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पुस्तकें - 2 - बस --इतना ही करना

प्रतापनारायण सिंह की रचना पढ़ना मुझे हर बार एक अनौपचारिक छुअन से ओत -प्रोत होना लगा है | पल-पल की छुअन से मर्मर करते शब्द सरलता, सहजता की कोमल अनुभूति से आप्लावित करते हैं | जीवन से जुड़ी कविता मन के आँगन में कभी वेणु की धुन बनकर सुनाई देती है तो कभी शाश्वत संसार के सत्य में डूबी हुई स्याही जीवन के ओर-छोर को पकड़ गहन लोरी गुनगुनाती महसूस होती है | 
  कवि प्रतापनारायण सिंह का बेशक यह प्रथम काव्य-संग्रह है किन्तु प्रकाशन होना और कलम की निरंतरता का गांभीर्य अहसास मन के कपाट खोल कह जाता है कि यह किसी नौसीखिए कलमकार के शब्द नहीं हैं, ये वे शब्द हैं जिनके बीज मस्तिष्क के आँगन में बरसों पूर्व बोए जा चुके हैं | होता है न कभी फ़सल लहलहाने में समय लेती है, पुष्प भी-कभी बहुत देर में अपनी सुगन्धि से वातावरण को महकाते हैं, बस--इतनी सी ही बात है !

'ई-कविता' के मंच पर मैंने उनकी बहुत सी संवेदनशील रचनाओं का रसास्वादन किया है जिस मंच से वर्षों पूर्व मेरा उनसे परिचय हुआ था | कवि की संवेदना उन्हें प्रखर कवियों की पंक्ति में ला खड़ा करती है |

इस धरती पर जन्मने वाला प्रत्येक व्यक्ति स्वप्नों को सींचता है | यह दीगर बात है वे कभी फलित होते हैं, कभी नहीं !

हर साँझ की आँखों में

उजाले का स्वप्न पलता है |

'बस--इतना ही करना' में छंद युक्त,अछांदस तथा नवगीत रचनाओं का सुन्दर संसार प्रदर्शित होता है | कवि ने अपनी मँजी हुई कलम से बहुत सुंदर, कमनीय संवेदना को अकोरा है |

कवि प्रतापनारायण में एक आध्यात्मिक लय का समावेश है जिसे वे बड़े सहज रूप में दुनियावी फ़ीते से नापते हैं | अपने सामने का सच ही प्रताप को सही लगता है, उनका मन भटकने के स्थान पर प्राप्य में सर्वगुणों को तलाशता व जो सामने है उसे स्वीकार कर जीवन को धरातल पर जीता है |

सत्य,शिव व सुन्दर को उन्होंने प्रश्नों के माध्यम से उकेरा है ---

कौन सा सच ढूँढ़ते हो ?

प्रताप की पंक्तियाँ जीवन के शाश्वत सत्य की अनुभूति हैं ---

गति का निर्धारण सदैव मति करती है ----

इन कविताओं का रूप चाहे छंदबद्ध हों, अछांदस अथवा गीत या नवगीत --सबमें मन के सुदृढ़ विश्वास की कोंपलें फूटती दिखाई देती हैं |

प्रजवलित कर एक दीपक तुम चलो तो ---

पत्र ही बस एक सिर पर धर चलो तो ---

सकारात्मकता का अजस्त्र स्त्रोत हैं प्रताप की रचनाएं ---

ईश की तुम श्रेष्ठतम कृति,

हीनता क्यों ? उद्विग्नता क्यों ?

उनके शब्द मुझे टहनी से झरते कोमल पुष्प से प्रतीत होते हैं जब अनायास ही उनकी कलम से शब्दों के माध्यम से पुत्र के प्रति एक कोमल संवेदना झरती है ----

वह हँसी से अधिक होता है मुस्कान

उल्लास से अधिक होता है सुख ----

प्रेयसी के विरह की संवेदना में कवि डूब नहीं जाता, उसे राष्ट्र ,अपना शहर बनारस, हर रिश्ता उतना ही महत्वपूर्ण महसूस होता है जितना जीवन ! प्रेयसी के रूप की मुग्धावस्थाहो, उसके घने कुन्तलों की सुगंध में डूबने की आकांक्षा किन्तु 'प्रयाण गान' देश के प्रति उनका सम्मान, लगाव और हृदय का रिश्ता प्रस्तुत करती है | छांदस की अंतिम रचना ;रौद्र रूप' है जिसमें एक पूरी कथा ही समाहित कर दी गई है | यह लंबी कविता एक सचित्र पौराणिक कथा का मोहक रूप प्रस्तुत करती है |

प्रशस्त शस्त शैल पर विशाल वृक्ष के तले

सुवर्ण व्याघ्र चरम पर अखंड ज्योति सा जले

अनादि आदि देव थे समाधि में रमे हुए

सती वियोग का अथाह डाह प्राण में लिए

एवं

अमर कथा अजर कथा ,कथा अजेय पात्र की,

प्रकोप, डाह, कामना, महा परोपकार की |

कथा विछोह, रोष अंबरीश के प्रताप की

हिताय सृष्टि, कामदेव के अपूर्व त्याग की |

इस पूरी चित्रात्मक रचना को पाठक मन के साथ जब तनिक ज़ोर से उच्चारण कर पठन करता है तब आनंदित हो उठना बहुत स्वाभाविक है |

नवगीत में वे चुप्पी तोड़ने की ललकार देते हैं तो कुछ और भी सोचते हैं --

सोचता जब तक

उतारूँ प्रणव-गाथा पुस्तिका पर

पृष्ठ सारे गल चुके थे ----

कवि प्रताप नारायण के मन में स्त्री के प्रति सम्मान और स्नेह के साथ पीड़ा भी है | उनकी 'सीता, एक नारी'(खंड-काव्य) में हम इस संवेदना महसूस व रसास्वादन कर चुके हैं | हर्ष का विषय है 'सीता, एक नारी'को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से 'जयशंकर प्रसाद 'सम्मान की उद्घोषणा हो चुकी है | इसके लिए हमें उनकी लेखनी पर गर्व है और अपेक्षा एवं शुभकामनाएं हैं कि साहित्य -जगत में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में उभरे | माँ शारदे का शुभाशीष सदा उन पर अपना आशीष बरसाए तथा साहित्य में उनको एक सुंदर स्थान प्राप्त हो जिसके वे अधिकारी हैं |

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है माँ शारदे की कृपा व आशीष से उनकी लेखनीअबाध गति से चलती रहेगी |

 

अनेकानेक शुभकामनाओं सहित

डॉ प्रणव भारती

अहमदाबाद