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Rewind ज़िंदगी - Chapter-9.2: अतीत का साया

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“बस इतनी सी बात थी।” कीर्ति ने अपनी कहानी ख़त्म कर के माधव और माधवी की और देखा, दोनों के आँखों से आंसू छलक रहे थे। माधव तो अपने आप को रोक ही नहीं पा रहा था।
“इतना सब क्यों किया मेरे लिए?” माधव ने पूछा।
“क्योंकि मैं तुझसे सच्चा प्यार करती थी, माधव! जरूरी नहीं है कि हम जिसे चाहते हो उसे हासिल कर ले वहीं प्यार की जीत हो। एक दूसरे को हासिल किए बिना भी सच्चा प्यार किया जा सकता है।”
“हां तुझे तो भूत सवार था ना! त्याग की मूर्ति बनने का शोख़ था। मेरी क्या हालत हुई ये सिर्फ मैं जानता हूं।” माधव ने कहा।
माधवी एक दम से शांत थी उन दोनों के बीच में बोलना उसे मुनासिब नहीं लगा।
“ऐसा करने से ही तो तुम ख़ुशी से ज़िंदगी जी पाए, मेरे साथ शादी करते तो ना मैं तुम्हें छूने देती ना तुम मुझे छुएं बगैर रह पाते। इस तरह हम कभी भी खुश नहीं रह पाते। माधवी ने जो ख़ुशी तुमको दी वो मैं शायद कभी भी तुम्हें नहीं दे पाती। इतने मशहूर गायक भी तुम नहीं बन पाते अगर मैं तुम्हारी लाइफ में होती तो।” कीर्ति ने कहा।
“सब कुछ हो सकता था, एक बार तूने मुझसे कहा तो होता। तूने मेरा प्यार समझा ही नहीं। तूने हंमेशा मुझे औरो के जैसा समझा। हां मानता हूं कि शादी के लिए बार-बार तुझसे कहना मेरी गलती थी, पर तूने अपनी सारी हकीकत जो आज तूने बताई वो तब बता दी होती तो हम दोनों अपनी लाइफ एक साथ अच्छे से बिता सकते थे।” माधव ने कहा।
“ये कहना आसान है, पर करना मुश्किल!” कीर्ति ने कहा।
“चल तू सही मैं ग़लत, पर ये तो बता की उस दिन के बाद तूने क्या किया?”
“मैं टूट गई थी, पर मैंने अपने मन को मना लिया था। मुझे फिर से तेरी ज़िंदगी में नहीं आना था। मेरे घर से शादी के लिए दबाव था, पर मुझे अपने कैरियर पर फोकस करना था। कुछ भी सही नहीं हो रहा था। एक दिन पापा की तबीयत खराब हुई और उन्होंने मुझसे वचन लिया कि उनके और मेरी माँ के मरने से पहले मैं शादी कर लूं।”
“तो तूने शादी की?”
“हां, मैंने शादी की पर वो 2 महीने भी नहीं टिक पाई, मैं उसको P.R. (फिजिकल रिलेशन) जो नहीं दे पाती थी। हमारे अलग होने के सदमे से मेरे पापा की तबीयत और खराब हो गई और वो चल बसे। मैंने अपना वचन निभा दिया था। अब मुझे अपने कैरियर पर फोकस करना था पर वो मैं नहीं कर पाई। अतीत का साया और तुझे खोने का ग़म ऊपर से घर वालो का प्रेशर और कहीं से भी कैरियर के लिए कुछ मिल नहीं पाना ये सब इस तरह से मेरे सर पर सवार हो गया कि मैं अपने आप को मजबूर कर बैठी और शराब पीने लगी।”
“क्या? पागल है तू?” माधव ने कहा।
“हां, मैं पागल ही हो गई थी। शुरू शुरू में अच्छा लगा, उससे सारे ग़म भूल जाती थी। पर धीरे धीरे उसकी आदत सी पड़ गई। उसके बिना फिर सुकून ही नहीं आता था। एक दिन मेरी माँ भी चल बसी। भाई लोगों ने मुझे अपनाने और घर में पनाह देने से इनकार कर दिया। मैंने बॉम्बे में ही एक घर ले लिया और अपने अकेलेपन से ही दोस्ती और शादी कर ली। डिप्रेसन में चली गई थी मैं, इसके लिए मैं मनोचिकित्सक के पास भी गई पर उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। शराब छोड़ने के लिए मैंने एक संस्था से मदद ली और उन लोगों ने मेरी दारू की लत छुड़वाने में मदद की।”
“कभी भी मेरी याद नहीं आई? कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि माधव से मिल लूं उससे बातें कर लूं?”
“ऐसा कोई दिन नहीं गया, जब मैंने तुझको याद ना किया हो, पर मैंने अपने आप को ही रोक कर रखा था। जब भी तुझे टीवी पर देखती या तेरी कोई खबर सुनती, हर बार सोचती की तुझसे बात करु पर मैं ऐसा कर नहीं सकती थी।”
“तो इतने साल तूने ग़म में और दारू के सहारे ही काट लिए?”
“नहीं, उम्मीद में गुजार दिए इतने साल। उम्मीद थी हम फिर कभी मिलेंगे। पर इतने सालों बाद मिलेंगे ये उम्मीद नहीं थी। खैर छोड़ो मेरी बात, तुम बताओ क्या चल रहा है ज़िंदगी में?” कीर्ति ने माधवी की ओर मुड़ कर पूछा।
“कुछ खास नहीं, और अब कुछ आशा भी नहीं है!” माधव ने कहा।
“क्यों? ऐसा क्या हुआ?”
“माधवी अब ज़्यादा दिन नहीं जी पाएगी!”
कीर्ति और माधवी दोनों एक दूसरे के सामने देखते रह गए।
“ऐसा क्या हो गया?” कीर्ति ने पूछा।
माधव ने उसे सारी बात बताई।
“इसका कुछ नहीं हो सकता?” कीर्ति ने पूछा।
“हो सकता है!” माधवी जो इतनी देर से शांत थी उसने बोला, “मैं खास इसी मक़सद से आई थी।”
“कौन से मक़सद?”
“मेरा बचना नामुमकिन है, मैं माधव से बहुत प्यार करती हूं और वो भी मुझसे उतना ही प्यार करता है पर उतना नहीं जितना तुम दोनों एक दूसरे से करते हो। इसीलिए मैं चाहती हूं कि मेरे जाने के बाद तुम दोनों एक दूसरे से शादी कर लो।” माधवी ने कहा।
माधव ने गुस्से से माधवी की ओर देखा, पर माधवी ने इशारे से माधव को शांत कर दिया। वो जानती थी वो क्या कर रही है।
“नामुमकिन, पहले जो मेरे हालात थे अब भी वही हालात है। कुछ भी नहीं बदला है, ना मैं, ना मेरा अतीत और ना ही मेरा मन।” कीर्ति ने कहा।
“तुम दोनों एक दूसरे से शादी भले ही ना करो पर एक साथ रहकर एक दूसरे का ख़्याल तो रख ही सकते हो ना? माधवी ने कहा।
“नहीं!”
“क्यों नहीं?”
कीर्ति ने लंबी सांस ली और कहा, “मैं भी कुछ दिनों की ही मेहमान हूं।”
माधव और माधवी एक दूसरे को देखते रह गए।
“मैंने इतनी ज़्यादा शराब पी ली थी कि एक रात को मुझे खून की उलटी हुई। डॉक्टर को बताया तो उन्होंने कुछ रिपोर्ट्स लिख दिए। उन रिपोर्ट्स से पता चला कि मेरा लिवर पूरी तरह से डेमेज हो गया है। कुछ ही महीनों में ये एकदम से फैल हो जाएगा उसके बाद मेरा शरीर भी किसी लायक नहीं रहेगा डॉक्टर ने मुझे लिवर ट्रांसप्लांट करवाने के लिए कहा पर मैंने ही उनको मना कर दिया।” कीर्ति ने कहा।
“क्यों?”
“अब मुझे जीने की कोई चाहत नहीं है।”
“पागल है तू बिलकुल! तुझे डॉक्टर सामने से जीने का रास्ता बता रहा है और तू मरना चाहती है, हमारे पास तो कोई रास्ता नहीं है, इसीलिए हम हार मान चुके है। तेरे सामने तो रास्ता है, तो क्यों नहीं कर रही है ऐसा जैसा डॉक्टर कह रहे है?” माधव ने कहा।
“ऑपरेशन में शायद 20 या 30 लाख का खर्चा होगा इतनी बड़ी रकम मेरे पास नहीं है। एक वक़्त था जब ये मेरे लिए बड़ी रकम नहीं थी पर अब मेरे पास इतनी बड़ी रकम नहीं है।” कीर्ति ने कहा।
“अरे! तो हम है ना हम देंगे आपको इतनी रकम!” माधवी ने कहा, माधव ने भी उसकी बात को हामी दी।
“नहीं इतनी….”
“मैं अब तेरी एक नहीं सुनने वाला, तू ऑपरेशन करवाएगी मतलब करवाएगी और इसके लिए मैं डॉक्टर से बात कर के तेरे लिए कोई डॉनर का इंतज़ाम करवाता हूं।” माधव ने कीर्ति की बात को बीच से ही काट दी।
“डॉनर ढूंढने की भी कोई जरूरत नहीं है, मैं हूं ना!” माधवी ने कहा।
“ये हम बाद में सोचेंगे, फ़िलहाल तू ऑपरेशन के लिए तैयार है?”
“मैं क्या करूंगी जी कर? मेरी ज़िंदगी का कोई मक़सद नहीं है, इस वक़्त तुम दोनों को अपने बारे में सोचना चाहिए न कि मेरे बारे में।” कीर्ति ने कहा।
“हम जो भी बोल रहे है, सब सोच समझ कर ही बोल रहे है। वैसे भी मैं जिंदा नहीं बचूंगी, और मेरे जाने के बाद मेरा लिवर अगर तुम्हारी जान बचा सके तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है। जिंदा रहकर तुम अपनी ज़िंदगी और माधव की ज़िंदगी दोनों को संवार सकती हो। एक बार सोच के देख लो, पर जल्दी सोचना वक़्त बहुत कम है। मुझे कभी भी कुछ भी हो सकता है।”
“तुम सच में बहुत नसीब वाले हो माधव जो तुम्हें इतना प्यार करने वाली बीवी मिली। कोई भी बीवी अपने पति को किसी और के साथ बर्दाश्त नहीं कर सकती पर माधवी अपने जाने के बाद भी तुम्हारे लिए ही सब कुछ कर रही है।” कीर्ति ने कहा।
“मेरी तारीफों के पुल मत बांधो, क्या फ़ैसला लेना है वो सोचो। अगर चाहो तो हम बाद में भी आ सकते है।” माधवी ने कहा।
“इसकी कोई जरूरत नहीं है, मैं तैयार हूं।” कीर्ति ने कहा।
माधव और माधवी दोनों खुश हो गए और वहां से जाने लगे। रास्ते में माधव ने माधवी को गले से लगा लिया और जी भर के रो लिया। माधवी को पता था उसके जाने के बाद कीर्ति उसका अच्छे से ख़्याल रख पाएगी। माधव की भी ख़ुशी इसी में थी और कीर्ति की ख़ुशी भी इसी में थी।
माधव ने डॉक्टर से बातचीत कर के डॉनर के तौर पर माधवी का नाम लिखवा दिया। डॉक्टर ने तीनों को साथ रखकर मीटिंग की और ऑपरेशन के रिस्क और फ़ायदे दोनों ही समझाए। लिवर ट्रांसप्लांट करने के बाद भी कीर्ति ज़्यादा सालो तक जिंदा नहीं रह पाएगी ये जानकर तीनों और मायूस हो गए, पर जहां कोई उम्मीद ना हो वहां उम्मीद की एक किरण भी काफ़ी थी।
माधवी को एक रात को सीने में बहुत जोर से दर्द हुआ, हॉस्पिटल पहुंच पाए इससे पहले ही माधवी अपना दम तोड़ चुकी थी। डॉक्टर को जिसका डर था वही हुआ माधवी का हार्ट फैल हो चुका था और उसे बहुत ही दर्दनाक दिल का दौरा पड़ा था जिसकी वज़ह से वो बच नहीं पाई।
अब वक़्त था लिवर ट्रांसप्लांट के ऑपरेशन का, कीर्ति को तुरंत हॉस्पिटल में एडमिट किया गया और उसका ऑपरेशन किया गया। भगवान की कृपा और माधवी के जज़्बे से ऑपरेशन तो सफल होना ही था। डॉक्टर ने फिर भी माधव और कीर्ति को चेतावनी दी कि लिवर ट्रांसप्लांट के ऑपरेशन के बाद भी कोई ज़्यादा जी नहीं पाता। ज़्यादा से ज़्यादा 5 साल। माधवी को खो देने के बाद माधव कीर्ति को भी खोने वाला है ये सोचकर ही उसके आंसू रोके रुक नहीं रहे थे।
माधवी का लिवर एक दम परफेक्ट था, बिना कोई इंफेक्शन का और कीर्ति और माधवी के ब्लड ग्रुप भी एक ही थे इसीलिए ऑपरेशन में कोई दिक्कत नहीं आई। माधव और कीर्ति दोनों ही माधवी की याद में रो रहे थे। अब वो कभी लौट के वापस नहीं आने वाली थी। उसकी आखिरी इच्छा के मुताबिक कीर्ति को उसका लिवर दे दिया गया और अब उसको बाकी की ज़िंदगी माधव के साथ बितानी थी।
माधवी के अग्नि संस्कार और सारी विधियां ख़त्म करने के बाद माधव कीर्ति के लिए वक़्त निकाल पाया। कुछ दिनों तक कीर्ति का भी ध्यान उसे रखना था क्योंकि उसका अभी अभी ऑपरेशन हुआ था।
“तू ठीक है, माधव?”
“हां मैं ठीक हूं, और तू कैसी है?”
“मैं बिलकुल ठीक हूं।”
“क्या मैं तुझे छू सकता हूं?” माधव ने पूछा
“क्या? क्यों?”
“तुझे गले लगाकर जी भर कर रोना है, माधवी की बहुत याद आ रही है यार। एक दोस्त के नाते इतना हक़ देगी मुझे?” माधव ने पूछा।
कीर्ति ने बिना कुछ बोले अपनी बांहें खोल कर माधव को पहली बार गले से लगाया। उस दिन दोनों जी भर कर रोए। इतना रोए की रोते रोते उन दोनों को नींद आ गई और एक दूसरे की बांहों में ही दोनों सो गए।


Chapter 10 will be continued soon…

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✍️ Anil Patel (Bunny)