Dil hai ki maanta nahin - Part 9 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल है कि मानता नहीं - भाग 9

कुणाल अपने दोस्त की बात मानकर आख़िर उसे व्हील चेयर पर बिठा कर सोनिया के कमरे में ले ही आया। निर्भय को देखते ही सोनिया चमक गई और उसके मुँह से निकला, "निर्भय तुम यहाँ? कैसे और क्यों? और यह क्या हो गया है तुम्हारे पाँव को?"

निर्भय हैरान था क्योंकि सोनिया एकदम सामान्य तरीके से शालीनता से उससे बात कर रही थी। मानो उसे कॉलेज की वह बात याद ही ना हो या फिर वह बात उसके लिए ज़्यादा महत्त्व ही ना रखती हो।

"अरे निर्भय क्या सोच रहे हो? आओ कुणाल, ये देखो यह मेरे हस्बैंड रोहन शर्मा हैं और रोहन ये दोनों मेरे क्लासमैट्स हैं। कुणाल क्या हुआ है निर्भय को?"

कुणाल कुछ बोले उससे पहले निर्भय ने कहा, "सोनिया मुझे माफ़ कर दो।" 

"माफ़ कर दूँ लेकिन क्यों, तुमने किया क्या है? अच्छा कॉलेज की वह आई लव यू वाली बात के लिए माफ़ी माँग रहे हो। अरे छोड़ो निर्भय वह उम्र ही ऐसी होती है आकर्षण और कभी-कभी प्यार, यह सब हो जाता है। पर हमें परिपक्व होने पर जीवन के अनुभव धीरे-धीरे सब सिखा ही देते हैं। तुम कहाँ वहीं अटके हो। मैं तो दूसरे दिन ही वह सब भूल गई थी। तुम्हें कुछ ग़लत कह दिया था, तुमसे माफ़ी भी माँगना चाहती थी और तुम्हें यह भी बताना चाहती थी कि मेरी माँ तो मेरा रिश्ता तय कर चुकी हैं पर तुम मुझे मिले ही नहीं।"

निर्भय की आँखें अपने अंदर के सैलाब को मुश्किल से थामी हुई थीं। उसने कहा, "सोनिया मुझे माफ़ कर दो," कहते हुए वह फफक-फफक कर रो पड़ा। उसने रोते हुए कहा, "सोनिया कल जो एक्सीडेंट हुआ था उसका गुनहगार मैं ही हूँ।" 

"मतलब क्या है तुम्हारा निर्भय? वह टक्कर तुमने ... "

"हाँ-हाँ सोनिया मैंने, लेकिन ग़लती से, सोनिया मैं नशे में था। आज मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा। मैं अब तक भी तुम्हें भूल नहीं पाया। कॉलेज में  जब मैंने तुम्हारे पास अपना दिल खोलकर प्यार का इज़हार किया था और तुमने इंकार कर दिया था। उस बात को आज एक वर्ष पूरा हुआ था। इतने दिनों मैं तुम्हें मन ही मन याद करता रहा लेकिन उस गली की तरफ़ देखा तक नहीं, जिस गली में तुम्हारा घर है। पर आज मैं अपने आप को रोक ना पाया। तुम्हारी एक झलक पाने के लिए मैं बावरा शराब का सहारा लेकर उधर आ गया और... तुम्हें देखते ही मैं होशो हवास खो बैठा और यह हादसा हो गया। मेरी ग़लती माफ़ी के काबिल नहीं है। तुम मुझे जो भी सज़ा दोगी मैं स्वीकार कर लूँगा सोनिया। रोहन जी मैं आपका भी दोषी हूँ आप मुझे दण्डित कीजिए। आज यदि आप दोनों मुझे माफ़ कर देंगे तो मैं यहाँ से जाने के बाद अपनी नई ज़िन्दगी की शुरुआत करुँगा, अपने भूतकाल को भूल कर। वरना अब बाक़ी का जीवन इसी अपराध के बोझ तले गुजार दूँगा कि मैंने यह बहुत बड़ा गुनाह किया है और मैं केवल एक गुनहगार हूँ।"

सोनिया ने कहा, "मेरे इंकार करने के बाद भी निर्भय तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम ... "

बीच में ही रोहन ने सोनिया की बात काटते हुए कहा, "नहीं सोनिया आगे कुछ मत कहना। जिस इंसान ने तुम्हें इतना प्यार किया और आज साफ़ मन से अपनी हर ग़लती भी कबूल कर ली ऐसे इंसान को सज़ा नहीं माफ़ कर देना चाहिए; क्योंकि उसे ख़ुद अपनी ग़लती का एहसास हो गया है। उसे सुधरने का एक अवसर तो ज़रूर मिलना चाहिए।"

रोहन की बात सुनकर निर्भय ने फिर कहा, "सोनिया तुम बहुत क़िस्मत वाली हो जो तुम्हें इतना सुलझा हुआ इंसान जीवन साथी के रूप में मिला है। इनकी जगह कोई और होता तो मुझे यहाँ से यूँ ही जाने नहीं देता। मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा रोहन जी।"

"निर्भय मेरी पत्नी ठीक है, बच्चा भी ठीक है। शायद यह तुम्हारे साफ़ और पवित्र मन के कारण ही हो पाया है वरना टक्कर तो बहुत ही ज़ोर से लगी थी।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः