गौरी भाग-एक
मानव की इस महान उपलब्धि को आज दूरदर्शन पर देख कर देव अत्यंत प्रसन्न हुआ और सोचने लगा कि जब उसकी माँ को कैंसर था, हस्पताल मे इलाज़ चल रहा था लेकिन उस समय कैंसर की कोई कारगर दवा नहीं थी, फिर भी डॉक्टर अपनी तरफ से पूरी कोशिश मे लगे थे कि वह किसी तरह ठीक हो जाए। बड़े भाई को अपनी बहन से बहुत प्यार था और उसको इस तरह अस्पताल के बिस्तर पर अर्ध-मूर्छित अवस्था मे पड़े देख अंदर ही अंदर बहुत दुखी होता था, जो भी साधु महात्मा मिलता देव उसकी खूब सेवा करता एवं अपनी बहन गौरी के इलाज़ के बारे मे पूछता रहता था। एक बार एक साधु ने उपचार बताया, “जंगल मे वहाँ जाना जहां पर गाय घास चरती है, वहाँ जाकर गाय का सूखा गोबर इकठ्ठा करना, फिर एक मिट्टी का घड़ा लेकर उसके तले मे छेद कर लेना, घड़े मे गाय के सूखे गोबर के आरने (जंगल मे घास चरते समय गाय जो गोबर करती है वह वहीं पर सूख जाता है उस सूखे गोबर को आरने कहते है) भर कर उसके नीचे एक और मिट्टी का बर्तन रख लेना एवं उसके चारों तरफ गाय के गोबर के बने सूखे उपले लगा कर आग में तपाना तब उन आरनो में से जो तेल निकलेगा वह नीचे वाले बर्तन मे इक्कठा हो जाएगा, उस तेल को बूंद बूंद करके अपनी बहन के गले के सभी घावों मे टपकाना, तुम्हारी बहन के सभी कैंसर वाले घाव ठीक हो जाएंगे”। आज गौरी की हालत बहुत खराब थी, दोनों बड़े भाई देव और भरत उसे ऐसी हालत में देखकर दुखी थे एवं रोये जा रहे थे, तभी देव को साधु का बताया हुआ नुस्खा याद आया और वह भरत को गौरी के पास छोड़ कर जंगल में उस जगह चला गया जहां गाय घास चरने आती थीं, थोड़ी देर वहीं बैठ कर विश्राम करती थी, एवं गोबर और मूत्र त्याग करतीं थीं। देव वहाँ से सभी आरने चुगने लगा, इधर वह आरने चुग रहा था उधर उसकी आँखों से टप-टप आँसू बहे जा रहे थे, समय बहुत कम था, जल्दी-जल्दी उसने सभी आरने चुग कर अपनी चादर में बांध लिए एवं उसको ले जाकर अपने घेर मे रख लिया। दौड़ कर कुम्हार के यहाँ से दो घड़े लाया एवं साधु के कहे अनुसार आरने का तेल निकाल कर अस्पताल की तरफ दौड़ा। गौरी अभी भी अर्ध-चेतन अवस्था मे ही पड़ी थी, डॉक्टर अपनी कोशिश में लगे थे कि देव ने मौका देख कर एवं डॉक्टर से नजर बचा कर गौरी के घावों में थोड़ा थोड़ा तेल टपका दिया। देव को पूरा विश्वास था कि साधु महाराज के आशीर्वाद से गौरी बिलकुल ठीक हो जाएगी और वह पूरी रात बैठ कर प्रतीक्षा करता रहा। साधु महाराज का आशीर्वाद एवं देव की मेहनत रंग लायी, सुबह होते होते गौरी की मूर्छा टूटी एवं उसने अपने भाई को आवाज लगाई। दोनों भाई वहीं थे उसके बिस्तर के पास ही, पूरी रात से जागे थे गौरी की आवाज सुन कर उनको थोड़ा सुकून मिला, देव ने उसके सिर पर हाथ फिरा कर उसको सांत्वना दी, “गौरी! तू बिलकुल ठीक हो जाएगी”। सुबह हो गई थी और देव ने एक बार फिर तेल गौरी के गले के सभी घावों पर टपका दिया जिसका असर इतना हुआ कि दोपहर तक गौरी पूरी तरह होश मे आ गयी, अब तो उसे भूख भी लगी थी। गौरी को खाने के लिए देने की बात देव डॉक्टर से करने गया तो डॉक्टर स्वयं गौरी को देखने आ गया और गौरी की हालत मे इतनी जल्दी इतना सुधार देख कर हैरान रह गया। डॉक्टर कहने लगा कि दवा ठीक काम कर रही है अतः हमें इसी दवा को चलाना होगा लेकिन देव ने डॉक्टर को सारी बात बता दी कि कैसे गौरी को आराम आया है। जब डॉक्टर को इस चमत्कार का पता चला तो उसने कहा कि ठीक है तुम अपनी दवाई चालू रखो और मैं अपनी दवा देता रहूँगा। गौरी को खाने को कोई तरल पदार्थ देना जिससे इसके गले के घावों पर ज्यादा ज़ोर न पड़े।
गौरी ने महसूस किया कि उसकी छाती दूध से अकड़ रही है तो उसे अपने बेटे की याद आने लगी जो अभी चार महीने का ही था। बेटे को लेकर माँ तब तक आ चुकी थी, दोनों भाई देव और भरत भी पिछले दिन से भूखे ही थे। माँ गौरी के लिए पतला दलिया दूध में बनवा कर लायी थी तो वह गौरी को थोड़ा थोड़ा करके खिलाने लगी एवं गौरी अपने बेटे को छाती से लगा कर दूध पिलाने लगी। छोटे बच्चे को गौरी की माँ ने किसी तरह संभाल रखा था, जब से गौरी बीमार हुई थी उस बच्चे का भी बुरा हाल था। धीरे धीरे गौरी ठीक होने लगी और अस्पताल से छुट्टी मिल गयी लेकिन उसकी इस बीमारी मे उसके ससुराल से कोई भी मिलने के लिए नहीं आया, न ही उसका पति जिसकी वह अर्धांगिनी थी।
गौरी जब पैदा हुई तो उसका भूरा रंग देख कर ही उसका नाम गौरी रखा था, दो लड़को के बाद पैदा हुई थी इसलिए सबकी लाड़ली थी, बड़ी हुई तो शादी के लिए लड़का ढूंढने लगे और जिस लड़के से शादी की तो सोचा था कि ससुराल में राज करेगी। क्योंकि लड़के के पास सौ बीघा जमीन थी, अच्छा घर था और सभी लोग खाते पीते समृद्ध थे। देव ने अपने पिताजी के साथ जाकर लड़का देखा, लड़का अनपढ़ था लेकिन लड़के के पिता ने कहा, “सौ बीघा जमीन आती है लड़के के हिस्से में, पढ़ कर क्या करता कोई नौकरी तो करनी नहीं थी, तुम्हारी लड़की राज करेगी हमारे यहाँ आकर”। देव भी यही सोच कर तैयार हो गया, अपने पिताजी को भी यही कहकर मना लिया कि गौरी राज करेगी। शादी के बाद ससुराल वालों ने गौरी को नौकरानी बना दिया, घर का सारा काम करना, खाना भी पूरी तरह नहीं मिलता था सिर्फ दो रोटी उस पर थोड़ी सी सब्जी रख कर हाथ पर ही रख दी जाती थी। गौरी ने कभी अपनी ससुराल की शिकायत अपने भाइयों से नहीं की। गौरी के एक लड़का भी हो गया लेकिन अचानक ही भयंकर बीमारी ने गौरी को घेर लिया। ससुराल में तो कोई पूछने वाला भी नहीं था, बस पूछते थे तो काम को। बीमारी और घर के काम मे पिस रही गौरी अपने बच्चे की तरफ भी ध्यान नहीं दे पाती थी। एक दिन देव गौरी से मिलने आ गया, जब देव ने गौरी को ऐसी हालत में देखा, उसे बड़ा दुख हुआ। उसने गौरी के जेठ से बात की, “अगर आपकी आज्ञा हो तो में कुछ दिन के लिए गौरी को अपने साथ ले जाऊँ”। देव गौरी को अपने साथ अपने घर ले आया, उसकी हालत तो खराब थी ही अतः डॉक्टर को दिखाया, डॉक्टर ने गौरी की बीमारी की भयंकरता देखते हुए उसको अस्पताल में भर्ती कर लिया, गौरी के बेटे को गौरी की माँ अपने पास रखती थी, दिन में एक दो बार लाकर दूध पिलवा देती थी, अभी चार माह का ही तो था। जिस घर में राज करने के लिए गौरी की शादी की थी उन्होने तो मुड़ कर यह भी नहीं देखा कि उनकी बहू जिंदा है या मर गयी और न ही अपने बेटे का कुछ पता लिया, लेकिन देव काफी समझदार था ऐसी बात वह कभी भी किसी की जबान पर नहीं आने देता था। साधु महाराज की बताई हुई दवा से गौरी कुछ ठीक हो गयी, उसको पूरी तरह ठीक होने के लिए लंबे समय तक नमक, मिर्च, हल्दी, मसाले व मीठा सब बंद करना था, सिर्फ फीका खाना ही खा सकती थी और वह भी पतला-पतला, जैसे दूध का दलिया वगैरह। माँ, भाई और भाभी तो उसका पूरा ध्यान रख रहे थे, तभी उसके जेठ गौरी को लिवाने आ गए, वह कहने लगे, “हमारे पिताजी काफी बीमार हैं यहाँ तक कि अपने अंतिम समय में हैं अतः ऐसे समय पर उन्होने अपनी बहू और पोते को देखने की इच्छा जताई है”। ऐसे मे देव मना भी नहीं कर पाया और उसने भारी मन से गौरी को उनके साथ भेज दिया, साथ मे यह भी समझा दिया कि गौरी का इस तरह से परहेज चल रहा है अतः आपको इसके खाने का थोड़ा ध्यान रखना पड़ेगा।
गौरी फिर से ससुराल आ गयी, बीमार ससुर के पैर छूये, आशीर्वाद लिया और फिर पिसने लगी वही काम की चक्की में। पोते को देख कर ससुर जी खुश तो हो गए लेकिन वो उसको गोद मे नहीं उठा सकते थे क्योंकि खुद ही नहीं उठ पाते थे। कुछ दिनों बाद गौरी के, ससुर भगवान को प्यारे हो गए, घर में मातम का माहौल था जिस का गौरी की सेहत पर विपरीत असर पड़ रहा था, ऐसे मे तो देव भी कुछ नहीं कह सकता था, देव गौरी के ससुर की तेरहवीं मे होकर बिना कुछ कहे ही वापस चला गया। गौरी अपने खाने के लिए थोड़ा सा दूध लेकर दलिया बना लेती थी और वही खाया करती थी। काम से थोड़ी फुर्सत मिलती थी तो बेटे के साथ खेलती थी जिससे उसका मन थोड़ा बहल जाता था। परिवार में सास, जेठ, जेठानी, जेठ के तीन लड़के और एक लड़की और पति इतने ही सदस्य थे लेकिन घर का काम बहुत था। सुबह सुबह हाथ की चक्की से आटा पीसना, दूध बिलो कर मक्खन निकालना, मट्ठा बनाना, सुबह नाश्ते की रोटी बनाना, फिर दोपहर का खाना तैयार करना और इसी तरह फिर शाम का खाना बनाना। सारा खाना चूल्हे पर लकड़ी और उपलों की आग पर ही बनता था। सभी के झूठे बर्तन और दोपहर में सबके कपड़े धोना, अपनी सास के पैर दबाना, उनके सिर मे तेल मालिश करना इतना काम गौरी करती थी लेकिन कभी भी शिकायत नहीं करती थी। एक दिन् गौरी ने अपने खाने के लिए दूध मे फीका दलिया बनाकर ठंडा होने के लिए रख दिया था। गौरी की जेठानी को उसका इस तरह से अपने लिए अलग से बना कर खाना अच्छा नहीं लगता था। उस दिन तो उसकी जेठानी आई और उसने दलिये का पतीला उठाकर नाली मे उड़ेल दिया और कहने लगी, “तू क्या महारानी है? जो अलग से बनाकर खाती है, अगर खाना है तो वही खा जो सबके लिए बनता है”। गौरी ने काफी समझाने की कोशिश की, ”मेरे लिए नमक मिर्च मसाले या मीठा खाना जहर के समान है”, लेकिन जेठानी ने एक नहीं सुनी और घर में हँगामा खड़ा कर दिया, बोलने लगी, “मेरे बच्चे तो दिन रात खेतों मे काम करके कमाते हैं और तू महारानी अलग से खाना बना कर खाती है”। उस दिन गौरी की बात किसी ने नहीं सुनी और गौरी को पहली बार सबसे ज्यादा दुख हुआ, अकेले मे बैठ कर खूब रोई, उसको अपने भाई की बड़ी याद आई, रोते रोते ही गौरी सो गयी। सुबह उठी तो मन थोड़ा हल्का था लेकिन भगवान से यही प्रार्थना कर रही थी, ”हे भगवान आज मेरे भाई को भेज देना”। उधर देव भी पूरी रात बैचन रहा और सुबह उठते ही बहन से मिलने के लिए चल दिया। देव को आया देख कर गौरी को बड़ी खुशी हुई गौरी ने उसको कुछ भी नहीं बताया फिर भी देव उसकी तकलीफ समझ गया, अतः उसने गौरी के जेठ से गौरी को अपने साथ ले जाने की इजाजत ली और गौरी को लेकर अपने घर आ गया। इस बार देव ने गौरी का पूरा इलाज़ और पूरा परहेज करवाया, तभी वापस ससुराल भेजा। ससुराल जाकर गौरी को एक और लड़का पैदा हो गया। धीरे-धीरे दिन बीतते गए, गौरी के बच्चे बड़े होने लगे, बड़े वाला बच्चा अभी चार साल का ही हुआ था कि जेठ का लड़का प्रताप आकर बोला, “चाची! मुन्नू को मेरे साथ काम करने भेजा करो अब तो यह बड़ा हो गया है, कुछ तो काम मे हाथ बंटाएगा, अब सारा काम हम ही करते रहेंगे क्या, चाचा जी तो बाहर बाहर ही रहते हैं, आखिर खेती मे आधा हिस्सा तो तुम्हारा भी है, अतः आधा काम तो तुम लोगों को भी करना चाहिए” और वह मुन्नू का हाथ पकड़ कर अपने साथ काम पर ले गया। खेत मे पानी सींचने के लिए रहट चल रहा था, इसमे दो बैल जोत रखे थे जो गोलाकार घूमते हुए रहट को खींचते थे जिससे पानी निकलता था फिर वह पानी एक नाली से होकर खेत मे जाता था। जेठ का लड़का प्रताप मुन्नू को लेकर रहट पर आ गया और उसके हाथ मे एक डंडी देकर बोला, “इन बैलों के पीछे पीछे घूमते रहना, जब भी रुके तो इनको एक डंडी मारना ये फिर चल पड़ेंगे” और स्वयं फावड़ा लेकर खेत मे चला गया। मुन्नू पूरे दिन इसी तरह डंडी लेकर बैलों के पीछे पीछे घूमता रहा, घूमते घूमते उसके पैर दुखने लगे, उसने भाई से बताया, “भाई मेरे पैर दुख रहे हैं मैं थक गया हूँ”, भाई बोला, “जब खाते हो तब तो नहीं थकते जो काम करने मे थक गए हो”। शाम हुई तो रहट बंद कर दिया और बैलों को लेकर भाई गाँव की तरफ चल पड़ा, मुन्नू भी उसके पीछे पीछे घर आ गया। घर पहुँच कर मुन्नू माँ के पास जाना चाहता था, वह बहुत थक गया था, उसके पैर दर्द कर रहे थे, लेकिन बड़े भाई (ताऊ के लड़के) ने उसका हाथ पकड़ा और ले गया कुट्टी काटने की मशीन के पास और कहने लगा, “अभी तो घास कटवाना है फिर सभी पशुओं को चारा डालना है”। मुन्नू बोला, “भाई मेरा हाथ तो जाएगा ही नहीं मशीन के हत्थे तक फिर मैं मशीन कैसे चलाऊँगा” तब भाई ने मशीन के हत्थे मे एक रस्सी बांध दी और बोला, “तू रस्सी खींच कर मशीन चला और जब चारे की कुट्टी कट जाय उसको टोकरे मे भरना”। मुन्नू के नन्हें नन्हें हाथों से टोकरा ठीक से भरा नहीं जा रहा था तो यह देख कर प्रताप को गुस्सा आ गया और प्रताप ने मुन्नू को बाजू से पकड़ कर लगभग बाहर को धकेलते हुए ज़ोर से धक्का देकर कहा, “चल भाग यहाँ से तुम तो बस खाने के लिए पैदा हुए हो, काम करने के लिए नहीं, काम तो हमे ही करना है”। मुन्नू गिरते गिरते बचा और रोने लगा, रोते रोते दौड़ कर अपनी माँ के पास गया। उस दिन मुन्नू माँ से लिपट कर बहुत रोया और कहने लगा, “माँ मैंने पूरे दिन रहट पर बैल हाँके हैं, मेरे पैर दुखने लगे हैं, भाई के साथ रस्सी खींच कर कुट्टी कटवाई है, मेरे हाथ दुखने लगे अब मेरे छोटे छोटे हाथों से टोकरा नहीं भरा जा सका तो भाई ने मुझे बहुत डांटा और भला बुरा कहा है“। माँ बोली, “हाँ बेटे मैं जानती हूँ अभी तुम्हारी उम्र नहीं है इस तरह के काम करने की लेकिन फिर भी मैं नहीं रोक पायी चूंकि तुम्हारा पिता अकेला ही है काम करने वाला और तुम्हारे ताऊ और उनके तीन लड़के, काम करतें हैं”। मुन्नू बोला, “माँ मेरे पैर दर्द कर रहे हैं” तब माँ उसके नाजुक पैरों और हाथों को सहलाने लगी, माँ का प्यार पाकर मुन्नू को नींद आ गयी, बिना कुछ खाये पिये ही मुन्नू सो गया। अब तो रोज़ सुबह मुन्नू को जगा दिया जाता और रहट पर बैल हाँकने के लिए लगा देते, शाम को कुट्टी काटना, पशुओं को चारा डालना यह सब उसकी दिनचर्या बन गयी थी, गौरी यह सब देखती, परेशान होती पर चुप रहती थी, अगर एक दो बार उसके पिता से बात की तो पिता ने कह दिया, “काम करने से मर नहीं जाएगा तुम्हारा मुन्नू”। जिस व्यक्ति ने स्वयं काम न किया हो वह चार साल के बच्चे को काम करने की नसीहत दे रहा था। गौरी सोचने लगी, “क्या यही होता है राज, इसी तरह की होती है रानी और इसी तरह का होता है राजकुमार!”
