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चुपचाप


कहानी


भोपाल एक्सप्रेस बड़ी रफ़्तार से पटरियों पर दौड़ी चली जा रही थी।ट्रैन के ए सी कोच में लेटी चालीस वर्ष की बेहद खूबसूरत गृहिणी वृंदा,जिसने अपना यौवन, लावण्य और देहयष्टि बड़े अतिरिक्त श्रम से संवारकर रखा था,ख्यालों में गुम थी।
भोपाल एक्सप्रेस सुबह सुबह भोपाल पहुंच जाएगी।वह प्रमोद बंसल से मिलने जा रही थी।प्रमोद बंसल वह व्यक्ति था,व्यक्ति क्या उसके जीवन की धुरी था जिसके चौगिरदे वह बड़ी निष्ठा,प्रेम और आत्मविश्वास से भरी चक्कर लगा रही थी।प्रमोद बंसल वृंदा का पति वृंदा से एक वर्ष बड़ा था।इकतालीस का सुदर्शन युवक सुंदरता के मामले में वृंदा से इक्कीस पड़ता था।सुंदर होने के साथ सभ्य और संस्कारशील,संवेदनशील प्रेमी के साथ-साथ दो बच्चों आठ वर्षीय विप्रा और छह वर्षीय परिवर्तन का स्नेहशील पिता भी था।
दिल्ली के द्वारका उपनगर के थ्री बी एच के अपार्टमेंट में रहने वाले परिवार में एक बुआ जी एक्स्ट्रा एडिशन थी।कहने को बुआ जी और काम करने को नौकरानी यह साठ वर्षीय विधवा महिला पिछले दस वर्षों से उन पर ही आश्रित थी।बुआ जी की वजह से वृंदा की छोटी सी गृहस्थी बग़ैर किसी बड़ी दिक्कत या परेशानी के बड़ी सुगमता से चल रही थी।
वृंदा ने हमेशा अपने पति का साथ दिया था।वह अभिमान करती थी कि उसके पति उसे एक समझदार साथी मानते हैं और घर-दफ़्तर के हर मामले में उससे सलाह करते हैं।उसके पति एच डी एफ सी बैंक में बतौर असिस्टेंट जनरल मैनेजर तैनात थे।भोपाल ट्रांसफर होने से पहले वे गुड़गांव की ब्रांच में चीफ मैनेजर थे।पिछले साल इन्हीं दिनों उनका प्रोमोशन व ट्रांसफर हुआ था।प्रमोद तो प्रोमोशन लेना ही नहीं चाहते थे।क्योंकि बच्चों का एडमिशन दिल्ली के महंगे स्कूल में हो रखा था।तीन साल के लिए भोपाल शिफ्ट करो फिर वापिस दिल्ली।इस तरह जिंदगी में आने वाले उथल पुथल के लिए उनको परेशानी महसूस हो रही थी।दो घंटे की बहस के बाद प्रमोद इस बात के लिए तैयार हुए थे कि प्रमोद वहां अकेले ही जायेंगे।एक महीने के बाद प्रमोद दिल्ली आएंगे।अगले महीने वृंदा भोपाल जाएगी।ऐसा करते करते तीन साल कैसे कट जाएंगे पता ही नहीं चलेगा।लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।प्रमोद के जाने के बाद कहीं न कहीं से काम निकलते रहे और वृंदा साल में दो बार ही भोपाल जा पाई।प्रमोद एक बार ही आ पाए।
अब वह बहुत मन करके और दृढ़ निश्चय के साथ भोपाल जा रही थी।उसे पंद्रह दिन तो प्रमोद के पास रहना ही रहना है। गाड़ी नामालूम कौन से स्टेशन पर रुकी हुई थी ।एक नया नवेला जोड़ा उसके सामने वाली बर्थ पर आया था।दुल्हन की खूबसूरती और मासूमियत देखकर उसे अपने दिन याद आ गए।वह उसे देखकर मुस्कराई तो दुल्हन ने अचंभे से उसे देखा।शायद उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी।फिर न पहचानकर भी वह हल्के से मुस्कराई।
