Dil hai ki maanta nahin - Part 2 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल है कि मानता नहीं - भाग 2

निर्भय अपने मन की बात सोनिया से कहने का इरादा करके आया ज़रूर था पर उसकी बड़ी-बड़ी आँखों की गहराई में डूबने लगा, वह हकलाने लगा। वह भयभीत था इसलिए नहीं कि वह डरता था बल्कि इसलिए कि उसकी बात सुनकर कहीं सोनिया इंकार ना कर दे। बस इसी कारण उसकी जीभ शब्दों के साथ न्याय नहीं कर पा रही थी।

तभी सोनिया ने कहा, " जल्दी बोलो ना निर्भय, तुम क्या कहना चाहते हो?"

"सोनिया मैं...  मैं ...   तुमसे प्यार करता हूँ बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हें अपनी जीवन संगिनी बनाना चाहता हूँ, क्या तुम ...  ?"

सोनिया ने कहा, "लेकिन मैं तुमसे प्यार नहीं करती निर्भय। तुमसे क्या मैं तो किसी से भी प्यार नहीं करती। मेरा विवाह तो मेरी माँ की मर्जी और उनकी पसंद से होगा। यह ख़्याल भी अपने दिमाग़ से निकाल दो और अपने लिए कोई और लड़की ढूँढ लो। किसी और से प्यार कर लो।" 

"किसी और से प्यार कर लूँ … यह क्या कह रही हो सोनिया? प्यार कभी जबरदस्ती किया जा सकता है क्या? यह तो एक प्यारा एहसास है जो दिल में किसी एक के लिए ही उत्पन्न होता है और उसके साथ ही जीता मरता है।"

"देखो निर्भय अभी तुमने ही कहा ना कि प्यार कभी जबरदस्ती किया जा सकता है क्या? तो फिर तुम मुझसे जबरदस्ती प्यार क्यों करवाना चाहते हो," इतना कहकर सोनिया अपनी सहेली प्रिया के साथ जाने लगी।

प्यार में दीवाना हो चुका निर्भय सोनिया के सामने आकर खड़ा हो गया और कहा, "सोनिया प्लीज़ इतनी कठोर दिल मत बनो। मैं...  मैं ...  तुम्हारे बिना जी नहीं सकता।"

"निर्भय तुम किसी और से विवाह कर लो, अपने आप मुझे भूल जाओगे।"

"नहीं सोनिया मैं वह प्यासा हूँ जिसे केवल गंगा जल ही चाहिए। दूसरे किसी भी जल से मेरी प्यास नहीं बुझेगी।"

अब तक सोनिया का धैर्य का बाँध टूट चुका था। वह चिढ़ कर बोली, "तो फिर रहो जीवन भर प्यासे …" और प्रिया का हाथ पकड़कर वहाँ से चली गई।

 जाते समय प्रिया ने सोनिया से पूछा, "सोनिया तूने उसे सही बात क्यों नहीं बता दी कि माया आंटी ने तेरी शादी तय कर दी है।"

"प्रिया उसे यह सब बताने की क्या ज़रूरत थी?"

“सोनिया क्या माया आंटी ने जहाँ तेरी शादी पक्की करी है वह लड़का तुझे पसंद है?”

“क्या बात कर रही है प्रिया, मेरे लिए राहुल से अच्छा लड़का कोई हो ही नहीं सकता। वैसे भी मैं माँ की बात कभी टाल नहीं सकती। प्रिया तुझे पता है मेरी माँ ने कितनी मुश्किलों से मुझे पाल पोसकर बड़ा किया है। यदि आज मैं माँ को कोई ख़ुशी दे सकती हूँ तो वह मौका मैं कभी नहीं छोडूँगी। बचपन में माँ के माता-पिता की अकाल मृत्यु के बाद जैसे तैसे उन्होंने अपने आपको संभाला था। उसके बाद ख़ुद ही मेहनत करके अपने पैरों पर खड़ी हुई थीं। इस लम्बी काली अमावस के बाद उनके भाग्य ने करवट बदली और जीवन साथी के रूप में उन्हें मेरे पापा आलोक मिल गए। उन्होंने माँ की काली अमावस की रातों को पूनम में बदल दिया लेकिन भाग्य ने एक बार फिर उन्हें धोखा दे दिया। मेरे पापा भी उन्हें अकेली छोड़ कर दूसरी दुनिया में चले गए। जिस समय पापा की मृत्यु हुई माँ प्रेगनेंट थीं।”

“सचमुच सोनिया आंटी ने तो बहुत संघर्ष किया है कितने दुःखों का सामना किया है फिर भी उन्हें देखकर कभी ऐसा महसूस ही नहीं होता। आंटी बहुत ही हिम्मत वाली हैं।”

“प्रिया मेरी माँ के दुःख के समय में रोहन की माँ ने हमेशा उनका साथ दिया था। वह दोनों बचपन की सहेली थीं इसीलिए उनके घर हमारा आना जाना था। माँ की शुरु से इच्छा थी कि मेरी शादी रोहन से हो। शायद इसीलिए मेरा मन अपने आप ही रोहन को चाहने लगा था।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः