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अपना आकाश - 12- वत्सला के घर तन्नी

अनुच्छेद- 12
वत्सला के घर तन्नी

वत्सला का घर तन्नी का भी बन गया। सुबह वह गाँव से निकल आती। कोचिंग में पढ़ती, ग्यारह बजे लौटती । वत्सला बहिन जी के यहाँ पहुँचती। अंजली माँ का प्रश्न होता, 'क्या पढ़ा ?" तन्नी विस्तार से पढ़े हुए अंश का विवरण देती। माँ कुछ संतुष्ट होती। अदरख डालकर चाय बनाती। माँ को देती, स्वयं भी पीती। कडुवा तेल लेकर माँ जी के शरीर पर मालिश करती । उन्हें नहलाने में मदद करती। रोटियाँ सेंक कर माँ के लिए थाली लगाती ।
'अपने लिए भी लाओ।' माँ कहती। तन्नी अपने लिए भी एक थाली में खाना ले आती। जब तन्नी की थाली देख लेती तभी माँ जी कौर उठातीं। भोजन करने के बाद माँ लेट कर आराम करतीं। और तन्नी अखबार पढ़ती, अपना काम पूरा करती। यही रोज का नियम बन गया।
चार बजे वत्सलाधर कालेज से लौटतीं । तन्नी चाय बनाती। तीनों साथ बैठकर चाय पीते । वत्सला तन्नी से पढ़ाई के बारे में पूछतीं । तन्नी दिन भर की पढ़ाई का विवरण प्रस्तुत करती । चाय पीकर तन्नी माँ और वत्सला बहिन जी को प्रणाम कर घर के लिए चल देती। भँवरी और मंगलराम प्रसन्न थे कि बेटी पढ़ रही है। मंगल ने बहिन जी से मिलकर अपनी कठिनाई बता कर कहा था, बहिन जी आप इधर कोचिंग की फीस दे दें। जैसे ही मैं लहसुन बेच पाऊँगा, आपका कर्ज़ अदा कर दूँगा । वत्सला जी बहुत उदार थीं। वैसे भी वे बच्चियों की मदद कर दिया करती थीं। तन्नी तो उनके घर की सदस्या बन गई थी। वे हर माह कोचिंग का शुल्क देतीं ही तन्नी की छोटी मोटी आवश्यकताओं का भी ध्यान रखतीं ।
अभी लहसुन तैयार होने में एक महीने की देर । तन्नी की परीक्षा निकट आ गई। प्रयोगात्मक कार्य कैसे होगा? इसकी चिन्ता सता रही थी । वीरू को साथ लेकर वह कालेज पहुँची। आज भी प्राचार्य का कहीं पता नहीं । प्रबन्धक जी भी नहीं थे प्रताप जी मिले। तन्नी ने प्रयोगात्मक कार्य के सम्बन्ध में जानकारी चाही। 'चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है', प्रताप जी ने कहा । 'हाँ, पांच हजार रुपये का इन्तजाम करना होगा।'
'किसलिए सर!"
'पास होना चाहती हो न?"
'जी सर ।'
‘इसीलिए। बिना पैसे के कोई काम होता है आजकल।' 'सर मेरे पास इस समय रुपये नहीं हैं।’ 'दोनों कैसे होगा? पास भी अच्छे नम्बर से होना चाहती हो और पैसे भी नहीं हैं।' 'सर, मैं मेहनत करके पास होना चाहती हूँ।' 'तो करो न कौन मना करता है? पर जब परीक्षक नोट देखकर नम्बर देगा तब तुम कहाँ होगी यह जान लो ।'
'सर......।' आगे तन्नी कुछ कह न सकी। उसका सिर जैसे चकरा गया। वीरू उसके बगल ही खड़ा सब सुन रहा था बोल पड़ा-
'बाबू जी, एक महीने बाद लहसुन बेच कर हम पैसे दे देंगे। आप दीदी को पास करा दीजिए।'
'यह सब कहीं उधार होता है बरखुरदार।' कहते हुए प्रतापजी अन्दर वाले कमरे में चले गए। छात्र / छात्राओं के प्रश्नों से मुक्ति पाने की यह उनकी तकनीक है।
तन्नी भी चलकर भौतिकी के अध्यापक अमिताभ से मिली। महीना भर पहले वे विद्यालय में आए हैं। पढ़ने वाले कोई थे नहीं। वे एक कमरे में बैठे थे। 'प्रयोगात्मक कार्य कैसे होगा सर?' 'प्रयोगात्मक सामग्री के लिए प्रबन्धक जी से कहा गया है।' 'हम लोग कब आएँ?' 'अभी बता पाना मुश्किल है। जब शुरू होगा तो फोन से मालूम हो जायेगा।' 'तो जाएँ सर ।' 'जाओ।' कालेज में दो चार बच्चे आते जाते दिखते। जैसे हर बच्चा केवल जानकारी करने आता हो।
तन्नी और वीरू सड़क पर आ गए। एक जीप शहर आ रही थी। तन्नी को किसी प्रकार बैठने के लिए जगह मिल गई पर वीरू को खड़े खड़े आना पड़ा।
सायं चार बजे तन्नी और वीरू वत्सला जी के मकान पर पहुँचे । वत्सला जी कालेज से आ गई थीं। उन्होंने दरवाजा खोला। दोनों ऊपर गए। तन्नी ने हाथ पैर धोया। वत्सला जी रसोई में जाने लगीं तो तन्नी ने कहा, 'बहिन जी, मैं चाय बना रही हूँ ।'
तन्नी ने चार कप चाय बनायी। नमकीन बिस्कुट के साथ चाय लाकर माँ जी, वत्सला जी को दिया। वीरू को देकर स्वयं भी चाय लेकर बैठ गई । 'बहिन जी, हम लोगों का प्रयोगात्मक कार्य कैसे होगा?' तन्नी बोल पड़ी।
'अभी सिद्धान्त की पढ़ाई करो। हो सकता तुम्हारे कालेज में प्रयोगात्मक परीक्षा लिखित परीक्षा के बाद हो। फिर देखा जायेगा।' 'पर कालेज वाले पाँच हजार पास कराई माँगते हैं बहिन जी।' 'क्यों?' 'हाँ, कहते हैं पाँच हजार जमा करो।' 'ये विद्यालय तो ठगी के केन्द्र बनते जा रहे हैं।' बहिन जी के मुख से निकला । 'तुम मेहनत करो पास तो होना ही है ।'
माँ जी इन दोनों की बातचीत सुनती रहीं। बोल पड़ीं, 'बेटा तन्नी को तकलीफ न हो।' माँ जी वत्सला को बेटा ही कहतीं ।
वत्सला स्वयं तन्नी का ध्यान रखतीं। पर अनायास पाँच हजार रुपये कालेज को दे देना उन्हें गलत लगता । इसीलिए वे पाँच हजार जमा करने के पक्ष में नहीं सोच पातीं।
'अभी चिन्ता छोड़ पढ़ाई पर ध्यान दे।' वत्सला ने हिदायत दी । 'बहिन जी, कहीं सारा गुड़ गोबर न हो जाय।' 'नहीं ऐसा नहीं होगा । कोई भी विद्यालय पास होने वाले को फेल नहीं करता। यह उसके हित में नहीं होता।' 'बहिन जी, आप ही का सहारा है।' कहकर तन्नी उठी। कप प्लेट को धोकर रखा। माँ और बहिन जी को तन्नी और वीरू ने प्रणाम किया और नीचे आ गए। साइकिल उठाई और घर की ओर चल पड़े। तन्नी के मस्तिष्क में पाँच हजार घूमता रहा ।