Kammo in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | कम्मों

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कम्मों

कम्मों

दो लड़कों के बाद जब रामेश्वर के घर पर लड़की ने जन्म लिया तो पति-पत्नी की खुशी का ठिकाना न रहा, शुरू से ही दोनों भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि इस बार हमारे यहाँ लड़की को जन्म देना और जब कम्मों पैदा हुई तो इतनी सुंदर कि वास्तव मे वो रामेश्वर और दुलारी के लिए लक्ष्मी ही थी। दुलारी ने अपनी बेटी का नाम कमला रखा चूंकि वह लक्ष्मी का रूप लेकर पैदा हुई थी उनके लिए, तो नाम भी लक्ष्मी जी का ही ले लिया। धीरे-धीरे कमला बड़ी होने लगी एवं घर मे उसे प्यार से कम्मों कह कर बुलाने लगे। सभी कम्मों को बहुत प्यार करते थे, माँ-बाप का कम्मों के लिए इतना प्यार देख कर दोनों भाई कभी-कभी अपनी माँ दुलारी से शिकायत भी करते लेकिन प्यार वह भी अपनी छोटी बहन को जान से ज्यादा करते थे।

अपने गाँव मे रामेश्वर खेतिहर मजदूर था, वह कैराना मे ही रहकर इमरान के खेतों मे काम करता था, पूरा परिवार दिन रात लग कर इमरान के खेतों मे काम करता था फिर भी बस इतना भर ही मिलता था कि उनका गुजारा किसी तरह चलता रहे। अब कम्मों भी थोड़ी बड़ी हो गयी थी और वह भी अपने परिवार के साथ खेतों मे काम करने लगी थी। इमरान जब भी कम्मों को अकेले काम करते देखता तो उसका हाथ बटाने लगता और इसी बहाने उससे थोड़ी छेड़-छाड़ करने लग गया था। इन बातों को समझने के लिए कम्मों अभी बहुत छोटी थी लेकिन इमरान के प्यार के दिखावे से उसे कुछ-कुछ होने लगता था अतः वह कोशिश करती थी कि वह अकेले मे काम करे, यही तो इमरान चाहता था और अकेली देखकर उसके नजदीक भी आ जाता था।

रामेश्वर कैराना के दलित परिवार से था, उसके पास एक छोटा सा घर था जिसमे वह अपने परिवार के साथ रूखा सूखा खाकर भी बहुत खुश रहता था। लेकिन वह इससे बेखबर था कि इमरान की निगाह उसकी प्यारी बेटी कम्मों पर है। कैराना गाँव के सभी जमींदार अपने खेतिहर मजदूरो को छ छ महीने बाद ही फसल कटने पर मजदूरी देते थे लेकिन इस बार यमुना मे बाड़ से फसल बह जाने के कारण किसी भी मजदूर को इस छमाही की मजदूरी नहीं मिली थी। कैराना के सभी दलित मजदूर भूखा मरने के कगार पर थे लेकिन वंही के लाला राम दयाल ने सभी मजदूरो को उनकी आवश्यकतानुसार राशन का सामान अपनी दुकान से उधार दे दिया एवं जरूरतमंदों को रुपये पैसे से भी मदद कर दी।

