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अंत... एक नई शुरुआत - 14

आज सनी पूरे सात साल का हो गया।वो पिछली दो बार की तरह इस बार भी मुझसे अपने जन्मदिन पर पार्टी करने के लिए जिद्द कर रहा था मगर मैंने इस बार भी उसे जैसे-तैसे बहला दिया।मैं उसे आज सुबह स्कूल जाने से पहले मंदिर लेकर गई थी और फिर स्कूल में मैंने उसकी क्लास में और बाकी सभी क्लासेस में बच्चों और टीचर्स को चौकलेट्स बंटवा दीं।इसके अलावा आश्रम में कुछ पैसे भी मैंने ऑनलाइन ट्रांसफर कर दिये मगर इससे ज्यादा और कुछ करने की हिम्मत मैं चाहकर इस बार भी नहीं जुटा पायी।न जाने क्यों समीर के साथ उसके जन्मदिन वाले दिन हुए हादसे को मैं अब हर एक के जन्मदिन से जोड़कर देखने लगी हूँ।एक अजीब सा डर सा बैठ गया है मेरे दिल में उस दिन के बाद से जबकि इतने साल बीत गए उस दुर्घटना को पर मैं उसे लेशमात्र भी नहीं भुला पायी हूँ।मुझे आज भी यही लगता है कि यदि मैंने उस दिन वो सरप्राइज़ पार्टी न रखी होती तो शायद वो हादसा न होता या शायद उस दिन न होता।उस दिन के बाद से मैंने किसी की भी जन्मदिन की पार्टी में जाना बंद कर दिया!

और न जाने कितने सालों तक मैं उसे बहला पाऊँगी!क्या वो कभी मेरे इस डर को समझ पायेगा और क्या मैं इस डर से कभी उबर पाऊँगी??ऐसे अनगिनत सवाल हर साल मेरे मन में उठते हैं मगर मैं इनका सटीक जवाब देने में कभी भी कामयाब नहीं हो पाती हूँ।आज सनी की दादी नें उसे उपहार में अपने हाथों से एक स्वेटर बुनकर दिया जबकि उन्हें अब इस उम्र में बुनाई करने में काफी दिक्कत होती है पर फिर भी उनका मन था तो मैंने भी ज्यादा कुछ नहीं कहा।अब वो सचमुच सही मायने में सनी की दादी बन चुकी हैं।वो उसे बहुत प्यार करती हैं।किसी नें बिल्कुल सच कहा है कि मूलधन से ज्यादा प्यारा तो ब्याज होता है।सच में इतना स्नेह और ममता तो मैंने उनकी ओर से कभी समीर के प्रति भी नहीं देखी थी जितनी कि मैं सनी के प्रति देख रही हूँ और उनके सनी के प्रति समर्पण और दुलार का सुखद अनुभव कर पा रही हूँ।

आज पूजा से भी फोन पर बात हुई।उसकी बेटी भी पिछले महीने दो साल की हो गई लेकिन पूजा के ससुर जी की तबियत खराब होने के कारण वो लोग नन्ही अनाया का पहला जन्मदिन नहीं मना पाये थे तो अब वो लोग अपने परिवार की परंपरा के अनुसार उसका जन्मदिन तीसरे वर्ष में बेहद शानदार ढंग से मनाने की सोच रहे हैं इसलिए इस बार भी बस घर के अंदर साधारण रूप से उन लोगों नें अनाया का दूसरा जन्मदिन मनाया।मगर अगले साल वो मुझे हर कीमत पर अपनी बेटी अनाया के जन्मदिन की पार्टी में शामिल करके ही रहेगी और वैसे भी मैं उसकी बच्ची के जन्म के समय ऑस्ट्रेलिया न जाने पर उसका गुस्सा और नाराजगी आज तक झेल रही हूँ तो शायद अब इस तरह की कोई और गलती मैं दोबारा न दोहरा पाऊँ मगर मैं सच में लाख चाहने पर भी किसी के जन्मदिन में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती हूँ पर ये बात मैं पूजा को कैसे समझाऊँगी!!खैर अभी तो पूरा एक साल बाकी है तो जब होगा तब ही कुछ सोचूँगी।

"माँ!आप अभी तक जाग रही हैं।सो जाओ माँ वरना फिर सुबह आपके सिर में दर्द हो जायेगा।",सनी ने मुझे जागते हुए देखकर मेरे लिए चिंता जताते हुए बड़ी ही भोलीभाली अदा से कहा जिसपर मैंनें मुस्कुराकर उसे अपने गले से लगा लिया और अब मैं उसे थपकियाँ देकर सुला रही थी।सनी सच में मेरी बहुत परवाह करता है।वो खुद इतना छोटा सा है पर मेरी हर एक छोटी से छोटी ज़रूरत का बड़ा ध्यान रखता है।अब ये बचपन की मासूमियत और निष्छलता है या फिर मेरी बदलती हुई किस्मत के कारण मेरी ज़िंदगी का पहला सच्चा रिश्ता,ये तो बस वो ऊपर वाला ही जानता है कि जिसनें मेरे हाथों में ये किस्मत की लकीरें खींची हैं!!

अरे मैं अपने अतीत के पन्ने पलटते हुए अपनी ज़िंदगी के सबसे सकारात्मक इंसान को तो याद करना भूल ही गई जिसने मेरे परेशान और उदास हालातों में कई बार अपने निजी अनुभवों और किस्सों से हंसी के असंख्य फूल खिलाये थे और वो थी मेरे स्कूल में नयी-नयी आयी हुई एक पैंतीस वर्षीय अध्यापिका मिस रोमा!उसके बारे में मैं जितना कहूँ कम ही होगा।शक्ल और सूरत से वो हमारे पूरे स्कूल की ब्यूटीक्वीन थी।इतनी खूबसूरत कि अध्यापकों के साथ ही हमारे स्कूल की अध्यापिकाएं भी उस पर फ़िदा थीं।फ़ैशन सेंस भी उसका कमाल का था।जब से वो हमारे स्कूल में आयी थी हर एक आयु वर्ग की अध्यापिका फैशन के मामले में उसे ही फॉलो करती थी।रोमा फ़ैशनेबल ज़रूर थी पर वल्गर नहीं और उसकी यही बात मुझे भी अच्छी लगी और उसका ड्रेसिंग-सेंस तो सचमुच बहुत अच्छा था मगर मेरा तो इस ट्रेंड और फ़ैशन से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था लेकिन वो फ़ैशन की दीवानी अपने दिल में सादगी के लिए इतना सम्मान रखती होगी इसकी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था और मुझे भी इस बात का पता उसी दिन चला जब उसनें खुद मुझसे ये कहा कि "सुमन मैम इस स्कूल में बेशक सब मुझे फॉलो करते हैं लेकिन मैं सिर्फ आपको ही अपना आदर्श मानती हूँ!सच मैम आपके जैसी सादगी मैंने इस पूरे शहर में और इस ज़माने में और कहीं नहीं देखी।मैम मैं सचमुच कायल हूँ आपकी इस सादगी की!!",रोमा की ये बातें उसके और मेरे बीच की पहली बातचीत ज़रूर थी मगर उसके बाद हम दोनों एकदूसरे के लिए खुली किताब बन गए थे।मैंने आज तक किसी से इतनी खुलकर बात नहीं की जितनी कि रोमा से और वो भी मुझसे अपनी हर एक बात साझा किया करती थी।हम दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत व्यक्तित्व रखते थे जहाँ मेरे जीवन में एक समीर के अलावा मैंने और किसी पुरूष की परछाईं तक नहीं पड़ने दी वहीं रोमा की ज़िंदगी में पुरूष मित्रों की कोई गिनती ही नहीं थी पर इसके बावजूद हमारी दोस्ती बहुत जल्दी ही सबके बीच एक मिसाल बन गई।रोमा एक बेहद स्वतंत्र विचारों की महिला थी।वो आधुनिकता के इस दौर का पुरजोर समर्थन करती हुई शादी या विवाह जैसी व्यवस्था में भी यकीन नहीं रखती थी और शायद यही कारण था कि वो उम्र के इस दौर में भी मिस रोमा रहकर ही खुश थी।रोमा दूसरों की नज़र में बेशक सिर्फ अपनी ही सुनने वाली तथा मौजमस्ती में विश्वास रखने वाली मात्र एक अंग्रेज़ी-टीचर ही थी मगर मुझे पता है कि वो इसके साथ ही साथ दिल की और नीयत की बहुत ही साफ,एक बहुत ही नेक इंसान थी।

क्रमशः...

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