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स्वर्ग के राक्षस

स्वर्ग के राक्षस

“भैया मेरी बात मानो और अब धीरे धीरे अपना कारोबार श्रीनगर से समेट कर जम्मू में जमाना शुरू कर दो, जिस तरह यहाँ पर कट्टरवाद और आतंकवाद बढ़ रहा है कुछ दिन बाद हम पंडितों का यहाँ पर रहना मुश्किल हो जाएगा।”
रमेश अपने बड़े भाई पंडित राजेश्वर से बात कर ही रहा था तभी हामिद मियां भी वहाँ पहुँच गए और दोनों भाइयों की वार्तालाप सुनने लगे।
हामिद मियां का पंडित राजेश्वर के यहाँ बहुत आना जाना था, बच्चे भी उसको हामिद चाचा कहकर बुलाते थे।
रमेश की बात काटते हुए हामिद ने कहा, “भाई आप क्या बातें कर रहे हो, राजेश्वर भाई का इतना लंबा चौड़ा सेब का कारोबार और इतनी बड़ी हवेली, इन सब को छोडकर आप भाई को यहाँ से जम्मू जाने को कह रहे हैं, यह तो दुनिया का स्वर्ग है, भाग्यवान लोग ही इस स्वर्ग में रहने के अधिकारी बनते हैं।”
“वो सब तो ठीक है लेकिन हामिद भाई जिस तरह से इस स्वर्ग में आतंकवादियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, हम हिंदुओं के लिए कभी भी खतरनाक साबित हो सकता है।” रमेश बोला।
“किसी की मजाल जो मेरे भाई राजेश्वर पंडित के घर, परिवार की तरफ बुरी नजर उठाकर देखे, भाई हम उसकी आंखे निकाल लेंगे और हाँ हमारे रहते हुए फिर कभी भी यहाँ से कहीं दूसरी जगह जाने की बात मत करना।” हामिद बोला।
पंडित राजेश्वर ने कुछ दिन पहले ही बहुत सुंदर नया मकान बनाया था, घर में पत्नी सुमित्रा व एक बेटी प्रिया दोनों ही रहते थे, छोटा भाई रमेश और उसका परिवार भी साथ ही रहता था लेकिन उसने श्रीनगर छोड़ कर जम्मू में बसने का मन बना लिया था।
हामिद रोजाना शाम को पंडित राजेश्वर के यहाँ ही आ जाता और हंसी मज़ाक गपशप करता, प्रिया को हामिद की हंसी मज़ाक वाली बातों में बहुत आनंद आता और वह भी आकर पंडितजी और हामिद के पास आकर बैठक में बैठ जाती।
एक दिन रमेश अपने परिवार के साथ श्रीनगर छोड़ कर जम्मू चला गया और वहीं पर अपना कारोबार जमा लिया।
प्रिया जैसे जैसे बड़ी हो रही थी उसका रूप यौवन निखरता जा रहा था, सुमित्रा भी सुंदरता में किसी से कम नहीं थी........
देश में काँग्रेस का शासन था, राजीव गांधी जी प्रधान मंत्री थे, कश्मीर में भी काँग्रेस समर्थित सरकार थी। जम्मू कश्मीर के सभी ब्राह्मण काँग्रेस का ही समर्थन करते थे, काँग्रेस पार्टी में उनको पूर्ण विश्वास था, लेकिन वहाँ के ब्राह्मण इस बात से बेखबर थे कि काँग्रेस ने उनके विरुद्ध रचे गए षड्यंत्र में वहाँ के कट्टरपंथियों को पूरा समर्थन दे रखा था, सेना और पुलिस के हाथ बांध दिये थे।
कुछ दिन तो सब ठीक चलता रहा लेकिन एक दिन शाम के समय हामिद ने आकर पंडित राजेश्वर से कहा “भाई! आपको मौलवी साहब ने मस्जिद में बुलाया है,” राजजेश्वर के मन में तो किसी तरह का कोई भी डर या बहम नहीं था अतः राजेश्वर घर पर बोल कर हामिद के साथ मौलवी साहब से मिलने मस्जिद में चला गया।
मस्जिद में सामने एक बड़े तख्त पर मौलवी साहब बैठे हुए थे तख़्त के सामने दोनों तरफ चार चार नकाबपोश लोग हाथों में स्टेनगन लिए खड़े थे, दो नकाबपोश अपने हाथों में स्टेनगन लिए मौलवी साहब के पीछे खड़े थे।
“आओ पंडितजी! बैठो,” सामने पड़े एक स्टूल पर बैठने का इशारा करते हुए मौलवी साहब ने कहा........