इमरान, फैजान, नसीम और सभी जमींदारो ने अपने मजदूरों की जरा भी मदद नहीं की जबकि उनके अपने खर्चो मे कोई कमी नहीं हुई थी। सभी दलित मजदूरों ने मस्जिद मे जाकर इमाम साहब के सामने अपनी समस्या रखी तो इमाम साहब ने उनके सामने एक प्रस्ताव रख दिया कि तुम सब लोग सपरिवार इस्लाम कबूल कर लो, फिर तुम्हें और तुम्हारे परिवार को हर तरह की सहायता दी जाएगी और अगर नहीं मानोगे तो शायद तुम्हारे परिवार को भूख की वजह से दम तोड़ना पड़े, इस तरह भूख से तिल-तिल कर मरने से तो अच्छा है कि तुम भी हमारे साथ आ जाओ, हिन्दू धर्म ने तुम्हें दिया ही क्या है, अब तुम लोग भूख से मर रहे तो कोई तुम्हें पूछने भी नहीं आया। तभी रामेश्वर ने कहा कि इमाम साहब धर्म तो हम नहीं बदलेंगे और रही भूखों मरने की बात तो हमारे लाला राम दयाल जी इतने दयालु हैं कि उन्होने हम सब को हमारी आवश्यकतानुसार राशन हमे दे दिया है, एवं हम सब को आश्वासन दिया है कि किसी भी तरह की आवश्यकता हो तो किसी भी समय मेरे पास आ जाना। लाला राम दयाल वास्तव मे एक दयालु प्रवृति के व्यक्ति थे। गाँव के बीच मे उनका बहुत बड़ा हवेलीनुमा मकान था, एवं नीचे के हिस्से मे बहुत बड़ी दुकान बना रखी थी। राम दयाल के यहाँ गाँव के लोगों की आवश्यकता का सब समान मिलता था। घर के पास ही एक मंदिर बनवा दिया था जिसमे सभी लोगों को पूजा करने का पूरा अधिकार था यहाँ तक कि जब भी कोई बड़ा आयोजन होता था तो लालाजी स्वयं दलित बस्ती मे जाकर सभी भाइयों को निमंत्रण दे कर आते थे। मंदिर के आयोजन मे सभी हिन्दू आते थे और इस तरह एक बहुत ही शुभ धार्मिक माहौल बन जाता था, जिसे देखकर इमाम साहब को बड़ी ईर्ष्या होती थी।

आज जब इमाम साहब ने सुना कि सभी दलितों की सहायता लाला राम दयाल ने कर दी है तो उसका तन बदन ईर्ष्या से जलने लगा, इमाम ने सभी दलित मजदूरों को यह कह कर भगा दिया कि जाओ यहाँ से कुछ नहीं मिलेगा, क्योंकि सारी फसल यमुना की बाढ़ में बह गयी है। इमाम को रामेश्वर से कुछ ज्यादा ही चिढ़ हो गयी थी, क्योंकि रामेश्वर ने ही तो आगे बढ़ कर इमाम को धर्म परिवर्तन के लिए मना कर दिया था। रात मे इमाम ने इमरान, नसीम व फैजान को मस्जिद मे ही बुला लिया एवं सारी बात विस्तार से बताई, इमाम ने कहा कि हमारी दलितों को इस्लाम कबूल करवाने की योजना पर तो लाला राम दयाल ने पानी फेर दिया है और रामेश्वर सभी की वकालत कर रहा है, अब हमे इन लोगो को सबक सिखाना है। लाला राम दयाल के एक ही लड़का है और लाला की जान उसी में बसती है, फैजान तुम मौका देख कर उसके लड़के को गायब कर दो एवं इमरान से कहा कि तुम रामेश्वर की लड़की को अपने प्रेम जाल मे फंसा कर यहाँ मस्जिद में ले आना बाकी सब मैं देख लूँगा एवं इमाम ने नसीम को आदेश दिया कि तुम लाला की दुकान के सामने मीट की दुकान खोल लो, वंही पर बकरे मुर्गे काटने शुरू कर दो एवं आने जाने वाली हिन्दू लड़कियों स्त्रियॉं पर इतना छीटाकशी करो की वे दुकान पर आना ही छोड़ दें और हिन्दू पुरुषों को भी भयभीत करो, पाँच सात मुस्लिम युवकों को हमेशा अपने पास बैठा कर रखो, वंही पर नमाज पढ़ो अजान लगाओ।

