Andhera Kona - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

अंधेरा कोना - 13 - ऑफिस की लिफ्ट

मेरा नाम राजवीर है, मैं एग्रीकल्चर डिपार्टमेन्ट मे ऑफिसर हू, मैं गुजरात के अहमदाबाद का रहने वाला हू, ये बात 1997 की है, मेरी ट्रांसफ़र इंदौर की ऑफिस में हुई थी जहा मेरे साथ कुछ अजीब हुआ था l मेरी ऑफिस 9वे माले पर थी, जहा पहुंचने के लिए दो लिफ्ट थी एक आगे के रास्ते पर थी और दूसरी पहली वाली से थोड़ी दूर लेकिन नजदीक ही थी l वो दूसरी लिफ्ट हमेशा बंद रहती थी और सब लोग आगे की लिफ्ट का ईस्तेमाल करते थे l मेरी ऑफिस मे ये पहला दिन था मैंने पीछे के रास्ते की लिफ्ट के सहारे उपर तक गया वहाँ पूरा दिन मुजे काम रहा, मैं नया था और मेरी पसंदगी यहा इसीलिये हुई थी ताकि यहा का सब काम मैं अच्छे से देख सकू औऱ इस ब्रांच की ऑफिस को मैं ठीक कर सकू l मैं वहां रात के 8.00 बजे तक रुका, पीछे वाली उस लिफ्ट से मैं वापस नीचे गया, मैंने दरवाजा खोला और मैंने "0" यानी ग्राउंड फ्लोर का बटन दबाया, लिफ्ट नीचे जाने लगी, लिफ्ट मे अंधेरा था क्युकी लिफ्ट मे लाइट नहीं थी l

दो फ्लोर के बीच मे जब लिफ्ट जाती थी तब पूरा का पूरा अंधेरा हो जाता था, मुजे अचानक से यह एहसास हुआ कि 4-5 लोग मेरे अगल बगल मे खड़े है, और वो लिफ्ट भी नीचे 6th फ्लोर पर खड़ी रही, लेकिन लिफ्ट मे कोई भी आया नहीं, हैरानी की बात यह थी कि लिफ्ट मे इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स मे भी 6th फ्लोर दिख रहा था जबकि न ही मैंने बटन दबाया था और न ही किसी और ने, 6-7 सेकंड तक खड़ी रहने के बाद लिफ्ट फिर से चली l अब 4th फ्लोर था, वहां पर भी लिफ्ट खड़ी हो गई, फिर से कोई नहीं आया था, फिर से लिफ्ट चली और अब लिफ्ट 2nd फ्लोर पर खड़ी रही, ये सब चीज 2nd फ्लोर पर हुई l


मैं हैरान रह गया था कि किसीने बटन दबाया नहीं था फिर भी लिफ्ट कैसे खड़ी रह सकती है? और मुजे पूरी लिफ्ट मे किसकी सांसे फूलने की आवाज सुनाई देती रही, मुजे लगता रहा कि कोई मेरे पास खड़ा है लेकिन उधर कोई नहीं था, उस ज़माने में स्मार्टफोन नहीं हुआ करते थे इसलिए मैं फ्लैश लाइट भी नहीं कर सकता था और न ही मेरे पास बैटरी थी, बैटरी मुजे लेनी थी l दूसरे दिन मैंने ये बात मेरे कलीग रमेश को बताई, उन्होंने मुजे कहा
रमेश : अरे राजवीर, उस लिफ्ट से मत जाना?!!!

मैं : क्यु? एसा क्या है उसमे?

रमेश : अरे वो लिफ्ट ठीक नहीं है l

मैं : क्या मतलब?

रमेश : अरे उस लिफ्ट मे भूत प्रेत रहते हैं!!!

मैं(गुस्से में) : क्या बोल रहा है तू??!!!

रमेश : हाँ सच में... हुआ यू की -

मैं : भाई, भाई, मुजे माफ कर, मुजे और बहुत सारे काम है, करने दे!!!

मैंने रमेश को रोक लिया, मुजे भूत प्रेत की दकियानूसी बाते नहीं पसंद है, एसी बाते सुनकर मुजे गुस्सा भी बहुत आता है l

एक दिन शाम 7.00 तक काम करने के बाद मैं उसी लिफ्ट मे गया, दरअसल मुजे वहीं लिफ्ट नजदीक पड़ती थी इसलिए मैं वहीं से जाता था l आज फिर से वहीं फ्लोर - 6th, 4th और 2nd पर लिफ्ट खड़ी हुई लेकिन कोई नहीं आया और आगे जाके मैं उतर गया l मुजे मज़ा आता था क्युकी मुजे लगता था कि ये कोई टेक्निकल इशू होगा लेकिन एक दिन कुछ अजीब हुआ, एक दिन मुजे लिफ्ट मे चार अलग अलग लोगों की आवाज सुनाई दी वो लोग क्या बोल रहे थे ये मैं ज्यादा कुछ समज नहीं पा रहा था लेकिन सारी आवाज मर्द की थी और वो ये तीनों फ्लोर पे लिफ्ट रुकने की बात कर रहे थे l फिर कुछ दिन बाद फिर से मैं उस लिफ्ट से नीचे गया, आज लिफ्ट बहुत ही धीमी चल रही थी, और आज वो 4 लोगों के होने का एहसास भी नहीं हो रहा था, अचानक 7th फ्लोर पर पहुची और लिफ्ट का संतुलन बिगड़ गया और लिफ्ट बड़ी तेजी से टूटकर गिरने लगी, ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचकर वहा लिफ्ट क्रैश हो गई, और मेरी मौत हो गई l

मैंने आंखे खोली और मुजे लगा कि मैं मर चुका हूं लेकिन मैं जिंदा था और लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर सलामत खड़ी थी, मैं जमीन पर सिकोड़कर बैठा हुआ था, मैं खड़ा हुआ और लिफ्ट का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया, फिर मै दूसरे दिन रमेश से मिला, उसकी माफी मांगी और उसे सारी बात बताई, तब उसने कहा कि

रमेश : वो लिफ्ट आज से 2 साल पहले लगाई गई थी लेकिन उसका बांधकाम ठीक नहीं था इसलिये 6 महीने बाद ही उसका एक्सीडेंट हो गया, उस लिफ्ट मे चार लोग थे जिसमें जॉन, सूरज और विवेक 6th और 4th फ्लोर से थे और राजू चाय वाला 2nd फ्लोर से था और वो लिफ्ट उसी दिन शाम 7.45 को क्रैश हो गई थी l वो लोग भी तुम्हारी तरह काम करके वापस घर जा रहे थे और राजू चाय देने आया था, इन सभी की मौत उस हादसे में हो गई थी, फिर उनकी मौत के बाद लिफ्ट को रिपेयर करके शुरू की गई लेकिन रात को काम करने वाले लोगों को उस लिफ्ट मे किसीके होने का एहसास होता है, इसलिए लोगों ने उस लिफ्ट का इस्तेमाल करना बंद कर दिया l सामने वाले फ्लेट मे रहने वाले कुछ लोगों का यह भी कहना है कि रात को वो लिफ्ट अपने आप चलती दिखाई देती है, अब कभी उस लिफ्ट से मत जाना l

मैं रमेश की बाते सुनता रहा लेकिन कुछ बोल नहीं पाया और चुपचाप वहां से चला गया, रमेश भी समज चुका था कि मैं कुछ बोल नहीं पाउंगा l मैं उधर 8 महीनों तक रहा था लेकिन जब भी रात को निकलता तब वो लिफ्ट खुले दरवाजे के साथ खड़ी होती थी उधर मानो कि वो मुजे बुला रहीं हो, लेकिन जब मैं आगे वाली लिफ्ट से नीचे जाता था तब वही दूसरी लिफ्ट वहा खड़ी रहती थी, वो भी बंद दरवाजे के साथ!!!