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साहब

लघुकथा
साहब
साहब राजीव गाँधी के बड़े भक्त थे लेकिन जमाना वी पी सिंह का था।हिंदी अखबार बोल कर बाँचते थे।जो वाक्य समझ न आये बाबुओं से बेहिचक पूछ लेते थे।उनका मुँह लगा और होशियार बाबू मैं था।इसलिए ज़्यादा सवाल मेरे हिस्से आते थे।
साहब के एक भाई एरिया के नामी बदमाश थे।एक भाई बड़े गहरे वकील साहब।साहब ने जवानी में अर्थशास्त्र में पढ़ाई की थी,जिसे वे बातचीत में इंकनॉमिक्स कहते थे।लेकिन याद माँग और पूर्ति सिद्धांत के सिवा कुछ न था।कोई अगर उनसे प्राइस थ्योरी के बारे में सवाल कर लेता था तो वे वाक़ई नाराज़ हो जाते थे।अगर कायदे से कोई माफ़ी माँग लेता था,तो माफ़ी ब्राह्मणों का स्वभाव है कहकर खट से माफ़ भी कर देते थे।
मेरी मकान मालकिन जिसकी एक हाथ कुट्टी काटने की मशीन में आ गया था,हमारे साहब की कटु आलोचक थी।उसकी आलोचना के तीर ऐसे थे,
1)औरतों जैसे मुँह वाला
2)कारा बामण और भूरा-----खतरनाक रह्य करें।
3)बात करे तो आँख नाक मुँह सारे चलें।
4)सारा दिन बैठा बैठा औरतों ने लखावै।
अब हुआ यह कि जद की सरकार आ गई।जद मतलब जनता दल।लेकिन साहब को जद कहना पसंद था।जद मतलब वी पी सिंह,वी पी सिंह मतलब ठाकुर।आसपास के ठाकुर बाहुल्य गांवों की आसामियों के व्यवहार बदल गए।पंडित जी,पंडित जी!साहब साहब करने वाले अबे तबे से बात करने लगे।राजीव गाँधी चाहे इटालियन महिला से ब्याह किये थे।उनकी माँ साक्षात भली महिला ने पारसी से प्रेम विवाह किया था तब भी राजीव गाँधी उनकी नज़र में ब्राह्मण थे।
जब आरक्षण विरोधी आंदोलन हुआ हमारे साहब हो हो कर हँसे।ठाकुर मुँह छुपा कर घूम रहे थे,यह उनके आनंद का विषय था।ठाकुर आसामी को पहचानते ही राजा साहब कैसे कुलघाती निकल गए,इसका बड़ा लंबा बखान करते।सामने वाला हूँ हाँ करता कट लेता तो आनंद विभोर हो जाते।अगर कोई मुँहफट होता तो कह देता,पंडित जी आप वाले कौनसे कम निकले,एक मुसलमान संग निकाह कर बैठी।उसकी संतान क्रिस्तान बहू ले आया।कम से कम वी पी सिंह ऐसा तो न किया।
अब साहब ऐसे आदमी से बहस न करते।न यह बतलाते कि फ़िरोज गाँधी पारसी थे मुस्लिम नहीं।हालाँकि मेरे बताने पर ही साहब को पता चला था कि पारसी धर्म मुस्लिम से अलग है।
साहब का भाई जो एरिया का नामी बदमाश था इसकी पत्नी पढ़ी लिखी यानि कम से कम मैट्रिक और ज़्यादा से ज़्यादा बी एड थी।यू पी की थी,हरियाणा के इस इलाके में लोग यू पी की बहुओं को कम पसंद करते हैं।इसलिए पति को सही रास्ते से भटकने देने का सारा इल्ज़ाम इस पढ़ी लिखी बहु पर आता था।अब साहब की बीवी का निपट अनपढ़ होना या कोई और वजह थी कि साहब की सहानुभूति पढ़ी लिखी बहू के साथ थी।उसे वो अपने दफ़्तर की कहानियाँ सुनाते थे।वह कभी कभार अच्छी,समझदारी भरी सलाह भी दे दिया करती थी।
साहब जब भी नया सूट सिलवाते या नया काम करते बहू की रजामंदी से करते।नया कपड़ा बनवाते ही दर्जी के यहाँ से पहन के घर जाते।ताकि पिताजी फिजूलखर्ची पर न टोकें।यह काम भी शायद बहू की सलाह पर किया जाता था।
और एक दिन ठंडी सुबह में जब मैं हाफ स्वेटर में ठिठुरते हुए दफ़्तर पहुंचा तो पता चला कि साहब की वह भावज जचगी में एक्सपायर हो गई है।
तय पाया कि दो दो लोग बारी बारी से साहब के गाँव मातमपुर्सी पर जाएंगे।हम लोग बाबू थे,हमारा जाना कुछ खास मायने न भी रखता हो हमारे भले के लिए हमारा जाना जरूरी था।
साहब के घर रउआ राट मचा हो ऐसा भी नहीं था,सब लोग हंस बोल रहे हों,खा पी रहे हों ऐसा भी माहौल न था।हाँ भीड़ बहुत थी,जो साहब के रसूख का प्रमाण थी या साहब के पिताजी की सामाजिकता का,कह नहीं सकते।
साहब धोले कुर्ते पाजामे में सर पर साफा बाँधे बैठे थे।उनके चेहरे से अंदाजा लग रहा था कि उनको अतिरिक्त दुःख हुआ है।बातचीत से पता लगा कि बच्चा भी न बचा।बच्चा यानि कि लड़का था।घर में खुशी आनी थी।आते आते ग़म में परत गई।
उनके भाई साहब जिनकी पत्नी गुजरी थी,खेत में जरूरी काम से गये थे।
अब साहब खेती तो ख़ुशी गमी की बाट न देख सकती।पूरे साल के अनाज का पूरा खेती से ही पड़ता है।पशुओं का न्यार फूस भी है।खेती से सौ पेट जुड़े हैं।जाने वाला तो गया।बच्चा भी बच जाता तो यूँ कहते बहू भाग्य वाली थी।मरते मरते अपना फ़र्ज़ पूरा कर गई।
सब जवान,बच्चों, बुजुर्गों ने सहमति में सर हिलाया।
पंडित जी,आप ग़म न करो!(यह शख्स शायद लड़की के मायके से था।)
आप का नुकसान हम पूरा करेंगें।उससे भी असील और पढ़ी लिखी सुंदर, गृह कार्य मे निपुण और बुजुर्गों की इज्जत करने वाली कन्या आपको देंगे।आखिर हमारा भी तो कुछ फ़र्ज़ है।रिश्ता कोई एक बार का न होता, पंडित जी।
सब लोग अश अश कर उठे।
साहब का कटु आलोचक बाबू रास्ते में बोला।'कहीं न खेत में हल चला रहा साहब का भैया।हरिजन की लड़की खराब करने के इल्ज़ाम में पुलिस बावले कुत्ते की नाईं ढूंढ रही।छूपा रखा है बाप ने कहीं।खूब अप्प्रोच लगा रहे।पैसा भी फेंक रहे।काम न बन रहा।कांग्रेस का राज थोड़े ही है कि मामला दब जाए।लड़की के घर वालों की पहुँच पासवान तक है।'
यह बहू जो मरी है।डॉक्टर ने पूछी थी कि बालक और माँ में से एक ने बचा सकूँ।बूढ़ा पंडित जी बोलो कि बालक ए बचा लो।बहू की कोई बात न है।बहू तो और भी आ जाएगी।
सोच रहा था कि चॉइस पूछने वाले डॉक्टर कहाँ से पढ़के आते हैं।