Junoon Se Bhara Ishq - 31 books and stories free download online pdf in Hindi

Junoon Se Bhara Ishq - 31

Apno se mila dhokha

ललिता जी की गुस्से भरी आवाज सुन प्रिया वही ठीठक गई। जैसे उसने अपने कदम आगे बढ़ाए जैसे उसने अपने कदम आगे बढाने से रोके अचानक ललिता जी सामने आ गई। और एक थप्पड उसके गाल पर जड दिया। सट्टाक . . . . . . . . . .

ललिता :- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई वापस से, कौन था वो आदमी जो तुम्हे होटल से उठा कर ले गया था ?

यहा तक की कितनी राते दिन से घर से बहार रही। और वो चेतन तक गायब है। तुमसे इतने साल मे एक चीज कही थी सामने को तुमने वो भी खराब कर दी।

बताओ कहा थी तुम और कौन था वो आदमी ?

प्रिया थप्पड पडते ही सन्न रह गई। उसने गाल पर हाथ रखे हुए अपनी मां को देखा जिनकी आंखे मे उसके लिए सिर्फ नफरत और बेहिसाब गुस्सा था। प्रिया के आंसु उसकी आंखो से निकल कर गालो पर आने ही वाले थे की उन्हे उसे कंट्रोल कर लिया।

प्रिया :- मॉम ! एक बार मेरी बात सुन लो।

पर ललिता जी तो आज उसे बक्ष ने के मूड मे बिल्कुल भी नही थी। उन्होने प्रिया के बोलते ही एक और थप्पड मार दिया। सट्टाक . . . . . . . . . प्रिया की राइट आंख से एक आंसु निकल कर गाल पर आ गया। दिल मे हजार ददॅ एक साथ उभर आये।

ललिता :- तेरी वजह से हमारी फैमिली की कितनी बेइज्जती होगी, तुमने एक बार भी नही सोचा।

किसी गेर मदॅ के साथ बहार गुलछर्रे उडाते हुए शमॅ नही आई तुझे।

ललिता जी ने जैसे ही उसे एक और थप्पड मारने के लिए हाथ उठाया प्रिया डर कर पीछे हट गई। पर वो उससे ज्यादा पीछे जा पाती उससे पहले ही वहा खडी रुबी उसके पीछे आकर खडी हो गई।

जिसे वो और न हट पाई।

प्रिया :- मॉम ! एक बार मेरी बात सुन लो प्लिस।

ललिता जी को तो जैसे गुस्से मे कुछ सुनाई नही दे रहा था। उन्होने उसे नीचे धक्का दे दिया। जिससे प्रिया फशॅ पर गिर गई। उसे जल्दी से अपने स्रव को सामने से पकड लिया क्योकी अंदर पहना टोप काफी ढीला था।

जिसका गला आगे की तरफ हो गया था। उसे डर था की कही उसके गले पर और सीने पर लगे लाल निशान ललिता जी को दिखाई न दिये जाये। क्योकी फिर शायद बात और बिगड जाएगी। पर वही हुआ जिसका डर था।

ललिता जी ने उसके गिरते ही उसके सीने पर और गले पर वो लाल निशान देख लिये। निशान देख जैसे उसका गुस्सा मानो आसमान तक पहुंच गया।

ये लडकी इमानदार और सीधी होने का ढोंग कर रही थी अब तक। उन्होने नीचे बैठ कर उसके बालो को पकड लिया। जिसे प्रिया का सर उपर उठकर गया।

ललिता :- तो इतने दिन उस लडके के साथ थी ना तुम। जो उस दिन तुझे ले गया था। हंहहहहह . . . . . . . बोल।

प्रिया की आंखो से आंसु की धार गिर गई। उसे समज नही आ रहा था की वो क्या कहे वो ये भी नही समझ सकती थी जिस इंसान से उसका नाम जोडा जा रहा था। वो तो उस इंसान के घर मे पालतू जानवर की तरह रखी गई है।

या यू कहे की खिलौने की तरह जो हर रात उसके साथ खेल रहा था। पर ये चाह कर भी उसकी मां के सामने नही कहे सकती थी। काश की वो बता पाति तो शायद अपनी मां से ऐसे शब्द ना सुनने पडते उसे।

पर उसे अब आदत हो गई थी। बेइज्जती सहने की इतने सालो से तो वो यही तो करती आई थी।

ललिता :- तो तू नही बतायेगी ना, हंहहह ठीक है। तो अब मेरी बात भी कान खोल कर सुन ले।

अब तक तुझे पाला, पोसा, हर शौख पूरे किये, जो मागा तुझे वो मिला, पहली बार तुझसे कुछ कहा था। और तुने वो भी सत्यानाश कर दिया।

तेरी वजह से हमारी फैमिली की कितनी बदनामी होगी तुने ये भी नही सोचा।

तेरी बहन की शादी मल्हौत्रा परीवार नामी गिनामी परिवार मे हुई है। अगर उन्हे पता चला तो।

नही ! अब तेरी वजह से मै इसकी जिंदगी खराब नही कर सकती।

आज के बाद इस घर मे आने की कोई जरूरत नही है। आज से बल्कि अभी से तेरा इस परिवार से कोई नाता नही है।

समझी तु।

मै नही चाहती तेरी वजह से मेहरा परिवार की इज्जत पर दाग लगे।

इसलिए आज से तेरा इस परिवार से कोई रिश्ता नही है। हंहहहहहह

ललिता जी की बात सुन प्रिया सन्न रह गई। उसका शरीर कांप ने लगा। उसकी मां उसे मेहरा परिवार से सारे रिश्ते तोडने के लिए कह रही है। वो तो यहा सब कुछ डिसकस कर सॉल्व करने आई थी।

नजाने क्यू पर उसे उम्मीद थी। छोटी ही सही पर शायद उसकी मां उसे अपना ले। पर यहा तो रिश्ता ही खत्म हो गया। और वो भी हमेशा के लिये।

ललिता :- रुबी ! इसे यहा से निकालो। अभी के अभी।

रुबी :- यस मैम !

ये सब सुन उसके आंसु जरूर सुख गये थे। और उसका दिल रो रहा था। जिसकी आवाज कोई नही सुन सकता था। आज उसके ददॅ की कोई सीमा नही थी।

वो आहिस्ता से खडी हुई। अब यहा रुकने का कोई मतलब भी तो नही रह गया था। क्योकी उसकी मां उसे सुनना ही नही चाहती थी तो विश्वास करना तो बहुत दूर की बात थी।

खडे होते वक्त उसकी कोहनी मे उसे ददॅ होने लगा। शायद गिरने की वजह से चोट लग गई थी। पर ये चोट उसके चोट के सामने कुछ नही थी। जो अभी कुछ देर पहले उसकी मां ने उसे दी है।

वो आगे बढ कर ललिता जी के पास आई। जो रुबी को ओडॅर देकर पलटकर खडी हो गई थी।

प्रिया :- आप चाहती हो ना, की मै यहा से चली जाऊ। तो ठीक है अगर आपको इसमे खुशी मिलती है तो यही सही, मै यहा से जा रही हू।

हमेशा हमेशा के लिए, आप अपना ख्याल रखना।

ललिता :- हंहहहह ! बगैर मै कोई मर नही जाऊगी।

प्रिया :- जानती हू। पर फिर भी आपको थैंक यू कहना चाहती हू। थैंक यू मॉम ! मुझे इस दुनिया मे लाने के लिए, मुझे ये जिंदगी देने के लिए थैंक यू वेरी मच !

बस आपको इतना बताना था की मै ने कभी भी इस परिवार के बारे मे बुरा नही सोचा और इसे नीचा दिखाने का तो मे सपने मे भी नही सोच सकती हू।

ललिता :- दफा हो जाओ यहा से। तुम अपनी मीठी मीठी बातो मे मुझे फसा नही सकती।

समझी ! ! !

मेरा फैसला अब नही बदलेगा। तेरा अब इस परिवार से अब कोई लेना देना नही है। तो निकल यहा से।

उनकी बात सुन उसके पास कहने के लिए को कुछ था ही नही। वो पलट गई और जाने के लिए आगे बढ गई। अब यहा से एक सेकेंड भी रुकने का उसका दिल नही कर रहा था।

प्रिया के शरीर मे अब जैसे ताकत ही नही बची थी। हर एक कदम के साथ उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो जमीन पर गिर पडेगी। जैसे तैसे वो खुद को संभाले बहार जा रही थी।

रुबी प्रिया के पीछे पीछे चली गई। ये देखने की वो सच मे जा रही है या नही। या कही वापस ना आ जाये।

रुबी :- इसे कहते है किस्मत ! बिचारी क्या फायदा हुआ इतने बडे घर मे जन्म लेने का। आखिर आज खुद की ही मां ने उसे कबाब की तरह घर से बहार निकाल कर फैक दिया। बहुत बुरा प्रिया मैम आपके साथ तो।

वैसे आपको देख कर लग रहा है की इतने दिनो मे आपने काफीष्च्छा टाइम स्पेंड किया है।

उस आदमी के साथ। तो इस घर से निकल ने के बाद भी कुछ खास फर्क नही पडने वाला मेरे ख्याल से आपकी लाइफ मे।

प्रिया जो दरवाजा क्रोस कर चुकी थी। अचानक ही रुबी की बात सुन कर पलट गई। रुबी उसको ही देख रही थी। और कुछ समज पाती उससे पहले ही प्रिया ने उसके गाल पर थप्पड रसीद दिया।

सट्टाक . . . . . . . . . . . .

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