Bittu ka papa books and stories free download online pdf in Hindi

बिट्टू का पापा



अक्तूबर का आखिरी हफ़्ता, आज इतवार है।वह सुबह सुबह उठ बैठा है।ठंड लगती है सुबह,वह फिर भी पंखा बंद नहीं करता।पत्नी बगल में चादर ओढ़े लेटी है।वह लाइट जलाता है।पत्नी ने पूछा है,"क्या बजा है।"वह कोई जवाब नहीं देता।पत्नी करवट बदल फिर सो गई है।
क्या बेगैरत जीवन है।उसने सोचा था,इससे अच्छा वह मर जाए।लेकिन उसकी बिटिया रानी बिट्टू बहुत रोएगी।एक वही है,जिसके लिए वह जीता है।अब वह यहाँ उसके साथ नहीं रहती।होस्टल रहती है।पी एच डी का आखिरी साल है।फिर उसकी शादी करेंगे।बिट्टू ने यही कहा है।बिट्टू की शादी हो जाए तो वह चैन से मर सकेगा।बिट्टू अपने पति के साथ आएगी,उसके मरने की ख़बर पाकर।बहुत रोएगी,लेकिन उसका पति उसे संभाल लेगा।बेटियों को पिता बहुत प्यारे होते हैं।लेकिन बाद में पति प्यारे हो जाते हैं।पति में पिता का अक्स पाकर वे उसके संसार में तन्मय हो जाती हैं।
उठकर टॉयलेट गया है।अभी कमोड पर बैठा ही है कि मोबाइल फोन बज उठा है।यह फोन भी न,टॉयलेट में होने पर जरूर बजेगा।सोई पत्नी कसमसा कर कहेगी,फोन उठा लो।लेकिन फोन उठा ले इसकी संभावना कम है।यह उसकी आदत है और आदत कोई छोड़ता नहीं है।
टॉयलेट से निकल कर आया।मोबाइल की घंटी बंद हो चुकी है।कोई अन सेव्ड नम्बर है।जाने कौन होगा!इतने में फिर से मोबाइल बज उठा है,"हेलो!
मैं राम बोल रहा हूँ।तुम्हारे धनपत मामा का लड़का!"
हाँ,राम कैसे हो!
"तुम्हारे धनपत मामा आज सुबह गुजर गए।हार्ट अटैक हुआ था।संस्कार आज शाम को करेंगे।निगम बोध घाट!
बुआ को ख़बर कर देना।मेरे पास उनका नम्बर नहीं है।मोबाइल में ढूंढा तो तुम्हारा मिल गया।पिछले साल किसी शादी में मुलाकात हुई तब तुमसे लिया था।"
ठीक है!
"ओके,फिर बात करेंगे।बहुत जगह फोन करने हैं।"उधर से फोन डिसकनेक्ट हो गया है।
"कौन था।"उसकी पत्नी पूछती है।कोई जवाब न पाकर फिर सो जाती है।
वह कमरे से बाहर जाकर माँ को फोन करता है।उसकी माँ फोन नहीं उठाएगी।उसे मालूम है।इस समय वह मंदिर में होती है।माँ कभी भी फोन साथ नहीं ले जाती।लेकिन उसे मालूम है,पिता फोन उठायेंगे।थोड़ी देर लगेगी।आखिर पिता ने फोन उठाया।
"पापा जी,नमस्ते!"उसने अभिवादन किया था।
"ओम शांति!ओम शांति बेटा!प्रसन्न रहो!"पिता इसी तरह बोलते हैं।सारी आयु मास्टर रहे और ब्रह्मकुमारी आश्रम के भक्त।ये दोनों चीजें जीवन में साथ साथ चली।
"पापा जी!धनपत मामा आज सुबह गुजर गए।अभी अभी राम का फोन आया था।संस्कार आज शाम को ही है,निगम बोध घाट पर!"
