Anokha Milan in Hindi Short Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अनोखा मिलन

अनोखा मिलन

फुटपाथ पर रहने वाली शांति बहुत समय से बीमार थी। उसका पति दो वर्ष पहले ही उसे छोड़ कर परलोक सिधार गया था। शांति का जीवन फुटपाथ पर शुरू हुआ था और उसे लग रहा था कि वहीं उसके जीवन का अंत भी हो जाएगा। इस तरह सोचते हुए शांति की नींद लग रही थी, किंतु बार-बार बाजू में सोते अपने बेटे के लिए वह चिंतातुर हो जाती और उसकी नींद लगने से पहले ही  खुल भी जाती। छोटी-छोटी बीमारियों ने दवा ना मिलने के कारण बड़ा रूप ले लिया था, ऊपर से बच्चे की चिंता। यदि उसका मुन्ना, प्रेम ना होता तो वह शांति से मर जाती, लेकिन प्राण भी निकल नहीं पा रहे। ऊपर से हर साल दो साल में फुटपाथ भी बदलना पड़ता है। नए लोग अजीब तरह के होते हैं, कभी बहुत अच्छे और कभी बहुत ज़ालिम। विचारों का बड़ा बवंडर शांति के दिमाग में चल रहा था।

यह सब सोचते-सोचते ही वह सो गई। सुबह सूरज निकल आया, उसका बेटा प्रेम जो कि पाँच वर्ष का था वह भी उठ गया। वह अपनी माँ को बार-बार आवाज़ देकर उठा रहा था। लेकिन माँ की नींद ज्यादा ही गहरी लग गई थी। अपने बच्चे की रोती बिलखती आवाज़ से भी वह उठ नहीं पाई। फुटपाथ के कुछ लोगों ने देखा और प्रेम को कहा तेरी माँ तो मर गई। प्रेम इतनी कम उम्र में मरने का मतलब भी नहीं समझ पा रहा था। उसकी आँखों के सामने उसकी माँ को उठाकर ले जाने लगे। प्रेम रोता हुआ पीछे-पीछे चल रहा था। प्रेम का हाथ लगवा कर उसकी माँ को अग्नि के हवाले कर दिया गया। अपनी माँ को इस तरह जलता देख कर प्रेम डर गया और बिना किसी को बताए वहां से भाग गया।

रात होने को आई प्रेम फुटपाथ पर वापस नहीं आया, उसके पड़ोसी उसकी चिंता कर रहे थे लेकिन इतना सोचने की उनमें समझ ही नहीं थी कि उसे ढूँढने की कोशिश करें। रात बीत गई किंतु प्रेम नहीं आया अब तक वह लोग प्रेम और उसकी माँ का सामान इस्तेमाल में ले चुके थे।

प्रेम भाग कर एक दूसरे फुटपाथ पर जाकर सो गया, लेकिन वह ठंड में कांप रहा था। उसके पास कोई कपड़ा नहीं था, कंबल नहीं था सिर्फ़ एक जोड़ी कपड़े उसके बदन पर थे । रात को ठिठुरता प्रेम कराह रहा था। तभी उस फुटपाथ पर एक अधेड़ उम्र का अंधा आदमी आया, उसने कराहने की आवाज़ सुनी और उस तक पहुंच गया। टटोलने से उसे पता चल गया कि कोई छोटी उम्र का बच्चा है। उसने अपनी पोटली में से एक कंबल निकाला और उस बच्चे को ओढ़ा  कर ख़ुद भी उसके ही पास लेट गया। प्रेम को लगा मानो उसकी माँ वापस आ गई और वह अपनी माँ समझ कर उस बाबा से लिपट कर सो गया।

सुबह नींद खुलते ही उसने देखा तो डर गया। इससे पहले कि वह कुछ कहे बाबा ने पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है बेटा?"

