wo ladki - rihai books and stories free download online pdf in Hindi

वो लडक़ी - रिहाई

वो लड़की "उस रात" मेरी जिंदगी में एक रहस्य का  "पर्दा" लेकर आई... फिर "बेपर्दा" कर गई "ख़ौफ़ का राज" । वो मुझे ले गई "आत्मालोक" में जहां "पर्दाफ़ाश" हुआ एक ऐसी "घिन्न" का जहां से "वापसी" तब तक सम्भव नहीं थी जब तक "सोमू" अपना "बदला" लेकर गुनाहगारों को  "सज़ा "न दिला दे...पर शायद सज़ा मुझे मिली, एक "कैद" के रूप में.. क्या उस ख़ौफ़नाक कैद से मेरी रिहाई हो पाएगी?? अब पढ़े आगे।
                    अध्याय-13   रिहाई 


हां.. यह वही जगह थी , जहां पर जालिम की कैद में मैंने सोमू को पहली बार देखा था। उस बवंडर ने मुझे एक पर्दे के पीछे ला पटका। 2 अजीब सी रस्सियां मेरे हाथों पर जकड़ गई और मैं हवा में लटक गया। पर्दों की इस घिनौनी दुनिया में आज मैं भी कैद हो चुका था।
चारों तरफ से दर्द में कहराने की आवाजें आ रही थी। मैं खुद दर्द में बुरी तरह से तड़प रहा था समझ में नहीं आ रहा था क्या करूं ..??बस सिवाय इंतजार के अब मेरे वश में कुछ नहीं था।
कुछ घण्टो  के बाद उस अंधेरी दुनिया में उजाले की हल्की सी झलक मिली जैसे बरसों बाद सूरज उगा हो। मेरे मुंह से बस यही निकला "हेल्प.... कोई मदद करो .... बचाओ .... मुझे उसे बचाना है ....मुझे उसको खत्म करना है ...कोई मुझे बचाओ,,,,"
परदे को हटाकर कोई सामने आया । जो भी था वह  चमक रहा था । अंधेरे में रहने वाली मेरी आंखें उसे देखकर चूंधिया गई थी।
"अंकित तुम यहां कैसे आए.... मतलब तुम भी मर गए!!" मैने जब आंख फाड़ कर देखा , तो सौरव सामने खड़ा था। मैं:- "सौरव भाई तुझे क्या हुआ तू यहां कैसे,,,"
सौरव मेरी रस्सी खोलते हुए बोला,"यहां लेकर मेरी किस्मत आई है और नाम जालिम का हुआ है।"
मैं:- "मतलब जालिम ने तुम्हें मारा है आह,, "    बोलते-बोलते दर्द से चीख पड़ा मैं .....क्योंकि उसका हाथ मेरे कटे हुए हाथ को छू गया था।
"अरे अंकित भाई आप भी किस  वहमं में पड़ गए ???अब आप मर चुके हो और मरे हुए लोगों को दर्द नहीं होता है और न ही उन्हें काटा फाड़ा जा सकता है। अब आप आत्मा हो अपने आप को पहचानो...."
उसके इन साधारण से शब्दों ने मुझ पर जादू सा असर किया। पल भर में मेरे घाव भर गए और दर्द भी चला गया।
मैं-"कमाल है भाई भगवत गीता का पूरा श्लोक पढ़कर भी मैंने उस जालिम से मार खाई है ...पर तुम्हारे बोलते ही सब ठीक हो गया ..!!!!!यह सब तो मुझे भी मालूम था ,,,फिर घाव कैसे आए .........जानता तो मैं भी था ,,,,फिर यह सब असर मुझ पर क्यों हुआ???"