इमाम साहब के आदेश पर कैराना के इन युवकों ने अपना-अपना काम शुरू कर दिया, सबसे पहले वहाँ पर मीट की दुकान खोली गयी एवं लोगों को तंग करना शुरू कर दिया। पुलिस में शिकायत की तो राजनीतिक हाथ उन लोगों के सिर पर होने कारण पुलिस ने पूरी निष्क्रियता दिखाई। इसी बीच लाला जी के इकलौते बेटे का अपहरण हो गया, लाला जी के घर मे तो मातम छा गया और दो तीन दिन तक कुछ पता भी नहीं चल सका। सहानुभूति के तौर पर इमाम लाला जी के घर पर आया एवं लाला जी को अकेले में ले जाकर समझाने लगा कि तुम इन मजदूरों के चक्कर मे क्यो अपने परिवार को दांव पर लगा रहे हो, यहाँ से बेचकर कंही बड़े शहर मे जाकर काम धंधा कर लो, अगर यहाँ बेटा ही नहीं रहेगा तो काम धंधा किसके लिए करोगे और हाँ पुलिस को मत बताना कंही ऐसा न हो कि अपहरहकर्ता चिढ़ जाए और तुम्हारे बेटे को मार कर कंही फेंक दे। लाला जी कहने लगे कि मेरे इतने बड़े मकान और कारोबार की कीमत यहाँ कौन देगा तभी इमाम ने नसीम को बुलवाया और 10 लाख रु लाला जी को दिलवा कर कहने लगे कि एक महीने में खाली कर देना। लाला राम दयाल बोले कि मेरा तो सब मिला कर एक करोड़ से ज्यादा का है, मैं इसे 10 लाख में कैसे दे दूँ तो इमाम बोला कि क्या करेगा एक करोड़ का जब बेटा ही नहीं रहेगा। यह 10 लाख पकड़ और जल्दी-जल्दी सब कुछ छोड़ कर अपने परिवार को लेकर कंही निकल जा। दस लाख रु लेकर इन कागजों पर अपने हस्ताक्षर कर दे तो आज शाम तक तेरा बेटा तेरे घर पहुँच जाएगा अन्यथा न बचेगा तू और न तेरा कारोबार। लाला राम दयाल ने इमाम से पूछा की क्या कोई और रास्ता नहीं है तो इमाम ने बताया कि इसके अलावा बस एक ही रास्ता है कि तू इस्लाम कबूल कर ले, छोड़ दे इस हिन्दू धर्म को और निडर होकर कारोबार करते रहना। लाला राम दयाल ने नसीम से 10 लाख रु लेकर कागजों पर हस्ताक्षर कर दिये एवं कैराना छोड़ कर चलने की तैयारी करने लगा, शाम को उनका बेटा भी आ गया उसको काफी यातनाए दो गयी थी, जिसके निशान उसके सारे शरीर पर थे। लाला राम दयाल ने उसी रात कैराना छोड़ दिया एवं बड़ौत पहुँच कर अपना कारोबार नए सिरे से शुरू कर दिया और एक मकान किराए पर लेकर उसमे रहने लगे।

इमरान ने कम्मों को अपने प्यार के शीशे मे पूरी तरह उतार लिया था, माँ बाप व भाई जब खेत मे काम करते थे तो इमरान कम्मों को अपने साथ ले जाता था एवं सब्ज बाग दिखाता रहता था। कम्मों भी उसके झूठे प्यार मे फँसती चली गयी और उससे शादी करने को भी राजी हो गयी लेकिन कम्मों ने इमरान के सामने एक शर्त रख दी कि वह अपना हिन्दू धर्म नहीं छोड़ेगी। इमरान के पहले से ही दो बीवियाँ थी जिनके बारे मे उसने कम्मों को कुछ नहीं बताया था। कम्मों से इमरान ने कहा कि हम पहले मस्जिद मे चलकर इमाम सहब से अपनी शादी करवा लेते हैं फिर तुम्हारे माँ और बाबूजी को बता देंगे। कम्मों ने भी इमरान की बात मान ली एवं वह इमरान के साथ मस्जिद मे इमाम के पास चली गयी। इमाम ने कम्मों का निकाह इमरान से करवा दिया जिसको दोनों ने कबूल कर लिया। अब कम्मों ने इमरान से कहा कि चलों अब माँ बाबूजी को अपनी शादी की खबर दे देते है तो इमरान ने उसको मस्जिद मे इमाम के पास ही रुकने के लिए कहा। इमाम साहब ने कम्मों से कहा कि बेटा अब तुम इस्लाम भी कबूल कर ही लो, लेकिन कम्मों ने इस्लाम कबूलने से मना कर दिया। इमरान और इमाम ने मिलकर उसको एक कमरे मे बंद कर दिया और भूखा-प्यासा रख कर यातनाये देने लगे।