प्रेम उसकी प्यार भरी आवाज़ सुनकर बोला, "बाबा मेरा नाम प्रेम है"

फ़िर बाबा ने उसके बारे में जो पूछा, प्रेम ने सब बता दिया। प्रेम की बातों से बाबा समझ गए कि इसे लग रहा है फुटपाथ के लोगों ने उसकी माँ को जला दिया है। तब बाबा ने उस बच्चे को जीवन के कटु सत्य से वाकिफ़ करवाया। अब प्रेम को भी समझ आ गया कि उसकी माँ मर गई और अब कभी भी वापस नहीं आएगी।

उसके बाद प्रेम और बाबा साथ में रहने लगे। बाबा के पास एक खुद के हाथों का बनाया हुआ वायलिन था। जिसके साथ गाना गाकर वह पैसे कमाते थे। उसी पैसों से दोनों का गुज़ारा चलने लगा। बाबा के साथ रह कर प्रेम भी गाना सीख गया और वह सच में अच्छा गाता था। उसका गाना सुनकर उन्हें काफी पैसे मिलने लगे और दोनों साथ में ख़ुशी से ज़िंदगी बिताने लगे।

मजबूरी में मिले दो इंसान जिनका ना ही खून का रिश्ता था, ना ही दोस्ती का, ना उम्र एक जैसी थी और ना जाति धर्म का कुछ अता पता था। यदि कुछ था तो वह थे हालात। दोनों दुनिया में अकेले थे, गरीब और बेसहारा। ऐसे में वह एक दूसरे का सहारा बन गए। साथ रहने से प्यार किसे नहीं हो जाता। एक दूसरे के साथ ने उन्हें साथ-साथ जीने की आदत डाल दी। पिता-पुत्र की तरह प्यार करने लगे थे वह दोनों एक दूसरे को। प्रेम तो बाबा की आँखें ही बन गया था, मानो उनकी लाठी हो।

हमेशा बाबा का हाथ थाम कर चलने वाला प्रेम धीरे-धीरे अब बड़ा हो रहा था। वह हमेशा अपने बाबा की आँखों के लिए दुःखी रहता था। एक दिन उसने बाबा से कहा, “बाबा मैं बड़ा होकर ख़ूब सारा पैसा कमा लूंगा फिर आपकी आँखों का ऑपरेशन भी करवाऊँगा।”

“नहीं प्रेम यह संभव नहीं है। इतना पैसा हम कहां से लाएंगे बेटा।”

“बाबा पैसों की चिंता तुम मत करो। मैं दिन रात मेहनत करूंगा, मजदूरी भी करूंगा लेकिन तुम्हें यह दुनिया दिखा कर ही रहूँगा। बाबा चलो एक बार हम डॉक्टर को दिखा देते हैं।”

बाबा के लाख मना करने पर भी प्रेम नहीं माना। आखिरकार बाबा को प्रेम की बात मानकर डॉक्टर के पास जाना ही पड़ा।

उनका चैकअप करने के बाद डॉक्टर ने कहा, “बाबा की ये आँखें तो कभी रौशनी नहीं देख पाएंगी। हम उस समय तक कुछ भी नहीं कर पाएंगे जब तक किसी की आँखें हमें दान में ना मिल जाएं।”

प्रेम ने पूछा, “डॉक्टर साहब आँखें कब और कैसे मिल सकती हैं और कितना ख़र्चा होगा?”

डॉक्टर ने कहा, “इस बारे में अभी मैं कुछ भी नहीं बता सकता। हाँ ख़र्च तो बहुत होता है बाकी सब भाग्य के ऊपर है। यदि कोई अपनी आँखें दान करेगा तभी यह काम पूरा हो सकेगा।”

प्रेम दुःखी हो गया लेकिन उसने उम्मीद नहीं छोड़ी। वह गाने गाकर पैसे इकट्ठे करते रहा। समय आगे बढ़ता रहा और उनका जीवन प्यार के सहारे आगे बढ़ता गया।

एक दिन प्रेम ने बाबा से पूछा, “बाबा यदि आपको आँखें मिल जाएं तो आप क्या करोगे? सबसे पहले किसे देखोगे?”

बाबा ने कहा, “प्रेम तेरे सिवाय मेरा इस दुनिया में और कौन है। तू ही मेरा दिन और तू ही मेरी रात है। सबसे पहले मैं तुझे देखना चाहूँगा बेटा और जीवन की अंतिम साँस में भी तुझे ही देखना चाहूँगा।”

उनकी बातें सुनकर प्रेम ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया और कहा, “बाबा मैं आपकी यह इच्छा ज़रूर पूरी करूंगा।”

किंतु तक़दीर हमेशा वैसी नहीं होती, जैसी हम चाहते हैं। प्रेम की अचानक तबीयत बिगड़ने लगी, डॉक्टरों को दिखाया गया, तब पता चला कि प्रेम को ब्लड कैंसर है और उसकी ज़िंदगी दो-तीन माह से अधिक नहीं है। प्रेम को यह बात पता चलते ही उसे अपने बाबा की फ़िक्र होने लगी। उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। कहाँ तो वह बाबा की आँखें ठीक करवा कर उन्हें दुनिया दिखाना चाहता था पर अब कैसे …?

उसे बाबा के वह शब्द याद आ रहे थे कि आँखों में रौशनी आने के बाद सबसे पहले वह उसे देखना चाहते हैं। इसी उधेड़बुन में उसे ख़्याल आया कि क्यों ना वह अपनी आँखों से बाबा को दुनिया दिखाए। उन दोनों का प्यार असीम था, निःस्वार्थ प्यार जिसमें कभी कोई खुदगर्ज़ी नहीं थी। केवल आभास था अपनेपन और विश्वास का।

प्रेम अब तक बहुत समझदार हो चुका था, बचपन से अब तक कई तरह का जीवन जी चुका था। उसका वक़्त नज़दीक आ रहा था, तब एक दिन उसने अपने डॉक्टर से कहा, "डॉक्टर साहब क्या मेरी अंतिम इच्छा पूरी हो सकती है?"

तब डॉक्टर ने पूछा, "क्या है बेटे आप की अंतिम इच्छा?"

"डॉक्टर अंकल, मैं चाहता हूं मेरे बाबा मेरी आँखों से दुनिया देखें। क्या आप उन्हें मेरी आँखें लगा सकते हैं?"

डॉक्टर ने प्रेम की बात सुनकर अपनी भीगी पलकों को पोंछते हुए कहा, “प्रेम कुछ टेस्ट करने होंगे। यदि सब कुछ ठीक रहा तो यह हो सकता है।”

“डॉक्टर साहब मेरी बीमारी के विषय में बाबा को अभी से मत बताना, उन्हें बहुत दुःख होगा। देर सबेर तो उन्हें ख़ुद पता चल ही जाएगा। डॉक्टर साहब एक विनती और है…”

“हाँ-हाँ बोलो क्या कहना चाहते हो प्रेम?”

“डॉक्टर साहब मेरे मरने के बाद मेरे पार्थिव शरीर को उस समय तक संभाले रखना जब तक मेरे बाबा मुझे जी भर कर देख ना लें। यह उनकी इच्छा है कि वह सबसे पहले मुझे देखना चाहते हैं।”

“ठीक है,” कहते हुए डॉक्टर ने अपनी जेब से रुमाल निकालते हुए पूछा, “प्रेम यह तुम्हारे पिता हैं ना?”