"ओम शांति!शिव बाबा दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे।"
वह फिर से टॉयलेट गया है।उसे पता है मंदिर से लौटने के बाद माँ का फोन आएगा।
माँ धार्मिक जरूर है लेकिन पिता की तरह असांसरिक,निर्लिप्त नहीं है।माँ का फोन आया,"राजेश!धनपत गुजर गया।मुझे जाना होगा।तुम्हारे पिता भी आयेंगे।आज इतवार है।तुम्हें कोई काम न हो तो तुम भी आ जाना।"
"हाँ माँ!कोशिश करता हूँ।"उसने फोन रख दिया था।
पत्नी जाग चुकी थी।बल्कि घर बाहर साफ़ सफाई करके नहा भी ली थी।अब वह डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ते की इंतजार में अखबार पढ़कर वक़्त काट रहा था।
आखिर नाश्ता मिला,वही दही पराँठा।आम का अचार!पुदीने की चटनी और मीठा!
उसका मनपसंद!ये पत्नियां यूँ क्यों सोचती हैं कि उनका मनपसंद हमेशा मनपसंद ही रहता है।कभी कभी कुछ और ट्राय करने का भी मन करता है।बिट्टू इस बात को समझती है।जब वह आती है,उसे नाश्ते में इडली सांभर,डोसा,ओटस और कभी कभी खाली फ्रूट्स ही मिलते हैं।पत्नी मना करती रहेगी,तेरे पापा यह नहीं खाते।लेकिन बिट्टू जबर्दस्ती करेगी।और उसे उसकी जबर्दस्ती पसंद है।उसकी बिट्टू पत्नी से ज्यादा समझदार है।
नाश्ता करते करते पत्नी को बताया,धनपत मामा के गुजर जाने के बारे में।पत्नी ने बहुत देर तक दिमाग़ खाया।"
कौन धनपत मामा ,जो पिछले साल मिले थे,राजू की शादी में।नहीं वे तो गणपत थे।उनसे बड़े।उनके कितने बच्चे हैं।दिल्ली में कहाँ रहते हैं।आपने कभी मिलवाया नहीं।आप अपने रिश्तेदारों से कितना कम मिलवाते हो।यहाँ गुड़गांव में रहते हो लेकिन दिल्ली के रिश्तेदार भी कभी हमारे यहां नहीं आये, न हम उनके यहाँ कभी गए।मुझे देखो,मैंने अपने सारे रिश्तेदारों का परिचय तुमसे करवा रखा है।"
उसने पत्नी को ध्यान से देखा।गोरे चेहरे पर सलवटे पड़ने लगी हैं,कलर करने के बावजूद जड़ों में बाल सफेद दिख रहे हैं।लेकिन इसका बावलापन नहीं गया।बावली यह नहीं जानती कि शादी के बाद पत्नी के रिश्तेदार ही पति के रिश्तेदार होते हैं।
"चलो,आज मिलवा देते हैं।माँ पिताजी भी जायेंगे।पता नहीं, भाइयों में से कौन जायेगा।"उसने कहा था।
"न बाबा न!मेरी तो किट्टी है।नहीं जाऊंगी तो पेनल्टी है।"
वह भी चाहता था कि पत्नी न जाए।"ठीक है,तुम्हारी जैसी इच्छा!"
