Robert Gill ki Paro - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

रॉबर्ट गिल की पारो - 13

भाग 13

दिन और महीने बीते। रॉबर्ट को कहीं नहीं जाना पड़ा। बर्मीज शांत थे। शायद 1826 के युद्ध में इतने कुचले गए थे कि दुबारा उठने की हिम्मत ही न हो। लेकिन यह रॉबर्ट के लिए अच्छा था क्योंकि वह फ्लावर के पास ही था।

घर में भागदौड़ हो रही थी। दोनों बच्चों के साथ रॉबर्ट बैठक में था। फ्लावरड्यू को दर्द आ रहे थे। दर्द बढ़ते ही जा रहे थे। लेकिन शिंपीज़ू घबरा रही थीं क्योंकि 9 महीने तो पूरे ही नहीं हुए थे। उसके हिसाब से साड़े सात महीने ही हुए थे। फ्लावरड्यू लगातार दर्द में तड़प रही थी। करीब तीन-चार घंटे की असहनीय पीड़ा के बाद फ्लावरड्यू ने एक लड़की को जन्म दिया। शिंपीज़ू मुस्कुरा उठी। उसने सफलतापूर्वक सब कुछ सम्हाला था। लड़की कमज़ोर थी और सिर पर बाल नहीं थे। बल्कि बालों के रोए थे। सिर लाल रंग का हो रहा था। उसने रॉबर्ट से कहा कि बच्ची को किसी अनुभवी चिकित्सक को दिखा दें जो बाल रोग तज्ञ हो, शायद वह बीमार है। उसने दाई को झिड़क दिया था। वह डर गई और कमरे से बाहर चली गई। रॉबर्ट दोनों बच्चों के साथ दौड़ता हुआ फ्लावरड्यू के पास आया और उसको बधाई देता हुआ फ्लावरड्यू को चूम लिया। फ्रांसिस एलिजा छोटी बच्ची का हाथ पकड़े थी। वह बहुत खुश थी। विलियम भी आश्चर्य से छोटी बच्ची को देख रहा था। और पूछ रहा था कि ‘‘डैड, यह कहां से आई?’’

रॉबर्ट ने अंग्रेज चिकित्सक को बुलवा लिया था। उसने बच्ची को देखा और कहा-‘‘चिन्ता की बात नहीं है, कभी-कभी गर्भ में आॅक्सीजन की कमी हो जाती है तो बच्चे को सफोकेशन हो जाता है, तो कहीं शरीर के किसी हिस्से का कलर बदल जाता है।

लेकिन शिंपीज़ू के अनुसार लड़की साड़े सात महीने में पैदा हुई है। देखभाल बहुत अच्छे से करनी होगी। उसने शिंपीज़ू को बहुत सारी हिदायतें दीं। वह सिर हिलाती रही। रॉबर्ट आश्वस्त हुआ।

इस बार फ्लावरड्यू कमज़ोर महसूस कर रही थी।

रॉबर्ट फ्लावरड्यू और तीनों बच्चों के साथ चर्च गया। फ्लावरड्यू के आग्रह पर बच्चे का नाम वहीं चर्च में रखा गया। और एक छोटी पार्टी चर्च के बाहर ही दी गईं। जिसमें चर्च में उस समय आए व्यक्ति ही शामिल हुए। फादर ने बच्ची का नाम ज़ोरों से लिया। ‘रोज़ मटिल्डा गिल’ उन्होंने पति-पत्नी दोनों को बधाई दी। और प्रार्थना के पश्चात सभी ने बच्ची के दीर्घ जीवन की कामना की।

रॉबर्ट ने लौटते समय हँस कर पूछा-‘‘फ्लावर कौन-सा रोज़ है यह?’’

‘‘पिंक’’ फ्लावर ने पिंक रेशमी शीट में लपेटी बच्ची को अत्यंत प्यार से देखते हुए कहा।

उस दिन रॉबर्ट घर पर ही था। रोज़ मल्टिडा ने तीसरे महीने में प्रवेश किया था। अचानक ही रोज़ हिचकियाँ लेने लगी और उसकी सांसे भी अनियमित होने लगीं।

फ्लावरड्यू घबरा गई। रॉबर्ट ने जयकिशन को चिकित्सक के पास दौड़ाया। लेकिन दूरियां थीं और बहुत शीघ्र चिकित्सक नहीं आ पाया। नर्स सूज़ी जानकारी के हिसाब से उसकी नन्हीं छाती हल्के हाथों से दबा रही थी। ताकि उसका हृदय धड़कना बंद न करे। लेकिन उसे सब कुछ समाप्त होता दिख रहा था।

रोज़ अधिक समय तक सफोकेशन के अटैक को नहीं झेल पाई। नर्स ने हर तरीके से जाँच की और फ्लावरड्यू की तरफ देखकर ‘नहीं’ में सिर हिलाया।

फ्लावरड्यू के मुँह से एक हृदयविदारक चीख निकली और उसने नो-नो कहते हुए सूज़ी को एक थप्पड़ मारा जिसकी तीव्रता से वह दीवार से जाकर टकरा गई।

फ्लावरड्यू अपने कमरे में अंदर गई और भीतर से दरवाज़ा बंद कर लिया। सभी इस घटना से स्तब्ध हो गए।

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फ्लावरड्यू की ‘पिंक रोज़’ की नन्ही देह पिंक रेशमी शीट में लिपटी रॉबर्ट के हाथों में थी। रॉबर्ट खामोश रुलाई से थरथरा रहा था। फ्लावरड्यू की नाक-कान-गाल रो-रोकर लाल हो गए थे। छावनी के सभी परिचित-अपरिचित रॉबर्ट के घर के सामने इकट्ठा हो गए थे। रॉबर्ट के पीछे जयकिशन था। मेहमूद कुछ दिन पहले ही हैदराबाद गया था। फ्लावरड्यू के अंदर ऊर्जा बाकी नहीं थी कि वह रॉबर्ट के साथ अपनी पिंक रोज़ को अंतिम विदाई देने जा सकें।

