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मे और महाराज - ( एक परीक्षा_3) 16

बस ये वही पल था, जब एक एक राज खुलने की शुरुवात हुई। आधे घंटे से उस कक्ष मे बैठी तीनो औरते नियम लिखे जा रही थी। क्योंकि सिराज सामने बैठ कर ये लिखावट करवा रहा था, तो मौली समायरा की कोई मदद नहीं कर पाई। समायरा दो शब्द लिखती फिर मासूम सी नजर मौली की तरफ डालती और एक गुस्सैल नजर से सिराज को देखती।

" वीर जाकर उनसे पत्र ले लो।" सिराज ने हुक्म दिया। उसके भाई ने गौर बाई और चांदनी से पत्र ले कर सिराज को सौंपे। किसी को ना दिखे उस तरह सिराज ने रात को उस गुंडे से मिली हुई चिट्ठी से दोनो के पत्रों की लिखावट मिलाकर देखी। फिर उन दोनो को वहा से बाहर जाने का हुक्म सुनाया। जाते जाते दोनो समायरा की तरफ गुस्से से देखते हुए गई। समायरा ने भी वही नजर उन्हे बदले मे वापस की।

" पेन से इंग्लिश लिखने कहता तो दिखा देती इन्हे मे।" समायरा।

" वीर अपनी भाभी का लिखा हूवा पत्र लायए।" सिराज।

" दिखाए।" वीर जैसे ही वो पत्र लेने आगे बढ़े समायरा ने अपने हाथो से उसे धक दिया। वीर प्रताप ने उस से वो पत्र छीन लिया, लेकिन उसमे लिखावट देख उसकी हसी छुट पड़ी।

" ये लिखावट वो कभी नहीं हो सकती भाई।" वीर।

" दिखाएं।" सिराज ने उस से पत्र लिया और अपने पास रखी हुई चिट्ठी से लिखावट मिलाई। जितने वक्त मे बाकी दोनो औरतों ने सुंदर लिखावट मे पुरे नियम एक पन्ने पर लिख दिए थे। उतने ही वक्त मे समायरा ने सिर्फ दो वाक्य लिखे थे वो भी गलत।

" ये आपकी लिखावट है।" सिराज ने उस से सवाल किया।

" मुझे हिंदी से थोड़ी परेशानी है। तुमसे मतलब।" समायरा ने उसे नजरदाज करने का नाटक किया। तभी उसकी नजर उस चिट्ठी पर पड़ी।" ये क्या है ?" उसने सिराज के हाथो से चिट्ठी ले कर पढ़ी।

" ये कल उस आदमी की जेब से मिला जिसने आपकी गर्दन पर छुरी पकड़ी थी।" सिराज।

" अच्छा। तो यह तैकिकात चल रही थी। आप मुझ पर शक कर रहे थे, की मैंने उसे ऐसा करने के लिए कहा।" समायरा।

" सही। पर अब शक दूर हो गया। फिक्र मत कीजिए।" सिराज।

" फिक्र तो अब तुम करोगे मुझे इस चीज़ का मुआवजा चाहिए।" समायरा सिराज के पास गई, उसने अपना पैर बड़ी घमंड से सिराज के सामने वाली मेज पर रखा। कमर तक नीचे झुकी और कहा, " अगर मुझे मुआवजा नहीं मिला। तो मजबूरन मुझे अपने पिता और महाराज को खत लिख कर ये बताना होगा। की किस तरह मेरे प्यारे पति अभी भी मुझ पर भरोसा नही करते। किस तरह उन्होंने मुझ पर शक करते हुए मेरी तुलना बाजारू औरतो से की।"

" हमने आप से ऐसा बर्ताव कब किया?" सिराज।

" क्या पता । कल वो भी करो। मुझे खुद को बचाना होगा ना यहां।" समायरा।

" ठीक है। हमने आप पे शक किया बताए आपको मुआवजे के तौर पर क्या चाहिए ?" सिराज।

" पक्का जो भी मांगूंगी वो दोगे। कही अपने शब्दो से पीछे तो नही हट जावोगे। वादा करो।" समायरा उसके सामने वाली मेज पर बैठ गई और अपना हाथ उसकी तरफ किया।

सिराज ने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा, " हम वादा करते है। हमारे बस मे जो भी होगा आप को मिलेगा।"

" ये.................. स।" समायरा ने मेज़ पर बैठे बैठे उसे गले लगा लिया। मौली और रिहान ने अपनी नजरे फेर ली। वीर की हसी थी जो रुक नही रही थी। सिराज जानने के लिए उत्सुक था, की राजकुमारी क्या मांगेगी।

" ठीक है, सुनो।" समायरा ने सिराज को छोड़ते हुए बात शुरू की, " तुमने मौली को मांगा था ना, उसे भूल जाओ। उसे यहां हमेशा मेरे साथ रहने दो। प्लीज।"