"मुझे जाना चाहिए क्या!आखिर सासू का भाई है।माँ नाराज़ तो न होंगी"वह चिंतातुर पूछ रही थी।
"न!माँ को पता है उनकी बहू बावली है।"उसने प्यार से हल्की सी चपत पत्नी के गाल पर लगाई।
"मजाक मत करो!सीरियसली बताओ,मुझे जाना चाहिए क्या!"पत्नी का सवाल था।
"मैं कोई बहाना बना दूंगा।तुम तेरहवीं या चौथे पर चली जाना।शायद तब तक बिट्टू भी आ जाए।"पत्नी यह सुनकर संतुष्ट होकर चल दी।
माँ का फोन आया,"राजेश, हमें घर से ले लेगा कि हम कहीं और आएं।"
"माँ तुम जानती तो हो गाड़ी गली में नहीं घुसती।फिर गलियों में मुझसे बैक नहीं होती।"उसका जवाब था।
"इन्हीं गलियों में पलकर बड़ा हुआ है।खुली सड़कों वाले डी एल एफ में तो अब गया है।"माँ हंसी थी।
"तब, आपने मुझे छोटी सी गाड़ी लेकर दी थी।माचिस की डिबिया सी।अब आपका बेटा हौंडा अमेज में चलता है।"वह भी हँसा था।
"भिड़ा यो उसे भी देता था।याद है कोहली अंकल का कूल्हा सूजा दिया था,बैक करते वक़्त!"माँ ने याद दिलाया तो वह बोला",गलती उस कोहली अंकल की थी।अपने घर से एकदम निकल लिया था।मैंने एक सेकंड पहले तो गर्दन घुमाकर देखा था,गली में कोई भी न था।"
"हाँ,अपनी गलती तो दूसरों पर बचपन से ही चेप लेता है।अब देर न कर,हम भूतेश्वर मंदिर पर आ रहे हैं।तूँ जल्दी निकल!"
माँ पिताजी को भूतेश्वर मंदिर से लेकर निकला था।दिल्ली में घुसते ही एहसास हो जाता है कि आ गए।बदतमीज, बेसब्रे ड्राइवर!बेतरतीब ड्राइविंग।उसे दिल्ली कभी पसंद नहीं आया।
निगम बोध घाट आ गया था लेकिन यू टर्न लेकर आना पड़ा क्योंकि सामने कोई कट नहीं था।यू टर्न लेकर आया तो लेफ्ट में एक बस खड़ी थी।उसने हल्का ब्रेक लिया ताकि बस निकल जाए तो लेफ्ट लेकर निगम बोध घाट की तरफ़ हो ले।इतने में पीछे से ही किसी बेसब्रे वाहन चालक ने हॉर्न देना शुरू कर दिया।उसे बड़ी कोफ़्त हुई।उसने बस से आगे होकर निकलने की कोशिश की।साथ ही उसका मन हुआ कि पिछले ड्राइवर की शक्ल देखे।एक पल के लिए उसे देखा।वह तेजी से गाड़ी निकालता गाली देता हुआ निकल रहा था।इधर से बस वाला भी बस आगे बढ़ा चुका था जो उसने नहीं देखा।कार तब तक बस के बिल्कुल आगे आ चुकी थी।बस ने जोरदार ब्रेक लिए।भद्दी शक्ल और धूल भरी दाढ़ी लिए ड्राइवर ने खिड़की से बाहर मुँह निकाल कर उसे माँ बहन की गालियाँ देना शुरू कर दिया।उसका चेहरा कानों तक लाल हो गया था।पीछे बैठी माँ ने कहा,बेटा ध्यान से!
उसने गाड़ी आगे बढ़ाई और ड्राइवर उसे गालियाँ देता हुआ बस निकाल ले गया।उसका नपुंसक गुस्सा माँ पर फूटा।बगल में बैठे पिता ने कहा,शांति शांति!और उसका मूड परमानेंट उखड़ गया।
निगम बोध पर गाड़ी पार्क की।उसने माँ को कहा,चलो अंदर चल कर देखते हैं।घाट के अंदर एक चबूतरे पर कफ़न लिपटे शव रखे जा रहे थे।साथ में गमगीन चेहरे लिए लोग और रोती बिसूरती औरतें देख उसे कुछ होने लगा।कोई परिचित चेहरा दिखाई न दिया।बाहर पार्किंग में आकर लगा उसे पानी पीना चाहिए।एक चाय की गुमटी पर कैंपर में पानी रखा था।पानी पीकर उसने माँ से चाय के लिए पूछा था।माँ बोली, "वे लोग आते ही होंगे।ऐसे चाय पीते देख लेंगे तो उन्हें अच्छा न लगेगा।"
उसे माँ की बात जँची।
"जाने वाला चला गया।अब तो बस मिट्टी है जो ठिकाने लगानी है।उसे क्या फ़र्क पड़ता है कोई चाय पीए या न पीए।"
"आप तो बस,अंदर बाहर एक से!आपने पीनी है तो पी लो,"माँ ने थोड़ा नाराज़ होते हुए उसके पिता से कहा।
नहीं, मुझे तो नहीं पीनी।मैंने तो एक बात की है।"पिता ने उसी निर्लिप्त भाव से कहा।
उसके मोबाइल फोन की घंटी बजी।उसके बॉस का फोन था।शाम को सिक्स ओ क्लॉक पर क्लब में मीटिंग थी।मुम्बई से एम ड़ी आ रहे हैं।"
अभी चार बजे हैं।छह बजे तक वापिस पहुंचना असंभव था।उसने मजबूरी बताई।बॉस नाराज़ हुए।राजेश जी आपको संडे आना पसंद नहीं है।लेकिन यह इमरजेंसी है।एम डी साहब को अच्छा नहीं लगेगा।"
उसने फिर मजबूरी जताई।आफर किया कि वह निगम बोध घाट का फोटो खींच कर व्हाट्सएप्प पर भेजे या एक वीडियो ही बना डाले तभी उनको विश्वास होगा।
बॉस और ज्यादा नाराज़ हो गए थे।वे उससे कड़े लहजे में बात करने लगे।
तभी माँ ने इशारा किया कि वे लोग आ गए हैं।उसने बॉस से कहा,सर!डेड बॉडी आ गई है।मैं आपसे बाद में बात करता हूँ। और यह कहकर फोन काट दिया।
उनके साथ अंदर जाते तक फोन फिर बजना शुरू हो गया था।उसने फोन को साइलेंट मोड़ पर कर दिया।
थू है ऐसी ज़िन्दगी पर उसने सोचा और थूक दिया।इससे तो मर जाना बेहतर!
डेढ़ घंटे बाद उसने कार वापिस गुड़गांव की तरफ दौड़ा दी।शाम के वक्त सभी सड़कों की तरफ ट्रैफिक बढ़ गया था।उपर से जिधर देखो हर जगह कंस्ट्रक्शन मेटेरियल पड़ा था।इस वजह कौन गाड़ी का मुँह किधर घुमा दे पता नहीं।उसे गाड़ी चलाने में बड़ी दिक्कत आ रही थी।आगे कहीं अंडरपास बन रहा था।इस वजह से रोड पर के पत्थर उखाड़ रखे थे।उसकी गाड़ी एक पत्थर पर चढ़ते चढ़ते बची।आगे जाम था ,उसकी कार अंडरपास की वाल के साथ खड़ी थी।दस मिनट बाद गाडियां सरकनी शुरू हुई। बायें तरफ़ एक ओला कैब खड़ी थी।उसकी तरफ पत्थरों का ढेर था।इसलिए उसका ध्यान उधर ही था।एक निगाह बायीं तरफ डाली औऱ उसने गाड़ी आगे बढ़ाई।उधर से ओला कैब कब आगे बढ़ी उसे पता नहीं।लेकिन उसकी गाड़ी का लेफ्ट साइड व्यू मिरर
कैब के राइट साइड व्यू मिरर से जा टकराया।जब तक वह गाड़ी रोकता उसका साइड व्यू मिरर टूट कर लटक गया।उसने कैब ड्राइवर का चेहरा देखा।एक तगड़ा नौजवान ड्राइवर सीट पर विद्यमान था।फिर उसने कैब का नम्बर देखा।एच आर छब्बीस से स्टार्ट हो रहा था।इसका मतलब कैब गुड़गांव की थी।उसके दिल ने कहा,वह मुसीबत में पड़ चुका है।तब तक कैब ड्राइवर ने कैब को उसकी गाड़ी के आगे अड़ा दिया था।उसके पीछे की गाड़ियां कट मारकर निकल रही थी।
कैब ड्राइवर खिड़की खोल कर बाहर आया।उसको ड्राइवर साइड की तरफ़ बढ़ते देख उसकी छटी इंद्री ने काम किया और उसने गाड़ी की चाबियां निकाल कर जेब मे डाल ली।कैब ड्राइवर ने उसकी उस हरकत को देख लिया था।
वह झुंझलाते हुए उसकी तरफ बढ़ा।उसकी शर्ट पर लपेटा देकर उसको लगभग झिंझोड़ते हुए अपनी
तरफ खींचने लगा,"घना श्याना बने है।मैं बनाऊं तन्ने श्याना!"यह देखकर उसके पिता अपनी खिड़की खोलकर निकले और बहुत गुस्से में कैब ड्राइवर को खींचने लगे।कैब ड्राइवर ने एक हाथ से उसके वृद्ध पिता को धक्का दिया उनका सिर अंडरपास की दीवार से लगते लगते बचा।यह देखकर वह बाहर निकला और उसने कैब ड्राइवर को मारने की नीयत से तेजी से हाथ घुमाया।कैब ड्राइवर उसका वार बचा गया।उसका हाथ जोर से हवा में लहराया और कंधे से उखड़ता सा लगा।इतने में कैब ड्राइवर का तगड़ा थप्पड़ उसके गाल पर लगा।उसका कान सुन्न हो गया।उसके जबड़ों से दाँत बाहर आने को हुए।उसके मुँह से खून निकलने लगा।उसने जोर से सांस लिया तो उसकी जीभ और गले ने उसके खून का स्वाद चख लिया।कैब ड्राइवर दूसरा हाथ जमाने ही वाला था कि उसकी माँ बीच में आ गयी।इतने में दो पुलिस वाले प्रकट हुए और उनकी गाड़ियां हटवा कर साइड में ले गए।एक घंटा कैब ड्राइवर और उसको पुलिस के चक्कर मे लग गया।दोनों के दो दो हजार की चपत लगी।फिर वे अपनी अपनी गाड़ियों में बैठकर रवाना हुए।रास्ते में उसकी माँ सारे रास्ते बोलती आई।वह चूपचाप ड्राइव करता हुआ आया।
उसके पिता भी उसकी बगल में चुपचाप बैठे थे।बीच बीच में वे ओम शांति,ओम शांति भी बोल देते थे।
माँ पिताजी को भूतेश्वर मंदिर पर उतार कर वह वापिस हो लिया।कान अभी भी सांय सांय बोल रहा था।उपर से मूड बहुत खराब था।कितना बजा होगा,यह देखने के लिए उसने मोबाइल निकाला।पच्चीस मिस्ड कॉल थी।उसे याद आया,फोन उसने साइलेंट कर दिया था।बीस काल बॉस की थी।पाँच काल और लोगों की थी।
घर पहुंच कर गर्म पानी से नहाया।आठ बजे थे।उसे चिंता हो आई।मीटिंग का क्या हुआ।उसने बॉस को फोन मिलाया।बॉस ने तुरन्त फोन उठाया।एम डी साहब बहुत नाराज़ थे,उसने बताया।दो तीन आदमियों पर गाज गिरनी तय है।तुमने तो फोन ही नहीं उठाया।तुम्हारी तो स्पेशल ख़बर ली जाएगी।