“मुझे कैसे याद किया मौलवी साहब, क्या आदेश है?” राजेश्वर ने पूछ लिया........
“हाँ बैठो तो, आदेश भी करेंगे,” मौलवी साहब बोले……..
पंडित राजेश्वर स्टूल पर बैठ जाते हैं, हामिद भी मौलवी के पास तख्त के एक किनारे पर जाकर बैठ जाते हैं।
“ये लो हामिद, इन कागजों पर पंडित जी से हस्ताक्षर करवा लो॰” मौलवी ने हामिद को कागज पकड़ाते हुए कहा ........
“कैसे कागज हैं ये?” राजेश्वर ने पूछा
“ये तुम्हारे मकान, कारोबार और सेब के बागों के कागज हैं जो तुम हमारे नाम कर रहे हो।”
“लेकिन मैं यह सब तुम्हारे नाम क्यों करने लगा?”
“पंडितजी अगर आप अपनी जान बचाकर यहाँ से जाना चाहते हैं तो आपको यह सब तो छोडना ही पड़ेगा।” मौलवी ने कहा.........
“यह तो अन्याय है, मैं इस तरह जबर्दस्ती अपना इतना बड़ा घर और कारोबार नहीं छोडुंगा, मैं पुलिस में शिकायत करूंगा।”
“सुनो! यहाँ की पुलिस भी हम हैं, यहाँ की मिलिट्री भी हम हैं, कहीं तक चले जाओ कुछ नहीं होगा।”
राजेश्वर स्टूल से उठ कर बाहर जाने लगा तो नकाब पोश ने वहीं वापस बैठा सुना दिया।
“हामिद भाई! यह सब क्या है? मुझे पहले तो तुमने कुछ नहीं बताया, अब इनको बोलो कि मुझे जाने दें।” राजेश्वर ने हामिद को कहा।
“भाई राजेश्वर! मैं भी इसमे कुछ नहीं कर सकता, यह तो इस्लाम का मामला है और धर्म के काम में दखल देकर मैं दोज़ख में नहीं जाना चाहता।” हामिद बोला........
मौलवी साहब ने फरमान सुनाया, “राजेश्वर तुम एक काफिर हो और हमारे शरिया कानून के मुताबिक एक काफिर को जमीन जायदाद रखने का कोई हक नहीं है, अभी भी अगर तुम जिंदा रहना चाहते हो तो इन कागजों पर दस्तखत कर दो और अपनी खूबसूरत बीवी और बेटी को भी हमारे सुपुर्द करके कश्मीर का यह स्वर्ग छोड़ कर चले जाओ।”
राजेश्वर अब सुमित्रा और प्रिया के बारे में सोच कर परेशान हो गया और बड़े ज़ोर से चिल्लाया, “मेरी पत्नी और बेटी को कुछ मत करना।”
तभी मौलवी ने हामिद को आदेश दिया, “हामिद, हमारे चार जिहादी साथ लेकर जाओ और इसकी बीवी और बेटी को उठाकर ले आओ।”
हामिद ने कहा “मुझे जिहादियों को अपने साथ लेकर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी वे दोनों तो मेरे कहने से ही आ जाएंगी, ये पूरा परिवार मुझे अपना मानता है मुझ पर पूरा विश्वास करता है, इसी विश्वास के कारण तो पंडितजी मेरे साथ चले आए।” और अकेले ही सुमित्रा और प्रिया को लेने चला गया।
हामिद ने राजेश्वर के घर पर आकर कहा “भाभी! आप दोनों मेरे साथ चलो, भाई साहब ने आप दोनों को बुलाया है।”
सुमित्रा को हामिद पर पर विश्वास था, उसको जरा भी आभास नहीं था कि ये हामिद जिसे उसने अपने देवर से भी बढ़ कर माना है वह आज उनके साथ विश्वासघात कर रहा है, षड्यंत्र तो वह न जाने कब से रच रहा होगा, सुमित्रा अपनी बेटी प्रिया को साथ लेकर हामिद के साथ चल पड़ी........
मस्जिद में मौलवी के सामने अभियुक्त की तरह बैठे अपने पिता को देखकर और जिहादियों से घिरे होने के कारण प्रिया मौके की गंभीरता को समझ गयी और सुमित्रा को भी समझ में आ गया कि हामिद ने उनके घर में बैठकर उनके साथ गहरा षड्यंत्र रचकर विश्वासघात किया है........
सुमित्रा कुछ बोलने ही वाली थी कि बेटी ने उसको चुप रहने का संकेत दिया तभी........
"तुम तीनों इस्लाम कबूल कर लो तो तुम्हें छोड़ दिया जाएगा" मौलवी ने पंडित राजेश्वर से कहा........
तभी हामिद बोल पड़ा, "नहीं! इनके इस्लाम कबूल करने पर तो सारी संपत्ति इनके पास ही रह जएगी, मुझे क्या मिलेगा, मैंने इनके ही घर में बैठकर इनके ही साथ इतना बड़ा षड्यंत्र रचा, इन तीनों को अपने विश्वास में लेकर इनके साथ विश्वासघात किया अब इनसे इस्लाम कबूल करवा कर मुझे इस सारी संपत्ति से महरूम रखना चाहते हो, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, जैसे आपने मुझसे वादा किया था, सारी संपत्ति मेरे नाम करवाओ और इसकी बेटी प्रिया से मेरा निकाह करवाओ नहीं तो मौलवी साहब झूठ बोलने के इल्ज़ाम में तुम्हें भी दोज़ख में जाना पड़ेगा, तुमने यही कहा था कि संपत्ति के कागजों पर राजेश्वर के हस्ताक्षर होते ही इन दोनों काफिरों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा, मौलवी साहब आपको अपना वादा पूरा करना होगा।"
प्रिया समझ चुकी थी कि वे लोग एक बहुत बड़ी मुसीबत में घिर चुके हैं और उसके दिमाग तेजी से चलने लगा.....
“सुनो! मैं हामिद से निकाह करने को तैयार हूँ लेकिन मेरी दो शर्तें हैं, पहली ये कि मेरे माँ बाप को सुरक्शित मेरे चाचा के पास पहुंचा दिया जाए........
और दूसरी यह कि पूरी संपत्ति का अधिकार मेरे पिता हामिद के नाम नहीं मेरे नाम करेंगे........
अब आप लोगों को यह स्वीकार है तो ठीक है नहीं तो हम तीनों मरने को तैयार हैं........”
प्रिया ने समझदारी दिखाई और अब गेंद हामिद के पाले में फेंक दी........
हामिद को लगा कि अगर ये मार दिये गए तो न तो संपत्ति मिलेगी और न ही प्रिया से निकाह होगा और उसने प्रिया की शर्त मान लेने की सलाह दी.......
“हम अपनी बेटी को ऐसे राक्षसों के हाथों में सौंप कर नहीं जा सकते, हम मर जाएंगे लेकिन अपनी बेटी को ऐसे छोड़ कर नहीं जाएंगे।” राजेश्वर और सुमित्रा ने एक साथ ऊंची आवाज में कहा........
नकाबपोश जिहादी लड़ाकों ने अपने अस्त्र उन दोनों के ऊपर तान दिये, मौलवी ने हाथ का इशारा किया तो वे लड़ाके वहीं रुक गए........
मौलवी अपनी जगह से उठा और सुमित्रा के पास आकर उसकी ठुड्डी के नीचे अपनी चार उँगलियाँ लगाकर चेहरे को ऊपर उठाया और बोला, “तुम क्या समझते हो इतनी आसानी से मर जाओगे, हमारे जिहादी भूखे भेड़िये हैं, मेरे एक इशारे पर ये तुम दोनों माँ बेटी पर टूट पड़ेंगे, नोच नोच कर तुम्हें खा जाएंगे, सैंकड़ों जिहादी तुम्हें अपनी हवस का शिकार बनाएँगे अगर फिर भी तुम जिंदा रहीं तो यह आरा मशीन देख रही हो, यह लकड़ी चीरने को नहीं लगाई गयी, यह काफिरों को चीरने के लिए है, सैंकड़ों जिहादी अपनी हवस मिटाने के बाद तुम दोनों को इस आरा मशीन पर रख कर दोनों टांगों के बीच से सिर तक चीरकर दो टुकड़े करके चौराहे पर फेंक देंगे।”
पंडित राजेश्वर और सुमित्रा मौलवी की बातें सुनकर अंदर तक काँप गए, आज वह पछता रहे थे कि क्यों उन्होने समय रहते रमेश के साथ ही श्रीनगर नहीं छोड़ दिया, जिस हामिद के विश्वास पर यहाँ रुके वही हामिद आज काफिर कहकर हमारा सब कुछ छीन लेना चाहता है।
लेकिन अब क्या हो सकता था, प्रिया ने अपने माँ पिता से मौलवी की बात मान लेने को कहा और बताया कि इसमे ही हम सब की भलाई है........
कहावत है ‘मरता क्या ना करता’ तो राजेश्वर ने मौलवी की बात मान ली लेकिन कहा, “ठीक है हम तुम्हारी शर्त मान लेते हैं, हामिद को हमारे साथ जम्मू भेज दो वहाँ हम इसका निकाह प्रिया से करवा देंगे और जमीन के सारे कागज सौंप देंगे।”
मौलवी ने कहा, “ठीक है, हमारे दो जिहादी लड़ाके भी सादे वेश में तुम्हारे साथ जाएंगे, अगर कोई भी चालाकी की तो तुम्हें वहीं पर ऐसी दर्दनाक मौत देंगे कि कोई दूसरा काफिर हमें धोखा देने की सोच भी नहीं सकेगा।”
दो जिहादियों को साथ लेकर हामिद पंडित परिवार को लेकर जम्मू के लिए निकल गया, मन ही मन बहुत खुश हो रहा था कि पूरी संपत्ति के साथ साथ सोलह साल की लड़की भी मिलेगी।
रात का समय था, टाटा सूमों अपनी गति से चल रही थी, सबको नींद का झोंका आ रहा था, ड्राईवर भी कभी कभी झपकी ले लेता था पहाड़ी रास्ता था, टेड़े मेड़े मोड पर गाड़ी चल रही थी, एक मोड पर जैसे ही गाड़ी धीमी हुई प्रिया ने अपने माँ पिताजी को गाड़ी से बाहर धकेल दिया और ड्राईवर का स्टियरिंग गहरी घाटी की तरफ मोड कर स्वयं भी गाड़ी से कूद गयी.......
गाड़ी सीधी गहरी घाटी में जा गिरि और धू धू करके जलने लगी फिर एक विस्फोट के साथ ही ड्राईवर, हामिद और दोनों जिहादियों के चिथड़े घाटी में बिखर गए........
प्रिया ने चैन की सांस ली, पंडित राजेश्वर और सुमित्रा को थोड़ी खरोंचे आई लेकिन इसके बावजूद वे किसी तरह जम्मू में अपने भाई रमेश के घर पहुँच गए।
प्रिया ने जब पूरी कहानी अपने चाचा रमेश को सुनाई तो रमेश यह सुनकर ही काँप गया और सोचने लगा ‘भगवान तूने कश्मीर को स्वर्ग बनाया फिर यहाँ ये राक्षस क्यों पैदा कर दिये जो इस्लामिक जिहाद के नाम पर इसे तबाह करने पर तुले हुए हैं।’