"कब हुई शादी!"वृंदा ने पूछा।
दुल्हन ने कोई जवाब न दिया।
"एक महीना हुआ,आंटी!"दूल्हे ने जवाब दिया।आंटी संबोधन सुनकर उसके घूंसा सा लगा।कुछ ज्यादा ही छोटा बनने की कोशिश कर रहा है।वृंदा ने सोचा और फिर कोई बात उससे नहीं की।
गाड़ी सुबह दस बजे के बाद ही भोपाल पहुंच सकी।रेल समय पर न पहुंचने से यात्री रेलवे को कोसते दरवाजों पर लटके रहे।सबको कोई न कोई लेने आया था।लेकिन प्रमोद इतंजार करके चला गया था।उसके बैंक का टाइम हो गया था।
प्रमोद ने फोन पर कह दिया था कि वह सीधे घर चली जाए।शाम को ही मुलाकात होगी।उसका पूरा दिन काफी व्यस्त जाने वाला था।
वृंदा ने गाड़ी ही में कपड़े ठीकठाक कर लिए थे।उसका मन बिल्कुल ही नहीं था कि वह घर जाए और पूरा दिन इंतजार करे।
इससे बेहतर है कि वह प्रमोद के बैंक जाए और उसे सरप्राइज दे।
प्रमोद के बैंक का बड़ा सा बोर्ड मेन रोड पर था।बैंक की सीढ़ियां चढ़ते वक़्त वृंदा के मन में हल्का सा कौंधा कि प्रमोद उसे देखकर कहीं नाराज़ न हो जाये।लेकिन अब तो जो होगा सो होगा सोचकर उसने बैंक का शीशे का दरवाजा ठेल दिया।
बैंक में भीड़ लगी थी। कॉरिडोर पार करते ही सामने एक बड़े केबिन के बाहर बोर्ड लगा था,"प्रमोद बंसल,असिस्टेंट जनरल मैनेजर"
बोर्ड पढ़कर वृंदा के मन में प्रमोद को देखने की इच्छा बलवती हो उठी।वह आगे बढ़कर दरवाजा खोलने ही वाली थी कि वर्दीधारी गार्ड ने टोका,"हां!मैडम!!"
वृंदा ने उस गार्ड को पहली बार देखा।
"बंसल साहब से मिलना है!"वृंदा ने कहा तो गार्ड ने सोफे की तरफ इशारा किया।
"वहां बैठिए।"

सामने बैंक के काउंटर पर सुंदर 24 से 30 साल की फैशनेबुल युवतियां कंप्यूटरों पर निगाहें टिकाए काम मे लगी थी।काउंटर के शीशे से उनके मांसल और स्निग्ध हाथ की बोर्डस पर उंगलियां चलाते दिख रहे थे।इतनी लड़कियों के बीच प्रमोद निर्लिप्त भाव से कैसे रह पाते होंगे।दिल्ली की बात और थी,वहां तो दिन भर में एकत्रित हुई वासना को रात में घर पर ही एग्जिट मिल जाता था।शरीर की सौ जरूरतों की तरह यह भी एक जरूरत है।उसे प्रमोद पर तरस आया।साथ ही शंका कि एक हल्की सी कौंध उसके दिमाग़ में उलझी और सुलझ गई।नहीं मेरा प्रमोद ऐसा नहीं है,उसका इन बातों की तरफ शायद ही ध्यान जाता हो।एक वर्ष के लम्बे बारह महीने,चार मौसम उसने इसी विश्वास के सहारे दिल्ली जैसे आदमियों से भरे बियाबान जंगल में काटे हैं।किसी किसी रात को उसे प्रमोद की कितनी जरूरत महसूस होती थी। वह कसमसाकर रात काट देती थी लेकिन इस बात का जिक्र प्रमोद से नहीं करती थी।
वृंदा चुपचाप सोफे पर बैठ गई।बैठे बैठे पंद्रह मिनट हो गए।उसे अपने यहां आने पर पछतावा होने लगा।शायद प्रमोद बिजी होंगे।उसे देख असमंजस में पड़ जायेंगें।
वह सोच ही रही थी कि चुपचाप यहां से उठे और बाहर निकल कर घर का ऑटो रिक्शा ले ले।
इतने में ही गार्ड बोला,"जाओ मैडम!"
गार्ड ने आगे बढ़कर गेट खोला।
प्रमोद का ध्यान मेज पर रखी फ़ाइल की और था।एक सुंदर सी लड़की जिसने साड़ी बांध रखी थी और होठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी प्रमोद के उपर बड़ी दयानतदारी से झुकी हुई थी।लेकिन प्रमोद का ध्यान इस आमंत्रणशील झुकाव की तरफ न होकर फ़ाइल की तरफ था,यही तसल्ली की बात थी।
उस मैडम ने और प्रमोद ने लगभग एक साथ उसे देखा।
"अरे तुम!घर नहीं गई?"प्रमोद ने उसे देखकर खड़े होते हुए कहा।
वृंदा बैग लेकर खड़ी थी।वह मुस्कराना चाहती थी लेकिन उसके होंठ चिपक गए थे।वह कुछ कहना चाहती थी लेकिन शब्द नहीं थे।
"कृतिका!ये मेरी वाइफ हैं वृंदा!आई हेव टोल्ड यू इन मॉर्निंग!"
"कब!,बैंक तो अभी खुला।फिर प्रमोद ने एक बैंक कर्मचारी को मेरे बारे में क्यों बताया?क्या बताया?"प्रमोद ने कहा तो वृंदा ने सोचा।
"वृंदा!खड़ी क्यों हो?बैठो!"
प्रमोद ने आगे बढ़कर उसे थामा और उसे सोफे पर बैठाया।
"अच्छा सर!मैं चलती हूं!थोड़ी देर बाद डिसकस करते हैं।आप मैडम को अटेंड कीजिये!इतनी दूर से आई हैं।थक गई होंगी।"कृतिका यह कहकर जाने लगी तो वृंदा को होश आया।
"अरे नहीं!आप काम कीजिये!मैं आपको डिस्टर्ब करने थोड़े आयी हूं।"वृंदा ने कहा तो वह रुक गयी।
"आपके लिए कुछ मंगाती हूं।"कहकर उसने अपने मोबाइल फोन से एक बोतल बिसलेरी!दो कॉफी!एक ट्रॉपिकाना पाइनेपल और स्नैक्स का ऑर्डर किया।"
"ट्रॉपिकाना किसके लिए?"वृंदा ने सोचा लेकिन बोली नहीं।चुपचाप उन्हें काम करते देखती रही।
अब वह युवती जिसने साड़ी बांध रखी थी और जिसके होठों पर गहरी लिपस्टिक थी और जिसका नाम अब उसे मालूम था,कृतिका!के प्रमोद पर झुकाव का कोण बदल गया था।
कृतिका चली गयी थी।प्रमोद ने ट्रॉपिकाना पिया था।घर में हमेशा प्रमोद कॉफी ही पीते हैं।शायद कुछ हेल्थ कॉन्शस हो गये हैं।वह इतना क्यों सोच रही है,वृंदा ने सोचा।क्यों छोटी छोटी बातों पर गौर कर रही है।कितनी उम्र होगी वृंदा की?शादीशुदा है या अविवाहित?ये प्रश्न उसके दिमाग में उमड़ घुमड़ रहे हैं।वह पूछना चाहती है,एक आश्वस्ति चाहती है!प्रमोद एक बार कहदे कि सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है।वह इस विश्वास के सहारे अपने मन में चल रही उथलपुथल से लड़ सके कि सब कुछ सही है।उसका प्रमोद कह रहा है कि सब ठीक चल रहा है तो ठीक ही होगा।
आज तक वह इसी सहज विश्वास के सहारे ही तो चलती आई है।
वृंदा बेड पर लेटी है।यह वही डबल बेड है जिस पर प्रमोद सोता है।वह भी जब आई है इसी बेड पर सोई है प्रमोद के साथ।लेकिन प्रमोद के होते हुए इतना परायापन तो उसे होटल के बेड पर भी नहीं लगा।
प्रमोद उसे छोड़कर दोबारा आफिस चला गया है।वह कहती तो शायद रुक जाता।उससे कहा ही न गया।
"बड़ी चुपचाप सी हो!क्या दिल्ली में कोई परेशानी है?"प्रमोद ने रास्ते में पूछा था।वह इनकार में सिर हिलाकर बाहर देखने लगी थी।जाने क्यों उसकी आंखों के कोरों में दो छोटे छोटे ओस की बूंदों जैसे आंसू छलक आए थे।वह कहना चाहती थी कि प्रमोद मैं तुम्हारे बगैर इस बियाबान में निपट अकेली हूं।इतनी अकेली हूं कि तुम्हारे साथ होते ही हुए भी तन्हाई के बादल घिरे ही रहते हैं।पीछा नहीं छोड़ते।न बरसते हैं,न कोई पवन इन्हें उड़ाकर ही ले जाती है।
बाई सुबह ही खाना बना जाती है।आज एक्स्ट्रा बनवा दिया गया है क्योंकि वृंदा ने आना था।बस गर्म करके खा लेना,कहकर प्रमोद चला गया था।वह बगैर खाये लेटी है।कुछ भूख सी भी लग रही लेकिन कुछ खा लिया जाए ऐसा मन भी नहीं है।जब दिल्ली में रहती है मन भोपाल की गलियों में विचरता है।प्रमोद क्या कर रहे होंगे।क्या खाया होगा,ऐसी छोटी अबूझ चिंताएं हमेशा मस्तिष्क में पड़ी रहती हैं।मन करता है तो प्रमोद से फोन पर पूछ लेती है कि प्रमोद आप ठीक हो।क्या खाया था,वगैरह।सादा सा जवाब मिलता है,वही रोज का ही है!नया क्या होना है?यहां आकर मालूम पड़ा कि प्रमोद कॉफी छोड़कर फ्रूट जूस पीने लगे हैं।उनका फ़ेवरिट पाइनएप्पल है।ऐसी बहुत सारी बातें वे कर सकते थे।उन्होंने तो मुझे चुपचाप पराया ही बना दिया।मुझे पता भी न चला।
यह सोचकर उसका रोने का मन हुआ।रो ले तो कुछ मन हल्का हो।
बेटी स्कूल से आ गई होगी दिल्ली में।उसे फोन करती हूं, सोचकर वह उठी ,इतने में ही फोन अपने आप ही बज उठा।
बेटी ही थी,पापा के बारे में।सफर के बारे में सवाल कर रही थी।वह खाली हां हूं के अस्पष्ट उत्तर दे रही थी।उसे मालूम था कि बेटी सब भांप जाती है।आवाज की उदासी।गले की हल्की सी भराहट।जरूरत से ज्यादा बोलना या चुपचाप रहना।
उसने फोन रख दिया है।उसका मन नहाने का कर रहा है।बाथरूम में टब है।गुनगुना पानी कर वह उसमें निर्वस्त्र बैठ गयी है।शरीर पर हल्के बाल दिख रहे हैं।रात में प्रमोद उसे जरूर टोकेंगे।लेकिन वैक्स इस घर में कहा मिलेगा।
शायद देखूं, पिछली बार का रखा हो।प्रमोद कहां चीजें फेंकते हैं।तौलिए से बदन पोंछकर नग्न ही वह बाहर आ गई है।आईने के सामने से गुजरी तो थोड़ी देर तक ठिठककर अपनी देह निहारने लगी।अभी भी पुरुषों के प्लेग्राउंड की पिच दुरुस्त है।क्या वह उन युवतियों, कृतिका जैसी युवतियों की देह का मुकाबला कर पाएगी।जरूर,क्यों नहीं?उसमें खोया आत्मविश्वास लौटने लगा है।
वह थोड़ी तत्परता से वैक्स या हेयर रिमूवर जैसी कोई चीज ढूंढने लगी है।ढूंढते हुए वह प्रमोद की कपड़ों की अलमारी की तरफ आ गई है।
वैक्स तो उसे मिल गई है।लेकिन यह तो उसका ब्रांड नहीं है।नायर वैक्स बिकिनी प्रो यह ब्रांड तो उसने कभी इस्तेमाल नहीं किया।प्रमोद किसलिए लाए होंगे।उसने सोचा और वहीं रखकर बेड पर माथा पकड़कर बैठ गई।उसके पेट में मरोड़ सी उठी और रुलाई भी फूटी।
वह बेड पर दोहरी हो गई।
आधा घंटा रो चुकने के बाद वह उठी और फिर से तलाश में लग गई।अब उसका लक्ष्य खाली वैक्स नहीं बल्कि कुछ भी था।कुछ भी जो उसके शक को मजबूत कर सके या तिरोहित कर सके।
उसे अपनी अयुर वैक्स मिल गई।वह तलाशी का काम स्थगित करके बाथरूम में गई।वैक्सिंग के बाद उसने अपने शरीर का हर कलपुर्जा जो वह कर सकती थी,साफ किया।साथ लायी मेकअप किट से बड़ी मेहनत करके तैयार हुई।नई साड़ी पहनकर देखी।फिर ब्लाउज पेटीकोट में ही बढ़िया खाना बनाने की सोचकर किचन में आई।गैस चूल्हा जलाने की कोशिश की।चूल्हा जला नहीं।सिलिंडर बिल्कुल खाली था।एक्स्ट्रा सिलिंडर भी खाली था।
अब!
अब क्या किया जाए।सोचा,प्रमोद को फोन करे?लेकिन फिर कुछ सोचकर नहीं किया।ठंडा खाना फ्रिज से निकालकर खा लिया।एक गिलास पानी पीकर सोफे पर अधलेटी हो गयी।
शाम के छह बज गए थे।प्रमोद अभी आते होंगे।उनके आने से पहले घर थोड़ा ठीक ठाक कर दूं।उसने सोचा।
अलमारी के ड्रावर में जेंट्स अंडरवियर और वेस्टस के नीचे एक ब्रेसिएर रखी थी जिसका हुक टूटा हुआ था।शायद वह पिछली बार छोड़ गई हो।
कप साइज तीस था,उसका साइज तो चौंतीस है।उसने ब्रेसिएर मचोड कर फेंक दी है।जैसे अपनी गृहस्थी पर आने वाली हर मुसीबत को इसी तरह मचोड़ देगी।
प्रमोद आ गए हैं।दोनों पति-पत्नी ने नजदीक बैठकर एक दूसरे के प्रति गरमाईश का प्रदर्शन किया है।बात करते हुए वृंदा प्रमोद के घटते बालों में उंगलियां फिरा देती है।बढ़ते हुए ओ और सी पर उंगली फेरकर मजाक करती है।जवाब में प्रमोद उसे चूम लेता है।पहले गालों पर फिर होठों पर।उसके आद्र प्रेम का सिंचन पाकर वृंदा खिल उठी है।उसके मन में संदेह का कीड़ा कहीं कोने में छिपकर सो गया है।
शायद वह ओवरथींकिंग कर रही थी।शुक्र है कि उसने जल्दबाजी से काम न लिया।संदेहशील मन पर विवेक की लगाम लगी रही।उसने प्रमोद से कुछ न पूछा।नहीं तो आज की शाम झगड़े के नाम होनी तय थी।उसे प्रमोद के क्रोध से डर लगता था। वह कुछ नहीं बोलता था।लेकिन उसकी आंखें चिंगारियों की तरह जलती थी।उसे मनाना बहुत मुश्किल काम होता था।
"आज कुछ खाना- वाना बनाने का मूड नहीं है मेम साहब का?"प्रमोद ने पूछा तो उसे याद आया है कि गैस सिलिंडर खाली है।
"सिलिंडर खाली है।खाना कैसे बनेगा?"वृंदा ने कहा तो प्रमोद ने गैस एजेंसी फोन किया।
एजेंसी वाला बोला कि अब तो सिलिंडर सुबह ही आएगा।फिर भी कोशिश करता हूं कि कोई लड़का मिले तो अभी भेजूंगा।
"फिर खाने का क्या करें?"वृंदा ने पूछा तो प्रमोद ने कहा,"ऐसा करते हैं,मैं बाज़ार से ले आता हूं।एक अच्छा रेस्टॉरेंट है थोड़ी दूरी पर।तुम बेल की तरफ ध्यान देना शायद कोई सिलिंडर देने आए।
कहकर प्रमोद निकल गया।
वृंदा किचन में प्लेटें निकालने गई।किचेन में गैस की बदबू फैली थी।शायद वह गैस स्टोव की नोब बंद करना भूल गई।उसने नोब बंद की और प्लेटें लेकर बाहर आ गई।
शुक्र है सिलिंडर में गैस नहीं थी।वरना गैस तो चुपचाप पूरे घर में फैल जाती।जब कोई माचिस जलाता घर में आग लग जाती,वह प्लेटें लगाती हुई सोचने लगी।
क्या ऐसा ही कुछ उसके साथ होने वाला है।उसने प्रमोद को भोपाल में अकेला क्या छोड़ दिया,मानो भरे सिलिंडर की गैस नोब खुली छोड़ दी है।जरा सी चिंगारी मिलते ही उसकी सुखी गृहस्थी में आग लग जाएगी।
इतने सारे सबूत हैं।अलग क्वालिटी का वैक्स,तीस नम्बर की ब्रेसिएर,प्रमोद की बदली हुए आदतें,आफिस में महिला कर्मियों से बेतकल्लुफी!कृतिका का बस्ट साइज कितना होगा?उसका ध्यान सुबह के दृश्य की तरफ चला गया।गले में कुछ कड़वा सा लगा।
बेल बजी थी!शायद प्रमोद खाना ले आये हैं।उसने दरवाजा खोला।गैस एजेंसी से सिलिंडर लेकर एक लड़का आया है।