इधर कम्मों के माँ बाबूजी बेटी के गुम होने पर परेशान थे, दो दिन तक इंतज़ार करके पुलिस थाने रिपोर्ट लिखवाने गए तो पुलिस वालों ने उन्हे डांट कर भगा दिया एवं कहने लगे कि भाग गयी होगी किसी के साथ, जब बच्चों को संभाल नहीं सकते तो उन्हे पैदा क्यो करते हो।

रामेश्वर और दुलारी के पास रोने के सिवा और कोई चारा नहीं था। दुलारी दिन रात लड़की के गम मे रोती रहती थी और बीमार भी रहने लगी थी उधर इमरान और इमाम कम्मों को एक से बढ़ कर एक यातनाये दे रहे थे। उन दोनों ने फैजान और नसीम के साथ मिल कर कम्मों के साथ सामूहिक बलात्कार किया एवं उसकी विडियो बना ली। अब ये लोग कम्मों के साथ प्रतिदिन बलात्कार करने लगे और उसको विडियो दिखा कर उसे डराने लगे। इमाम ने कहा कि कम्मों तुम इस्लाम कबूल कर लो नहीं तो इसी तरह दोज़ख मे सड़ती रहोगी। जब कम्मों ने उनकी बात नहीं मानी तो उन्होने उसके माँ बाप और भाइयों को मारने की धमकी दे दी। इस धमकी से कम्मों टूट गयी और एक जिंदा लाश की तरह उनकी सब बातें मानने लगी। कुछ दिन कैद मे रखने के बाद उन्होने कम्मों को इमराना बनाकर दूसरे शहर मे बेच दिया।

रामेश्वर और दुलारी को इमरान ने उनकी बेटी की विडियो दिखा कर कहा कि क्या तो तुम भी इस्लाम कबूल कर लो या फिर यहाँ से छोड़ कर चले जाओ। तंग आकार एक रात को रामेश्वर और दुलारी ने अपने दोनों बेटो के साथ कैराना छोड़ दिया, उनके साथ और भी कई लोग कैराना छोड़ कर दूसरी जगह चले गए। संयोग से रामेश्वर और दुलारी भी उसी शहर मे जा बसे जहां पर इमरान ने कम्मों को बेचा था और एक दिन दुलारी का सामना कम्मों से हो गया। दोनों माँ बेटी एक दूसरे से गले मिल कर बहुत रोयी, दुलारी कम्मों को अपने साथ ले आयी तब कम्मों ने अपनी सारी व्यथा अपनी माँ को बताई। उन्होने पुलिस मे गुहार लगाई मगर अपराधियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। एक गैर सरकारी संस्था ने कम्मों का केस अपने हाथ मे लिया और सीधा न्यायालय मे मुकदमा डाल दिया। उस गैर सरकारी संस्था और न्यूज़ चैनल के कारण कैराना का यह मामला जब लोगों के सामने आया तब तक ज़्यादातर हिन्दू कैराना छोड़ कर जा चुके थे। क्योंकि सभी संस्थाएं और न्यूज़ चैनल राजनेताओं के सामने बौने हो गए थे।

इस कहानी की सभी घटनाएँ, पात्र एवं स्थान काल्पनिक है अगर कंही किसी से कुछ भी मिलता है तो वह सिर्फ एक संयोग है।

वेद प्रकाश त्यागी

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