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स्त्री.... - (भाग-17)

स्त्री.....(भाग--17)

सुबह का उगता सूरज तो बहुत बार देखती रही थी....पर उस सुबह मुझे अपना शरीर बहुत हल्का लग रहा था।
रिश्ते के बोझ से कंधे झुक गए थे, तो झुक कर चलने लगी थी, मतलब नजरें झुकी रहती थी हमेशा जमीन की तरफ।
वो सूरज मेरे आत्मविश्वास को बढावा दे रहा था......ऐसा लग रहा था कि मेरा सही सफर अब शुरू हुआ है। मेरी हिम्मत लौट आयी थी। 16 साल की उम्र में शादी और 9-10 साल पुरानी शादी ने कुछ जल्दी ही बढा कर दिया था.....। अभी मुझे बहुत कुछ करना है अपने सपने पूरे करने के लिए.....सिर्फ शादी ही तो बेरंग है, अपने सपनो में तो रंग भरने का हक है मुझे और भरूँगी भी....बस इसी सोच ने मुझमें नयी जान फूँक दी..... उस दिन से डबल मेहनत करनी शुरु कर दी...जिसके लिए ज्यादा से ज्यादा अपने सैंपल्स दिखा कर ऑर्डर लेना जरूरी था....।
माँ ने अपने बेटे से एक दो बार पूछा कि टेस्ट करवाया या नहीं, पर वो अभी माँ बहुत काम है, जाता हूँ किसी दिन करवाने आप चिंता मत करो....... वो दिन नहीं आया और माँ ने कहना और पूछना दोनों ही छोड़ दिया....। माँ भी दिल बहलाने के लिए मेरे साथ काम पर आने लगी थी....वहाँ वो बैठी बैठी सब को काम करते देखती रहतीं और मैं भी निश्चिंत हो कर बाहर का काम कर आती।
हमारे घर में टी वी , लैंडलाइन फोन सब सुविधाएँ आ गयी थी..... सुमन दीदी के घर भी फोन था तो माँ उनसे फोन पर बात कर लेती थी। उस रात के बाद मेरे पति ने मुझसे बात करना बंद ही कर दिया.....और मैंने भी कोशिश नहीं की।
फिर एक रात घर आए और बोले," हमारे मालिक आस पास के शहरो में अपना काम फैलाना चाहते हैं, जिसकी शुरूआत अहमदाबाद से करने वाले हैं। वहाँ का काम कुछ महीनों के लिए मुझे देखना होगा, इसलिए मुझे कल ही निकलना है, मालिक ने मेरी एयर टिकट करा दी है। माँ 2-3 महीने की बात है, आप संभाल लेना और अपना ध्यान रखना। सुनील और सुमन को भी कह दिया है, मिलने आते रहेंगे कोई काम हो तो उनको कह देना कर देंगे"...कह कर वो अपने कमरे में चले गए। माँ कुछ बोलते बोलते चुप हो गयीं और मेरी तरफ देखने लगी.....।
"माँ 2-3 महीने ही तो हैं हम दोनो संभाल लेंगे", कह कर मैंने माँ को हिम्मत बँधायी।
हाँ वो सब ठीक है बहु, तू जा कर उसका बैग लगा दे....पहली बार हमसे इतनी दूर जा रहा है,पता नहीं कैसे रहेगा...!! माँ के कहने पर कमरे में गयी तो वो अपनी अल्मारी से कपड़े निकाल रहे थे, मैंने कपडो को सूटकेस में रखना शुरू कर दिया...सब सामान एक बैग और एक सूटकेस में आ पाया!! उन्होंने एक बार फिर सब याद कर लिया कि कुछ भूले तो नहीं....आपको कल सुबह कितने बजे निकलना है? मैंने पूछा तो बोले 7 बजे। आप से कभी बात करनी हो तो कैसे करेंगे? कोई फोन नं....? वहाँ पहुंच कर दे दूँगा नं. और हाँ मैं 2-3 महीने के लिए नहीं हमेशा के लिए जा रहा हूँ.....किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है। मैं अपने आप सही वक्त पर बता दूँगा...