उसका मूड बहुत ख़राब हो गया।
खाना खाने का मन नहीं था।दो कौर निगलने में भी पूरा जबड़ा दुख रहा था।कान में फट फट की आवाज़ हो रही थी।उसके साथ क्या हुआ यह बताने में उसकी रुचि न थी।पत्नी टी वी देखने में व्यस्त थी।उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया,यही बेहतर था।
बेडरूम में लेटे लेते उसका ध्यान निगम बोध घाट की तरफ़ चला गया।यहाँ शमशान घाट कहाँ होगा,डी एल एफ में उसने खामखाह सोचा।उसने क्या करना पता करके।कल को जरूरत पड़ी तो पता तो होना चाहिए।उसके पैतृक घर के पास मदन पूरी रोड पर शमशान घाट था। वह वहीं कई बार गया था।अगर कल को वह मर जाए तो उसका अंतिम संस्कार वहीं होगा।उसे आत्महत्या का ख्याल आया।आज जो उसके साथ हुआ,रोज होता था।न वो ड्राइविंग में ही परफेक्ट था।न दफ़्तर के काम काज में।जब भी कोई गलती होती है सारा इल्जाम उस पर ही आ जाता है।थू है ऐसी ज़िन्दगी पर।इससे तो मरना ही बेहतर है।
वह आत्महत्या की सोचने लगा।उसका फ्लैट पंद्रहवीं मंजिल पर है।बेडरूम की बालकनी पर चढ़कर कूदना ही तो है।बाकी काम अपने आप हो जाएगा।लेकिन बड़ी वीभत्स मौत होती है,ऊंचाई से कूदने से।एक ऊंचाई से गिरे आदमी की लाश उसने इसी बिल्डिंग में देखी थी।चेहरा कितना खराब हो गया था।पेंट भी नितंबों से नीचे सरक गयी थी।न ,यह तरीका ठीक नहीं।तो फिर क्या फंदा लगा लूँ।उसमें भी जीभ बाहर निकल आती है।
: फिर क्या वह नींद की गोलियां इस्तेमाल करे।हाँ, यह ठीक रहेगा।आदमी बिस्तर में पड़े पड़े मर जाता है।सोया हुआ शांत चेहरा।यह सभ्य तरीका है।उसके पास गोलियों के एक तो पत्ते थे।शायद दो पत्ते बहुत रहेंगे।लेकिन कहाँ रखे थे,ध्यान नहीं।उसने पत्नी को आवाज़ दी।पत्नी टी वी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी।उसने हाथ से स्टोर रूम की तरफ इशारा किया।स्टोर रूम में दवा रखने का एक बॉक्स था।उसमें दोनों पत्ते रखे थे।पूरी बीस गोलियां।आदतन उसने एक्सपायरी डेट चेक की।अभी डेट थी।फिर वह डेट चेक करने की अपनी हरकत पर हंसा।
दवा का बॉक्स उठाकर वह बेडरूम में आया।तभी उसका फोन बज उठा।बिट्टू का फोन था।
"पापा!"बिट्टू रुआंसी हो रही थी,"आपके साथ आज बहुत बुरा हुआ।दादी ने बताया।बहुत जोर से मारा उसने।क्या अभी भी दर्द है।"
वह हँसा था।"हां!कान अभी भी सांय सांय कर रहा।जबड़े में भी दर्द है।"
"आपने मम्मी को बताया।"
"न!"
"अच्छा किया!मम्मी को टेंशन हो जाती।"
"पापा?"
"हाँ"
"आपने दवा ली।कोई पेनकिलर!"
"न!"
"ले लो!"
"दवा का बॉक्स लाया हूँ,स्टोर रूम से।"
"पापा?"
हाँ!
यू आर वेरी ब्रेव
"पापा किसका हूँ!बिट्टू का पापा!"
यस पापा!रख के देना था उसको एक ।
दिया था,लेकिन उसकी किस्मत अच्छी थी।वह बच गया।
दोनों हँसने लगे।हँसते हँसते उसका जबड़ा फिर से दुखने लगा था।