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स्त्री.... - (भाग-11)

स्त्री.......(भाग-11)

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पायी। अपने पति से कही बातों पर मुझे अफसोस हो रहा था कि अगर वो मुझसे बात ही नहीं करना चाहते तो मैं क्यों मरी जाती हूँ। मैंने बड़े बेमन से घर के सब काम निपटाए। माँ ने पूछा भी एक दो बार की तबियत खराब है क्या? मेरी तरफ से कोई जवाब न सुन उन्होंने दोबारा टोका, तेरा ध्यान कहाँ है बहु? तबियत ठीक नहीं है तो जा आराम कर ले.....नहीं माँ बस थोड़ा सिर में दर्द है!! माँ तेल उठा लाई और मेरे सर पर तेल लगाने लगी.....मैंने मना भी किया पर वो नहीं मानी.....उस दिन मेरा मन माँ के गोद मे सर रख कर खूब रोने का कर रहा था.......न मैंने पति के जैसे बहुत सारी किताबें पढी थी और न ही उनके जितनी समझ......पर फिर भी मुझे इतना समझ आ रहा था कि प्यार के लिए शिक्षा उतनी भी जरूरी नहीं कि उसके लिए शर्तें रखी जाएँ.....मैंने अपनी माँ के किसी बात के लिए ऐसे बहस करते नहीं देखा था, जैसे पिछली रात को मैंने अपने पति से की थी। कुछ देर को लगता कि मैंने कुछ गलत नहीं कहा पर फिर दूसरे ही पल माँ का कहना कि कभी पति से बहस मत करना, याद आ जाता तो मन दुख से भर रहा था.....सुमन दीदी के आने के बाद खाना खा कर मैं अपने कमरे में चली गयी.....कुछ देर पढने में ध्यान लगाना चाहा पर मन कहीं नही लग रहा था। बेचैनी इतनी थी कि मन कहीं खुली जगह में जाने का कर रहा था। बाहर तो नहीं जा सकती थी तो खुली हवा में सांस लेने के लिए छत पर चली गयी...। जब से वापिस आयी थी, बस एक बार ही सुजाता दीदी से बात कर पायी थी वो भी सिर्फ 2-4 मिनट। उनके छत पर होने की उम्मीद कम ही थी ,पर फिर भी उनकी छत पर नजर चली ही गयी...। देखा तो सुजाता दीदी छत पर तख्त पर बैठी थी.....धोए कपड़ो की तह बनाती हुई शायद कुछ सोच रही थी, नमस्ते दीदी...कहाँ खोयी हो आप? मेरी आवाज सुन कर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गयी....नमस्ते जानकी, कैसी हो तुम? मैं ठीक हूँ, आप किन ख्यालों में खोयी थीं? "अरे मैं कहीं नहीं खोई थी, बस मायके की याद आ जाती है कभी कभी, अच्छा ही हुआ तुम आ गयी, जब से तुम मायके से वापिस आयी हो सास की बीमारी में ही व्यस्त रही, अब कैसी हैं माता जी"? वो अब ठीक हैं....2-3 दिन से ही ऊपर अपने कमरे में आयी हूँ!! मैंने चेहरे पर थोड़ी हँसी ला कर कहा.....ये तो अच्छी बात है कि वो ठीक हो गयी, पर तुम अपनी सास के पास सोती रही तो सुधीर बाबू तो तुम्हारे पास आने का बहाना खोजते रहते होंगे.......