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माँ तो माँ होती है

पिछले कुछ समय से संध्या की खाँसी रुकने का नाम नहीं ले रही । फिर भी काम से उसे छुटकारा नहीं । दिन भर घर खाँसते खांसते गृहस्थी के कभी न ख़त्म होने कार्यों में जुटी ही रहती ।मदद करने की बजाय, मां बाप एक ही बात रोज दोहराते रहते,”अरे, खाँसी जल्दी से नहीं जाती,काढ़ा पीते रहो, अपने आप ठीक हो जाएगी ।”

आज ऑफ़िस से आकर अनुज उसे डॉक्टर के पास ले ही गया । डॉक्टर ने अच्छी तरह जाँच कर वहीं एक्स रे करवाने की सलाह दी । एक्स रे को देख कर डॉक्टर ने अनुज को बताया कि संध्या को टी बी है और फेफड़ों में सिवियर इनफ़ेक्शन है ।उसे किसी सेनिटोरियम में रखना पड़ेगा ।

अनुज के पैरों के तले जैसे ज़मीन खिसक गई हो । दो छोटे बच्चे, बेटी अंजलि ढाई साल की और बेटा दीपू एक साल का । सोच में पड़ गए । सेनिटोरियम में संध्या को भरती करना पड़ गया तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी । बच्चे इतने छोटे हैं,उनको कौन देखेगा । दादा दादी बूढ़े हैं, उनके बस की बात नहीं है । वे अपने आपको संभाल लें यही बहुत है ।

तब क्या नाना नानी ? संध्या का मन है कि बच्चों को वहीं रखा जाय । उसकी दो छोटी बहन भी हैं वहाँ, माँ पिताजी के साथ वही बच्चों को संभालने में मददगार होंगी । बस यही ठीक रहेगा । कम से कम संघ्या अपनी बीमारी के दौरान बच्चों की तरफ से तो निश्चिंत रह पाएगी ।

अनुज दोनों बच्चों को लेकर संध्या के माता पिता के पास पहुँचा । उन्होंने बच्चों के लिए तरह तरह के खिलौने लाकर रखे हुए थे ताकि उनका ध्यान उनमें लगा रहे और अनुज उन्हें छोड़ कर जा सके । दीपू तो खिलौने देख कर उछल पड़ा और उनके साथ खेलने में मशगूल हो गया । अंजलि ने खिलौनों पर नजर डाली पर ठिठक गई तभी एक मौसी ने उसे अपने पास खींच कर एक गुड़िया उठा कर उसके हाथ में पकड़ा दी । अंजलि फिर भी अनमनी सी बनी अनुज से सटी रही ।

अनुज के जाने का समय हुआ । जैसे ही वह टैक्सी में बैठने लगा कि जोर जोर से रोती हुई अंजलि उसके पैरों से लिपट गई,” पापा, मुझे भी ले चलो, मुझे मम्मी के पास जाना है ।” अनुज जानता था कि अंजलि दिन भर मम्मी मम्मी करती संध्या से हर समय चिपकी रहती थी । दीपू बहुत छोटा था,बहकावे में आ गया पर अंजलि को समझाना बड़ा मुश्किल था ।पर क्या करता,दिल पर पत्थर रख कर भारी मन से उसे जबर्दस्ती अपने से अलग कर टैक्सी में बैठ गया ।

वह घबरा रहा था कि संध्या को तसल्ली कैसे देगा ।वही हुआ । संध्या ने रोते रोते सवालों की झड़ी लगा दी,”बच्चे कैसे थे, रो रहे होंगे । मुझे याद कर रहे होंगे ।उनका मन वहाँ कैसे लगेगा । मेरा तो कलेजा फट रहा है ।” अनुज कैसे बताए कि उस पर क्या गुज़र रही है । पर उसे तो मज़बूत बना रहना पड़ेगा । किसी तरह संध्या को समझा बुझा कर शांत किया ।

अगले दिन वह नैनीताल के पास पहाड़ पर स्थित सेनिटोरियम में संध्या को भरती करवा आया । टेस्ट आदि जाँच पड़ताल के बाद पता लगा कि उसे जल्दी छुट्टी नहीं मिलेगी । कम से कम एक साल तो रहना ही पड़ेगा । संध्या के तो जैसे ख़ून ही नहीं था । डॉक्टर ने समझाया,” देखो छूत की बीमारी है। पूरा इलाज करवाना ज़रूरी है नहीं तो और लोग बीमार पड़ जायेंगे विशेषकर बच्चे ।” बेचारी संध्या सुबुकती रही । अनुज वापस आ गया ।

संध्या के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था । अनुज हर महीने उसे देख कर बच्चों से मिलता हुआ आ जाता । उधर संध्या को राहत पहुँचाता कि बच्चे मजे में हैं और बच्चों को बहलाता कि जल्दी मम्मी से मिलेंगे ।

समय गुज़रता गया और वह दिन भी आ गया जब संध्या को सेनिटोरियम से जाने की इजाज़त मिल गई । संध्या का बहुत मन था कि अनुज इस बार बच्चों को साथ में लाए और सब साथ में घर जाएँ । अनुज संध्या की ममता समझ रहा था । वह अंजलि और दीपू को नाना नानी के घर से लेकर रवाना हो गया ।

संघ्या बहुत उत्तेजित थी । हाय राम पता नहीं बच्चे उसे पहचान भी पायेंगे या नहीं । इतने छोटे से अलग रहे, एक साल तो बहुत लंबा समय होता है । इसी उधेड़बुन में एक शरारत उसे सूझी । बरामदे में कई पलंग पड़े थे । उन पर उसी के समान स्वस्थ होकर बैठी कुछ महिलाएँ अपने जाने का इंतज़ार कर रही थीं । जैसे ही संध्या को अनुज व बच्चों के पहुँचने की ख़बर मिली, झट वह अपने पलंग से उतर दो तीन पलंग दूर एक पर जा बैठी और उस पर बैठी महिला को अपनी जगह बैठ जाने के लिए कहा । वह महिला संध्या के पलंग पर आ कर फटाफट बैठ गई । अनुज माजरा समझ गया । दीपू को कहा,”ये तुम्हारी मम्मी हैं, चलो मम्मी की गोद में चढ़ जाओ । दीपू झट से उस महिला की गोदी में चढ़ गया । अनुज ने अंजलि से मम्मी को प्यार करने को कहा पर वह टस से मस नहीं हुई । बार बार इधर उधर आँखें फाड़ फाड़ कर ताक रही थी जैसे कुछ ढूँढ रही हो । तभी अचानक दौड़ कर उस पलंग पर जा पहुँची जहाँ संध्या बैठी थी । ’मम्मी मम्मी’ चिल्लाते हुए जोर से उसके गले लग गई और चिपटी ही रही ।संध्या रोते रोते उसे बहुत देर तक चूमती रही । आस पास बैठी महिलाएँ भी अपने आँसू नहीं रोक पाईं । इतने दिन से क़ाबू किए अनुज का बाँध भी टूट गया।

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