"मैडम,सिलिंडर लाया हूं।"
"हां!किचन में रख दो।रख क्या दो,लगा दो।"वृंदा लड़के के पीछे किचन में आई है।
लड़के ने सिलिंडर बदल दिया है।
"मैडम गैस-पाइप थोड़ा कटा हुआ है।इसे बदलवा लो।गैस लीक हो सकती है।"लड़के ने कहा तो उसका ध्यान कट पर गया,छोटा सा कट था।
"तुम्हारे पास स्पेयर नया पाइप है।"वृंदा ने पूछा तो उसने इनकार में सिर हिलाया।
"मैडम गैस की कॉपी दो।एंट्री करनी है।"लड़का बोला तो उसे याद आया कि उसने गैस की कॉपी दिन में कहीं देखी थी।कहां देखी थी,याद नहीं आ रहा।
खुले दरवाजे से प्रमोद ने प्रवेश किया।उसके साथ सुबह वाली कृतिका थी।उसने साड़ी की बजाय जीन्स और टी- शर्ट पहनी थी।गहरी लिपस्टिक बदस्तूर थी।ये इस वक़्त इनके साथ कैसे?
"नमस्ते मैडम!"उसने हाथ जोड़कर नमस्ते की।
गैस सिलिंडर वाले ने कृतिका को बोला,"नमस्ते मैडम!गैस की कॉपी दीजिये न!एंट्री करना है।मुझे लेट हो रहा है।"
कृतिका किचन में आई और एक कपबोर्ड खोलकर उसमें बिछे मैट के नीचे से गैस की कॉपी निकाल कर लड़के को दी।लड़के ने गैस की कॉपी में एंट्री करके वापिस दे दी।कृतिका ने कॉपी वहीं रख दी।

गैस वाला चला गया था।बदबू अभी भी आ रही थी।
डाइनिंग टेबल पर अजीब सी चीरती हुई खामोशी थी।प्रमोद नहाने गए हुए थे।कृतिका ने खाना टेबल पर रखकर ढक दिया था।
प्रमोद नाईट सूट में नंगे पैर ही बाथरूम से बाहर निकले और बोले,"कृतिका,मेरी चप्पल देना जरा!"
कृतिका ने नामालूम जगह से चप्पलें निकाल कर प्रस्तुत कर दी।वृंदा का गोरा चेहरा पहले लाल,फिर सफेद और फिर काला पड़ गया।
कृतिका हाथ मलते हुए वहीं बैठी थी।प्रमोद ने खाना शुरू कर दिया था।एक एक चीज की तारीफ करते हुए वृंदा से कह रहा था,"यह खाओ!कृतिका को बहुत पसंद है।"
कृतिका वृंदा मैडम के चेहरे पर आते-जाते रंगों को देख रही थी।
वृंदा ने थोड़ा सा ही खाया,यह कहकर कि उसे सिरदर्द हो रहा है,वह सोने जा रही है और बेडरूम में जाकर लेट गई।
उसे सिरदर्द नहीं था बल्कि उसका सिर ही चकरा रहा था।
कृतिका के चले जाने के बाद प्रमोद बेडरूम में आया और बत्ती बंद करके लेट गया।
अंधेरे में इतनी रोशनी जरूर थी कि एक पुरुष शरीर को स्त्री शरीर दिखाई दे सके।
प्रमोद ने अंधेरे में वृंदा की तरफ हाथ बढ़ाया।वृंदा ने सिर में बहुत दर्द है,कहकर मुंह दूसरी तरफ कर लिया।पूरे बेड पर पैर फैलाये प्रमोद सो रहा था।बेड के एक कोने में सिमटी वृंदा अपना सब कुछ हारकर जागती हुई छत को ताकती हुई पड़ी थी।
न कोई उसके मन में ख्याल थे,न विचार!न ख़्वाब न ख्याल!एक सूनापन और गहरी उदास तन्हाई थी,जिसमें वह औंधे मुंह पड़ी हुई थी।
सुबह हुई प्रमोद उठा।वह तो सोई ही नहीं थी, उसे तो उठना ही था।उसने घड़ी देखी छह बजे थे।शायद कोई दिल्ली की गाड़ी मिल जाए।
वह निश्चय करके चुपचाप उठी।मलमल कर नहाई और कल वाली साड़ी लपेट कर प्रमोद से बोली,"प्रमोद आप मुझे स्टेशन छोड़ देंगे।मैं अभी जाना चाहती हूं।मुझे बच्चों की चिंता हो रही है।परिवर्तन को पिछले पंद्रह दिन से बुखार था।
"अच्छा?"
"अब बुखार तो उतरा हुआ है।लेकिन बहुत चिड़चिड़ा हो गया है।बुआ जी से वह सम्भलता नहीं।"
"अरे!तुमने मुझे बताया नहीं।"
"मैंने सोचा आप बेकार परेशान होंगे।न आ सकोगे न यहां बैठे कुछ कर सकोगे,खाली चिंता करते रहोगे।"
वृंदा ने सोचा था प्रमोद उसे रोकने की हर संभव कोशिश करेगा।
लेकिन प्रमोद ने उसे इजाजत दे दी।
सुबह सात बजे उसने उसे भोपाल स्टेशन पहुंचा दिया।
रास्ते में उसने मोबाइल से ही एप खोलकर टिकट अवैलबलिटी चेक की।दो सीट सेकिंड ए सी में उपलब्ध थी।उसने फटाफट एक सीट बुक करी।प्रमोद गाड़ी चलाता हुआ उसकी कार्यविधि देखता रहा।बोला कुछ नहीं।वह उसे स्टेशन पर छोड़कर चला गया था।
स्टेशन पर पहुंचकर इन्क्वारी काउंटर से पता चला कि गाड़ी तो पांच घंटे लेट है।
"लेकिन नेट पर तो राइट टाइम दिखा रहा"उसने इन्क्वारी क्लर्क से बहस करने की कोशिश की।
"अब देखिए"उसने कहा तो वृंदा ने नेट चेक किया।इन्क्वारी क्लर्क की बात सही थी।
और कोई गाड़ी भी नहीं थी।
अब क्या करे?
उसने स्टेशन से बाहर निकल कर ऑटो रिक्शा पकड़ा और उसे अड्रेस बताकर साइड से सिर लगाकर बैठ गई।इस तरह बैठे बैठे उसे नींद आ गई।
उसकी नींद ऑटो वाले की आवाज से खुली।
"मैडम आपका घर आ गया है।"
"ओ सॉरी!"वह किराया देकर उतरी और डोरबेल बजाई।काफी देर तक बेल बजती रही।शायद प्रमोद बाथरूम में होंगे।
उसने इंतजार किया।
पंद्रह मिनट बाद दरवाजा खुला।
दरवाजा खोलने वाली कृतिका थी।
उसने वृंदा की नाइटी पहनी हुई थी।
उसे दरवाजे पर देखकर वह भौंचक खड़ी थी।
"हटो!"वृंदा ने सख्ती से कहा।
वह तेजी से बेडरूम में गई।प्रमोद दूसरी तरफ मुंह करके अंडरवियर पहन रहा था।
"कौन है कृतिका?"वह अभी भी उधर मुंह करके कपड़े पहन रहा था।
वहां थोड़ी देर पहले क्या हुआ था,मुचड़ी हुई बेडशीट चुपचाप इस बात की चुगली कर रही थी।
जाने से पहले वह इस बेडशीट को बदलकर गई थी।
वह जिस सत्य से पलायन करके भागी थी वह मुंह बाए उसके सामने खड़ी थी।
कृतिका चुपचाप उसके पीछे अपराधियों की तरह खड़ी हो गई।
प्रमोद ने अभी भी चेहरा इधर नहीं घुमाया था।
"कृतिका!गैस सिलिंडर वाला हो तो उसे बोलना गैस लीक हो रही है।बदबू आ रही है।"
"हां!बदबू तो मुझे कल भी आई थी,लेकिन मैं कुछ कर न सकी।"कृतिका की जगह वृंदा बोली तो प्रमोद ने मुड़कर देखा।उसके मुंह से बोल न फूटा।
"गाड़ी पांच घंटे लेट थी।राइट टाइम रहती तो मैं लौटकर न आती।मुझे यह सब तो न देखना पड़ता।"
कहते कहते वृंदा रोते हुए बेड पर जा गिरी।
प्रमोद और कृतिका कभी एक दूसरे को,कभी रोती हुई वृंदा के धीरे धीरे हिलते हुए शरीर को देखते खड़े रहे।
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समाप्त