घर खर्च के लिए पैसे या तो मैं माँ के एकाउंट में डाल दूँगा नहीं तो मालिक किसी को दे कर भेज देंगे। आप वहाँ कैसे रहेंगे? मैं किराए पर रह लूँगा ताकि माँ और तुम यहीं रह पाओ...कह कर वो सोने के लिए लेट गए....लाइट बंद कर दो...मुझे सुबह जाने से पहले कुछ काम है तो जल्दी उठना है कह कर 4 बजे का आलर्म लगा दिया.....कब सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी पता नहीं चला। अलार्म की आवाज से मेरी नींद खुल गयी.....वो भी तुरंत उठ गए.... जल्दी से नहा कर आयी तो देखा माँ रसोई में बेसन के लड्डू बना रही थी.....मठरी बन चुकी थी। मैं और माऎ जल्दी से लड्डू बाँधने लगे। मेरे पति हम दोनों को काम में लगा देख बोले," माँ ये सब की कोई जरूरत नहीं थी, सामान पहले ही ज्यादा हो गया है.....बेटा ये दो चीजें तो ले जा और बता नाश्ते में क्या खाएगा?? माँ खाना प्लेन में मिलेगा अभी मुझे बस चाय और मठरी दे दो खा कर एक दो काम निपटा कर आता हूँ। मैंने जल्दी से सबके लिए चाय बनायी...वो चाय पीकर चले गए और 6:30 बजे आए। लडडू और मठरी के लिए जगह बना कर बैग में रख दिए थे। माँ अपने बेटे को बहुत सारी बातें बोल रहीं थी और क्या नहीं खाना और क्या खाते रहना जैसी कई बातें वो कुछ सुन रहे थे कुछ सुनने का नाटक कर रहे थे। मालिक ने अपने ड्राइवर के हाथ कुछ पेपर्स भेजे थे साथ ले जाने के लिए और मेरे पति को एयरपोर्ट छोड़ कर भी आने के आदेश था....!! माँ के पैर छू कर आशीर्वाद ले वो लिफ्ट की और चल दिए.....माँ नीचे तक जाना चाहती थी, पर उन्होंने मना कर दिया....माँ उनके जाने के बाद भी बहुत देर तक वहीं लिफ्ट के सामने खड़ी रहीं। मैं उनके जाने से न तो खुश थी न ही उदास.....कुछ भी भाव मन में नहीं था, बस अंदर आ कर रोज की तरह काम में लग गयी। कामवाली बाई के आने तक हम रसोई का काम निपटा ही लेते थे। नाश्ता करके लंच भी पैक करके माँ को ले कर अपने काम पर चली गयी....। मेरा काम बढ रहा था तो मेरा काम करने का समय और लोग भी बढ़ रहे थे....। माँ इस बात को समझती थीं तो वो मेरा पूरा साथ दे रहीं थी......।शाम को घर पहुँच कर हम बैठे आराम ही कर रहे थे कि फोन की घंटी बज गयी, माँ तो सुबह से ही इंतजार कर रही थी, तो तुरंत उन्होंने फोन उठाया, हाँ उनके बेटे का ही फोन था, माँ ने बहुत देर तक बात की, फिर माँ ने जानकी से बात कर ले कह कर फोन मुझे दे दिया। मैंने हैलो कहा तो वो बोले नं. लिख लो माँ का जब मन करे वो मुझसे बात कर लेंगी......मैं सुबह से शाम यहीं रहूंगा, कह उन्होंने फोन नं लिखवा दिया। हमारे पास बात करने को कुछ नहीं था, माँ उठ कर दूसरे कमरे में चली गयी थी,जिससे मैं आराम से बात कर सकूँ। उन्होंने फोन रख दिया और मैं फोन को कान से लगा कर कुछ देर बैठी रही। हम सास बहु की जिंदगी एर ढर्रे पर चल पढी थी,बिल्कुल किसी मशीन की तरह......बस कभी कभार सुनील भैया आ जाते या सुमन दीदी पति और बच्चों के साथ आती तो घर में रौनक आ जाती......मेरे पति के शुरू शुरू में तो रोज ही फोन आते थे, माँ से बात करके फोन रख देते ये कह कर की जानकी जब खाली होगी कर लेगी....
फिर 2-3 दिन छोड़ कर आने लगे...कभी माँ परेशान होती तो खुद ही कर लेती। अपने काम की बातें, तबियत का हालचाल सब एक दूसरे से पूछ लेते और मुझे भी पता चलता रहता......2 महीने ऐसे ही बीत गए.....मैं काम में रहती तो माँ कभी मेरे साथ आ जाती या कभी घर पर ही आराम करती.....मेरे घर पहुँचने तक माँ रात की तैयारी बहुत मना करने पर भी करके रखती......पैसे मेरे पति ने फोन करके अपने बॉस को हमारे पास भिजवाने के लिए कह दिए थे.....उनकी सैलरी का कुछ हिस्सा हमें मिल जाता बाकी उनके खर्चे के लिए वो वहीं ले लेते।
माँ उनसे वापिस आने का पूछने लगी थी, पर बोलते थे कि तीन महीने तो आपको बताया ही था न, आपको कोई परेशानी हो रही है तो काम छोड़ कर आ जाता हूँ?? माँ कहती मुझे कोई परेशानी नहीं है बेटा तुम अपना काम खत्म करके ही आना। हाँ माँ हम सबके लिए ही तो मेहनत कर रहा हूँ, मैं चाहता हूँ कि आपको सब सुख दूँ, जितनी कमी आपने देखी है, हमने देखी है वो सब दूर कर दूँ। माँ बहुत गर्व और गदगद हो कर मुझे बताताी, और कहती देखा जानकी मेरा बेटा हीरा है!! अपने बेटे की मेहनत पर हर माँ घमंड करती है और हर वक्त अपने बच्चों को आशीर्वाद देती रहती है। मैं माँ की खुशी देख कर खुश हो जाती और उनकी हर बात में हाँ में हाँ मिलाती। वक्त कट रहा था हमारा ,मुझे तो पता था कि मेरे पति वापिस नहीं आने वाले और मुझे उनसे कोई उम्मीद भी नहीं थी ये भी एक कारण था खूब मेहनत करने का.....माँ से नित नए बहाने बनाते मेरे पति ने 6महीने निकाल दिए....। बाकी सब ठीक था अब माँ अपने बेटे को फोन नहीं करती थी, बस उसका फोन आता तो बात कर लेती। माँ ने उनसे पूछना वापिस आने का पूछना ही छोड़ दिया। माँ मुझसे क्या अपने तीनों बच्चों से भी बात कम ही करने लगी थी। हम सब कहते कि माँ आपको अहमदाबाद जाना है तो हम ले चलते हैं, पर वो कहीं जाना नहीं चाहती थी। बच्चों का साथ भी माँ को खुश नहीं कर पा रहा था....एक माँ का गरूर टूट रहा था, विश्वास में दरार आती जा रही थी। माँ ने खाना पीना बहुत कम कर दिया...। माँ अपने पुराने घर जाना चाहती थी.....मैंने कहा ठीक है माँ चलते हैं, पर अपने बेटे से तो पूछ लो। फिर किराएदार को भी खाली करने को कहना पड़ेगा। माँ ने उन्हें फोन करके अपनी इच्छा बताई तो वो माँ से गुस्सा हो गए,"मैं हम सबको उस माहौल से निकाल कर इतनी अच्छी जगह ले आया ,अब आपको फिर वहाँ जाना है"? माँ अपने ही पैदा किए बेटे के सामने हार गयी और चुपचाप फोन रख दिया। माँ के बिस्तर पर पड़ने की वजह वो आखिरी फोन काफी था।
क्रमश:
स्वरचित
सीमा बी.