उनकी बात सुन रात की बात याद आ गयी, पर उसका असर आँखो में उतरे और दीदी पढे, इससे पहले ही मैंने पीठ उनकी और करके कहा, दीदी इतना समय कहाँ मिलता है। आप बताओ आप की नौकरी कैसे चल रही है और हमारे भैया कैसे हैं? सब ठीक चल रहा है जानकी और वो भी ठीक हैं। जानकी तुझे पता है एक बात? उनकी आवाज गंभीर थी, क्या बात दीदी? "जानकी शादी के कुछ महीने बहुत मजेदार बीतते हैं.....पर उसके बाद आदमी लोग रात को बिस्तर में आ कर रोज एक ही तरह से सब वही काम करने लगते हैं, जैसे उसने पढाई की तरह ये भी कहीं से सीखा हो या यूँ कहो कि बस उसे अपने पेट भरने की ही पड़ी रहती है, पेट भरते ही मुँह फेर कर सो जाओ.....आदमी क्यों नहीं समझते कि जैसे हम एक जैसा खाना नहीं खा सकते तो प्यार एक जैसे ही कैसे किया जा सकता है"!! शुरू शुरू में मैंने तुझे अपने निशान दिखाए थे न ?? कुछ समझ तो नहीं आ रहा था पर फिर भी मैं उन्हें सुनना चाहती थी इसलिए बीच में न टोक कर कहा "हाँ दीदी, आप ने दिखाए थे"। "जानकी मैं अपने पति के साथ प्यार में डूबी रहती थी, चाहे वो मेरे आसपास हो या न हो, पर कुछ कुछ बदल रहा है तो मैं सह नहीं पा रही हूँ"। उनकी उदासी की वजह भी कहीं न कहीं मेरी उदासी से मेल खाती लग रही थी......"दीदी आप को कुछ ठीक नही लग रहा तो आप अपनी बात भैया को समझा सकती है्, आप दोनों ही काफी पढे लिखे हैं, तो आप ज्यादा सोचिए मत और आज ही अपनी बात कह देना"। मेरा ऐसे कहते ही सुजाता दीदी की आँखों में चमक आ गयी, बोली तुम ठीक कहती हो, मैं बात करूँगी। तुम बहुत समझदार हो जानकी, तुम अपनी बात कभी नहीं कहती....मैं बातों को फिर उसी जगह नहीं ले जाना चाहती थी, इसलिए बात को बदल कर पूछा,दीदी आप मुझे इंग्लिश बोलना सीखा सकती हो? हाँ क्यों नहीं जानकी, मैं जरूर सीखाऊँगी और मुझे बहुत खुशी होगी.....बोलना सीखना चाहती हो न कल से कॉपी और पेन भी ले कर आना....ठीक है दीदी मै ले आँऊगी कह कर उनसे विदा लेने ही वाली थी कि मैं रूक गयी। दीदी मैं भी आपसे कुछ पूछ सकती हूँ ,किसी से कहोगी तो नहीं? नहीं बिल्कुल किसी को नहीं कहूँगी, अपने पति से भी नहीं कहूँगी, पूछ क्या पूछना है? दीदी मेरे पति को लगता है कि मैं बहुत छोटी और नासमझ हूँ, क्या आप को भी ऐसै लगता है? नहीं बिल्कुल नहीं, तुम बहुत समझदार हो और छोटी कहाँ हो? इतनी सुंदर युवती दिखती हो....पर सुधीर बाबू ऐसा क्यों कहते हैं? पता नहीं दीदी वो तो मुझसे बात ही नहीं करते!! मेरा मन करता है उनके पास जाने का उनते बहुत सारी बातें करने का पर वो तो मुँह फेर कर सो जाते हैं हमेशा.....मेरी बात खत्म होते ही जानकी दीदी मुस्करा दी और बोली, मैं लड़का होती न तो तुझे खूब प्यार करती और मस्ती करती, मुझे भी हँसी आ गयी उनकी बात सुन कर।
"जानकी तुम्हारे पति समझ रहे हैं कि तुम उम्र में छोटी हो, इसलिए वो तुम्हारे बड़े होने का इंतजार कर रहे होंगेे पर उनको पता नहीं है कि हम लड़कियों में जब शारीरिक बदलाव आने शुरू होते हैं तो हमारा मन लड़कों का हमें देखना और छूना का या चूमना अच्छा लगने लगता है। ऐसा ही लड़को के साथ भी तो होता है, हम सब उम्र के इस दौर से गुजरते हैं। उनकी बातें सुन मैंने कहा ठीक है दीदी फिर हम बड़े होने का इंतजार करते हैं। वो बोली हाँ जानकी, मैं जानती हूँ कि तुम में बहुत उत्सुकता है पति पत्नि के रिश्ते को ले कर और होनी भी चाहिए......तुम ऐसा करो हमारे सुधीर बाबू के आने से पहले अच्छे से नहा धो कर तैयार हो जाया करो और साड़ी को मेरी तरह पहना करो, जब अपने कमरे में आया करो तो साड़ी का पल्ला खुला छोड़ा करो, पीठ और कमर तो दिखे कम से कम तुम्हारी, तुम तो खुद को लपेटे रखती हो....अब ये सब बातें सास या अपने पति को मत बताना वो मुझे बेशर्म कहेंगे और हमारा मिलना ही बंद हो जाएगा, चलो अब नीचे जा कर काम करते हैं और कल से पढाई शुरू...कह कर वो तह लगे कपडों को ले कर चली गयी और मैने भी कहा कि मैं किसी को न कहूँगी.....कल आती हूँ कह मैं भी नीचे आ कर घर के कामों में लग गयी......नीचे तो आ गयी थी पर सुजाता दीदी की बातें दिमाग में चल रही थी... रात का खाना बना कर कुछ समय मिला तो दीदी की ही किताब देखने लगी....। मैं अपना ध्यान अब इंग्लिश पर ही लगाना चाहती थी। मुझे अपने पति को तीन महीने में सीख कर दिखाना था.....पर जो दीदी ने आज कहा क्या वैसे करना चाहिए या नहीं? ये भी एक अनोखी उलझन थी क्योंकि सोच तो यही रही थी कि तीन महीने बाद ही बात करूँगी पर सुजाता दीदी की सलाह मुझे उकसा रही थी कि ये भी करके देख ले जानकी....!!
रात का खाना सबको खिला कर रोज की तरह पति का इंतजार था...। सास ने कहा कि जानकी खाना ऊपर ही ले जा...वो गरम तो खाता नहीं, जब आएगा तो खा लेगा, नहीं तो दिनभर का थका हारा मेरे पैर दबाने बैठ जाता है, कितना ही मना करो हटता नहीं, सासू माँ की आवाज में बेटे के लिए प्यार और गर्व दोनों महसूस किए मैंने.....। सासू माँ की बात मान मैं खाना कमरे मैं ले कर आ गयी....। सुनील भैया के कमरे से रोशनी आ रही थी,उनके आने का इंतजार तो करना ही था तो मैंने भैया का दरवाजा खटखटा दिया।दरवाजा खुला है भाभी आ जाओ, मैं अ्दर चली गयी, भैया आप काम कर रहे हैं तो मैं जाती हूँ, वो एक मोटी सी किताब खोले बैठे थे.....हाँ भाभी सर ने कुछ काम कहा था,वही कर रहा था, कह कर उन्होंने किताब मेज पर रख दी....आप बैठो और बताओ क्या काम था? आप वैसे तो मेरे कमरे मैं कभी आती नहीं..!
सुनील भैया मुझे 10वीं कक्षा की इंग्लिश की किताब ला दो...मुझे पढनी है.....सिर्फ इंग्लिश क्यों मैं सब सब्जेक्ट की ला देता हूँ!! नही भैया, अभी सिर्फ इंग्लिश की ही लाना......ठीक है भाभी मैं कल ही ले आऊँगा । नीचे का दरवाजा खुलने की आवाज आई तो समझ गयी कि मेरे पति आ गए हैं। वो ऊपर आते तब तक मैंने सुजाता दीदी ने जैसे कहा वैसे ही अपनी साड़ी को ठीक करने लगी।
क्रमश:
स्वरचित