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चरित्रहीन - (भाग-13)

चरित्रहीन.......(भाग-13)

आकाश की कमी महसूस होती ही थी।कभी कभी लगता था कि वरूण और बच्चे यहाँ होते तो शायद ज्यादा बिजी रहती तो ऐसे ख्याल दिमाग में आते ही नहीं? बच्चों के फ्यूचर को ही दिमाग में रख कर उन्हें अपने से दूर किया था, नतीजा सामने दिखने लगा है उनके ऐकडमिक रिकॉर्डस को देख कर...दोनो बहन भाई हर चीज मे आगे थे, वैभव और अनुभा भी पीछे नहीं थे उनसे.....2 दिन के लिए ही सही मैं जाती या वो लोग आते तो घर चहचहा उठता था....! ऑफिस जाते रहने से भी एक रूटीन बना हुआ था.....कम से कम बाहर आने जाने के लिए ही सही मैं अपने कपड़ों और अपने ऊपर ध्यान दे रही थी, शायद ये भी एक कारण था लोगों को मेरी पीठ पीछे बातें बनाने का.....एक दिन लंच ब्रेक में हमारा कॉलेज फ्रेंड रोहित आ गया। उसका ऑफिस भी पास में ही है, उसने कहा तो था कि कभी आएगा,पर यूँ बिना बताए आ जाएगा और इतनी जल्दी आ जाएगा, ये नहीं सोचा था। खैर वो नीरज के ज्यादा करीब था तो उत्सुकता भी थी......लंच टाइम था तो उसने मुझे ऑफिस कि बिल्डिंग के साथ ही एक ढाबा टाइप जगह थी, वहाँ पर खाने के लिए चलने को कहा तो मैं मना नहीं कर पायी.......आते जाते दिखा तो था वो ढाबा..पर कभी खाना खाया नहीं था। ज्यादा जगह नही थी, उसके पास...3-4 टेबल ही लगी हुई थी। बाकी लोग ढाबे के सामने जगह खाली थी, सामने पेड़ के नीचे भी टेबल रख रही थी, उसने वहीं लोग खा रहे थे....। हम दोनो को देख कर लड़का दो प्लास्टिक की चेयर्स लगा कर दे गया। पीने के लिए पानी की बोटल लाने के लिए कह दिया....! मैं देख रही थी कि जगह कम है,पर साफ सफाई का ध्यान रखा जा रहा है। खाने का आर्डर दे कर हम अपने काम के बारे में बात करने लगे......पहले काम, फिर बच्चे और बाद में घूम फिर कर नीरज की बातें......मैं रोहित की बातें सुन रही थी, "वे बता रहा था कि वो बहुत नाराज हुआ था अपने घरवालों से जब उन्होंने तुम्हारे साथ रिश्ते के लिए मना किया था"........! "रोहित हम पुरानी बातें क्यों कर रहे हैं? जो हुआ वो काफी सालों पहले हुआ.....और हम ने खुद ही अलग होने का फैसला लिया था। मैं तो पास्ट को कभी याद नहीं करती, तुम भी याद मत करो".....मेरी बात सुन कर वो कुछ देर के लिए चुप हो गया ! हम बातें करते हुए खाना खा रहे थे और उसके घर परिवार का टॉपिक शुरू हुआ तो वो खाना खत्म होने तक चलता रहा....! रोहित से मैंने फिर मिलेंगे कह कर विदा ली और ऑफिस में आ कर बैठ गयी......सारा दिन काम से सर खपा कर घर आयी तो हमारे किराएदार लेडी नीचे ही मिल गयीं......मेरे मना करने के बाद भी अपनी बेटी को कह कर मेरे लिए चाय बनवा दी.....कुछ देर वो मेरे पास बैठी रही, कुछ अपने बारे में उन्होंने बताया कुछ मेरे बारे में उन्होंने पूछा। फिर तो ये रोज का नियम हो गया कि शाम गको मैंं घर आती तो चाय ऊपर से आ जाती, मुझे अच्छा तो नहीं लगता था। मैंने उन्हें कई बार कहा भी कि, "आप परेशान न हुआ करें, पर वो नहीं मानी"। मैंने उन्हें एक दिन छुट्टी के रोज उन्हें लंच पर बुलाया तो वो खुशी खुशी सब आ गए। बहुत दिनों से सिर्फ ऊपर से आती आवाजे सुनती थी, पर उस दिन सबके आने से घर में रौनक आ गयी। बहुत अच्छा परिवार मिला था मुझे किराएदारों के रूप में.....उस दिन के बाद औपचारिकता खत्म हो गयी थी हमारे परिवारों के बीच.....मुझे एक बड़ी बहन नजर आने लगी थी मधु जी के रूप में और मैंने उन्हें कह भी दिया," मैं आपको दीदी बुला सकती हूँ न"? वो बोली बिल्कुल कह सकती हो.....उस दिन से वो मेरे लिए मधु दीदी और उनके पति भाई साहब हो गए.....उन्होंने एक दिन कह दिया, "वसुधा जी आप मधु को दीदी कहती हैं तो मुझे जीजा जी कहो या मुझे भाई साहब कहती हो तो मधु को भाभी कहना चाहिए"! कह कर वो हँस दिए। "मेरे पास दीदी नहीं है तो उन्हें दीदी कहना अच्छा लगता है और आप से बात करके भाई कहने का मन किया तो कह दिया"! मेरी बात सुन कर वो बोले, "आप तो सीरियस हो गयीं, मैं मजाक कर रहा था, भाई साहब कहो या भैया आपकी मर्जी"! कितनी बार ऐसा होता है न कि किसी से कोई रिश्ता न होते हुए भी अपने से लगते हैं...... हम औरतें किसी से रिश्ते जल्दी बना लेती हैं तो निभाना भी जानती हैं.......सबसे दोस्ती, काम और किराएदार हर तरफ से ठीक ही चल रहा था....उधर आरव और अवनी भी अपने 10 वीं और 12 वीं क्लॉस के बोर्ड के पेपर देने की तैयारी कर रहे थे.....दोनों खूब मन लगा कर पढ़ रहे थे। वरूण का बिजनेस बहुत सही सैटल हो गया था। वरूण और नीला बच्चों को पूरा टाइम दे रहे थे, फिर मैं भी फोन 3-4 बार दिन में कर लिया करती थी.....!! रोहित का जल्दी जल्दी लंच के लिए या शाम को चाय कॉफी के लिए मिलने आना ऑफिस वालों की नजर में खटक रहा था। गंदे गंदे जोक्स सुनाना और मेरी तरफ इशारे करके बातें करना कुछ भी छुपा नहीं था और न ही बॉस से छुपा था....! मुझे किसी का डर नहीं था, पर बात मेरी पीठ पीछे बात करने वालों की थी, जिनकी सोच का कुछ किया नहीं जा सकता था। "रोहित हम कॉल पर ही बात कर लिया करें या कभी तुम घर आ जाना, ऑफिस में लोग इश्यू बना रहे हैं, ये ठीक नहीं लगता। हम ऑफिस के आस पास मिलना अवॉइड करें तो अच्छा होगा"! मैंने रोहित को कहा तो वो बोला," ठीक है, अगर तुम्हारे ऑफिस में प्रॉब्लम है तो तुम्हें बॉस से बात जरूर करनी चाहिए"! उसके बाद हम सब एक बार फिर मिले...
इस बार सब अपने अपने पार्टनर के साथ आए थे.....रोहित की वाइफ से मिली तो देखती रह गयी, बहुत सुंदर लगी उसकी वाइफ और उतनी ही जल्दी घुलने मिलने वाली.....। विद्या और मैं सिर्फ हम दोनो ही अकेली थी और एक दूसरे से बातें कर रही थी.....बीच बीच में आपस में भी सब बात कर रहे थे। हम दोनो ने एक बात नोटिस की....वो ये थी कि राजीव और रोहित पिछली बार जब हम सब अकेले मिले थे तो ज्यादा खुल कर बात कर रहे थे, पर उस दिन वो बहुत फार्मल बात कर रहे थे....उनका ध्यान अपनी बीवियों पर था, उधर रश्मि का पति साथ था तो वो भी कम ही इंट्रस्ट ले रही थी कॉलेज की बातों में......नीरज और प्रीति दोनो ही हमारे कॉलेज ग्रुप का हिस्सा थे तो प्रीति राजीव और रोहित की वाइफ के साथ बातों में बिजी थी, शायद ये लोग पहले से ही एक दूसरे से मिलते रहते होंगे....! प्रीति मुझे देख कर खुश नहीं थी, इसकी वजह मैं जानती थी, पर नीरज भी डिस्टर्ब सा दिखायी दिया तो मन हुआ कि जा कर वजह पूछ लूँ। ऐसा करना ठीक नहीं था। ऐसा बिल्कुल नहीं था कि मेरे दिल में उसके लिए किसी तरह की फीलिंग्स जाग रही थीं, यकीनन ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था, पर हाँ एक दोस्त की तरह पूछने का दिमाग में तो आया, पर विचार को बहुत कुछ सोच कर दिमाग में ही दफन कर दिया.....ये काम मैंने विद्या को दिया और विद्या ने उसकी बेस्ट फ्रैंड रश्मि से बाद में पूछूंगी कहा तो मुझे भी यही सही लगा.....! उस दिन हमने ये सोचा कि अब होटल्स की जगह बारी बारी स् हर दोस्त के घर मिलेंगे जिसे रश्मि ने सिरे से नकार दिया ये कह कर की उनके घरो में इतनी प्राइवेसी नहीं है कि वो खुल कर बातें कर सकें....सो महीने में एक बार मिलना ठीक रहेगा। ये बात सब को ठीक लगी.....मैं और विद्या रह गए तो हम दोनो ने सोचा कि हम दोनो हर संडे को मिल लिया करेंगे....।
क्रमश: