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मेरी हिंदी कविताएं


✍️शफ़क़✍️

मेरी हर शफ़क़ को
इत्र सी महका जाती है
मेरी रुह में बसकर बिख़र जाती है
तेरी वो बेसुमार महोब्बत की कशीश
जो आज भी तेरी ख़ामोशी
और मेरे इंतज़ार के दरम्या भी
कुछ तो राब्ता होने की
नायाब उम्मीद लेकर आती है
जो हमें हर शफ़क़ और भी
करीब ले आती ...
-Falguni Shah ©

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✍️ परछाई ✍️

मैंने
अक्सर देखा है
समझा है
अकेले बैठकर
तेरी आंखों में झांक कर
एक अजीब-सा अकेलापन
जो तु भरकर रखती है
अपने दिल के
खाली कोने में
जिसे तु नहीं चाहती खुलकर
कभी सांझा करना
हर किसी से
तु तो बस ढूंढती है
कोई एक एेसा
जो तुझे और तेरे
इस बिखरे हुए
खालीपन को
अपनेपन के आगोश में समेटे
जो भर दे तुझे यह कहकर कि
"मैं तेरे साथ हूं"
हा, उसने कहा कि" मैं तेरे साथ हमेशा हूं"
हां, तुमने जो मुझे थामकर रखना चाहा
ताउम्र साथ तो ...

और
फिर
मैं और मेरी परछाई सिमट ग‌ए ...
-Falguni Shah ©

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✍️स्त्री ✍️


एक धारा
जब जन्म लेती है तो
उसकी किस्मत में तीन लकीरें होती है
एक बहते ही रहना
दूसरा बहते बहते सूख जाना
और
तीसरा बहकर सागर में लूप्त हो जाना ...
यदि
ये धारा
"स्त्री" का जन्म लेती तब भी यही होता?
- Falguni Shah ©

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✍️ फिर भी ✍️

रात कुछ सुनी है सबब बिताने में
फिर भी कुछ दूरी करीबी हैं

चल तो बहोत कुछ रहा है ज़हन में
फिर भी होंठों पर चुप्पी लाज़मी हैं

सारा इंतज़ार थमा है सिरहाने में
फिर भी आंखों में एक कमी हैं

ये रात भी उदास है गुज़रने में
फिर भी मुक्कमल बहना मज़बूरी हैं
-Falguni Shah ©

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✍️ मैं तितली ✍️


जब जब मां तितलीसे बातें करती थी
तब वो खुले आसमान से रूबरू होती थी
तितली उड़ जाती थी मां की प्यारी उंगली छोड़कर
वहीं तितली अब दोबारा पास नहीं आएगी
हर तितली को मां भीगी पलकों से बिदा करती रही
एक बार मैंने मां से पूछा कि ,"मां, तुम्हें तितली इतनी क्यूं पसंद है"?
मां ने कहा ,
"वो स्वतंत्र जो होती है"

फिर साल गुजरते रहे
बड़े संघर्ष के बाद
एक दिन मैं
अपनी नौकरी का
ओर्डर लेके मां के पास ग‌ई
मां ने पूछा " कैसी है तु"?
मैंने कहा " तितली बन गई हूं"....
-Falguni Shah ©

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✍️ढलता सूरज ✍️

हम शहर आकर तो बस गए
पर खुद को गांव में ही छोड़ आए
अजनबी से रिश्तें तो जूड़ते ग‌ए
पर खुद खुद से बिछड़ते ग‌ए
ढलते सूरज के साथ हम ठहरते ग‌ए
खैर छोड़िए ,
हर बार
पतझड़ जैसे बिखरते ग‌ए
बहार जैसे निखरते ग‍ए ...
-Falguni Shah ©

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✍️ कुछ यूं ही ✍️


सुनो ,
जाने क्यूं तु कुछ यूं बेख़बर
कभी तुझसे पूरा तन्हा हो ना सके
भीड़ में भी खुद को
ना पूरा खो सके
ना पूरा पा सके
तूट जाती है उम्मीदें
छूट जाते है हाथ
रुठ जाते है साथ

कुछ यूं ही मेरे ज़हन में उतर जाती है कुछ बातें....
-Falguni Shah ©

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✍️ मां ✍️

कितनी मसरूफ़ रहती थी
दिन भर अपनी जिम्मेदारियों में,
पर शाम होते ही उसकी पुकार में
मेरी फ़िकर सुनाई पड़ती थी,
सच में मां की ममता भरी याददाश्त बड़ी ही तेज़ थी....

अब तो रात भी हो जाये तो...
कोई पूछता तक नहीं..!!
-Falguni Shah ©

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✍️ लम्हा लम्हा ✍️
और
जिंदगी की एक और
शाम का ख़ास लम्हा
बस यूं ही सिमट जाएगा
रात होते ही
इस शाम से
कुछ अनकही बातें,
कुछ अनसुनी आवाज़
फिर से पलकों पर आकर रूकेंगी
हम भी थोड़ा गुनगुना की कोशिश में
सुनते रहेंगे
कुछ तेरी ही आवाज़ को....
-Falguni Shah ©

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