Dil hai ki maanta nahon - Part 3 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल है कि मानता नहीं - भाग 3

उधर सोनिया का इंकार सुनकर निर्भय की आँखों से मानो आँसू के रूप में अंगारे बरस रहे थे। वह अपने आप को संभाल नहीं पाया, इतना तनाव सहन नहीं कर पाया, उसका ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ गया और वह चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ा। इतने में कॉलेज के कुछ लड़के और निर्भय का दोस्त कुणाल वहाँ आ गए और उसे तुरंत ही अस्पताल लेकर गए। डॉक्टर ने उसे देखकर कहा तुम लोग इसे सही समय पर ले आए। यदि 10-15 मिनट की भी देर कर देते तो हालात गंभीर हो सकते थे।

"लेकिन डॉक्टर इसे अचानक हुआ क्या? सुबह तो बिल्कुल ठीक लग रहा था।"

"उसे कोई बहुत ही बड़ा मानसिक आघात लगा है, जिसे उसका दिल और शरीर सहन नहीं कर पाया। इसीलिए उसका ब्लड प्रेशर बहुत ज़्यादा बढ़ गया था लेकिन अब वह बिल्कुल ठीक है।"

"क्या हम उससे मिल सकते हैं डॉक्टर," कुणाल ने पूछा।

"हाँ-हाँ बिल्कुल मिल सकते हो उसके घर से कोई …  "

"नहीं-नहीं डॉक्टर उसकी माँ अक्सर बीमार रहती है। उन्हें ना ही बताया जाए तो अच्छा है। बड़ी बहन का विवाह हो चुका है और उसके पिताजी ...," इतना कह कर कुणाल चुप हो गया।

"पिताजी … क्या कह रहे थे तुम, अपना वाक्य पूरा करो।"

"वह इनके साथ नहीं रहते।"

"अच्छा-अच्छा ठीक है। तुम इसे अब घर ले जा सकते हो।"

कुणाल अपने दोस्त निर्भय को घर लेकर आ गया। कुणाल रास्ते भर उसे समझाते हुए लाया क्योंकि वह तो निर्भय और उसके दिल में चल रहे एक तरफ़ा प्यार के बारे में सब कुछ जानता था। वह यह भी जान गया था कि आज निर्भय के प्यार की कश्ती, इंकार के तूफ़ान के बीच घिर गई है और अब साहिल तक उसका पहुँचना मुश्किल है।

उसने कहा, "देख मेरे भाई प्यार हम जबरदस्ती तो करवा नहीं सकते। उसने मना कर दिया ना? बोल ना इसीलिए यह सब हुआ है ना? तू आंटी के बारे में सोच, तुझे कुछ हो जाता तो उनका क्या होता निर्भय? अब तू उसे भूलने की कोशिश कर।" 

"कुणाल वह सीधे प्यार से भी तो मना कर सकती थी ना; लेकिन उसने कहा ... "

"क्या कहा था उसने?"

"उसने कहा था तो फिर रहो जीवन भर प्यासे।"

"अरे तो कहने देना निर्भय, हम कुछ नहीं कर सकते। देख दो चार हफ़्ते में कॉलेज ख़त्म फिर वह कहाँ और तू कहाँ। धीरे-धीरे तू ख़ुद ही उसे भूल जाएगा। अभी रोज-रोज दिखती है इसलिए तू ख़ुद पर नियंत्रण नहीं रख पाता; मैं समझ सकता हूँ।"

"कुणाल तू यह क्या कह रहा है, सोनिया मेरे लिए कोई खिलौना नहीं है जो आज खेला और कल दूसरा दिखा तो उसे भूल गए। वह तो मेरे लिए सीप का वह मोती है जिसके साथ पूरी उम्र मैं उसकी शैल में कैद होने के लिए भी तैयार हूँ। वह मेरे हृदय में आती जाती मेरी साँस है। यदि वह नहीं आई तो मैं नहीं।"

"तू चुप हो जा निर्भय; तू बिल्कुल पागल हो चुका है। तुझे उसे भूलना ही होगा, चल अब मैं जाता हूँ कल आऊँगा, तू अपना ख़्याल रखना।"

इतने में निर्भय की माँ सरस्वती वहाँ आ गईं और उन्होंने पूछा, "क्या हुआ निर्भय?" 

लेकिन निर्भय ने कोई जवाब नहीं दिया।

तब उन्होंने कुणाल की तरफ़ देखते हुए पूछा, "क्या हुआ कुणाल तुम दोनों परेशान से लग रहे हो।" 

"नहीं-नहीं आंटी कुछ भी नहीं, वह बस परीक्षा के बारे में बात कर रहे थे।"

"अच्छा-अच्छा ठीक है।"

"चलो आंटी मैं जाता हूँ।"

"ठीक है कुणाल।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः