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अपना आकाश - 13 - बेटियाँ सब जानती हैं

अनुच्छेद- 13
बेटियाँ सब जानती हैं

तरन्ती की माई कुछ परेशान सी आज सबेरे ही भँवरी के घर आई । भँवरी ने गले मिलकर स्वागत किया। तन्नी प्रणाम कर छाछ में जीरा नमक डालकर ले आई। फूलमती धीरे-धीरे पीती और बतियाती रही। 'अब नए लड़के नई नई बात करते हैं। देन लेन सब तय हो गया तो दामाद जी ने कहा कि लड़की देखेंगे । तरन्ती के बापू तो तैयार नहीं हो रहे थे लेकिन मैंने समझाया, नया युग है लड़का अगर देखना ही चाहता है तो लड़की को दिखा दो। देखे रहेगा तो यह कहने का मौका तो नहीं रहेगा कि कहाँ फँस गए। हमें बिना देखे तरन्ती के बापू ने शादी कर लिया तो शादी के बाद महीनन बिगड़ैल साँड़ अस फुफुवात रहे बिटिया देखे रहिहैं तो ई नौबति तो न आई।' 'ठीक कहती हो बहिनी । लड़के लड़की जाने बूझे रहि हैं तो ठीक रही।'
'तरन्ती सौ पचास बिटियन मा एक बिटिया है। ठीक नहीं कर रही हूँ बहिनी ?”
'बिल्कुल ठीक कहत हैं आप ?
'कहाँ लड़की देखाई जाय? यही मा मन अटका रहा। कल साँझ को तरन्ती के बापू से बात पक्की भई कि शहर के शिवमंदिर में लड़की दिखा दी जाय । यही बरे आए हैं कि तन्नी को तरन्ती के साथ इतवार को भेज देना । तन्नी सब बात सँभाल लेगी। होशियार लड़की है।' 'तन्नी चली जाएगी। यह तो खुशी की बात है।' 'तो अब चली। घर के काम हैं कि चुकै नहीं आवत ।' 'राधा तो है न ।' 'हाँ है बहिनी, यही से थोड़ा आराम है। लेकिन बतावै का तो परत है न?" “हाँ, हाँ बिना बताए बिटिया पतोहू का करिहैं?' 'तो तन्नी बेटी ध्यान रखना।' कहकर फूलमती उठ पड़ीं । भँवरी और तन्नी थोड़ी दूर तक उन्हें पहुँचा कर लौटीं ।
‘तरन्ती ने तुझे नहीं बताया था क्या?" भँवरी बोल पड़ी।
' बताया था', कहते हुए तन्नी मुस्करा उठी ।
'अब देखो बेटियाँ सब जानती हैं और मुझे कुछ पता नहीं।' कहती हुई भँवरी लौकी छीलने लगी।
तन्नी कमरे के अन्दर चारपाई पर बैठी मन ही मन गद्गद् होती रही। तरन्ती का पति कैसा होगा? फोटो तो उसने देखा है। तरन्ती उसे मन ही मन पसन्द भी करने लगी है। तरन्ती का दूल्हा दिल्ली में रहता है। सदर बाजार में सेल्समैन की नौकरी । घर तो इसी जनपद में है पर परिवार के लोग दिल्ली ही रहते हैं। तभी तो देखने की माँग हुई अन्यथा फोटो से काम चल जाता । तरन्ती का भाई बलबीर भी दिल्ली रहता है। उसी के प्रयास से यह शादी तय हुई। अगर लड़के ने मना कर दिया तो? तन्नी डर गई। चेहरे का रंग बदल गया। मुस्कान न जाने कहाँ गायब? नहीं ऐसा नहीं होगा। तरन्ती में क्या कमी है? इंटर तक पढ़ी है। रंग ज़रा साँवला हो गया तो वह क्या करे, ? क्या साँवले लोग नहीं होते? राम, कृष्ण सभी तो साँवले थे। साँवली, लड़कियों के चेहरे की चमक मैंने देखी है। पर वह यह सब समझे तब न? नहीं, समझेगा क्यों नहीं? क्या स्वर्ग से कोई परी आएगी उसके लिए । 'परियाँ हम लोगों से अच्छी नहीं होगी बच्चू ।' कहते हुए तन्नी मुस्करा उठी ।
मुझे कोशिश करनी होगी जिससे वह न, न कर सके। पर मुझे करना क्या चाहिए? यही तो समझ में नहीं आता। दिल्ली में रहता है तो करीने से बात करनी होगी उससे । लपझप बिल्कुल नहीं, साफ सुथरी बात । वह सोचती रही ।
तन्नी के नहाने में देर होते देखकर माँ बोल पड़ी 'आज पढ़ने नहीं जाना है क्यों?' 'जाना है माँ', कहती हुई तन्नी उठी और नहाने के लिए पानी निकालने लगी ।
नहा धोकर तन्नी ने साइकिल निकाली। चल पड़ी। मन में लड़की दिखाई का दृश्य बार-बार उभरता । वह अंजली माँ से राय लेगी। क्या करना चाहिए? वह जरूर बताएँगी। कितना स्नेह देती हैं हमें । वत्सला बहिन जी ने शादी क्यों नहीं की अभी? उन्हें क्या कमी है? रूप-रंग, शिक्षा, नौकरी क्या नहीं है उनके पास? पर माँ जी कभी कभी कह ही जाती है, वत्सला की शादी नहीं हो पाई ? आखिर क्या कमी थी? वह बार-बार सोचती। क्या बहिन जी शादी ही नहीं करना चाहतीं, यदि हाँ तो क्यों?
पैडिल पर थोड़ा दबाव बनाया। साइकिल तेज गति से आगे बढ़ी। साढ़े सात बजे से कोचिंग में कक्षाएँ शुरू होती हैं। सुबह तन्नी घर चाय नहीं बनाती। प्रायः पंजीरी या बिस्कुट खाकर छाछ पीती और चली जाती। कभी कभी केवल छाछ ही पी लेती। आज लौटी तो अंजली माँ ने पूछ लिया, घर से क्या खाकर चलती हो? 'छाछ पी लेती हूँ', तन्नी ने कहा । 'छाछ तो अच्छी चीज़ है पर कुछ ठोस भी मिल जाता तो ठीक रहता।'
'छाछ भी अच्छा लगता है माँ जी। सुबह भूख नहीं लगती।' 'चलो ठीक है। तू बहुत धैर्यवान है। ऐसे बच्चे अपनी मेहनत से आगे बढ़ते हैं।' तन्नी ने चाय बनाकर माँ को दिया। स्वयं भी चाय लेकर माँ के पास ही बैठ गई ।
'माँ जी', तन्नी ने कहा।
'कहो ।'
‘माँ, मेरी सहेली तरन्ती की शादी तय हो गई। इसी इतवार को लड़की देखने लोग आएँगे।'
'यह तो अच्छी बात है रे ।'
'मुझे उसके साथ रहना है माँ जी मैं क्या मदद कर सकती हूँ उसकी ?"
'देख उसका मेकअप बहुत ज्यादा न करना । नहीं तो गुड़िया सी लगेगी। हाँ, यह ध्यान रखना कि उसे ही प्रक्षेपित करना है।'-'ठीक है माँ जी।'
'उसे कुछ गायन-वादन भी आता है?”
'कुछ गा लेती है । ढोल भी बजाती है।'
'ठीक है, एकाध गीत याद करा देना ।'
'वे लोग मंदिर में देखेंगे माँ जी।'
'तब तो और भी अच्छा है। वहाँ इत्मीनान से साक्षात्कार लेने जैसी स्थिति नहीं रहेगी। लड़की का व्यवहार सामान्य रहे किसी अतिरेक की ज़रूरत नहीं। हाँ, तू साथ रहेगी ही ।'
'हाँ, माँ जी।'
'तो एक बात गाँठ बाँध ले । तेरा बात-व्यवहार, कपड़ा लत्ता उस लड़की से बीस नहीं होना चाहिए उस समय ।'
'जी, माँ जी' कहते हुए तन्नी मुस्कराती रही।
'जानती है क्यों?"
'नहीं माँ जी।'
'जिस लड़की को अनुमोदित कराना है वही बीस दिखनी चाहिए नहीं तो उल्टा असर हो जाता है। समझी ?"
'समझ गई माँ।'
'एक किस्सा बता रही हूँ तुझे बिल्कुल सच्चा ।'
'बताइए माँ जी।'
'बात अमेरिका की है। एक लड़के ने एक लड़की को पसन्द कर शादी का प्रस्ताव कर दिया।'
'वहाँ तो लड़के-लड़की स्वयं ही शादी तय करते हैं माँ जी ।' 'उसी का किस्सा तो बता रही हूँ । लड़की का लगाव माँ से कुछ अधिक था। उसका पिता तलाक लेकर अलग रह रहा था। उसने लड़के से कहा कि माँ से भी मिल लो। जानती हो फिर क्या हुआ?" माँ के चेहरे पर भी मुस्कराहट दौड़ गई।
'लड़का लड़की की माँ से मिला। माँ भी चुस्त दुरुस्त, कुशल थी । देखते ही लड़का माँ पर ही मुग्ध हो गया।'
'अरे', तन्नी जैसे चौंक पड़ी।
'कहाँ तो गया था वह लड़की के प्रस्ताव का अनुमोदन कराने । अब माँ से ही शादी करने का प्रस्ताव कर दिया।'
"फिर क्या हुआ माँ जी ?"
'दोनों ने शादी कर ली।'
'पर दोनों की उम्र में अन्तर रहा होगा।'
'वैसे भी प्रेम यह सब कहाँ देखता है?
इसीलिए तो कहावत है प्रेम अन्धा होता है ।'
'उस लड़की का क्या हुआ ?"
'उसने फिर दूसरे लड़के को ढूँढ़ा।
उससे शादी की। पश्चिमी समाज में लड़कियाँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती हैं चाहे वे छोटा मोटा काम ही करती हों। अपने यहाँ भी कामकाजी स्त्रियों की संख्या बढ़ रही है। इससे परिवार के निर्णयों में उनकी सहभागिता भी बढ़ रही है।' 'हमारे यहाँ तो प्रधान भी महिला है। माँ जी।' पंचायत राज कानून का परिणाम है यह ।' 'पर काम उनके पति ही करते हैं। वे प्रधान प्रतिनिधि बनकर सब जगह आते जाते हैं ।'
"कुछ दिन यह सब चलेगा। फिर स्त्रियाँ स्वयं निर्णय करने लगेंगी।' चाय खत्म हो चुकी थी। तन्नी ने कप उठाया, धोकर रख दिया। दाल-चावल चढ़ा दिया। माँ से पूछा, 'सब्जी क्या बनाएँ माँ जी?' 'आज तो कोफ्ता खाने का मन है रे।' माँ जी को केले का कोफ्ता बहुत प्रिय है। चावल पक गया तो उसे उतार कर तन्नी ने कच्चे केले को उबलने के लिए रख दिया। माँ जी रवीन्द्र नाथ की ये पंक्तियाँ देर तक गुनगुनाती रहीं-

मरिते चाहिना आमि सुन्दर भुवने,
मानवेर माझे आमि बांचिबारे चाइ ।