“हाँ डॉक्टर साहब, भगवान ने मुझे पिता के रूप में यही उपहार दिया है।”

उसकी आप बीती सुनकर डॉक्टर बहुत भावुक हो गए और उन्होंने कहा, “प्रेम मैं तुम्हारी आँखें बाबा को लगाने में अपनी कोई फीस नहीं लूंगा। ऐसा बेमिसाल निःस्वार्थ प्यार मैंने कभी कहीं नहीं देखा।”

प्रेम का जीवन चंद दिनों का मेहमान था। बाबा को भी जल्दी ही असलियत पता चल गई थी। वह अपनी आँखों से पानी बहाते रहते। भगवान को कोसते हुए कहते, मेरी ख़ुशी तुझसे बर्दाश्त ही नहीं होती ना। एक बेटा झोली में डाला था उसे भी छीन रहा है। मुझे नहीं चाहिए रौशनी। मुझे मेरा बेटा लौटा दे।

लेकिन भगवान तो उन दोनों का भाग्य पहले ही लिख चुके थे। उन्होंने बाबा की एक न सुनी और अंततः वह दिन आ ही गया जब प्रेम की विदाई थी। प्रेम बाबा के पास उनकी गोद में सर रखकर लेटा हुआ बोल रहा था, “बाबा तुम्हारी इच्छा ज़रूर पूरी होगी। जब तुम ऑपरेशन के बाद आँखें खोलोगे तो तुम्हें मैं दिखूँगा लेकिन दूसरी इच्छा …,” कहते हुए प्रेम रो पड़ा।

बाबा ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और उसी वक़्त प्रेम के प्राणों ने रुख़सत ले ली। 

डॉक्टर को प्रेम की मृत्यु की ख़बर मिलते ही वह आ गए। उसके बाद हॉस्पिटल में प्रेम की आँखें बाबा को लगा दी गईं। प्रेम के पार्थिव शरीर को संभाल कर रखा गया था। जब बाबा ने आँखें खोलीं तब प्रेम का पार्थिव शरीर उनकी आँखों के सामने था। जिसे देखकर बाबा को ऐसा सदमा लगा कि उसे देखते-देखते ही बाबा ने भी अपनी अंतिम साँस ले ली। यह मिलन एक बार फिर से हो गया। पहले धरती पर हुआ था और अब अम्बर पर भी वह हमेशा साथ-साथ ही रहेंगे।

बाबा ने प्रेम को जीवित तो कभी नहीं देखा लेकिन प्रेम की आँखों से एक बार उन्होंने रौशनी अवश्य देख ली। उसके बाद प्रेम और बाबा दोनों का अंतिम संस्कार एक साथ ही किया गया। उनकी अंतिम यात्रा में अस्पताल के कई डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी शामिल हुए थे। उनके जीवन की यह प्यार भरी सच्ची कहानी के विषय में अस्पताल में सभी जानते थे।

अंतिम संस्कार के लिए जाते समय डॉक्टर जिन्होंने बाबा को आँखें लगाई थीं वह सोच रहे थे बिना जन्म दिए, बिना खून का रिश्ता हुए भी, कोई किसी को इतना प्यार कर सकता है। यह सच है कि प्यार केवल प्यार मांगता है, प्यार में वह ताकत होती है जिसके द्वारा प्यार की एक अलग ही दुनिया बन सकती है।

बाबा और प्रेम ने मिलकर एक ऐसी ही प्यार की दुनिया बसाई थी। हम कभी-कभी सोचते हैं कि किसी के मर जाने से दुनिया ख़त्म नहीं होती। जीवन चलने का नाम है, वह तो चलता ही रहता है; लेकिन प्रेम के जाने के साथ बाबा भी रुक ना सके और उनकी प्यार की वह दुनिया वहीं ख़त्म हो गई।

-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

 

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Rubi Singh

Rubi Singh 3 months ago

Hello mem mera name rubi singh h Ap ki story bahut achhi h Mem me ap ki story me youtube par explain kar sakti hu pls reply mem

sumita

sumita 3 months ago

Ratna Pandey

Ratna Pandey Matrubharti Verified 4 months ago

pulak dasgupta (Pulak)

बहुत सुंदर लिखा है,आंखों में आंसू आ गए।

Shivam Verma

Shivam Verma 4 months ago

kya main apki stories ko youtube videos me use kar sakta hun