रॉबर्ट रोज़ मटिल्डा को अपने इन्हीं हाथों से मिट्टी में दबाकर, लौटकर आकर बाहर ही बैठ गया था। और उन हाथों को देखे जा रहा था, जिनमें कुछ घंटे पहले रोज़ की नन्हीं देह थी। फिर मिट्टी में दबाती देह... ओह।

फ्लावरड्यू फिर अपने कमरे में बंद थी। जयकिशन ने छावनी जाकर एल्फिन को खबर भिजवा दी थी। और वह किंकर्त्तव्यविमूढ़-सा रॉबर्ट के नज़दीक खड़ा था।

खबर मिलते ही एल्फिन मद्रास से चल चुका था। रॉबर्ट का प्रार्थना-पत्र मद्रास रेजीमेंट में आ चुका था कि वह अब बर्मा में नहीं रुक सकता। उसके रिक्वेस्टिंग ट्रांसफर पर तुरन्त कार्रवाई की जाए। अपने एक बच्चे को खोने के बाद वह यहाँ अधिक नहीं रुक सकेंगा।

फ्लावरड्यू गुमसुम थी। एक दिन उसने कड़े शब्दों में रॉबर्ट को कहा था कि बर्मा या इंडिया में रहने का क्या फायदा? अब मेरी पिंक रोज़ मटिल्डा मुझे छोड़कर चली गई तो हमें भी लौट जाना चाहिए। रॉबर्ट, ऐसा कुछ नहीं है इंडिया में... तुम सेना से रिटायरमेन्ट ले लो। रॉबर्ट सोच में डूब गया था। तभी एल्फिन वहाँ आ गया था। उसने फ्लावरड्यू को बताया कि साईमा गर्भवती है और इंग्लैण्ड जा रही है। अगर इंग्लैण्ड की लंबी यात्रा उसे नहीं करनी होती तो वह अवश्य यहाँ आती। फ्लावर ने सोचा कि एल्फिन और साईमा कितने सुलझे हुए कपल हैं। एक दूसरे को समझते हुए... यहाँ रॉबर्ट को समझते, समझाते पूरी ज़िंदगी ही निकल जाएगी। उसने महसूसा कि वह रॉबर्ट के लिए केवल एक ‘औरत’ है।

एल्फिन के वहाँ रहते हुए ही उसी के सामने मद्रास से रॉबर्ट के नाम पत्र आ गया था। लिखा था - रॉबर्ट, तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई है। वह शीघ्र ही मद्रास आकर अपना कार्यभार संभाल ले।

उस दिन रॉबर्ट खुश था। रोज़ मटिल्डा की मृत्यु के पश्चात वह पहली बार अपनी उदासी को दूर करके मद्रास जाने के नाम से मुस्कुरा उठा। एल्फिन ने सुख की सांस ली थी। कभी कभी उसे रॉबर्ट हारा हुआ-सा लगता और बहुत जज्बाती भी। उसने टैरेन्स को जो रोज़ मटिल्डा की मृत्यु की खबर सुनकर आने के लिए बेचैन होगा दुबारा खबर भिजवा दी थी कि वह मद्रास ही आए।

‘‘लेकिन सर, मेहमूद को कैसे खबर करें कि वह यहाँ नहीं आए। कहीं वह यहाँ आकर भटकता न घूमे।’’ जयकिशन ने कहा।

जयकिशन की चिंता उचित थी। लेकिन उन लोगों के जाने से दो दिन पहले ही मेहमूद आ गया, जो बहुत खुश था। दोनों बच्चों के लिए लकड़ी, कपड़े के रुई भरे खिलौने और विभिन्न प्रकार की न खराब होने वाली मिठाई लेकर आया था।

उसने जब बच्ची के बारे में सुना तो सन्न खड़ा रह गया। और रॉबर्ट, फ्लावर ड्यू, एल्फिन की कुर्सी जहाँ वे बैठे थे नीचे बैठकर रोने लगा। एल्फिन ने महसूस किया कि इंडियन्स बिल्कुल अलग ही होते हैं। अपने मालिक के प्रति संवेदनशील।

वह अपने आप ही चुप हो गया। जयकिशन उसे भीतर ले गया।

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एल्फिन के साथ रॉबर्ट अपने दोनों बच्चों और फ्लावरड्यू के साथ मद्रास आ गया। जयकिशन इन लोगों के साथ ही आया। मेहमूद को सामान के साथ कार्गो शिप पर रवाना कर दिया गया।

खबर मिली थी कि इन लोगों के मद्रास पहुँचने के 2-3 दिन बाद टैरेन्स भी पहुँच जाएगा। उसने नए और तेज़ गति से चलने वाले जहाज पर अपनी सीट की बुकिंग कराई थी। सारे रास्ते फ्लावरड्यू चुप ही रही। बस थोड़ा-सा खाना खाती और किसी किताब को पढ़ने में अपने आपको व्यस्त रखती।

मानो किसी को खोने ही मद्रास से गए थे।

घर पहुँचते ही जयकिशन सफाई में जुट गया। दो मजदूरों को बुलाकर बगीचे की साफ सफाई की गई। फ्रेंकी और जॉनी उन लोगों के साथ ही थे। और अपना पुराना घर देखकर दौड़ लगा रहे थे। दोनों बच्चे भी उनके साथ भाग रहे थे। एल्फिन अपने घर चला गया। साईमा ने इंग्लैण्ड जाने की तैयारी इस बीच कर ली थी। बस उसे फ्लावरड्यू से मिलने जाना था।

जयकिशन ने बेल का शर्बत बनाया था। बाहर बगीचे में गोल मेज लगा दी गई थी। सभी कुर्सियों पर बैठे थे। रॉबर्ट और एल्फिन के बच्चे बगीचे में खेल रहे थे। कल सुबह तक टैरेन्स आ जाएगा। और मेहमूद भी सामान लेकर आ जाएगा। ‘‘और मैं इंग्लैण्ड के लिए दो दिन बाद ही चल दूंगी।’’ साईमा ने कहा।

फ्लावरड्यू ने उसे हसरत से देखा। अगर रॉबर्ट मान जाए तो वह भी उसके साथ जा सकती है। टैरेन्स आ गया था। उसने रोज़ मटिल्डा के निधन पर बहुत शोक प्रकट किया।

फ्लावरड्यू को लंदन के किस्से सुनाकर वह हंसाने की कोशिश करता। लेकिन वह गुमसुम सी ही रहती।

1842 में रॉबर्ट के विवाह के साल भर बाद ही टैरेन्स का विवाह हो गया था। और अब उसके पौने दो साल का बेटा भी है। टैरेन्स ने बताया ‘‘दादी बहुत बूढ़ी हो गई हैं। लेकिन फिर भी अपनी छड़ी के सहारे चलती-फिरती हैं। किम अंकल बहुत सफल बिजनेसमैन बन चुके हैं।’’

‘‘और तुम्हारे डैड... क्या वह तुम्हारे साथ रहते हैं या...?’’ रॉबर्ट ने पूछा।

‘‘अलग। उनके एक बेटी भी है जो 23 वर्ष की है। अब उसका विवाह होने वाला है। नई इमारत तो खंडहर पर ही बनती है रॉबर्ट।’’ कहकर वह उठकर भीतर चला गया।

एल्फिन, रॉबर्ट, टैरेन्स मद्रास के आसपास की जगहों पर खूब घूमे। वे समुद्र में तैरते और लौटते हुए ताजी मछलियां खरीद कर लाते। मेहमूद उन्हें कोंकण में बनने वाले मसालों में लपेट कर भूनता। जो बहुत स्वादिष्ट लगतीं। शराब के साथ वे लोग यही खाते। जयकिशन कई-कई प्लेट कच्ची सब्जियों को रख जाता। उबले अंडे जो एक ही तरह के बराबर कटे होते। मेहमूद ने बताया था कि मोटे धागे से अंडे को काटो तो एक समान कटते हैं। छुरी का कालापन भी अंडे में नहीं लगता।

साईमा इंग्लैण्ड के लिए निकल चुकी थी। थोड़े दिनों में टैरेन्स भी चला जाएगा। और फिर ज़िंदगी पिछले वर्षों की तरह अपनी तर्ज पर चलने लगेगी।

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यह शायद उसका भ्रम था कि वह खुश है। टैरेन्स लौट चुका था। एल्फिन ने साईमा को जहाज पर बैठाया और ईस्ट इंडिया कंपनी के आदेश पर वह दिल्ली को चल पड़ा। वहाँ कोई अर्जंट और गुप्त मीटिंग थी। लेकिन दिल्ली इतना तो पास नहीं थी कि जल्द ही पहुँचा जा सकें।

उस रात फ्लावरड्यू ने काफी झगड़ा किया था। उसे न इंडिया में रहना है, न ही और कहीं... बस लौटना है। और रॉबर्ट तुम्हारी ज़िंदगी में औरतें आती जाती रहती हैं। मैं तुम्हारी पत्नी हूँ बस सिर्फ यही मेरी अहमियत है ना? अगर तुम मेरी बातें मानते तो आज रोज़ मटिल्डा जीवित होती। इंग्लैण्ड में अच्छे चिकित्सक हैं। उसकी बहुत अच्छी तरह देखभाल हो जाती...’’ रॉबर्ट भौंचक यह सब सुन रहा था। ‘‘तो मैंने चाहा था कि रोज़ मटिल्डा न रहे।’’ रॉबर्ट रुआँसा हो चुका था।

‘‘हाँ, तुमने चाहा था, तुम बच्चों के दुश्मन हो। कहते हो सेना से इस तरह वापिसी नहीं हो सकती। एक बार तो मेरे पिता से कहा होता। कितनी दूर-दूर तक उनकी पहचान है, पहुँच है। तुम्हारी वापिसी हो जाती। मेरे पिता का इतना बड़ा व्यापार है। तुम भी व्यापार करते। पैसे की कमी नहीं है हमें लेकिन तुम रॉबर्ट किसी की सुनते नहीं हो। अकेले रहे हो तुम। क्या जानो परिवार क्या होता है? कैसा होता है? ’’ कहते हुए वह गई और अपने हाथों में रोल की लीसा की पेन्टिंग उठा लाई...।

उसके साथ और भी स्कैच थे।

और उसके सामने ही नीले शनील के पीले डोरी वाले बटुए में से शंख, सीपियाँ और चाँदी का क्लिप ज़मीन पर बिखरा दिया। इन्हीं सब में तुम जीना चाहते हो? वह लीसा की पेन्टिंग तोड़-मरोड़कर फाड़ना चाहती थी कि रॉबर्ट भागा और पेन्टिंग उसके हाथ से ले ली। पेन्टिंग पर मजबूत पकड़ को छुड़ाने के लिए उसने फ्लावर का हाथ मरोड़ दिया। फ्लावर का हाथ लाल हो उठा। उसकी आँखें आँसुओं से भर उठीं।

‘‘फ्लावर यह मेरा अतीत है।’’ कहते हुए वह शंख-सीपियाँ बटोरने लगा। सभी वस्तुएँ बटुए में वापिस रखते हुए उसने कहा- ‘‘कभी इन चीजों को दुबारा हाथ मत लगाना। मैं तुम्हारा हूँ। लेकिन मेरा अतीत तुम्हारा नहीं है।’’

रॉबर्ट जाकर दूसरे कमरे में बैठ गया। थोड़ी ही देर में फ्लावरड्यू उसके पास आई। ‘‘जहाज में हम लोगों की टिकट बुक करा दो। कल ही जाना है मुझे।’’ उसने गुस्से में थरथराते हुए कहा।

रॉबर्ट ने कुछ नहीं कहा। लेकिन फ्लावर के मुँह से ऐसे कड़वे शब्द निकलेंगे इसके लिए वह तैयार नहीं था।

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जहाज पर उन लोगों को चढ़ाते हुए उसने फ्लावर की ओर बहुत हसरत से देखा था। और चाहा था कि वे उसे इस तरह अकेला छोड़कर न जाए। लेकिन उसे जाना था। यह फ्लावरड्यू की ज़िद थी।

बंगलो पर लौटकर वह अविरल शाँति में घुल गया था। अगर शाँति का मतलब लगी-बँधी लीक के साथ जीना है। जहाँ न अचानक खुशी का झटका लगता है, न किसी खतरे का झोंका आता है और न ही कोई खुशी इतनी उद्वेलित करती है कि उसके साथ दिनों-हफ्तों-महीनों जिया जा सकें।

कितने ही दिन वह बंगले के हर कोने में बच्चों और पत्नी के होने को महसूस करता रहा। पैराम्बुलेटर में विलियम को घुमाती पत्नी को वह देखता रहा। लेकिन कहीं कोई नहीं था। कितनी ही बार वह अवसाद में डूब जाता। जब जयकिशन जो उसकी उठती-गिरती पलकों का हिसाब रखता था। उसको बगैर बताए ही चिकित्सक को बुला लाया था। और कोई दिन होता तो वह जयकिशन की इस हरकत के लिए शायद माफ न करता। बल्कि उसने महसूस किया कि उसे चिकित्सक की सचमुच ज़रूरत थी। चिकित्सक कोई पुर्तगाली था और अनुभवी था। उसने एकदम ही समझ लिया था कि वह अवसाद की स्थिति में है। उसने जयकिशन से अकेले में सारी बातें समझी थीं। ताकि वह सही ढंग से इलाज कर सकें। जयकिशन ने भी निर्भीक होकर सब बता दिया था ताकि उसके मालिक का इलाज हो सकें। उसने जयकिशन को समझा दिया था कि उसे गहरी नींद की आवश्यकता है। शराब वह न पिए और सादा भोजन, जिसमें मुर्गा, मछली न हो, ऐसा सुपाच्य खाना वह खाए।

मेहमूद हैदराबाद गया था। जयकिशन रॉबर्ट के लिए सादा भोजन पकाता और उसके सिर पर और पैरों के तलुओं में तेल की मालिश करके उसे सुला देता। वह सम्पूर्ण सेवा भाव से रॉबर्ट की सेवा करता। रॉबर्ट दिनभर में दो-तीन बार तम्बाखू भरकर पाइप पीता। और माँगता तो जयकिशन कहता, ‘‘नहीं सर, तंबाखू खतम हो गई है। इस स्नेह को रॉबर्ट खूब समझता था।

जॉनी उसके इर्द-गिर्द बना रहता और उसके पलंग के नीचे घुसकर सोता। क्योंकि उसका मालिक बीमार है। जयकिशन रॉबर्ट के लिए एक बेहतरीन नर्स साबित हुआ था। शाम को चिकित्सक आते थे। रॉबर्ट और वह दोनों बातचीत तो करते लेकिन चिकित्सक ही ज्Þयादा बोलते। रॉबर्ट खामोश रहता। फ्लावर के चले जाने से ज्Þयादा, उसके ऊपर रोज़ मटिल्डा की मृत्यु का अपराधी होना उसका अवसाद की स्थिति में पहुँचाना ही था। क्या फ्लावर इतनी निर्दयी हो सकती थी।

वह बरामदे में चुप बैठा रहता। न कोई ड्राइंग, न ही पेन्टिंग...। ऐसे निरर्थक बैठे काफी दिन बीत चुके थे। वह घर से बाहर ही नहीं निकलता था।

जयकिशन कहता - सर, आपके कैनवस आदि लेकर समुद्रतट चलते हैं। तो वह समझ जाता कि यह चाहता है मैं स्कैच वगैरह बनाऊँ। शायद समुद्र को देखकर मेरे अंदर सहज जीवन की आकांक्षा जागे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। क्या वह समुद्र से भयभीत हो रहा था कि यही उसके बच्चों को दूर ले गया है।

काफी दिन बीत गए थे उसे इस अवस्था में रहते। शाम हो चली थी। जयकिशन नीचे बैठकर गीले तौलिए से उसके पैर पोछ रहा था। तभी उसे चर्च के फादर आते दिखे। जयकिशन ने जल्दी से उसे जूते मोज़े पहनाए।

फादर नज़दीक आए तो वे खड़े हो गए। फादर ने आकर उसके सिर पर हाथ रखा।

अर्थात पूरे 40 दिन गुज़र चुके थे उसे अवसाद से घिरे।

‘‘मिस्टर रॉबर्ट, अवसाद कोई बीमारी नहीं है। बल्कि शरीर को खतम होते देखने का एक उत्सव है। इससे बाहर आओ रॉबर्ट। यह धीमा ज़हर है जो शरीर को दीमक की तरह खाता है।’’

‘‘यस फादर, कोशिश करता हूँ, लेकिन अकेलापन बहुत तोड़ता है। मैंने रोज़ मटिल्डा के लिए कब चाहा था फादर कि वह इस दुनिया में न रहे। मेरी पत्नी मुझे अपराधी बनाकर चली गई।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘जाने ही क्यों दिया वाइफ को। मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूँ। मैं प्रेयर करूंगा कि तुम इस उत्सव से बाहर आओ और एक नॉर्मल ज़िंदगी को जियो और अपनी ज़िंदगी के लक्ष्य निर्धारित करो। गॉड ब्लेस यू माइ चाइल्ड।’’ सिर पर हाथ फेरते हुए रॉबर्ट ने देखा कि फादर की आँखें नम हैं। वे वैसे ही लौट गए। मानो कोई फरिश्ता आया था उसे उठाने। उसे अपने भीतर एक ऊर्जा का संचार होते दिखा।

खड़ा हुआ तो उसने महसूस किया कि व्यर्थ ही वह इतना लंबा समय बिस्तरे पर पड़ा रहा। अपने उकताए, उनींदे सिर को उसने एक झटका दिया और अपने चारों ओर के संसार को देखा। इन दिनों काफी बारिश हो चुकी थी।

आज वह अपने बंगले के पीछे ढलवाँ मैदान पर घूमने निकला। वहीं उसके घोड़ों का अस्तबल था। जहाँ उसके तीनों प्रिय घोड़े शायद अपने मालिक का इंतज़ार कर रहे थे। वह चलने लगा तो सामने जॉनी दौड़ने लगा। मैदान तक जाने के लिए उसके बंगलो से लाल पत्थरों की एक पगडंडी थी। दोनों ओर यूकिलिप्टस के पेड़ थे। कहते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व यहाँ जो ब्रिटिश मेजर रहता था उसने यह पगडंडी बनवाई थी। यह लाल पत्थर सदैव चमकता रहे तो इसमें हजारों अंडों की सफेदी डाली गई थी। जिस पर पानी, धूल, हवा का कोई असर नहीं होता था। और यह हमेशा चमकती रहती थी। यही हिस्सा था जो मिसिस रिकरबाय को बहुत पसंद था। और फिर फ्लावर को भी पसंद आने लगा था। वह अपनी माँ को इसी लाल पत्थरों की पगडंडी से अस्तबल को जाते देखती रहती थी। फिर वे घोड़े पर सवार होकर दूर निकल जाती थीं।

अब वह मैदान के ढलवाँ रास्ते पर जिसमें मखमली घास बिछी थी उतरने लगा था। उसे आता देख अस्तबल के कर्मचारी हरकत में आ गए थे।

जॉनी कभी रुकता कभी आगे दौड़ता। वह अपने मालिक के साथ जा रहा था तो बहुत खुश था।

अस्तबल के पास रॉबर्ट पहुँचा तो पता चला फेंटम थोड़ा बीमार है। वह नाराज़ हुआ। लेकिन वहाँ के सुपरवाइजर ने बताया कि जानवरों के चिकित्सक को दिखा दिया है। उन्होंने जो औषधियाँ दी हैं, वह दी जा रही हैं। वह ठीक भी हो रहा है। वह अपने मालिक को देखकर खड़ा भी हो गया था। रॉबर्ट ने उसे प्यार किया। चेंडोबा उसे देखकर गर्दन हिला रहा था। चंदोबा उसका नाम था क्योंकि वह चाँद की तरह सुंदर सफेद है। लेकिन रॉबर्ट उसे चेंडोबा कहता है। उसने तीनों घोड़ों को प्यार किया और लौटने लगा। तब तक जॉनी तीनों घोड़ों पर भौंककर अपना रुआब दिखा चुका था। रॉबर्ट के साथ वापिस चलते हुए भी वह मुड़-मुड़कर घोड़ों पर भौंक लेता। रॉबर्ट ने उसे डाँटा तो वह चुप होकर चलने लगा। उसे इंडी-डॉग्ज़ बहुत पसंद थे।

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फादर के कहने के बाद वह उठकर खड़ा तो हो गया लेकिन अवसाद से बाहर आ जाने में उसे थोड़ा समय लग रहा था। लेकिन कोई ‘दु:ख’ था जो उसे मथे जा रहा था।

उसने फादर से कहा तो था कि मैं कोशिश करूंगा लेकिन यह अकेलापन... कितने समय से कोई साथ नहीं है। वह पिछले घटनाक्रमों में खो जाता। कभी लीसा की पेन्टिंग, तो कभी मि. ब्रोनी से लम्बी बातचीत, तो कभी डोरा के लिए टैरेन्स के साथ जाना। पिछला सब कुछ दृश्य बन-बनकर सामने आने लगता है। अगाथा आंट की पूरी ज़िंदगी मि. ब्रोनी के शब्दों में आँखों के आगे घूम जाती है।

रॉबर्ट सोचता है कोई भी पत्नी क्यों सहन करेगी कि उसका पति अन्य स्त्रियों के साथ संबंध बनाए। फिर उसे दु:ख भी हुआ था कि फ्लावरड्यू के सामने उसने शंख और सीपियाँ बटोरी थीं और चाँदी का क्लिप सम्हाल कर रखा था। फ्लावरड्यू का क्रोधित होना एक सामान्य घटना थी। फिर वह क्यों इतना उखड़ा?

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फ्लावर ड्यू के जाने के बाद वह कितने ही दिन अपने को सम्हालता रहा था। समुद्र तट पर एनी से मुलाकात के बाद और उसके बीच-बीच में घर में आने के पश्चात उसे लगा था कि वह शायद फ्लावर ड्यू की कड़वाहट को भूल चुका है। लेकिन बिना बताए ही एनी कहीं चली गई थी, और वह इतना अकेला हो गया था कि अवसाद की स्थिति में पहुंच गया था।

अँधेरे की चादर उसे ढक ही लेती कि उसने देखा कितने दिनों बाद ऐनी उसके गेट पर खड़ी है। वह खुशी से पागल हो उठा। ऐनी सफेद रंग का फूलों वाला लंबा फ्रॉक पहने थी। गले में फ्रिल लगा हुआ था। बाँहों की आस्तीनों में भी फ्रिल और उसके एक हाथ में सुनहरी चेन में लटका बटुआ और दूसरे हाथ में सफेद झालरवाला बड़ा हैट था।

ऐनी के बरामदे में आते ही रॉबर्ट ने उसे लिपटा लिया। जयकिशन भीतर चला गया। ‘‘कहाँ थीं तुम इतने दिन?’’ रॉबर्ट ने बहुत प्रेम से उसे सामने पड़ी कुर्सी पर बिठाया।

मोगरे के फूलों की लताएँ बरामदे में लटकी थीं। उनमें सफेद कलियाँ झाँक रही थीं। पूरा बरामदा लताओं की गंध से महक रहा था।

‘‘मैं ऊटकमंड में थी। वहाँ डैड बीमार पड़ गए। वहाँ पूरे दो महीने रहना पड़ा। हाँलाकि उनका काम पंद्रह दिन का ही था। ’’

‘‘तुम्हें खबर भेजना था या जाने से पहले मिल के जाना था।’’ रॉबर्ट ने कहा।

ऐनी ने रॉबर्ट के हृदय में अपनी अहमियत समझी और सिर नीचे झुका लिया।

उस नए लड़के ने जो मेहमूद के जाने के बाद रख लिया था, जयकिशन ने उसके द्वारा पानी भिजवाया जो उसने पास ही रखी तिपाई पर रखा और फौरन अंदर चला गया।

जयकिशन तब तक गिलासों में नारियल पानी भर चुका था। लेकर आया-‘‘मैडम सर बहुत बीमार पड़े। हफ्तों बिस्तर पर ही।’’

‘‘ओह! जॉय यह सब चलता रहता है।’’ लेकिन रॉबर्ट को बताना पड़ा कि वह डिप्रेशन में था। उसने फ्लावरड्यू के साथ घटी घटना भी बताई। और फिर दूर कहीं देखने लगा।

‘‘सर, भीतर चलें। दरवाजे, खिड़कियाँ बंद करनी होंगी। वरना मच्छर भीतर आ जाएंगे।’’ जयकिशन ने भीतर चलने का आग्रह किया।

‘‘हाँ, भीतर चलो ऐनी कि इसके पहले अँधेरा घर के भीतर खिड़कियों से न आ जाए।’’

जयकिशन और ऐनी ने एक दूसरे की ओर देखा। और वे भीतर चले गए।

रॉबर्ट सोफे पर टिककर बैठ गया। वहाँ पहले ही से छोटे-बड़े तकिए रखे थे। जिन्हें रॉबर्ट सिर के नीचे रख लेता था।

‘‘आज हम डिनर साथ करते हैं।’’ रॉबर्ट ने प्यार से कहा।

ऐनी मना नहीं कर पाई।

खाने की टेबिल पर रॉबर्ट स्वयं तो कुछ नहीं खा रहा था। लेकिन अपनी मनपसंद चीज़ें वह बड़े कटोरे में से उठा-उठाकर उसकी प्लेट में रखता जा रहा था।

कितना खिलाएंगे मिस्टर रॉबर्ट?’’ ऐनी ने कहा।

रॉबर्ट चौंक पड़ा। फिर वह भी खाने लगा। आज कोई शराब वगैरह नहीं पी उसने। चिकित्सक ने मना जो किया था।

डिनर के पश्चात वे लोग फिर बैठक में आ गए। रॉबर्ट काउच पर बैठ गया। और उसने ऐनी का हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। उसने ऐनी को चुंबनों से सराबोर कर दिया।

आगे बढ़ने से पहले उसने रॉबर्ट को रोक दिया। ‘‘शरीर को समूचा पा लेना ज़िंदगी नहीं कहलाती मिस्टर रॉबर्ट।’’

‘‘ मैं तुम्हें प्रेम करने लगी हूँ रॉबर्ट...। मैं समर्पण भी कर सकती हूँ। लेकिन जब तक यह विश्वास न हो जाए कि तुम भी मुझे प्रेम करते हो। मैं जानती हूँ कि तुम अभी अवसाद से बाहर आए हो। और यह भी जानती हूँ, कि तुम स्ट्रांग हो दुबारा वैसी स्थिति में नहीं जाओगे। अवसाद से बाहर आना सिर्फ अपनी विलपावर पर निर्भर करता है रॉबर्ट।’’

‘‘मैं प्रतीक्षा करूंगी रॉबर्ट तुम्हारे प्रेमभरी स्वीकारोक्ति की। मैं यहीं बताने आई हूँ कि मैं इंग्लैण्ड वापिस जा रही हूँ। डैड ने लम्बी छुट्टी ली है। वे दुबारा लौटेंगे। मैं भी लौटूंगी... जब तुम चाहोगे रॉबर्ट। दुबारा बता रही हूँ रॉबर्ट, मैं तुमसे प्रेम करने लगी हूँ। मैं तुम्हारी हूँ रॉबर्ट...।’’

रॉबर्ट ने उसे अपने सीने में छुपा लिया। वह इस स्पर्श को समझ गई। वह रोने लगी। रॉबर्ट के हृदय में उसके प्रति प्रेम है। वह प्रतीक्षा करेगी। रॉबर्ट ने उसे पुन: चूमा। उसके बाल, माथा, गालों, पलकों पर चुम्बन लिया।

तुम्हारी मूर्ति लेकर जा रही हूँ। डैड तो मूर्ति देखते ही समझ गए थे ‘‘रॉबर्ट गिल।’’ उन्होंने कहा था। और यह भी कि उनकी बेटी के हृदय में कहीं प्रेम का अंकुर फूट चुका है। ‘‘रॉबर्ट, तुम्हें बहुत याद करूंगी।’’ वह उठी और पुन: रॉबर्ट से लिपटी।

रॉबर्ट उसे गेट से बाहर जाते देखता रहा। धुली हुई चाँदनी में ऐनी की फूलों वाली सफेद फ्रॉक चाँदनी में और ज्Þयादा घुल गई थी। वह मुड़-मुड़कर देखती रही और रॉबर्ट हाथ हिलाता रहा। नज़रों से वह ओझल होती गई। उसने देखा खिड़कियों से अँधेरा नहीं उजली चाँदनी भीतर आ रही थी। वह व्यर्थ ही अँधेरे को लेकर विचलित होता रहा था।

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‘प्रेम की अजब परिभाषा लिख गई थी ऐनी।’ रॉबर्ट ने सोचा।

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उसने लम्बी छुट्टी के लिए आवेदन दे दिया। जयकिशन को समझाया कि यदि छुट्टी स्वीकृत हो गई तो वह इंग्लैण्ड जाएगा। लेकिन तुम्हें यहीं रहना है जॉय। यह बंगलो, इसकी देखभाल, घोड़े और जॉनी... तुम्हें ही देखना होगा। मुझे ऐसा लगता है जॉय कुछ समय वहाँ रहूँगा तो अच्छा लगेगा।’’

जयकिशन चिन्तित हो उठा। ‘‘सर आप अकेले। इतनी लम्बी समुद्री यात्रा?’’

रॉबर्ट समझ नहीं पाया कि क्या उत्तर दे। कहा-‘‘पहले छुट्टियाँ मिलने दो।’’

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जयकिशन उदास और रोया-रोया-सा था। एक अंग्रेज के प्रति उसका इतना प्रेम... वह अपने आप से पूछता है।

रॉबर्ट के जाने से घर सूना हो चुका है। लेकिन मैडम के पास जाना उचित ही था। क्योंकि तभी आपसी संबंध सुधरेंगे।

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रॉबर्ट को अचानक सामने देखकर टैरेन्स अचंभित रह गया। दोनों लिपट गए। आँखे भर आईं टैरेन्स की। ‘‘हाँ! मुझे मालूम हुआ था कि तुम बीमार भी थे।’’ वह उस रात टैरेन्स के घर रुका। टैरेन्स के सुन्दर से बेटे को देखकर वह बहुत खुश हुआ। उसकी पत्नी सुंदर और घरेलू महिला है। उसने रॉबर्ट के लिए विविध प्रकार की डिशेज़ बनाईं। रॉबर्ट को अफसोस हुआ कि वह पहली बार टैरेन्स की पत्नी और बेटे से मिल रहा है और उनके लिए कोई गिफ्ट नहीं लाया।

वह दूसरे ही दिन सेन्ट ल्यूक चेलसिया जाना चाहता था। उसने फ्लावर की नाराजगी और उसकी कड़वाहट को बताया। टैरेन्स क्या फ्लावरड्यू मान जाएगी। और मेरे साथ वापिस चलेगी।

लम्बे प्रवास और छुट्टियों को वह पूरी तरह महसूस करना चाहता था। इंडिया जाकर उसने सफलता, यश के तो ऐसे कोई काम नहीं किए थे कि इंडिया उसे पुकार रहा है। उसने निश्चय किया कि वह इस भ्रान्ति को तोड़ेगा। और फ्लावरड्यू कहे अनुसार यहीं रहना चाहेंगा।

पूरा रिकरबाय खानदान रॉबर्ट को देखकर चौंक पड़ा। सभी आनंदित हो उठे। दोनों बच्चे रॉबर्ट से लिपट गए। उसने दोनों को ही गोद में उठा लिया। फ्लावरड्यू का रोम-रोम पुलकित हो उठा। वह मुस्कुराई और कहा-‘‘मैं जानती थी कि तुम आओगे रॉबर्ट।’’

शाम को दोनों साथ ही घूमने निकले। सड़क के दोनों ओर शाहबलूत (उँी२३ल्ल४३२) के लाल चटकीले पत्ते अपनी छटा बिखेर रहे थे। लम्बी सड़क इन चटकीले लाल पत्तों से भरी थी। रॉबर्ट ने फ्लावरड्यू का हाथ पकड़ लिया।

‘‘तुम्हारे बिना नहीं रह पाता फ्लावर।’’ उसने भावुक होकर कहा।

‘‘मैं भी कहाँ रह पाती हूँ रॉबर्ट।’’ उसका स्वर भी भीगा हुआ था।

‘‘फिर गई ही क्यों? जानती नहीं तुम... मैं बीमार...।’’ उसने रॉबर्ट का हाथ ज़ोरों से दबा दिया।

‘‘कुछ मत कहो, मुझे टैरेन्स ने सब बता दिया था। तुम अवसाद की गंभीर स्टेज से गुज़रे हो। लेकिन उबर गए। यह तुम्हारी विल पावर है रॉबर्ट। मुझे सचमुच खेद है रॉबर्ट कि मुझे तुम्हारे ऊपर रोज़ मटिल्डा की मृत्यु की वजह नहीं थोपनी चाहिए थी। अगर मैं भी वहाँ रुकती तो शायद तुम्हारे लिए इतना सोचने समझने का मौका नहीं मिलता।’’ रॉबर्ट ने उसके मुलायम हाथों को पकड़ लिया। दोनों स्थिर खड़े हो गए। सड़कें सिमट गईं।

वे दोनों अलिंगनबद्ध हो गए। सड़कें सुनसान थीं। सिर्फ शाहबलूत के चमकदार लाल पत्ते इस पुन: मिलन के गवाह बन गए।

‘‘अब नहीं जाओगे न रॉबर्ट?’’

‘‘नहीं। लेकिन तुम अपने डैड को कहकर सेना से मेरा रिटायरमेन्ट करा दो।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘ज़रूर।’’ फ्लावरड्यू की आँखें भरी हुई थीं।

विलियम और फ्रांसिस अपनी नानी के पास सोने चले गए। रात का भोजन निपट चुका था। अब खाने की टेबिल पर न ही रॉबर्ट गुमसुम था, न ही फ्लावर... जैसा कि दोपहर के समय हुआ था।

कमरे में पहुँचकर रॉबर्ट और फ्लावरड्यू ने ढेरों बातें कीं। दोनों एक दूसरे को महसूसते हुए एक दूसरे में समाते हुए सारी रात जागे। दूसरे दिन देर तक सोते रहे। तब तक, जब तक बच्चों ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया।

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एक अलग कमरे में रॉबर्ट ने प्यानो रखवा लिया था। उसकी इच्छा थी कि अपने वाद्य और संगीत के शौक को वह आगे बढ़ाएगा। सेना के स्कूल में वह प्यानो, माउथ आॅर्गन बजाने में पारंगत होता जा रहा था। लेकिन बीच में लम्बा गैप आ गया था। उसने बीथोवेन के प्यानो कान्सर्ट की कई किताबें खरीद लीं। वह इन किताबों में दिए मार्गदर्शन पर आगे बढ़ने लगा। और प्यानो बजाने में माहिर होता गया। उसका बरसों का शौक कितनी तत्परता से पूरा हो रहा था। वह स्वयं आश्चर्य करता था। बीथोवेन जर्मन संगीतकार और प्यानो वादक थे। वे यूरोपीय कला संगीत में शास्त्रीय और प्रेमपूर्ण युग के पर्याय थे। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में अन्य वाद्यों को छोड़कर पाँच प्यानो कान्सर्ट थे।

फ्लावर प्यानो के सामने रखे सोफे पर कुशन लगाकर मंत्रमुग्ध अधलेटी बैठी रहती थी। वह रॉबर्ट के इस शौक से पूर्णत: अपरिचित थी। माऊथ आॅर्गन रॉबर्ट बजाता है यह उसे पता था। वह यूरोपियन गानों की स्वरलहरियाँ बदलकर बजाता था।

फ्लावरड्यू गर्भवती थी। अभी तीसरा महीना शुरू हुआ था। रॉबर्ट की छुट्टियाँ अब खतम होने को थीं। फ्लावरड्यू को पूरा विश्वास था कि उसके डैड सेना से उसकी स्वैच्छिक निवृत्ति (रिटायरमेन्ट) करवा देंगे। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी शासन में उनकी भरपूर पहचान होने के बावजूद वे ऐसा नहीं करवा पाए। अब जबकि रॉबर्ट ने पूरा मन बना लिया था इंग्लैण्ड में ही रहने का तो पता चला कि उसे महाराष्ट्र के जालना में अपनी ड्यूटी ज्वाइन करनी है।

फ्लावरड्यू ने यह चौंकाने वाला समाचार रॉबर्ट को दिया था। वह इस तरह लंबी छुट्टी लेकर नौकरी से रिटायरमेन्ट नहीं ले सकता। वरना उसे न्यायप्रक्रिया और मिलने वाले पनिशमेन्ट को भुगतना होगा। किसी भी प्रकार की स्थिति के लिए रॉबर्ट गिल स्वयं जिम्मेदार होगा।

फ्लावर घबरा गई थी। ‘‘रॉबर्ट मैं भी साथ चलूँगी। तुमने तो अपनी कोशिश करके देख लिया। लेकिन तुम अकेले जाओ इसकी हिम्मत मैं नहीं कर पा रही हूँ।’’

रॉबर्ट क्या भीतर से खुश था। सच तो यह है कि उसने फ्लावरड्यू के कारण वहीं रहने का निश्चय किया था।

संदूक और लकड़ी के खोखे शीघ्रता से भरे जा रहे थे। ईस्ट इंडिया कंपनी का आदेश दिखाकर उनकी सीटें बुक की गईं।

एक लम्बी यात्रा...

लंदन में फिर वे लोग टैरेन्स के घर रुके। रात डिनर के समय हल्की-फुल्की बातों के पश्चात टैरेन्स और रॉबर्ट विदेशी तम्बाखू और वहीं से आया पेपर खरीदने (जिसमें तम्बाखू लपेटते थे। फिर उसे जलाकर धीमे-धीमे पिया जाता था) सड़क पर निकल आए।

पुराने बीते दिनों की तरह वे लोग पत्थर की उसी पुलिया पर बैठे... जो अब बीच से टूट गई थी। इसी पुलिया पर बैठकर वे दोनों अपने खोए हुए प्यार लीसा और डोरा की चर्चा करते थे।

आज रॉबर्ट की ज़िंदगी का एक प्रेम प्रसंग फिर सामने था।

रॉबर्ट पिछले दिनों में जब यहाँ एक प्रदर्शनी में गया था, वहाँ इंडिया से लौटी ऐनी लूसी की मूर्तियों और मिट्टी से बनाई कलाकृतियों की प्रदर्शनी थी। मैं इत्तफाक से उस प्रदर्शनी में गया था। वहाँ इंडिया के रॉक कट मंदिरों की प्रतिकृति, वहाँ के भव्य दरवाजे, कमान, उन पर बारीक नक्काशी, दिल्ली की कुछ ऐतिहासिक गुंबद आदि थे और आगे बढ़ते हुए मैंने देखा... रॉबर्ट तुम थे। कंधे तक बनाई तुम्हारी कलाकृति... वह बेचने के लिए नहीं थी। उस पर एक पर्ची चिपकी थी- ‘‘नॉट फॉर सेल।’’

‘‘ऐसा कैसे रॉबर्ट?’’

रॉबर्ट ऐनी का नाम सुनते ही चौंक गया। वह धैर्य से सारी बातें सुनता रहा था। फिर उसने धीमे से कहा- ‘‘ऐनी तुम यहाँ हो? ... इतनी पास... मैं मिल भी नहीं सका तुमसे... लेकिन...’’

‘‘कुछ कह रहे हो रॉबर्ट?’’ टैरेन्स ने कहा।

‘‘नहीं! कुछ नहीं।’’ कहते हुए वह पुलिया से उठ गया।

‘‘तो तुम ऐनी को नहीं जानते रॉबर्ट?’’

‘‘जानता हूँ टैरेन्स... क्या बताऊँ? वह बहुत मासूम लड़की है।’’ कहकर वह तम्बाखू के रोल किए कागज़ की चिनगारी को फूंकने लगा। होठों से फूँकते हुए मुँह, नाक से धुआँ निकालने लगा। अँधेरे में चिनगारियाँ चमक रही थीं।

टैरेन्स जानता था कि रॉबर्ट फिलहाल कुछ बताने की स्थिति में नहीं है।

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