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कशिश - 20

कशिश

सीमा असीम

(20)

वे दोनों एक होना चाहते थे भूल के दुनियाँ की सब रीति रिवाजें और रस्में ! बहुत सारे बंधनों में बांध देता है हमारा समाज लेकिन यह मानव मन यह सब कहाँ सोचता है ! वो तो उन बातों के खिलाफ होना चाहता है जो उसे बान्ध दे ! तभी तो टूट जाती हैं वर्जनाएं, जो हमारे ऊपर लगा दी जाती हैं !

पारुल ने अपनी आँखें खोली पूरी दुनियाँ अलग सी महसूस हुई पल भर में ही सब कुछ बदल चुका था और एक नए रिश्ते का ईश्वर ने निर्माण कर दिया था ! जब कोई रिश्ता ईश्वर बना देता है उसे इंसान भला कैसे तोड़ सकता है ! राघव सोफ़े पर बैठ गया था और पारुल बैड पर बैठी थी ! राघव उठा और चाय का कप उसके हाथों में पकड़ाते हुए बोला, लो पहले चाय पी लो फिर यहाँ से जल्दी निकलना है करीब 12 बजे तक पहुँच कर प्रोग्राम अटेंड करना है ! पारुल की आँखें नींद से बोझिल हो रही थी उनमें अब एक नया संसर जो बस गया था ! खूबसूरत संसार ख्वाबों, ख़यालों और खुशियों से भरा हुआ ! किसी ने उसके क्वारे सपनों पर अपना आशियाना बना दिया था ! चाय के दो तीन सिप लेकर कप को साइड टेबल पर रखा और कंबल को सर तक खींच कर लेट गयी !

अरे पारुल, उठो अभी लेट कर सोने का वक्त नहीं है ! रास्ते में सो जाना ! पूरे चार घंटे का सफर अभी बाकी है ! अभी तक राघव जो एकदम से शांत था अब बोलने लगा था और पारुल जो अभी तक बोल रही थी चुप हो गयी थी, हया जो मन में उतर आई थी !

बिना कुछ भी बोले पारुल उठी और फ्रेश होने के लिए बाशरूम में चली गयी ! जब फ्रेश होकर वो बाहर निकली तब तक राघव अपने कमरे में चला गया था ! उसने बैग खोलकर पहनने के लिए पीले रंग का सूट निकाला !

फ्रेश होकर वो तैयार हो गयी ! उसके ऊपर वो पीले रंग का सूट बहुत सुंदर लग रहा था ! उसमें उसके चेहरे का चमकता रंग कुछ और भी चमक आया था ! शीशे में खुद को निहारते समय वो स्वयं पर ही मोहित हो गयी ! शर्माते हुए अपनी पलकें नीची कर ली ! कहाँ से आ गया यह सौंदर्य उसके ऊपर वो इतनी खूबसूरत तो नहीं है !

राघव ने बाहर से नाक करके पूछा, आप तैयार हो गयी !

जी ! इससे ज्यादा कोई और शब्द उसके मुंह से निकला ही नहीं !

बाहर निकलकर वो गैलरी में खड़ी हो गयी ! राघव भी वही पर खड़ा था !

अरे सूरजमुखी के बाग में यह चमकते हुए आभामंडल के साथ कौन आ गया है ? ओहह यह स्वर्गीय नूर यहाँ कहाँ से आ गया है या शायद ईश्वर ने ही खुद इसके रूप में खुद को भेज दिया है !

अपने लिए इस तरह प्रशंशा के शब्द सुनकर वो थोड़ा और शरमा गयी, उसके गुलाबी होठों पर मुस्कान आ गयी थी ! राघव ने उसका हाथ पकड़ा और चूम लिया ! वो भी चूमना चाहती है राघव को, वो अपना सारा प्यार न्योछाबर करके अपनी बाहों मे कैद कर लेना चाहती थी लेकिन मन में बैठी शरम कुछ करने ही नहीं दे रही थी ! राघव अपनी ही धुन में उससे बात किया जा रहा था ! पारुल ने नोटिस किया कि अब राघव उसे आप कहकर संबोधित कर रहा है ! इतना सम्मान हम सिर्फ प्रेम में ही दे सकते हैं और उनके जीवन में प्रेम ने पदार्पण कर लिया था ! राघव ने कमरे को चेक किया और रुम सर्विस वाले को फोन किया ! उसने कमरे से सारा समान उठाया और नीचे खड़ी टेकसी में रखबा दिया ! चेक आउट करके राघव और वे दोनों टेकसी में बैठ गए ! राघव ने जेब से कुछ रुपये निकाल कर उस लड़के के हाथ पर रखे और पारुल ने उस होटल की तरफ नजर उठाकर देखा जहां उसके प्यार ने एक नई अंगड़ाई ली थी जहां वो वो न रहकर कुछ और बन गयी थी ! उस होटल का वो कमरा जिसकी खिड़की खुली हुई थी, थोड़ा थोड़ा अंदर का दिख रहा था और दिख रहा था एक साया जो दो को मिलाकर एक कर रहा था !

राघव ने मुस्कराते हुए कहा अरे भाई गर्दन दर्द कर जाएगी अगर यूं ही मुंह उठाए ताकती रहोगी !

वो चौंक गयी मानों ख्वाबों से निकल कर हकीकत में आ गयी हो और उसके साथ तो अभी राघव बैठे ही हैं न, तो कैसे ख्वाब ? हमेशा हकीकत और वर्तमान में ही जीना चाहिए ! उसका जी चाहा वो राघव के कंधे से अपना सर टिकाकार बैठ जाये न जाने क्यों किसी कमजोर बेल की तरह वो उससे लिपट जाना चाहती है ? न जाने क्यों उसके लिए अपना सर्वस्व मिटा देना चाहती है ? जो भी कुछ है वो सिर्फ राघव का ही है जैसे वो अब कुछ भी नहीं ! अस्तित्वहीन सी वो क्योंकि उसका अस्तित्व तो अब राघव बन गया है !

टेकसी अपनी धीमी रफ्तार से चल पड़ी थी क्योंकि रास्ते घुमावदार थे ! सुहानी सुबह और खूबसूरत पहाड़ी सफर ! साथ में प्यारा साथी, दिल के सबसे करीब रहने वाले प्रिय का अगर साथ हो तो हर जगह को स्वर्ग बना देती है फिर यह तो जगह भी स्वर्ग जैसी है और साथ भी देव का है !

हे ईश्वर, यह सफर कभी खत्म न हो ! बस यूं ही चलता रहे ...चलता रहे ! मौसम में हल्की सी नमी थी और ठंडापन भी ! राघव ने उसे अपनी जैकेट उतार कर देते हुए कहा, अरे तुमने कोई गरम कपड़ा नहीं पहना ?

जब साथ है आपका तो क्या जरूरत किसी गरम कपड़े की या किसी और चीज की बस काफी है प्यार का साथ हर तकलीफ परेशानी दर्द से राहत दिलाने के लिए ! उसने अपने मन में प्रार्थना की॥ हे ईश्वर मेरा साथ बनाए रखना ! अपने हाथ दुआ में उठाना चाहती थी लेकिन वो संकोच वश उठा न सकी क्योंकि सामने ही राघव थे !

अरे यह जैकेट पकड़ो न, क्या सोचने लगी ?

ओहह !! हाँ जी ! लाइये अभी पहन लेती हूँ ! कितनी प्यारी खुशबू से महक रही है यह जैकेट ! उसके प्रिय राघव की जैकेट है न, तो उसका महकना स्वाभाविक है ! उसने जैकेट पहन ली उसे पहनते ही अहसास हुआ मानों राघव का प्रेम उससे लिपट गया है ! ठंडक लगनी बंद हो गयी ! पलकें प्रेम के अहसास तले बंद होने लगी ! प्यार की गर्माहट अंग अंग में बिखरने लगी और वो मोम की तरह भीतर ही भीतर पिघली जा रही थी ! राघव अपनी आदत के अनुसार रास्ते में दिखने वाली चीजों के बारे में बताए जा रहे थे और उनको सुना अनसुना सा करते हुए भी अपना सिर हिलाकर ऐसा एक्स्प्रेशन देती जा रही थी मानों सब कुछ समझ आ रहा हो जबकि वो तो सिर्फ राघव में ही खोयी हुई थी !

पतले सकरे घुमावदार रस्तों से गुजरते हुए वो पहाड़ी यात्रा जो रच रही थी यादगार दिन या कभी न मिटाई जाने वाली एक अनोखी कहानी ! जो सदियों में कोई एकाध ही बनती हैं !

नींद से आँखें भारी हो रही थी लेकिन सोने का मन नहीं था क्योंकि वो एक एक पल को जी लेना चाहती थी ! राघव के साथ को हर हाल में जी लेना ही उसके लिए अब दुनियाँ की सबसे बड़ी खुशी में शामिल हो गया था !

पहाड़ी स्थानों पर प्रकृति अपना रूप खुल कr बिखेर देती है बिना किसी आडंबर के वो अपना स्वरूप प्रदर्शित करती है !

कहीं पर फूटते हुए झरने, कही पर ऊंची पहाड़ियाँ और कही पर गहरी घाटियां । कहीं फूलों से महकते पेड़ तो कहीं ऊंचे ऊंचे दरख्त ! खुशबू से महकता वो सफर नया अध्याय रचने को आतुर सा हो गया था ! बांस के पेड़ों से भरा वो जंगल पार करते हुए महसूस हो रहा था जैसे अनेकों बांसुरियाँ अपनी सुरीली तान छेंड़ कर आमंत्रित कर रही हो ! कान्हा की एक बांसुरी की तान पर राधा समेत अनेकों गोपियाँ दौड़ी चली आती थी और यहाँ बजती हुई सैकड़ों ताने न जाने कितनी प्रेमिकाओं को अभिमंत्रित कर देती होंगी ! न जाने कितनी प्रेम कहानियाँ रच दी होंगी इन वादियों ने !

पारुल क्या तुम सो रही हो ?

राघव की यह आवाज जब कानों में पड़ी तो वह चौंक कर वर्तमान में आ गयी वरना न जाने कहाँ कहाँ ख़यालों में भ्रमण कर आई थी !

नहीं नहीं, मैं सो नहीं रही हूँ !

तो सुनो भूख तो नहीं लग रही ?

भूख का तो अहसास ही नहीं हुआ वो तो सिर्फ खो गयी थी ! उस दुनियाँ में जहां सिर्फ वो थी अपने प्रिय राघव के साथ !

कुछ बोलो भी ?

आपको भूख लग रही है ?

अरे यार, तू अपनी बता न ? मैं तो खा ही लूँगा भूख लगने पर!

जी ! वो मुस्कराई !

उसे मुस्कुराता देख राघव भी मुस्कराया ! अरे यार मैंने मुस्कराने को नहीं कहा था ! मैंने खाने के बारे में पूछा था !

यहाँ कहीं दूर दूर तक तो कुछ दिख ही नहीं रहा सिवाय जंगल के !

तो तुझे डर है कि मैं तुझे खाने में पत्ते तोड़ कर खिला दूंगा ! राघव की यह बात सुनते ही उसकी हंसी छुट गयी वो खिलखिला कर हंस पड़ी ! मानों सैकड़ों फूलों ने खिल कर खुशबू बिखेर दी हो !

राघव उसे हँसता देख कर उसकी प्यारी छवि में खोने लगा लेकिन फिर खुद को संभालता हुआ बोल पड़ा, अरे यार, तू हँसती बहुत ज्यादा है !

वो फिर मुस्कराइ और सोचा राघव सही कह रहे हैं कि वो बहुत हँसती है ! घर में भी सभी लोग यही सब तो कहते हैं ! सहेलियों में सबसे ज्यादा वही हँसती है, मस्ती करती है ! चलो अब थोड़ी देर बिल्कुल मुंह बंद करके रखेगी न हँसेगी न ही कोई बात करेगी !

क्या हुआ पारुल एकदम चुप हो इतनी देर से, कोई बात क्यों नहीं करती !

जब बात करे या हँसे तो बहुत बोलती है बहुत हँसती है यह सुनने को मिलता है और अगर ज़रा देर को भी चुप हो जाओ, तो भी शिकायत ! हे भगवान, क्या करूँ मैं ?

अरे पारुल बोलो न वो कहते हैं कि जब दो लोग साथ हो और बोलते बतियाते जा रहे हो तो उनकी बातें हवाओं पर अंकित हो जाती हैं. गूँजती रहती हैं तभी तो कभी शांत होकर सफर नहीं करना चाहिए !

अच्छा ऐसा भी होता है ?

ऐसा भी होता नहीं बल्कि ऐसा ही होता है !

वो ज़ोर से खिलखिला कर हंस पड़ी थी !

अरे भाई मैंने हंसने को नहीं बल्कि बात करने को कहा था !

ठीक है अब हसूँगी नहीं ! सिर्फ बात करूंगी !

उसने मन में सोचा. मैं इनकी हर बात में हाँ में हाँ कैसे मिला देती हूँ ! वैसे तो कभी किसी की बात सुनी नहीं ! ये क्या होता जा रहा है मुझे, जैसे कोई जादू या कोई नशा ! न जाने यह सब क्या है ?

राघव उसकी तरफ देख कर कुछ बोलने ही वाले थे कि वो बोल पड़ी, देखो राघव ये झरने .कितना सफ़ेद और स्वच्छ पानी है न ?

हाँ घर में लगे “आर ओ” से भी जायदा ! यह बहुत फायदेमंद भी होता है !

फायदेमंद ? वो कैसे ?

क्योंकि यह पानी ऊपर पहाड़ियों से आता है तो वहाँ से जड़ी बूटियों के पौधों को धोता हुआ चला आता है इसलिए उनका थोड़ा अंश इस पानी में भी घुल जाता है जो कई तरह से हमारे शरीर को फायदा करता है !

कितनी सारी विधाएँ और भाषाओं का ज्ञान है इनको ...कहाँ से आता है इन्हें सब ? किससे सीखा है ? न जाने इतने विद्वान कैसे बन गए ? अचंभित होकर बस उनका चेहरा देखती रह जाती हूँ ! सोचती हूँ कि काश इनके जैसे थोड़ी सी समझ मुझे भी आ जाती तो मेरा जीवन भी तो सँवर जाता न ! पारुल सोचती !

वैसे अक्सर ऐसा ही होता है जब हम किसी से प्रभावित होते हैं तब हमें उसके दोष भी गुण मजार आते हैं और जब जब हम उसमें बुराइयाँ ढूँढने लगते हैं तो उसकी सारी अच्छाइयाँ भी कहीं गायब हो जाती है शायद यही कारण रहा हो प्रकाश के अंदर हमारी नजर सिर्फ बुराई ही ढूंढ रही थी !

सुनो पारुल एक दिन मैं अपनी आत्मकथा लिखूँगा !

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