" ठीक है। मौली आपकी हुई।" सिराज।

" ये......." समायरा ने मेज़ पर से उठते हुए मौली को गले लगा लिया। " और मुझे तुम्हारा बिस्तर चाहिए। वो जहा में कल लेटी थी।"

" क्या आपको वो बिस्तर इतना पसंद आया ?" सिराज उसका एक बिस्तर के प्रति लगाओ समझ नही पा रहा था।

" हा। आपको पता नही लेकिन वो बिस्तर वही चीज़ है जिसे में कितने दिनों से ढूंढ रही थी।" समायरा वापस मेज़ पर बैठ गई।

" लेकिन क्यो? ऐसी क्या खास बात है। उस बिस्तर मे ?" सिराज ने अपने सवाल जारी रखे।

" कितने कंजूस हो तुम। तुम्हारी बीवी मुआवजे मे एक पुराना लकड़ी का बिस्तर मांग रही है। वो भी नही दे सकते।" समायरा ने उस से नजरे मिलाते हुए कहा।

" ठीक है। बिस्तर आप का हुवा।" सिराज ने समायरा से नजरे मिलाना जरूरी नही समझा।

" अच्छा। आखरी तलाक के कागज़ मेरे कमरे मे भिजवा देना। अब में चलती हू।" समायरा वहा से जाने लगी।

" वो आपको नही मिल सकते।" सिराज।

" पर क्यो? ना में तुमसे प्यार करती हूं ना तुम मुझसे। तुम्हारे पास पहले ही दो औरते है। मुझे यहां रोकने का कोई मतलब नहीं।" समायरा ने उसकी तरफ देखते हुए कहा।

" हमने कहा ना कुछ और चाहिए तो मांग लीजिए। हम आपको कभी तलाक नहीं देंगे।" सिराज।

" ठीक है। तो में महाराज को खत लिख देती हु आज की घटना के बारे मे।" समायरा ने सिराज को मजबूर करने की कोशिश की।

" जरूर लिखिए। साथ ही मे किस तरह हमारे कमरे मे चोरी छुपे घुसने की सजा के तौर पर हमने अपने बिस्तर के साथ मौली को जला दिया ये भी लिखयेगा।" सिराज अपनी जगह पर से उठा और समायरा के सामने खड़ा हो गया।

" ये पागल है। इसने सच मे मौली को बिस्तर के साथ जला दिया तो। OMG। में वापस कैसे जाऊंगी ???" समायरा ने सोचा। " मेरे महाराज आप तो गुस्सा हो गए। में मज़ाक कर रही थी। मुझे कोई तलाक नहीं चाहिए।" उसने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा।

" हम जानते थे। आप हमे कभी छोड़ना नहीं चाहेंगी। हम भी मज़ाक कर रहे थे। बिस्तर जल्द ही आप के कमरे मे पोहोचा दिया जाएगा।" सिराज।

" शुक्रिया। बाय। बाय बाय।" उसने हर किसी की तरफ देख हाथ हिलाया।

" भाई ये बाय का क्या मतलब होता है???" समायरा के जाते ही वीर ने पूछा।

" शायद फिर मिलेंगे ऐसा होगा। तुम्हारी भाभी हमेशा जाते वक्त कहती है।" सिराज वापस से समायरा की लिखावट उस चिट्ठी की लिखावट से मिलाने की कोशिश कर रहा था।

" आप उन पर कैसे शक कर सकते है। हमे वो कही से भी बड़े भाई की जासूस नही लगती।" वीर ने सिराज के सामने बैठते हुए कहा। " वो तो एक परी जैसी है। कोई जादू जो हर जगह हसी बाटता है।"

" कुछ ज्यादा ही तारीफ नही कर रहे हो अपनी भाभी की। तुम्हे यकीन है, रिहान वो राजकुमारी शायरा ही थी? क्योंकि लिखावट ऐसा बिल्कुल नहीं कह रही ? " सिराज।

" में यकीन से नही कह सकता मेरे महाराज। पर दो दिनों पहले लबादा ओढ़े एक औरत राजकुमारी शायरा के कक्ष की तरफ से दीवार तक आई थी। उसने दीवार से उस इट को निकाला उस मे खत रखा और वापस चली गई। अंधेरे की वजह से मे शक्ल नही देख पाया। कद काठी बिल्कुल राजकुमारी की तरह थी।" रिहान ने सर झुकाए हुए जवाब दिया।

" हम भी उनके मनसूबे समझ नही पा रहे। हमे लगा वो मुआवजे मे राजमुद्रा मांगेगी। लेकिन आखिर उस बिस्तर मे ऐसा क्या है ???"