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स्त्री.... - (भाग-30)

स्त्री.......(भाग-30)

विपिन जी से बात करके लगा कि मैं फिर से बच गयी, ये तीसरी बार है जब मैं कुछ गलत करने से बच गयी....मैं क्यों हर बार एक ही गलती करने लगती हूँ! मैं झूठ नहीं कहूँगी पर विपिन जी जिस तरीके से मुझसे बात करते थे वो बहुत ही अच्छा था और मुझे कुछ खास होने का एहसास दिलाते रहना मुझे भा गया....पहले गोपालन सर उसके बाद शेखर मित्रा और अब विपिन अग्रवाल ! तीनों ही दिखने में अपनी अपनी जगह हैंडसम और आकर्षक लगे भी तो क्या मैं अब तक सिर्फ बाहरी खूबसूरती को ही सबकुछ मान लेती हूँ! यही बात है तभी तो मुझसे पहले तारा विपिन जी का लालच समझ गयी। तीनों ने ही एक ही काम किया मेरी सुंदरता की तारीफ और मैं उन पर मोहित हो गयी.....कुछ कर जानकी अपनी समझ का, लोगो को समझ अंदरूनी खूबसूरती को पहचानना कब सीखेगी? नहीं सीखेगी तो हमेशा छली जाती रहेगी।
मेरी अतंरात्मा उस दिन मुझे धिक्कार रही थी.....! मैं इन सालो में इतना तो जान गयी हूँ कि आदमी की गलती को माफी सहजता से मिल सकती है पर औरत की गलती पर उसको सजा मिलती है। जानकी को जानकी की तरह ही क्यों देखा जाए! मैं एक इंसान हूँ मेरी अपनी जरूरत और शारीरिक इच्छा मुझे आकर्षित होने को मजबूर कर देती हैं। मैं अपनी गलती की सफाई दे कर अपनी शर्मिंदगी दूर करने की कोशिश तो नहीं कर रही हूँ । मैं बार बार कहती और सोचती हूँ कि पुरूष की इच्छा जायज और औरत की भूख को गंदा क्यों समझा जाता है.....मैं तो उस दौर की हूँ, जब सेक्स शब्द भी जबान पर नहीं लाते थे न आदमी न औरत। बस ये तो शादी के बाद ऐसे ही होता है बस जानते थे, पर अब तो हम माडर्न जमाने में आ गए हैं, तो क्या आज औरते खुल कर कह पाती हैं अपनी बात??? मैं गाँवो की नहीं की शहरो की ही बात करूँगी, आज भी औरत अपने पति को खुल कर मना नहीं कर पाती, या ये नहीं कह पाती कि मेरी इच्छा क्या है! खैर, इस तरीके की बाते मुझे कई बार सोने नहीं देती और दिलोदिमाग में बहुत शोर करती हैं। वो रात जागते हुए ही बीत गयी। जैसे जैसे सुबह होती जा रही थी। हमेशा की तरह उत्साह और पॉजीटिव सोच अपनी जगह बनाती जा रहा थी। जब से तारा मेरे पास आयी है कोई घर के काम की चिंता तो होती नहीं....तो बस तैयार हो कर नीचे काम देखने चली गयी.....रात के दिल और दिमाग की लड़ाई ने मुझे और मजबूत होने के लिए समझाया और मुझे भी यही सही लगा। मैंने सुनील भैया को फोन करके कहा, "भैया मुझे एक सैंकिड हैंड कार ले दो"।"भाभी नयी ले लो"....!नहीं भैया चलानी सीखनी है तो पहले पुरानी बाद मेॆ नयी लेंगे।" ठीक है भाभी मैं पूछता हूँ, कामिनी के पापा की कार भी है एक जो कोई नहीं चला रहा अगर उन्हें बेचनी हो तो पूछ कर देखता हूँ, नहीं तो किसी और से देख लेंगे"।"ठीक है भैया, पर मैं सोच रही हूँ कि माँ पिताजी के आने से पहले आ जाए तो बढिया रहेगा, राजन उनको कार में घूमा लाएगा"! "भाभी मैं देखता हूँ कोई मिलती है तो ठीक वरना मैं कार भेज दूँगा, जब तक सब यहाँ रहेंगे, उस में घूम लेंगे"! "ठीक है भैया", कह कर फोन रखा ही था कि बंसल सर का कॉल आ गया, उन्होंने अपने बेटे से बात की थी तो उनकी आज रात की ड्यूटी है तो आज ही मिल लेगा। अगर तुम बिजी नहीं हो तो मैं सोमेश को तुम्हारे पास भेज देता हूँ, कहीं दोनों घूम आना और बात भी कर लेना"....."जी ठीक है सर, कितना टाइम लगेगा उनको? मैं तब तक कुछ काम निपटा लेती हूँ"! अभी 10:30 बजे हैं, वो 1 बजे तुम्हारी वर्कशॉप पहुँच जाएगा, ऐड्रैस उसको बता दिया है....।
एक बार तो सोचा था कि मना कर देती हूँ क्योंकि कल की बात से मन ठीक नहीं था और आराम करने का भी मन कर रहा था, पर दूसरे पल सोचा कि बंसल सर कई बार "आउट ऑफ द वे" जा कर भी मेरी मदद कर देते हैं, उनकी बात को यूँ टालना सही नहीं लगा.....फिर अभी तो
विपिन जी वाली घटना घटी है तो दिमाग सावधान भी रहेगा और खुला भी....! 12:30 तक अपना काम निपटाया फिर तैयार होने चली गयी। तारा को बता दिया था कि मेहमान आ रहे हैं,अगर वो रूकेंगे तो चाय नाश्ता देख लेना। उस दिन मैंने साड़ी की बजाय लांग स्कर्ट और टॉप पहना और पैरो में कोल्हापुरी चप्पल। बालों को खुला छोड़ दिया, आँखो में काजल.....सोमेश जी कैसे भी हें पर मैं अपना इंप्रेशन अच्छा डालना चाहती थी, क्योंकि जानती थी कि बंसल सर ने न जाने कितनी तारीफ कर दी होगी तो परिणाम चाहे जो भी हो पर मुझे बुरी तो न कहें। उस दिन जितने मन से मैं तैयार हो रही थी, याद ही नहीं आखिरी बार कब तैयार हुई थी....तारा का सारा ध्यान मुझ पर था आँखो में सवाल भी था, पर वो शायद संकोचवश पूछ नहीं रही थी। मैंने भी सोचा कि एक बार मिल लूँ तभी बताऊँगी.....!! सरकारी अस्पतालों में तो डॉ. टाइम पर आते नहीं किसी से मिलने कहाँ टाइम पर आते होंगे सोच कर तैयीर हो कर बैठ गयी...पर मैं गलत थी। 1:15 बजे आरती मुझे बुलाने आयी कि आपसे मिलने कोई आया है तो मैं नीचे चली गयी। नीचे गयी तो वो बड़े ध्यान से काम देख रहे थे। मेरी तरफ पीठ थी तो मैंने पीछे से हैलो सोमेश जी बोला तो वो घूम गए......उनको सामने से देखा तो देखती ही रह गयी...सांवला रंग भी किसी पर इतना जंच सकता है सोचा न था...। "हैलो जानकी जी" मुस्कुरा कर बोल दिए। मैं अभी सोच ही रही थी कि वो बोले, "आप अपना घर नहीं दिखाएँगी"?
"जी जरूर आप आइए", कह कर मैं आगे चल दी, और वो मेरे पीछे आ ऊपर आ गए। तारा झट से ट्रे में पानी ले आयी। वो पानी पीते पीते लिविंग रूम की हर चीज को बड़े ध्यान से देख रहे थे, फिर वो खाली गिलास ले कर किचन में चले गए।मैंने कहा कि आप यहीं रख दीजिए , पर बोले मैं किचन देखने जा रहा हूँ। बारी बारी से उन्होंने सब देखा.....मैंने किसी आदमी को यूँ औरतों की तरह कभी ऐसे घर देखते हुए नहीं देखा था। कमरे देख कर बाहर आ गए.....तो मैंने कोने में एक मंदिर बना रखा था, जो शायद स्टोर की जगह रही होगी.....मैंने उन्हें मंदिर भी दिखाया। सब कुछ देखने के बाद वो वापिस लिविंग रूम में आ कर बैठ गए। मुझसे मेरे परिवार की बातें करने लगे और ये भी कहा कि आपने घर को बहुत सुंदर डेकोरेट किया है। तारा तब तक चाय ले आयी.....आपको कैसे पता कि मेरा मन चाय पीने का है, तारा से उन्होंने बहुत प्यार से पूछा। साहब मुझे लगा कि आप चाय पीते होंगे, इसलिए अपने आप बना लायी।" जानकी जी ये तो आपकी राइट हैंड लगती हैं, जो बिना आर्डर दिए ही सब समझती हैं"। "सोमेश जी आपका Observatin बिल्कुल ठीक है",जवाब देते हुए मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी। चाय पीने के बाद उन्होंने पूछा , "जानकी जी बताइए कहाँ जाना पसंद करेंगी"? सोमेश जी जहाँ आप को जाना पसंद हो ! मेरे जवाब सुन कर वो बोले कि अगर सच में आप यही चाहती हैं तो हम यहीं बातें करते हैं। खाना तो आप खिला ही देंगी। उनकी बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा.....जी जरूर, ये तो अच्छा रहेगा, आप बताइए क्या खाएँगें, वही बन जाएगा? आपने क्या बनाया है आज? हमने तो आज लौकी बनायी है, आप को क्या पसंद है, वो झट से बना देती हूँ। तारा ने जवाब दिया। मुझे लौकी भी पसंद है, और कुछ मत बनाइए, मैं वही खा लूँगा। तारा सोच में पड़ गयी, उसने मुझे किचन में आने का इशारा किया जो मैंने तो देखा ही हमारे मेहमान ने भी देखा और मुस्कुरा दिए.....जानकी जी जाइए आपकी राइट हैंड बुला रही है, जी मैं अभी आती हूँ, कह कर मैं तारा के पास रसोई में चली गयी....! दीदी क्या बनाऊँ? आप बताओ, मेहमान को लौकी कौन खिलाता है...? ठीक है, मैं सोचती हूँ, फ्रिज में क्या क्या रखा है? दीदी कोई सब्जी नहीं है बनाने को, आज सोच रही थी शाम को लेकर आऊँगी....। कोई बात नहीं तारा तुम आलू उबाल लो, दही हमारे पास है, हम आलू की सब्जी, पूरी, लौकी और रायता बना लेते हैं, साथ में चटनी, आचार और पापड़ बस मीठे में पूछते हैं क्या खाते हैं! मैं बता कर बाहर आ गयी..."सोमेश जी खाना अभी खाएँगे या थोड़ी देर में? अभी तो भूख नहीं है, आप का जब टाइम हो तब खा लेंगे, तब तक बैठिए हम सब बातें करते हैं"। "जी ठीक है, पर बस ये बता दीजिए कि मीठे में क्या खाएँगे हलवा या खीर"? मीठा खाने बाहर चलेंगे ! ये भी ठीक रहेगा...तारा अपना काम कर रही थी और हम बातें।
कुछ अपने बारे में बताया कुछ मेरी बाते की......हमारी बातों में कहीं न मेरे पति का जिक्र था न ही उनकी बीवी के बारे में कुछ पूछा। डॉ. हो कर घमंड छू भी नहीं गया था...मुझे बात करते हुए बीच में उठना पड़ा क्योंकि अनिता बुलाने आयी थी, कुछ दिखाने के लिए....मैं 5-10 मिनट में आती हूँ कह कर नीचे आ गयी।
कुछ देर बाद ऊपर पहुँची तो तारा के साथ सोमेश जी किचन में खड़े बातें कर रहे थे, तारा बातें करते करते पूरियाँ भी तल रही थी। मैंने रायता बनाया और टेबल लगायी तब तक पूरी, आलू की सब्जी, लौकी और पापड़ भी आ गए थे।सोमेश जी भी सामान लाने में मदद कर रहे थे......मैंने किसी आदमी को ऐसे काम करते हुए नहीं देखा था तो मेरे लिए अजीब था पर बहुत अच्छा भी लगा। सोमेश जी आप बैठिए, मैं और तारा कर लेते......नहीं जानकी जी मुझे करने दीजिए, मैं घर में सबसे छोटा हूँ तो माँ के साथ काम कराने की आदत बचपन से थी फिर पढने गया तो वहाँ अकेला रहता था तो मुझे अपने काम करने की आदत रही है...आप परेशान मत हो, मुझे अच्छा लग रहा है। फिर मैंने भी ज्यादा फार्मल होना ठीक नहीं समझा.....खाना लग गया था, अरे तारा दीदी आप की प्लेट कहाँ है? "साहब मैं बाद में खाऊँगी आप लोग शुरू कीजिए"....... आप भी बैठ जाओ, मिल कर खाने का मजा ही कुछ और है.......तारा बैठ जाओ, हम दोनो साथ खाते है न, तो आज भी खाओ। तारा बैठ गयी और उसकी आँखो में जो खुशी थी, वो सोमेश जी के दिल जीतने की थी.....खाना खा कर हम दोनो आइसक्रीम खाने चले गए.....बहुत खूबसूरत दिन था वो मेरे लिए।
क्रमश:
मौलिक एवं स्वरचित
सीमा बी.