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कशिश - 14

कशिश

सीमा असीम

(14)

हाँ यार, कभी खाता नहीं हूँ न इसलिए !

मैं जो नहीं थी पहले खिलाने के लिए ! आपके लिए थोड़ी सी चीनी लाती हूँ ! राघव की मिर्च से हुई बुरी हालत को देखते हुए पारुल ने जल्दी से अपना चम्मच प्लेट में रखा और काउंटर पर खड़े व्यक्ति से थोड़ी चीनी मांगी !

उसने एक कटोरी मे चीनी डाल कर दे दी !

राघव चीनी को अपने मुंह मे डाल लो देखना मिर्च एकदम से मिट जाएगी !

नहीं रहने दो, मैंने पानी पी लिया है !

फिर भी तुम्हारे मुंह से सी सी निकल रही है और आँखों से पानी बह रहा है !

अरे ठीक हो जाएगा यार, तू चिंता न कर !

ऐसे कैसे ठीक हो जाएगा, आप चीनी मुंह में डालो !

हे भगवान तू भी बिलकुल पूरी ही है पहले चुहे को मारो फिर उसे गोबर सूंघा कर ज़िंदा करो, हैं न ?

नहीं जी, ऐसे बात नहीं है, आपको इतनी तेज मिर्च लग गयी मेरे कारण तो मुझे दुख हो रहा है अब आज के बाद कभी ज़िद नहीं करूंगी ! पारुल ने अपने कानों पर हाथ लगाकर कहा !

तो अब चीनी खिलाने की ज़िद क्यों कर रही हो ?

हे ईश्वर आपसे जीतना तो नामुमकिन है !

तो फिर चुनाव मे खड़ा हो जाऊ ?

हार गयी, बाबा मैं हार गयी ! माफ कर दो ?

हारने वाले को माफी नहीं मिलती बल्कि उसे भी जीत कर दिखाना होता है !

आपकी बातें मेरी समझ से परे हैं ! आप जीते और मैं हार गयी !

सच में वो उस पर अपना दिल तो पहले ही हार बैठी है और दिल हार जाना मतलब सब कुछ हार जाना, यूं ही तो हर किसी पर दिल नहीं हारता कोई एकाध होता है जो हमारा दिल इस कदर जीत लेता है की हम उसके हर सवाल के आगे निरुत्तर हो जाते हैं ! उसकी जीत में ही सुख मिलता है हम जिस पर अपना दिल हारे होते हैं !

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