौ रुपये एफीडेविट के ,चार सौ चारों बाबुओं के और दो सौ मेरी चारों बाबुओं से सेटिंग के. कुल मिलाकर हजार बने. अब बोलो हज़ार वाला काम कराना है या सोलह सौ वाला ?” सिन्हा साहेब के पास आराम से पेट भरने के लिए तो रुपये थे पर फेंकने के लिए नहीं अतः उन्होंने प्लेन वनीला की चार आइसक्रीमों पर हज़ार रुपये की ट्रिपुल सन्डे आइसक्रीम को तरजीह दी और एक ही एफीडेविट बनवाई .

पर ताज्जुब तब हुआ जब कम्प्युटर से एफीडेविट का प्रिंटआउट निकालने के बाद उस आदमी ने कागज़ पर नोटरी आर एन खत्री की बड़ी सी गोल रबर स्टैम्प लगाकर कहा “ आप दो मिनट रुको ,मैं वकील साहेब से अभी दस्तखत कराकर लाता हूँ .?” सिन्हा साहेब ने कहा “पर मेरी दस्तखत तो अभी कराई नहीं .” उसने कहा “जी ,सब आपकी तरा खुद थोड़ी आते हैं ,हम तो एफीडेविट नोटराइज़ कराके दे देते हैं कि लोजी अब फुर्सत से जिसको घुघ्घी मारनी है मारो” सिन्हा साहेब ने हैरानी से पूछा “ फिर उनकी दस्तखत का क्या माने होगा?” वह समझाते हुए बोला “सर जी ,उसका माने होगा कि वो आपको जानते हैं ,पुष्टि करते हैं कि आप ही मिस्टर यदुनंदन सिन्हा वल्द रामकुमार सिन्हा हो और क्या नाम है कि सत्यापित करते हैं कि इस कागज़ पर आप के ही दस्तखत हैं ?” सिन्हा साहेब के अचरज का ठिकाना नहीं था . बोल पड़े “पर वो तो मुझको जानते नहीं हैं .दस्तखत भी मैं उनके सामने नहीं कर रहा हूँ .फिर वो सत्यापन और पुष्टि या जो जो आप कह रहे हो कैसे करेंगे?” खत्री साहेब के बन्दे को अचानक पता नहीं क्या हुआ .वह एक झटके से साष्टांग दंडवत की मुद्रा में आ गया और लगभग गिडगिडाते हुए बोला “ प्रभु ,मैं गरीब किरानी हूँ .ज़्यादा नहीं दे सकता .पर सौ पचास रूपये लेकर सच सच बता दो आप कौन से लोक से इस धरती पर पधारे हो ?”