सौरभ मेरे दोनों कंधों को पकड़कर बोला ,"जानते तो थे ...पर क्या मानते भी थे ???"मुझे उसकी बात कम समझ आई ,"मैंने कहा यह क्या चक्कर है .....वहां महंत महेंद्र जी कहते हैं की चीजों को मानना नहीं जानना चाहिए और आप कहते हो जानना नहीं मानना चाहिए यह सब क्यों??
हाथ पकड़कर परदे से बाहर निकालता हुआ सौरव बोला,"जब हम शरीर के साथ होते हैं तब पूरी व्यवस्था कर्म पर आधारित होती है .....और कर्म बिना ज्ञान के संभव नहीं है .....और ज्ञान मानने से नहीं जानने से प्राप्त होता है। तो भौतिक जगत में जानना बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन जब हम शरीर छोड़ देते हैं तो व्यवस्था बदल जाती है । व्यवस्था कर्म के स्थान पर भाव पर आधारित हो जाती है । आत्माओं की दुनिया आस्था पर चलती है .....मानने से चलती है, भौतिक दुनिया का ज्ञान यहां साथ छोड़ देता है। तुमने भगवत गीता भले ही हजारों बार पढ़ी होगी पर श्री कृष्ण में तुम्हारी कितनी आस्था थी???,,, मैंने तुम्हें काली मंदिर में एक बार भी भगवान के आगे सिर झुकाते नहीं देखा..... इतनी मुसीबत में आदमी पूरे दिन हाथ जोड़े खड़े रहता है ....लेकिन भगवान के दर पर भी मैंने तुम्हें हाथ फैलाते नहीं देखा ......मतलब आस्था ...भक्ति भाव ..समर्पण यह सब क्या होता है .......यह तुमने कभी जाना ही नहीं। मैंने भले ही भगवद्गीता नहीं पढ़ी हो ना ही मुझे कोई श्लोक याद हो पर श्री कृष्ण में मेरी आस्था बचपन से रही है । मैं सोते जागते उठते बैठते हर वक्त उसको याद करते रहा हूं ।जीते जी मेरे सारे काम उन्होंने ही  ने बनाए हैं और मरने के बाद भी वही मेरे लिए सब काम करतें  है।।  तुम आत्मा की सच्चाई जानते थे , लेकिन जिसने सच्चाई बताई.... उसी(श्रीकृष्ण) को भी नहीं मानते थे ,, तो भ्रम में तो तुम्हें पढ़ना ही था। तुम चाहे भगवत गीता के एक एक श्लोक की व्याख्या कर दो , लेकिन जब तक श्री कृष्ण में तुम्हारा पूर्ण समर्पण भाव नहीं है , तब तक तुम्हें सिर्फ भ्रम है कि तुमने कुछ समझा है। बिना आस्था के आध्यात्मिक ज्ञान शब्दों का बुना हुआ जाल मात्र है ,,, जिसमें हम उलझ कर रह जाते हैं । यही तुम्हारे साथ हुआ है ...भ्रम को तुम ज्ञान समझ बैठे हो।" 

सच कहूं तो उसकी बातें मेरे बिल्कुल भी समझ में नहीं आई। महंत जी की बातें भले ही तार्किक लगती थी पर सौरव की बातें भ्रम पैदा करने वाली सी लग रही थी ,, पर सच तो यही था कि इस दुनिया में उसकी ताकत मुझसे कहीं ज्यादा थी और वह आत्माओं की दुनिया में मुझसे अधिक ज्ञान भी रखता था तो उसकी बातों का विरोध करना किसी भी तरीके से सही नहीं था मैं उसके साथ चुपचाप चल पड़ा।
चुप्पी तोड़ते हुए मैंने उससे पूछा तुम यहां कैसे पहुंचे तो उसने बताया , जब तुम सब के साथ महंत महेंद्र जी यज्ञ कर रहे थे , तब मैं उनका दिया गया तंत्र उपाय लेकर कुलधरा गया था जहां पर मैंने उस तंत्र उपाय को गाड़ दिया था,,,इसके कुछ दिनों बाद मैं एक केस के सिलसिले में जनकपुरी दिल्ली गया था। वहां एक घर में घुटन भरी बदबू फैली रहती थी । अजीबोगरीब आवाजें आ रही थी। घर के सदस्य बीमार चल रहे थे । तो उन्होंने मुझे बुलाया। मुझे वहां पर कुछ आत्माओं के होने के सबूत मिले।उस जगह को हॉन्टेड घोषित कर देने के बाद मैं जब कैमरे समेट रहा था तब मैंने पहली बार उस घर में जालिम को देखा था। वह मेरे पास आया और बोला ,"नहीं बचोगे ...तुम भी भुगतोगे तुम भी भुगतोगे।" जब मैंने यह बात अपनी बीवी को बताई तो उसने मुझ पर दबाव बनाया कि मैं यह काम छोड़ दूं ।मैं सच में इतना डर गया था कि इस काम को अब छोड़ देना चाहता था और मैं अपने घर चला गया । अपने घर पर जब अगले दिन मैं नहा रहा था तो बाथ टब से कोई हाथ मेरे गले पर आया और यह हाथ जालिम का ही था वह बार-बार यही कह रहा था तुम भी भुगतोगे तुम भी भुगतोगे और उसके बाद यही किसी पर्दे के पीछे मैंने खुद को कैद पाया। मेरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह पाया गया कि मैं हार्टअटैक से मरा हूं। पर अफसोस सच्चाई बताने के लिए मैं दुनिया में नहीं था। किसी भी आत्मा को 24 घंटे के लिए कैद नहीं किया जा सकता है। वह कुछ समय के लिए मुक्त हो ही जाती है। जब मैं मुक्त हुआ तो महंत जी ने मुझसे संपर्क किया और मैंने उनको यहां की हकीकत बताईं तो उन्होंने मुझे कहा कि मैं ईश्वर का चुना हुआ व्यक्ति हूं जो इन सैकड़ों आत्माओं को मुक्त करेगा यही काम करने के लिए शायद मेरा जन्म हुआ था। उन्हीं ने मुझ में विश्वास भरा जिसके कारण मैंने कई आत्माओं को जालिम के चंगुल से आजाद कर दिया है वह हमारा अगले मोड़ पर इंतजार कर रही है।... लेकिन तुम यहां कैसे पहुंचे क्या तुम्हें भी जालिम ने मारा...."

मैंने कहा ,"उसने सोमू को फिर से कैद कर लिया ......तो मैं उसे छुड़ाने के लिए खुद जान देकर आ गया।

सौरव:-   "यह कैसा पागलपन है"

मैं:-  "भाई जो भी हो मुझे उस वक्त कुछ और समझ ही नहीं आया।....... पर महंत जी के तंत्र उपाय के बाद में भी जालिम आजाद कैसे हो गया??"

सौरव:-   "कुलधरा में आने वाले कुछ लालची पर्यटकों ने खजाने की तलाश में उस जगह पर खुदाई कर दी जहां पर मैंने तंत्र उपाय गाढ़ा था। जिसके कारण जालिम आजाद हो गया। मुझे यह बात महंत जी ने बताई।"
मुझे बड़ा दुःख था कि सौरव की मौत की वजह किसी न किसी रूप में मैं ही हूँ। साथ उन पर्यटकों पर बड़ा गुस्सा आ रहा था जिनके लालच ने एक जान लेली ओर हज़ारों आत्माओ पर कहर की वजह बने।
पर अपनी भावनाओं से ध्यान हटाकर मैं अपना ध्यान अब आत्माओ की रिहाई ओर शैतान से मुकाबले की तैयारी में लगाना चाहता था। मैं सौरव के साथ पर्दों के पीछे से आत्माओ को मुक्त करने लगा। आज इन आत्माओ की किस्मत में शायद रिहाई लिखी थी।

क्रमशः


प्रिय पाठकों ??
                        कैसा लगा ये भाग। कहानी अंत की ओर आ गई है। जैसा कि मैं पहले भाग में ही बता चुका हूं कि इस कहानी में कुल 14 अध्याय हैं। जिनमे से 13 आप पढ़ चुके हैं। अंतिम अध्याय "शैतान" आपको अगले रविवार को उपलब्ध होगा। 
आप सब ने कहानी को .....ओर मुझे जो , सपोर्ट दिया उसके लिए दिल से शुक्रिया। 
कहानी खत्म होने के बाद भी एक अतिरिक्त अध्याय "उपसंहार" आएगा जिसमे आप सभी पाठकों के प्रश्नों के उत्तर दिए जाएंगे। अगर कहानी , satanism , तन्त्र , विभिन्न रूहानी शक्तियों से सम्बंधित  या कोई भी अन्य प्रश्न जो आप पूछना चाहते हैं वो पूछ सकते हैं। 
आप प्रश्न व्हाट्सएप , फेसबुक , इंस्टाग्राम , ट्विटर , मातृभारती के मैसेज बॉक्स से पूछ सकते हैं या मुझे इस address पर mail करें

anokhaankit123@gmail.com

ओर हाँ समीक्षा देना न भूलें। अगले ओर अंतिम अध्याय के साथ जल्द लौटूंगा , तब तक पढ़ते रहें मातृभारती।