मुन्नू के ताऊ के तीन लड़के थे प्रताप, धीर और अनीस। इनमे प्रताप ज्यादा तेज था और वह ही मुन्नू को सबसे ज्यादा सताता था, कभी कभी तो मुन्नू रोने लगता था, लेकिन उसके रोने का किसी पर कोई असर नहीं पड़ता था, जिस पर असर पड़ता था वह कुछ कर नही सकती थी। एक दिन मुन्नू ने माँ से पूछा, “मामा कब आएंगे, अब तो हमे नानी से मिले भी काफी दिन हो गए हैं, क्यूँ न मामा के आने पर उनके साथ चलें नानी से मिलने के लिए”। गौरी मुन्नू की बात समझ गयी थी और उसने कह दिया, “हाँ अबकी बार जब भी तेरे मामा आएंगे तो हम तेरे मामा के साथ नानी के घर चलेंगे”। इतनी बात सुन कर मुन्नू खुश हो गया और दूध पीकर सो गया। गौरी एक सुंदर और सुशील लड़की थी जिसने हमेशा एक सुंदर राजकुमार का सपना देखा था, “कोई सुंदर सा राजकुमार सजीली घोड़ी पर बैठ उसको ब्याहने आएगा”, लेकिन हुआ उसका उल्टा ही, सोच रही थी, “मेरा जीवन तो इस नर्क मे ही कटेगा, पर मैं अपने बच्चों को पढ़ाऊंगी, खूब पढ़ाऊंगी जिससे वे पढ़-लिख कर बड़े आदमी बने, और इस नारकीय जीवन से दूर जा सकें”, यही सोचते सोचते उसको भी नींद आ गयी। प्रताप के अत्याचार सहते सहते मुन्नू छह साल का हो गया तब गौरी ने उसको स्कूल मे दाखिल कराने के लिए कहा। मुन्नू के स्कूल मे दाखिले की बात पर घर मे कोहराम मच गया सब गौरी को गलियाँ देने लगे, कहने लगे, “हमारे घर मे क्या कोई कमी है जो मुन्नू पढ़ कर नौकरी करेगा”, लेकिन गौरी ने अपना इरादा नहीं बदला और वह इस बात पर अड़ गयी कि मुन्नू को स्कूल भेजना ही है। प्रताप को यह बात सबसे ज्यादा खटक रही थी क्योंकि उसे लग रहा था, “मुन्नू स्कूल जाएगा तो रहट कौन चलाएगा”। गौरी ने शादी के बाद से कभी कोई जिद नहीं की थी लेकिन इस बार वह जिद करके बैठ गयी थी। किसी तरह गौरी ने अपनी सास को भी अपने पक्ष मे कर लिया, अतः जब गौरी की सास ने मुन्नू के पिता से मुन्नू का दाखिला स्कूल मे कराने के लिए कहा तो वह उनकी आज्ञा की अवहेलना नहीं कर पाया और इस तरह मुन्नू का स्कूल मे दाखिला हो गया। मुन्नू सुबह उठ कर नहा धोकर एवं साफ कपड़े पहन कर स्कूल जाने लगा, उसे स्कूल जाना अच्छा लगता था क्योंकि जब तक वह स्कूल मे रहता था तो उसको प्रताप के अत्याचारों से छुटकारा मिला रहता था, लेकिन स्कूल से आने के बाद उसको फिर इसी तरह काम मे जोत दिया जाता था जैसे कि वह कोई बंधुआ बाल मजदूर हो। मुन्नू जब भी माँ से शिकायत करता तो वह यही कह देती थी, “बेटा जब तू पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाएगा फिर कोई भी तुझ पर हुक्म नहीं चला पाएगा” और मुन्नू भी बस यही सोचता, “”जब भी मैं पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाऊंगा तो सबसे पहले माँ को यहाँ से लेकर जाऊंगा और कभी कोई काम नहीं करने दूंगा”। लेकिन प्रताप नहीं चाहता था कि मुन्नू पढ़ने के लिए स्कूल जाय इसीलिए वह उसकी पढ़ाई मे तरह तरह कि अड़चनें पैदा करता रहता था।
गौरी के दूसरे भाग मे आप पढ़ेंगे कि क्या वह अपने बच्चों को पढ़ा पाई, क्या उसके बच्चों को प्रताप के अत्याचारों से छुटकारा मिला? अतः पढ्न न भूलें गौरी भाग-2