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खिडकी

खिड़की

लेखक :–

अजय ओझा


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खिड़की

जैसे ही आपने खिडकी खोली, सुबह की सुवासित हवाएँआपके कमरे में आकर तुरंत ही शांत हो गईं, –बिलकुल वैसे ही जिसतरह सारी खुशियाँ आपके जीवने में आने से पहले ही खो गई थीं ।हवा की उन ताजगियों को आप महसूस करे न करे उतने में तो गुम भीहो गईं ।

खिडकी के उपर की दीवार पर रखीं मेरी तसवीर के पासआपने अगरबत्ती जलाई और 'ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय'बोलकर मुझे प्रणाम किया ।

खिडकी के ठीक सामने दूर तक लंबी सडक फैली थी ।सामने के छोर पर एक–दो ओटो खडी थीं । सडक के दोनों ओर घरोंओर दूकानों का जंगल लगा था । खिडकी के सामने इस तरफ सलीमकी पान की दूकान थी । उसके बगल में म्युनिसिपल पब्लिक युरिनल,इस शहर की पहचान–सी होटल, –यहाँ मुन्ना की कीटली थी ।

आपने एक खास किसम के ध्वनिसंकेत की मदद सेहोटल की ओर चाय का इशारा किया । गर्म चाय के घूंट से जलीआपकी स्मृतिशक्ति की फाइल से कागज़ बिखरे ़ ़ ;हिन्दी फिल्मों की तरह आपने अपने माँ–बाप को उनकेआखरी वक्त में कोई वचन नहीं दिया था, फिर भी दोनों छोटे भाईको आपने पाल पोसकर बडे किये । दोनों की पढाई–लिखाई औरबाद में नौकरी तक का जीवन निश्चित बनाकर ही आप को संतोषहुआ । उन दोनों की शादी हो जाने के बाद ही आपने शादी की ।

इसके बावजूद भी दोनों भाई माल–मिल्कत के लिए आपके साथझगडते रहे। आपने अपना हिस्सा त्यागकर उन दोनों को बाँट दिया ।

पुरखों का घर भी उन्हीं को देकर आप मेरी तसवीर समेत इस छोटे–सेकमरे में रहने आ गये । चूँ कि आप शिवभक्त तो है ही, इस लिएआपने कमरे में मेरी तसवीर खिडकी के उपर रखी थी ।बात इतने से खत्म होने वाली कहाँ थी ? आपकी सलाहके बावजूद भी दोनों भाई आपस में लडते रहे, अखबारों में एकदूसरेको नोटिस देते रहे, अदालत तक बात पहूँच गई तो भी उनको अपनीइज्जत की कोई फिक्र नहीं थी ।

'चालीस रूपए ़ ़ ' चाय का कप वापस लेने आये होटलके लडके ने पिछले महीने का उधार बिल माँगा । उसे रूपए देकरउसीके हाथों सलीम की दूकान से पान मँगवाकर खाया । पान कीसुपारी के साथ फिर आप यादों को भी चबाने लगे ।धन–दौलत भाईयों पर निछावर करके आप अपनी पत्नीको लेकर यहाँ रहने भले ही आ गये पर ये बात आपकी पत्नी को पसंदनहीं आई थी । आपकी गिरती–सँभलती रोजमदारी से घर चलाना उसेकाफी मुश्किल लग रहा था । बिना पैसे का प्यार आपकी पत्नी कोरास नहीं आया । तंग आकर एक दिन मायके जाने के बहाने वोआपको अकेला छोडकर निकल पडी । बाद में आपको मालूम पडा किवह किसी दूसरे मर्द के साथ भाग गई थी ।हाँ, मुझे याद है; उस दिन खिडकी बंद करके आप मेरीतसवीर के सामने फूटफूटकर बहोत रोये थे । उस आंतर्‌नाद सेतसवीर की फ्रेम के अंदर मैं व्याकुल हो उठा था । इस तरह आप इसअकेलेपन में खुद को डुबोते रहे, डुबोते रहे ।

आज भी कभी कोई अचानक या जान–बूझकर आपकीपत्नी के बारे में पूछता है कि, 'भाभीजी कब वापस आयेंगी ?' –तोआप अपना बरसों पुराना वहीं जवाब देते है, 'कौन ़ ़ माया ? हाँ,अभी अभी ही तो मायके गई है । अब वह जल्दी ही आ जायेगी । अभीअभी ही खत आया था, वो इस महीने की सात तारीख को आ रहीहै।'

उसके जाने के बाद एक खत ऐसा जरूर आया था जिसमेंलिखा था :'मैं इस महीने की सात तारीख को आ रही हूँ ।' आप ऐसेखोखले पत्र के झूठ को सच समझ बैठे । उस बात को तो आज सातसाल हो गये है, फिर भी आप अपना वही सात साल पुराना जवाबसबको देते है । आपके इस जवाब को पहले तो लोग सच मान भी लेतेथे, फिर बहाना समझते थे, पर अब तो पागलपन कहते है, पागलपन।और इसमें गलत भी क्या है? ये पागलपन नहीं तो और क्या है ? बाकीसब समझते है कि इस सात तारीख को तो क्या, पर कोई भी साततारीख को आपकी पत्नी अब वापस आनेवाली नहीं है ।़ ़ फिर भी आप हमेशा इसी तरह खिडकी खोलकर दूरतक देखते रहते है, मानो कोई आनेवाला हो, जिसका काफी अरसेसे आपको इंतजार है ।

'लेकिन मेरे पास कौन आता भला ?' आपके मन में प्रश्नहुआ । तो भी बाहर नजरें दौडाना बंद नहीं किया ।मुन्ना की होटल पर चार–पाँच ग्राहक अखबार पढ़ रहें थें।सलीम अपनी दूकान में आ रही धूप को रोकने के लिए पर्दा बाँध रहाथा । सडक की उस तरफ ओटोवाला किसी संभवित पेसेंजर के साथरकजक कर रहा था । धूप तेज होती जा रही थी तो सडक पर लोगोका आनाजाना कुछ कम हो रहा था ।

'आखिर मैं इंतजार किसका कर रहा हूँ ?' फिर आपकेमन में प्रश्न हुआ । प्रश्न हुआ ही है तो उसका उत्तर भी कहीं होगाना? विचारों के उतार–चढाव अब बिना गियर बदले ही गति में आगये। 'सात साल पहले चली गई पत्नी कभी वापस आ सकती है ? मैंउसका इंतजार करता हूँ ? नहीं, अब वो कभी वापस नहीं आ सकती।

तो ? तो क्या मैं पोस्टमेन के इंतजार में हूँ ?' –प्रश्न के साथ एकस्मित भी आपके चेहरे पर आया । 'पोस्टमेन का इंतजार क्यों ? कोईपुराने दोस्त का पत्र आनेवाला है ? या फिर; –इस सात तारीख को मैंआ रही हूँ– माया का ऐसा सचमुच का पत्र आये ? या फिर डिवोर्स कानोटिस ? या फिर, या फिर ़ ़ , आखिर में नौकरी के लिए दिल सेभेजे एप्लिकेशन का इन्टर्व्युकोल आये ?। नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं ।ये सारी आशाएँ निराश होने के लिए ही बनी है । तो क्या दोनों छोटेभाई मुझसे माफी माँगने, समझौता करने आयेंगे ?' प्रश्न, फिर प्रश्न,प्रश्न के उत्तर में भी प्रश्न ।

सामने फैली लंबी सडक पर देखा, आपको लगा, 'मेराजीवन भी इस बेजान सडक की तरह ही है, जिसको अपने पैरों तलेकुचलकर लोग आगे बढ़ जाते हैं । तभी तो सडक वहीं की वहीं है,जीवन भी वहीं का वहीं है ।

बिना सायलेन्सर की एक ओटो की हडबडाहटभरी कर्कशआवाज़ से आपकी तंद्रा टूटी । ओटो अपकी खिडकी के पास रुकी ।

आपको हैरत हुई कि आपके दोनों भाई ओटो से उतरकर आपके पासआ रहे थे । आपको खुशी हुई । भाईयों का स्वागत किया, उन्हेंबिठाया । बात शुरु करते हुए छोटा भाई बोला, 'मोटाभाई, हम दोनोंभाईयों ने सुलेह कर ली है । हम सारी जायदाद दो हिस्सों में बाँटनेराजी़ हो गये है । लेकिन एक समस्या है ।'

तुरंत ही आपने खुशी से कहा, 'आप दोनों ने सुलेह करली, ये मेरे लिए काफी खुशी की बात है । बताओ, क्या समस्या है?'

'दरअसल बात ये है कि ़ ़ ' दूसरे भाई ने बात को हाथमें लेते हुए कहा, ' बाबूजी की सारी जायदाद में से कुछ चीजें मिलतीनहीं । बाबूजी की अँगूठी, बा की सोने की चेन, कुछ पितल केकीमती बरतन, सब मिलाकर यही कुछ पन्द्रह हजार रूपए की बात है।

हमारा खयाल है ये सारा सामान आप ही के पास होगा । अब ़ ़आपने तो अपना हिस्सा छोड़ दिया है, तो ये सब हमें दे दें तो ़ ़ ,और हां मोटाभाई, आपने ये सब बेच दिया है तो हमें कोई ऐतराज़नहीं । हमें तो आप केशपेमेन्ट कर देंगे तो और भी अच्छा होगा,हिस्सा बाँटना आसान हो जायेगा । वैसे हमें कोई जलदी नहीं ़ ़ ।'

बाहर की सडक पर बीजली के खंभे पर करंट लगने सेनीचे गिरकर छटपटा रही एक गिलहरी पर यकायक ओटो के पहिए धँसगये । उस तरफ से नजरें लौटाकर दोनों भाईयों को आपने कहा,'जहाँ तक मुझे याद है, ये सारी चीजें आप दोनो की पढाई–लिखाईऔर शादी–ब्याह में खर्च हो गई है । अब मेरे पास कुछ नहीं है । फिरभी आप दोनों को कुछ रूपए चाहिए तो मैं देखता हूँ, शायद कहीं से

कुछ व्यवस्था हो जाती है तो अच्छा है ़ ़ ' आप आगे न बोल सके औरनिगाहें मेरी तसवीर पर टिकाई ।

'जैसी आपकी मरजी, मोटाभाई । हम चलते हैं ़ ़ ' खडेहोकर दोनो भाईयों ने कहा, 'हमने सोचा था आप शांति से सबकुछदे देंगे, लेकिन ़ ़ अब लगता है कि ़ ़ , खैर, देखते हैं ।'उन दोनों के जाने के बाद आप खिडकी के पास आकरबैठे । शून्यावकाश से भरी निगाहें बाहर घुमाने लगे । थोडी–सी धूपखिडकी में से अंदर आ रही थी । इतने में पोस्टमेन आया, उसनेखिडकी में से ही एक लिफाफा आपके हाथों में थमा दिया । नौकरीके लिए इन्टर्व्युकोल होगा ़ ़ , आपकी आँखों में चमक आ गई ।

लिफाफा खोलने से पहले ही आपने देखा कि सडक के किनारे सेआपका पुराना जिगरी दोस्त इधर ही आ रहा है । और ये क्या ? देखोउसके साथ ये कौन है ? माया ़ ़ , आपकी पत्नी । वे दोनों इधर हीआते हैं । आपकी आँखों में खुशी के आंसु आ गये । नजदीकी दोस्तआपके प्रति अपनी दोस्ती जताने आपकी पत्नी को समझाकर वापसलेकर आया होगा । उसका शुक्रिया कैसे अदा करना होगा यही सोचमें आप पड़ गये ।

लिफाफे को एक ओर रखकर आपने उन दोनों का स्वागतकिया । कुछ बोलने के लिए आपके पास लफ्ज़ नहीं थे । थोडी देरपहले भाईयों ने जो जखम दिये थे वो जखम भी न जाने कहाँ से भरगया ।

इतने सालों बाद पत्नी और दोस्त को मिलने का आपकोबहोत आनंद हो रहा था । एक–दो सामान्य बातें करने के बाद दोस्तने आपको कुछ कागजात दिये । आपने कागजात देखें, फिर माया केसामने देखा । उसके चेहरे पर कोई ऐसी रेखाएँ नहीं थी जिसे आप पढ़सकें । हां, ये डिवोर्स पेपर्स थे, जिस पर महज आपको अपने हस्ताक्षरही करने थे ।

छटपटाकर मर चूके उस गिलहरी के बच्चे की ओर देखकरआपको जलन होने लगी उसकी ।

डिवोर्स पेपर्स पर हस्ताक्षर करके कागजात वापस दोस्तको दे दिये । एक बार फिर माया को देख लेने की इच्छा हुई, पर अबउसे देखने का कोई मतलब ही नहीं रहा था । ये वही जिगरी दोस्त थाजो होस्टेल में आप ही का जूठा खाना छिनकर अक्सर खा लियाकरता था । आज भी वही दोस्त ने वही काम किया ।

जाते जाते दोस्त एक इन्विटेशन कार्ड भी दे गया ओरकहता गया, 'बाय धी वे, इस सात तारीख को माया के साथ मेरीशादी है । वैसे तू मेरा खास दोस्त है तो आयेगा तो मुझे सबसे ज्यादाखुशी होंगी ।'

अब तो शायद अभी की अभी ही मेरी तीसरी आँखखुलेगी, अब तो जरूर खुलेगी, खुलनी ही चाहिए ऐसे अनुमान के साथआप खिडकी के उपर रखी मेरी तसवीर के सामने देखने लगे । मेरीतीसरी आँख के सामने देखने लगे । ़ ़ ऐसा कुछ नहीं हुआ । निराशहोकर आप खिडकी से बाहर देखने लगे ।

सडक के उस तरफ की बनिये की दूकान का व्यापारीबाहर रखे अनाज–किरानें की कीमतों के बोर्ड में तबदीली कर रहाथा। सामने एक भी ओटो स्टेन्ड पर खडी नहीं थी । गिलहरी काबेजान शरीर कोई कूत्ता मुँह में लेकर भाग गया ।

अब कोई आनेवाला तो नहीं ? –सोचते हुए आपने बाहरदेखा । नौकरी के इन्टर्व्यु का लगता लिफाफा खोलना याद आया ।पर अब वह लिफाफा आप ना ही खोले तो बेहतर होगा । यदि खोलेंगेतो भी लिफाफे का राज़ आपको ज्यादा परेशान करने के काबिल भीनहीं, क्यूं कि उस लिफाफे में नौकरी के कोई कागजात नहीं बल्किकिसी पत्रिका को आपने भेजी हुई कहानी 'अस्वीकार' होकर वापसआई है । तो लिफाफे को खोलो या ना खोलो, कोई फर्क नहीं । आपजानते है; थ्री फैज बिजली का करंट लगने के बाद और कोई 'सिंगलफैज' करंट आदमी को कुछ नहीं कर सकता ।

़ ़ एक और बात सुन लें आप, यूं खिडकी के बाहर देखतेरहने के बजाय क्या आपको नहीं लगता कि ये 'खिडकी' ही अब बंदकर देनी चाहिए ??