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स्त्री.... - (भाग-4)

स्त्री.......(भाग-4)

जब बहुत देर हो गई बैठे हुए तो मैं हाथ मुँह धोने के लिए उठ गयी.....मन तो कर रहा था कि नहा लूँ, पर समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे नहाने जाऊँ या नहीं? काफी सोचने के बाद अपनी संदूक से कपड़े निकाले और नहाने चली गयी।
नहाने के लिए गुसलखाने में पानी का ड्रम भरा रखा था। ड्रम देख कर याद आया कि ननद ने बातो ही बातों में बताया था कि यहाँ पानी की किल्लत बहुत है, तो सब संभल कर इस्तेमाल करते हैं.....मैंने वहीं पास रखी बाल्टी में पानी लिया और कुछ देर में नहा कर निकली......जैसे तैसे साड़ी लपेट कर कमरे में आई, फिर साड़ी को ठीक किया।
कुछ देर बाद ननद मुझे खाना दे कर चली गयी और बोली," आज आप थकी हो तो इसलिए ऊपर ही खाना ले आई। आप खाना खा कर आराम करो, कल सुबह 5 बजे तक तैयार होना है, गुरूजी के आश्रम जाना है"। "मैंने ठीक है", में सर हिला दिया....।।
मैं पूछना तो चाहती थी उनके भाई साहब कहाँ हैं? पर पूछ नहीं पायी.....।। थोड़ी देर में वो जूठे बरतन लेने आयीं और उन्होनें बताया कि मेरे पति अभी आ रहे हैं, सुन कर मैं शरमा गयी। आखिर वो वक्त आ ही गया, जिसका मैं इतनी देर से इंतजार कर रही थी......जितना भी सुहागरात के बारे में मैं सबसे सुन कर आयी थी, सब कुछ सोच कर मन रोमांच से भर गया......कितनी ही कल्पनाएँ कर रही थी, मुझे खुद ही याद नहीं। कुछ ही देर बाद वो आए औऱ कमरे में घुसते ही चिटकनी लगा दी.....मैं पलंग पर बैठी थी शर्माई और सकुचाई सी.......पति पलंग के दूसरे कोने पर आ कर बैठ गए और बोले, जानकी तुम बहुत सुंदर हो, पर अभी तुम छोटी हो। मैंने सुना है कि तुम पढाई में बहुत अच्छी हो तो मैं चाहता हूँ कि तुम पढो.....इसलिए तुम्हारा एडमिशन ओपन स्कूल में करा देता हूँ। बाकी रहा हमारी जिंदगी की नयी शुरूआत की तो वो सब समझने की उम्र नहीं है तुम्हारी। तुम्हे पता है कि मैं तुमसे 10-12 साल बड़ा हूँ जिसकी वजह से हमारा सोचने का स्तर एक सा नहीं है तो इस अंतर को समझने और कम करने के लिए तुम्हें अभी बहुत कुछ सीखना होगा,जो पढते रहने से ही संभव है।
मैं हैरान सी बैठी उन्हें सुन रही थी....सारी कल्पनाओं के घोडों की मानो मेरे पति ने एक झटके से लगाम कस दी थी....मुझे पढना था ये सच है, पर इस तरीके से सोचा नहीं था क्योंकि मैंने ये तो किसी से नहीं सुना कि किसी के पति ने अपनी पत्नी को पढाया हो???
वो बहुत कुछ धीरे धीरे बोलते जा रहे थे, पर मैं तो जैसे कुछ सुन ही नहीं पा रही थी....क्या गुरूजी की तरह इनको भी मैंने अपनी किसी बात से नाराज कर दिया? फिर ख्याल आया कि हमारी तो बात ही अभी हो रही है....मेरे पति बोलते जा रहे थे बिना मेरी तरफ देखे, जानकी मेरे सभी दोस्तों की पत्नियाँ पढी लिखी हैं, अँग्रेजी बोलती और समझती हैं, इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम भी सब सीखो। तभी तो मैं तुम्हें सबसे मिलवा पाऊँगा और उनके साथ घूमने जा पाएँगे। ये सुन कर मुझे एकदम ख्याल आया कि मेरी ननद ने मजाक में नहीं कहा था, सच ही तो कहा था कि उनके भाई साहब को पढी लिखी लड़कियाँ पसंद है। इस एहसास के साथ मेरे दिल में एक दर्द सा उठ गया....मुझ में उसी पल हीन भावना ने घर कर लिया.....। वो अपनी बात खत्म करके पीठ फेर कर सो गए और मुझे भी सोने को कहा....कहना और पूछना बहुत कुछ चाहती थी पर उनके सामने मैं खुद को कमजोर मान कर चुप रह गयी.... जो प्यार की प्यास थी वो अनबुझी रह गयी, जिसको शांत करके, बहला कर मैं भी सो गयी, सुबह जल्दी उठने के लिए....।
सुबह पूरा परिवार गुरूजी के आश्रम में था, पता चला कि गुरूदेव तो तीर्थयात्र पर गए हुए थे........हम लोग उनकी गद्दी पर माथा टेक कर घर आ गए......। घर आ कर चाय नाश्ता करके और दोपहर का टिफिन ले कर मेरे पति काम पर चले गए.....मेरी सास ने रोकना चाहा था, पर काम बहुत है, बोल कर चले गए।
मेरी सास जिनको सब माँ कहते हैं, उन्होंने मुझे बताया कि उनका बड़ा बेटा यानि मेरे पति काफी कम बात करते है् और मेरा देवर बहुत बातूनी है। मेरे ससुर की मृत्यु काफी साल पहले हो गयू थी जिसकी वजह से मेरे पति ने पढाई करते हुए काफी काम भी किया घर चलाने के लिए ,इसलिए वो संजीदा ही रहते हैं, पर दिल के बहुत अच्छे हैं.....। मेरी ननद भी पढाई में अच्छी हैं, और घर के सभी कामों में भी......अब मां आ गयी थी तो सुबह सब काम मैंने करना शुरू कर दिया और ननद(दीदी) शाम का काम कर लेती। धीरे धीरे हम दोनों की दोस्ती होती जा रही थी......सुधीर जी ने मेरा दाखिला करवा दिया था। काम से खाली होने के बाद मैं पढने बैठ जाती.....अँग्रेजी और गणित मेरी ननद मुझे पढ़ा देती थी और कई बार मेरे देवर भी मदद कर देते..।
मुझे तो मेरे देवर, ननद बिल्कुल अपने भाई बहन राजन और छाया जैसे लगते थे। दिन तो कामऔर पढाई में निकल जाता था.....रात को कभी कभार मैं अपने कमरे में पढने बैठ जाती थी क्योंकि मेरे पति काम से रात को देर से ही आते थे....। नीचे माँ और दीदी सोते थे तो वो लोग खाना परोस देते थे। खाना खाने के बाद वो माँ से बातें करते और उनके पैर तब तक दबाते,जब तक वो सो न जाती,यही उनकी दिनचर्या थी। मुझसे बस वो मेरी पढाई की बात करते और मैं उनके प्रश्नों का जवाब देती,बस इतनी ही बात होती थी....वो कभी आँख भर कर मुझे देखते ही नहीं थे।